शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

दोहे- असत्य

झूठ/असत्य
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दोहे
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राह-राह गोरस बिके, हाला बैठ बिकाय।
सत्य नापता है गली, झूठ मिठाई खाय।।०१।।
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आज  आचरण  झूठ  का , बना  जगत  आधार।
चलने  से   पहले   करो  ,  मन  में  सदा  विचार।।०२।।
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छलिया छल करता फिरे, दिखे कहीं न सत्य।
सत्य ढूँढता मैं रहा, मिलता रहा असत्य।।०३।।
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आँखों में पट्टी बँधी, करते झूठा जाप।
अब तो आँखे खोल लो, झूठा जगत प्रताप।।०४।।
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नैतिक थे जब आचरण, खूब छले हैं लोग।
जब से वो ढोंगी बनें,मिलते छप्पन भोग।।०५।।
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करें आचरण सत्य का , बनिए सदा महान।
नींव झूठ की हो अगर,बनते नहीं मकान।।०६।।

 आचार्य प्रताप

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

मेरी प्रथम वायुमार्ग यात्रा- आचार्य प्रताप


मेरी प्रथम  वायुमार्ग यात्रा-
दिनांक- १०-०२-२०१८
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मैं राहुल प्रताप सिंह "प्रताप"
आप सभी को अपनी वायुमार्ग से की गई प्रथम यात्रा के बारे बताना चाहता हूं।
कृपया ध्यान से पढ़िएगा।
जब २५  जनवरी को दिल्ली जाने के लिए मैंने हवाईमार्ग का चयन कर जब अपनी टिकट देखा तो हैरानी हुई; इस हैरानी कारण था कि टिकट में आरक्षित बैठक सीट क्रमांक उपलब्ध नहीं था, तो मैंने विलंब न करते हुए ग्राहक सेवा केन्द्र में संपर्क किया वहां से प्रदत्त जानकारी के माध्यम से बता रहा हूं।
मैंने उन्हें बताया कि मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा करने वाला हूं, और मेरी टिकट पर सीट क्रमांक उपलब्ध नहीं है, तो संभवतः वो हंसने लगी और बडे मधुर ध्वनि में बोली 'सर आपको एयरपोर्ट पर चेक-इन करना होगा और २ घंटे पहले पहुँचना होगा यदि आप ऐसा नहीं करना चाहते हैं तो आप वेब चेक-इन कर सकते हैं किन्तु यह शुभ-कार्य आप ४८ घंटे पहले ही कर पाएंगे"।
मैंने पूछा," क्या दो घंटे पहले जाना आवश्यक है?"
जी नहीं! कहते हुए उन्होंने पुनः जानकारी दी कि यदि आप वेब चेक-इन कर लेते हैं तो मात्र पैंतालीस मिनट पहले जाए।
मैंने कहा, ठीक है। और बात समाप्त हो गई।
मैंने कहा, "अब दिल्ली दूर नहीं!"
        देखते-देखते वो दिन आ ही गया जब मुझे दिल्ली के लिए प्रस्थान कर चाहिए था। मैं सुबह ४:१५ को नींद से जागा और अपने मित्रो को जगाते हुए बोला, उठो यार अब जाने का समय आ गया है।
और मैं नहाने के लिए निकला ही था कि एक संदेश आया कि आपका वायुयान आपकी प्रतिक्षा में #नजरें_बिछाए_बैठा है, मैं बाहर आकर देखा और वापस स्नानगृह पर पहुँच गया।
तैयार हुआ और निकल पड़ा दिल्ली के लिए।
टैक्सी चालक को बुलाया और  वायुयान पतन केंद्र पर पहुँच गया, टैक्सी चालक की असीम अनुकम्पा से दो घंटे पहले ही पहुँच गया वहाँ पहुंच कर देखा कि पंक्तिबद्ध सभी यात्री खड़े हुए हैं आपना मोबाइल, पर्स और सिक्के बेल्ट एक छोटी-सी प्लास्टिक की थैली में लेकर । "मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा कर रहा था" तो जैसे सभी कर रहे थे वैसे मैं भी पंक्ति में आ गया।
जैसे ही चेक-इन करनें के लिए उसके पास पहुंच गया तो जांचकर्ता के हाथ में एक यंत्र था जो कि टीं-टीं करने लगा मैंने देखा कि ताले की चाभी मेरे जेब में ही रह गई थी।
और किसी तरह अंदर आ गया।
समान लिया और प्रतिक्षा करने बैठ गया।
मैं चुपचाप देख रहा था कि लोग आ-जा रहे हैं, क्योंकि "मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा कर रहा था"।
पूरे एक घंटे ३० मिनट प्रतिक्षा में बीत गए। फिर वो पल आया जब पुनः मधुर ध्वनि संदेश सुनाई दिया कि दिल्ली जाने वाले यात्रियों का हम स्वागत करते हैं।
मैंने आपना "बोरिया-बिस्तर बांधकर" पुनः पंक्ति में खड़ा हो गया और आगे की ओर बढ़ते हुए आपना बोर्डिंग-पास वहां की महिला सुरक्षा अधिकारी के   हाथ में दे दिया और नीचे उतर कर आ गया। फिर क्या था मैं अपने सभी मित्रों और प्रशंसकों के साथ कुछ चित्र साझा किया और वायुयान पर चुपचाप बैठ गया, क्योंकि मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा कर रहा था।
अब वायुयान के अंदर आने के बाद एक रहस्य का पता लगा...


