शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022

Manavata मानवता

 टाइम मिले तो पढ़ लीजियेगा

#बचपन में हम देखते थे कि #हल चलाते में अगर #बैल गोबर मूत्र आदि करे तो #किसान कुछ देर के लिए हल रोक देते थे ताकि बैल आराम से  नित्यकर्म कर सके।


जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान #पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं! यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा!


उस जमाने का #देसीघी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि  2 हजार रुपये किलो तक बिक सकता है ! उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने #बैलों को पिलाता था!


#टिटहरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है...हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टिटहरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था! उस जमाने में #आधुनिकशिक्षा नहीं थी!


सब आस्तिक थे! दोपहर को किसान जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा डालता और फिर खुद भोजन करता था...यह एक सामान्य नियम