आगे और भी है  द्वितीय अंक में प्रकाशित करता हूँ।

घायल- प्रेम से ओत-प्रोत

दोहा
मुझको घायल कर दिया, तेरे नैनन तीर।
तेवर ऐसा आपका, जैसे नीरज नीर।।०१।।
आचार्य प्रताप

वसंतोत्सव

दोहे
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आज बताता हूं तुम्हें, ऋतु वसंत की बात।
बच्चे-बूढ़े भी करें, राग-द्वेष की बात।।०१।।
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बातों-बातों में कही, प्रियवर ने इक-बात।
प्रियवर तुमसे प्रेम है, प्रियवर ने दी मात।।०२।।
=============================
फूल-फूल ही दिख रहे,फूला आज बबूल।
सुमन महकते बाग में, भौंरे ढूँढें फूल।।०३।।
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जैसे पतझड़ बाद ही, आए सदा वसंत।
वैसे ही सुख प्राप्त हो, और दुखों का अंत।।०४।।
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आचार्य प्रताप
Acharypratap

दोहे-आचार्य प्रताप

#दोहे
सात वार सप्ताह के, अठवांँ है परिवार।
सुखद रहा परिवार तो, सुखद रहें सब वार।।०१।।
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संध्या का यह समय है, सुबह न कहना यार।
शाम सुबह  या दोपहर, रहना सदाबहार।।०२।।
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हर आँगन तुलसी लगी, तन-मन रखे निरोग।
फल-फूल और पत्तियाँ , सबका है उपयोग।।०३।।
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स्वागत है अब आपका, प्रथम दिवस नववर्ष।
धन वैभव से पूर्ण हो ,  बढ़ता  जाए  हर्ष।।०४।।

आचार्य प्रताप
#Acharypratap

सौंदर्य आहें-2

दोहा
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काया कमसिन कामिनी , मन मेरा मकरंद ।
अब तुम पर ही मैं लिखूं , प्यारे प्यारे छंद ।।०१।।
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नयन-नयन में हो रही ,दिल से दिल की बात।
अधरों में आकर रुके, दिल के सब जज्बात।।०२।
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अधर,अधर से मिलन को, करें प्रतीक्षा रोज। 
पावन प्रेम बना रहे , जैसे पंक-सरोज।।०३।।
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आचार्य प्रताप
Acharypratap

सौंदर्ययुक्त आशुचित्र

#दोहे

सुंदर मुखड़ा देखकर, मोहित हुआ प्रताप।
ज्ञान बड़ा सौंदर्य से, सुंदरता अभिशाप।।०१।।

मुखड़ा सुंदर है बड़ा, बड़ा तुम्हारा ज्ञान।
मैं तेरे लायक नहीं, मैं ठहरा आज्ञान।।०२।।

कैसे कह दूं प्रेम है, तुमसे अब भी यार।
व्याकुल होकर भटक रहा,हर पल मैं संसार।।०४।।

नयन अधर सुंदर दिखे, सुंदर दिखा कपोल।
स्वार्णिम तेरे केश हैं, रूप तेरा अनमोल।।०५।।

विधु से पूंछूँ मैं सदा,अब तक मिले न नैंन।
दिखती कैसी प्रेयसी, हर पल मैं बेचैन।।०६।।

प्रेमी प्रसंग प्रेयसी,प्रियवर प्रिय है प्रेम।
तुम बिन जीवन रस नहीं, शांति नहीं है क्षेम।।०७।।

दर्शन देजा शुभा श्री, मिला नयन से नैन।
अब उर शीतल हो गया, मिला अभी है चैन।।०८।

वादा कर ले साजनी , दे  हाथों में हाथ।
जीवन रूपी राह में, नहीं छोड़ना साथ।।०९।।
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आचार्य प्रताप
#acharpratap

जन्म दिन पर आधारित दोहे


💐💐💐💐💐💐💐💐💐🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌸🌸🌸🥀🌹🌺🌺🌺
जन्म दिन पर आधारित दोहे
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जन्म दिवस है आपका, मिली बधाई आज।
वर ईश्वर से माँगता, पूर्ण  करें वो काज।।०१ ।। 
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दिए बधाई आज सब , देत नहीं कल कोइ। 
समय बाद जो मिलत है, कोई  मूल्य न होइ।।०२।।
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तिथि विशेष है आज की, धरा-धरा पर देंह। 
लें आशीष अग्रजन के, देते रहें सनेंह।।०३ ।।
*****************************************
प्रताप बधाई  रहें, जन्मदिवस है आज। 
सुख शांति उन्नती मिले, प्रगती करे समाज।।०४ ।।
********************************************आचार्य प्रताप
#Acharypratap

सौंदर्य आहे

दोहे
*****
०१
सुंदर मुखड़े से मिली, आज नयी पहचान।
सुंदरता तो क्षणिक हो, वाणी सब कुछ जान।।०१।।
०२
बड़ी बात मत कीजिए, बड़े कीजिए कर्म।
 कर्मों से बढ़कर नहीं, जग में कोई धर्म।।०२।।
०३
आलोचक बिन जानिए, पूर्ण नहीं हो ज्ञान।
बुरा कभी न मानिए,यही सदा दो ध्यान।।०३।।
आचार्य प्रताप

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

नमामि देव शंकरः -आचार्य प्रताप

#नमामि_सर्वेभ्यो।
#तिथिः- २१-०२-२०२०
#शिवरात्रि_पर्वस्य_शुभाशयाः  
#नमामि_देव_शंकरः   -#पञ्चचामर_छदस्य
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नमो    नमो  नमो   नमः  नमामि शंकरः शिवम्।
नमामि   देव   शंकरम्   नमामि पार्वतिः  शिवम्।
पिनाक    त्वम्  दिगम्बरः  भुजंगभूषणाय  त्वम्।
अखण्ड ज्योति दिव्यताम् विराज साज वंदनाम्।

प्रमाद  नाद  नाशयत्य  अनादि   देव  शंकरम्।
शिखस्त  गङ्ग  चंद्रिके   त्रिनेत्र   शूलपाणिनम्।
अनीश त्वम् विनीश त्वम् त्वमेव कालभैरवम्।
मसानवासते    त्वया    प्रकाश्य   वर्ततेत्वयम्।

नरेश्वरः     दिनेश्वरः     त्वमेव    अष्टमूर्तये।
पतीश त्वम् वृषांक त्वम् त्वमेव शुद्धविग्रहे।
व्योमकेश  रुद्र  त्वम्  त्वमेव   पूषदन्त्भिदे।
हिरण्यरेतसे    नमः    नमामि     वीरभद्राये।

अखण्ड   विश्व  पालकः   सुअंतरंग्सनातनम्।
प्रशस्तिसृष्टि   वंदितुम्  विलोक्य ईश मंगलम्।
अपार   शक्ति   नायकः   निशा प्रहार तारकः।
अनंत   विश्व    चेतनः   दिगंत   काल   वंदनः।

त्रिलोचने       शिवाप्रिये       भुजंगराजधारकः।
कलानिधान      बंधुरः     भूत   -   प्रेतनाथकः।
प्रदोष चित्त साध्यहम्  सदा भजाम्यहम् शिवम्।
सदाशिवः नमाम्यहम्  सदा   सुखी  भवाम्यहम्।

प्रताप   एव   वंदिते   कृपा  कटाक्षधोरणी।
विजीश  कामनाशकः प्रचण्ड  धूलिधोरिणी।
नवीन   मेघनिर्झरी   प्रफुल्ल   नीलकंठकः।
सहस्र मुण्ड मालिका कराल भाल पट्टिकः।

विमुक्त   व्याधि   प्राप्यहम् प्रदोष चित्त साध्यहम्।
नमामि   हे!  महेश्वरम्    कृपा   करोतु   शंकरम्।
नमामि   देव   शंकरम्   नमामि  पार्वतिः  शिवम्।
नमो    नमो  नमो   नमः  नमामि शंकरः  शिवम् ।

आचार्य प्रताप

इति आचार्यप्रतापस्य विरचितम् #पञ्चचामर_छदस्य नमामि देव शंकरः स्तुति समाप्तम्

शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

दोहा -आचार्य प्रताप

दोहा
रहिमन तुलसी जायसी, वृंदावन व कबीर।
और बिहारी संग में , दोहा सरिता नीर।।
-आचार्य प्रताप

दोहा-आचार्य प्रताप

दोहा
रहिमन तुलसी जायसी, वृंदावन व कबीर।
और बिहारी संग में , दोहा सरिता नीर।।
-आचार्य प्रताप

गुलाबी सर्दी में एक विरह गीत

गुलाबी सर्दी में एक विरह गीत
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दृगजलों 
को चक्षुओं
से  मत  बहाओ-
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।

कार्य
अपना पथ
प्रगति पर, है प्रिये सुन।
प्रेयसी
दो अनुमति
अब, शान  से तुम-
कंठ से क्रंदन  विरह का मत सुनाओ।
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।

एक 
क्षत्रिय जा
रहा रणभूमि जैसे।
अदम्य
साहस शौर्य
भर कर दो तिलक तुम।
केश उलझे तुम दिखा कर मत रिझाओ-
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।

सब
जानकी
जलतीं विरह की अग्नि में हैं।
हर
यामिनी 
पश्चात आतीं रश्मियाँ हैं।
यूँ तीर नयनों के हृदय पर मत चलाओ।
शीघ्र ही मैं लौट आऊँगा दोबारा।

आचार्य प्रताप

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

छंदों के प्रति नेह

कई मुक्त सृजनकर्ताओं को पढ़ने के बाद एक कुंडलियाँ
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नहीं बरसाता है कहीं , छंदों पर अब नेह।
कविता की ये देह को , कुचल रहें हैं मेह।
कुचल रहें हैं मेह , आज छंदों का जीवन।
छंद  देव  के हेतु  , समर्पित मेरा तन मन।
कविताओं  में  छंद , बहाते सदा सरसता।
छंद बिना अब नेह , कहूँ  मैं नहीं बरसता।

आचार्य प्रताप

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

आज का दुःख

दो पंक्तियाँ
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क्या कहूँ कैसे कहूँ  मनमीत मेरे
और कितने दुःख हृदय में मैं छुपाऊँ।
सोचता हूँ राज़ सारे खोल कर अब
आज क्रंदन सुर सभी को मैं सुनाऊँ।।

आचार्य प्रताप

सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

वाणी वन्दना - दोहे

  1. दोहे
ज्ञानदायनी शारदे माँ का मंगल रूप।
वर दे वीणा धारिणी चलूँ ज्ञान अनुरूप।।०१।।

प्रेम मिलन की आस मेंलिखता रहा प्रताप 
हे माँ शारद ज्ञान देंगुरु शरण दें आप।।०।।

पद्मासन को छोड़कर, बसिए वाणी आप।
सम्यक वर दो ज्ञान का , हर लो सब संताप।।
०३।।

तीन लोक विख्यात है , वाणी पर अधिकार।
शोभित वीणा हाथ में , दे दो सुमति अपार।।
०४।।

हंसवाहिनी ज्ञान दे , भर दो सुमति अपार।
करूँ जगत हित काम कुछ, वाणी आज सवार।।
०५।।

मातु शारदे को करो पहले आप प्रणाम।
गीत-ग़ज़ल अरु छंद का ,शुरू कीजिये काम।।०६।।

                                      -आचार्य प्रताप

वाणी वन्दना - दोहे

  1. दोहे
ज्ञानदायनी शारदे , माँ का मंगल रूप।
वर दे वीणा धारिणी , चलूँ ज्ञान अनुरूप।।०१।।

प्रेम मिलन की आस में, लिखता रहा प्रताप
हे माँ ! शारद ज्ञान दें, गुरु शरण दें आप।।०।।

पद्मासन को छोड़कर, बसिए वाणी आप।
सम्यक वर दो ज्ञान का , हर लो सब संताप।।
०३।।

तीन लोक विख्यात है , वाणी पर अधिकार।
शोभित वीणा हाथ में , दे दो सुमति अपार।।
०४।।

हंसवाहिनी ज्ञान देंं , भर दोसुमति अपार।
करूँ जगत हित काम कुछ, वाणी आज सवार।।
०५।।

मातु शारदे को करो , पहले आप प्रणाम।
गीत-ग़ज़ल अरु छंद का ,शुरू कीजिये काम।।०६।।

                                      -आचार्य प्रताप

वाणी- वन्दना - पञ्चचामर छंद


विधा-पञ्चचामर_छंद
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प्रणाम माँ तुम्हें करे प्रताप शान से सदा ।
अपार ज्ञान कोष से हरो समस्त आपदा।
विराजमान हंस में प्रकाश ज्ञान का‌ भरो।
सफेद वस्त्र धारिणी विकार दूर भी करो।

किताब हार हाथ में  सितार साथ में लिए।
उपासना करूँ सदा सरोज पुष्प भी दिए।
करूँ प्रणाम शारदे विशाल हंसवाहिनी।
दिया जला दिया गया विशेष ज्ञानदायिनी।

नमामि मातु शारदे नमामि ज्ञान दायिनी।
सरस्वती दया करो नमामि हंस वाहिनी।
कृपा करो कृपा करो प्रकाश ज्ञान का भरो।
दया करो दया करो समस्त आपदा हरो।

                        -आचार्य प्रताप

शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

अपराजिता छंद - आचार्य प्रताप

#अपराजिता_छंद
विधान-(नगण नगण रगण सगण लघु गुरु)
(111  111  212 112   12)
14 वर्ण, 4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत
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चतुर चपल चाल चंचलता चली।
वसन वसित मंजरी मन में फली।
सरस सलिल साथ ले सरिता  कहे
विरह  नयन   गात  पे चपला बहे।
----
लहर - लहर शीत- सी  बहती रहे।
सरल  सुगम   कामना  पलती रहे।
सफल सकल  साधना करती  रहे।
कठिन विमल  वेदना    हरती  रहे।
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प्रखर प्रबल तूलिका  चलती रहे।
सकल हृदय  चेतना  भरती रहे।
मधुर-मधुर ज्ञान भी बढ़ता चले।
नमन दमन दंभ को करता चले।
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#आचार्य_प्रताप
#Acharypratap

प्रभात दृश्य में एक गीत जैसा कुछ

प्रभात दृश्य में एक गीत जैसा कुछ
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प्रभात दृश्य देखिए।
विशाल वृक्ष देखिए।।

अनंत  रश्मियाँ   बहें।
सवार अश्व  हो चलें।
प्रताप  देखता  रहे-
प्रकाश पुंज देखिए।

खुली धरा खुला गगन।
प्रणाम कर करें  मनन।।
बढ़े  सदा  स्वमर्ग  पर-
निशान लक्ष्य साधिए।

नम धरा है नम गगन।
तन मगन है मन मगन
प्रसन्नतम् दिखें नयन-
तुहिन  कणों को देखिए।
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#आचार्य_प्रताप
#acharypratap

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

मकर राशि

दोहे
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एक राशि से अन्य पर , विचरण करते आप।
संक्रांति त्योवहार तब , आता कहें प्रताप।।०१।।
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मकर राशि में भानु का , गोचर दृश्य प्रवेश।
गुड़ तिल खिचड़ी मेल से , पर्व बना पर्वेश।।०२।।
-------
राशि मकर पर जब दिखे , गोचर भानु प्रवेश।
तिल गुड़ से तब अर्ग दें , मिट जाते सब क्लेश।०३।।
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मकर सहित ये चार हैं , कर्क तुला अरु मेष।
 रवि गोचर संक्रांतियाँ , मकर रही है विशेष।०४।।
------
आचार्य_प्रताप

कुछ महान पंडितों ने कबीर दास जी को गलत ठहराते हुए कहा कि :- दोहा **** काल करै सो आज कर, आज करै सो अब। पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब।। कबीर

कुछ महान पंडितों ने कबीर दास जी को गलत ठहराते हुए कहा कि :-
दोहा
****
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब।।
कबीर

उक्त दोहे में मात्र भार भी कम है और दोहों के आयाम (अर्थात् यति १३-११ के साथ १३ के लिए I S और ११ के लिए S I)का भी अनुसरण नहीं करता।
मैं स्वयं परेशान मैं शालीन प्राणी मैंने उन महापुरुष के समने मुस्कुराते हुए कहा कि आज आप एक बार सही जानकारी लें लीजिए हम कल बात करेंगे।
और उनसे विदा लिया और वापस अपने किराये के माकान में आ गया।
सभी विज्ञजनों के मत की प्रतिक्षा कर रहा हूं।
ॐ शुभमस्तु ॐ !
साभार
प्रताप

प्रतिउत्तर में अनेकों विद्वानों की टिप्पणियाँ



हरि शंकर मिश्र गूढ़ प्रश्न

रेखा सिंहः कठिन प्रश्न है भैय्या पर उत्तर देने के सुबह तक का समय चाहिए।

धरणीधर मणि त्रिपाठी भाई राहुल जी एक पोस्ट मैंने भी जायसी के बारे में डाला था जिसमें कबीर और रहीम जी के दोहों को भी उद्धृत किया था... विधान की कसौटी पर ये दोहे दोषपूर्ण कहे जा सकते हैं शक नहीं... परंतु यहाँ याद रखने वाली बात यह है उन्होंने कभी विधान दिमाग में रखकर नहीं कहा.... वे फक्कड़ किस्म के लोग थे चलते-चलते बैठे किसी भी सामाजिक बुराई, नीतिपरक बातों, प्रेम अहिंसा, दकियानूसी विचारधाराओं पर दोहा कह जाया करते थे जिनमें क्षेत्रीय भाषाओं के उच्चारण भी खास महत्व रखते थे।

आगे चलकर जब लोगों(विद्वजनों) को यह कमी खली तो उसे 13/11 यति पूर्व 1 2 और चरणांत 2 1 से करना ही उचित है ऐसा विधान बनाया ऐसा लगता है।

उपरोक्त दोहे में 13/10 तो दिख रहा मगर उच्चारण पर आइए...

मेरा जनपद वही है जो कबीर जी की कर्मस्थली रही है और उनके अवसान का पवित्र स्थल है यानि मगहर संतकबीर नगर!!!

यहाँ कब को थोडा़ जोर देकर बोलते हैं कब्ब, कब्बो आदि जहाँ जरूरी हो ऐसा उच्चारण प्रयोग करते हैं।

तो कब्ब/तब्ब/जब्ब ही कबीर जी ने बोला होगा अत:दोहा सही मानिए ऐसे विभूतियों को कसौटी पर कसना हम लोगों के वश की बात नहीं ।

मणि

डॉ.बिपिन पाण्डेय आपकी बात सोलह आने सच है। इन महान विभूतियों को कसौटी पर कसना उचित नहीं।

अटल मिश्रा अटल त्रिपाठी जी की बात से सहमत ,
ये मात्रा भार त्रुटि देशज और खड़ी बोली के अंतर का परिणाम हो सकता।
मैं गलत हो सकता हूँ पर विचार रख रहा हूँ।
रामायण में लिखा
क्षिति जल पावक गगन समीरा,पञ्च तत्व मिली रच्यो शरीरा।।
उस समय परमाणु अणु अवयव की खोज नही हुई थी ,तो तुलसी जी ने तत्व लिखा ,अव तत्व और अवयव अलग रूप में देखे जाते थे, अगर उस समय अवयव की पहचान होती तो तुलसी जैसे संत ज्ञानी सबको तत्व नही लिखते, छंदों में बन्दिश और तमाम नियम आधुनिक युग मे बने पर इसके जन्म दाता तो हमारे सदियों पुराने महान कवि ही है ।कबीर जी रहीम जी मीरा रसखान,आदि कवियों में कमी निकालने की क्षमता किसी आत्ममुग्धता ग्रसित कवि में होगी सज्जन ज्ञानी में नही

अटल मिश्रा अटल आजकल में ऐसे कवि भी खूब

जाकी कृपा अनन्य है,और नहीं कोइ तोड़।
मिथ्या अभिमान छोड़कर,हरि से नाता जोड़।
इस दोहे में दूसरे और तीसरे चरण में गलती साफ दिखती,मैने कवि से कहा कि टिप्पड़ी में तारीफ सबने की पर गलती किसी ने नही बताई,आजकल लोग केवल खाना पूर्ति हेतु कमेन्ट करते,तो कवि ने मुझे ही चार बाते सुना दी ,कहा तुम् से बहस करना बेबकूफी ही होगी,तुम्हे कुछ पता नहीं मात्रा भार सही है मैंने कहा मुझे ज्ञान न सही पर दोहा गलत है,तो साहब ने मुझे ब्लाक कर दिया।
उम्र दराज कवि लग रहे थे,शायद आप मे किसी से जुड़े हो ,कवि हरि नरायण मिश्रा जिनकी वाल पर ये दोहा है।आप पढ़ सकते हो।तो आत्ममुग्धता का घमंड किसी को कुछ नही समझता

डॉ.बिपिन पाण्डेय वे ऐसे ही हैं सर

अटल मिश्रा अटल Thanks पाण्डेय सर, मुझे उनका यह व्यवहार बहुत बुरा लगा,आखिर गलती को गलती स्वीकार करने में आदमी छोटा नही होता ,पर उन्होंने मुझे बेबकूफ घोषित कर दिया,मैंने वोला सर मैं कोई कवि नहीं हूँ न ज्ञान का प्रदर्शन करना चाहता ,पर गलत को गलत कहने की हिम्मत जरूर रखता,

धरणीधर मणि त्रिपाठी हहहहह ऐसे हैं यहाँ ध्यातव्य दो तो उलझ जाते हैं मिश्र जी

अटल मिश्रा अटल बिल्कुल उचित कहा आपने आदरणीय ,यहाँ सार्थक बहस को भी निर्थक बनाने वाले ।

धरणीधर मणि त्रिपाठी इसी तरह का विवाद दोहे के प्रारंभ को लेकर है कि इसे दो गुरु या चार लघु से ही करना चाहिए... कई कालजयी दोहे तब 1 2 से शुरू हुए जैसे; बडा़ हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, भारतेंदु जी के तो कई दोहे।आज यहाँ ऐसा करने से लड़ जाते हैं कविगण। बात सिर्फ़ इतनी है कि लघु गुरु से शुरू किए गये दोहे से कुंडलिया बनाने में दुश्वारियाँ आती हैं बस।

चेतन दुबे 'अनिल' बड़ा हुआ
एक शब्द नहीं दो शब्द हैं। आप दूसरे शब्द का हु पहले शब्द में जोड़कर 121 करके कबीर को गलत बताकर अपनी महानता का परिचय दे रहे हैं। यहां बड़ा हुआ में 2 त्रिकल हैं मान्यवर।
धरणीधर मणि त्रिपाठी महानता का परिचय तो बिल्कुल भी नहीं दिया... आप इतनी तल्ख़ भाषा का प्रयोग कर रहे हैं।मेरा पूरा कमेंट नहीं पढे आप मान्यवर... द्विकल त्रिकल चौकल अपनी जगह ठीक है।उस दोहे के संदर्भ में मैंने सिर्फ़ उदाहरण दिया है इस दोहे पर ।उन्होंने पोस्ट किया मैंने कमेंट कर दिया जो पता था... जो पढा आजतक आप "काव्यांजलि" अवश्य फढे होंगे कहीं द्विकल त्रिकल नहीं मिलेगा जैसे जैसे आप जैसे विद्वान आते गये विधान बदलता रहा।इंटरमीडिएट के पाठ्यक्रम में है ये सब।सिर्फ़ मात्राओं पर ही विधान दिया है । कल मैं इसका साक्ष्य भी दिखा दूंगा ।कहीं द्विकल त्रिकल नहीं लिखा।

चेतन दुबे 'अनिल' जी आप ठीक कह रहे हैं।
काव्यांजलि जरूर पढ़ँगा। सारा काव्य शास्त्र शायद उसी में है। त्रिकल द्विकल मैंने नहीं विद्वान आचार्यों ने बनाए हैं। कबीर तो बेचारे निरक्षर थे वे कविता क्या जानें। पर कबीर पर 700 से ज्यादा शोध करके लोग पी एच डी कर के कबीर से आगे निकल कर कबीर को कक्षाओं में पढ़ा रहे हैं। मैं कोई विद्वान नहीं हूँ।

धरणीधर मणि त्रिपाठी तो ये द्विकल त्रिकल भी उन्हीं विद्वानों की देन है और काव्यांजलि भी.... यहाँ तो ऐसे ही दुकान खोलकर पंडिताई कर रहे और साहित्यकार बनकर दुनिया को चरा रहे मान्यवर।

चेतन दुबे 'अनिल' जी उन्हीं चराने वालों में मैं भी एक दूकानदार हूँ जिसकी आय से ही मेरा गुजारा चलता है भाई जी।
धरणीधर मणि त्रिपाठी ये मैं क्या जानूँ.... आप अपने बारे में बेहतर जानते हैं मैंने ये काॅमन बात ऐसे मनीषियों के लिए कही है।

डाॅ.वीरेन्द्र प्रताप सिंह भ्रमर परिवर्तन प्रकृति का नियम है। साहित्य भी उससे अछूता नही रहा। यह विवाद का प्रश्न ही नही है। पहले के कवि या समाज सुधारक कहें भावना तथा जागरूकता के लिए काब्य सृजन करते थे। उन्ही को दृष्टिगत करते हुए कालान्तर में प्रत्येक छन्द या विधा का विधान खोजा गया। आज २३ तरह के दोहे इसी का प्रमाण हैं। धरणीधर जी की बात से भी सहमत हूँ की स्थानीय बोली तथा भाषा का भी प्रभाव रहा है। बलाघात भी उसका एक कारक रहा है। हम उसे गलत या दोष पूर्ण नहीं कह सकते हैं। अब हमें सृजन नयी सृजित तकनीक से करना चाहिए जिसमें विधान का यथोचित पालन किया गया हो । कबीर, सूर, जायसी, आदि के काल मे जिन छन्दों का निर्माण किया गया वह भाव के साथ पढना चाहिए। वही हमारे नवीन विधान के जनक हैं।
#डाॅ 0वी0पी0सिंह_भ्रमर
धरणीधर मणि त्रिपाठी सहमत हूँ आदरणीय... वे जो कह गये वह अमर हो गया हम सभी उनसे ही प्रेरित होकर लिख रहे हैं।अब सही विधान के अंतर्गत जो भी अच्छे दोहे लिखे जा रहे वे सभी अच्छे लगते हैं।

आचार्य प्रताप हार्दिक आभार दादा जानकारी के लिए।
साष्टांग प्रणाम।

Hansraj Suthar जहाँ हम जैसे लोगों की सोच खत्म हो जाती है वहां से उन लोगों (कबीर,ग़ालिब ) की सोच शुरू होती थी ।आप समझ गए होंगे मेरा इशारा

अमित हिंदुस्तानी मैं भ्रमर सर और धरणीधर 'मणि' त्रिपाठी सर से सहमत हूँ ।
कबीर जी के लिखे हो या किसी और के उन्होंने उस समय की प्रचलित भाषा में लिखा ।
कबीर जी ने कभी विधान के बारे में शायद ही विचार किया हो वह तो पंचमेल खिचड़ी प्रयोग करते थे । वह विधान से अधिक विषय पर जोर देते थे ।
और हमें आज के हिसाब से चलना चाहिए ।

अटल मिश्रा अटल विल्कुल अमित आपका चिंतन सर्वथा उचित और सही है ,सूर्य को दिया दिखाने वाले लोगों की तरह है कवीर जी तुलसी जी आदि सन्त कवियों के आलोचक।

Ram Naresh Raman कवि कुल के जो पूज्य हैं , कवि नहीं " सन्त कवि " हुए हैं। उनकी नव पीढ़ी के लोग उनके साहित्य में छिद्रान्वेषण कर अपने ज्ञानाभिमान का ही परिचय देते हैं। उनकी रचनाओं की साहित्यिक कसौटी समाज ने नहीं देखी वल्कि उन्हें नीतिगत सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया। वे हम सबके लिए गौरव के प्रतीक एवम् वन्दनीय हैं।

आचार्य प्रताप #क्षमा_चाहूंगा

इतने लोगों ने प्रतिक्रिया दी परंतु मुझे संतुष्टि जनक उतर की प्राप्ति नहीं हुई।
आप सभी का हार्दिक आभार।
मैं उन महानुभाव को क्या जवाब दूं?

धरणीधर मणि त्रिपाठी भाई हम इतना ही जानते थे और आप उस जवाब से संतुष्ट नहीं... संतुष्ट नहीं तो आप इसके बारे में बेहतर जानते हैं... कृपया हमें भी बताइए

रेखा सिंहः काल करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब्ब

राम कुमार मिश्र सादर निवेदन है कि कबीर एक निरक्षर महान संत थे। अतः उन्होंने जो भी लिखा है वह बिलकुल सही और सत्य ही लिखा है।

चेतन दुबे 'अनिल' सभी जानते हैं कि मात्रा गणना लेखन पर नहीं उच्चारण पर निर्भर होती है। यहाँ अब्ब कब्ब उच्चारण हो रहा है।

चेतन दुबे 'अनिल' कुछ अधिक आत्ममुग्ध विद्वान कहते हैं कि दोहा में मात्रा पतन नहीं होता । यह बात 100%गलत है। क्योंकि यदि दोहा में मात्रा पतन का विधान नहीं है तब तुलसीदास जी के मानस और दोहावली के 40% दोहे गलत हो जायेंगे। पर आज के कवि जो खुद को कबीर तुलसी निराला और दिनकर से बड़ा मानते हैं उनसे कुछ कहना मैं गलत मानता हूँ।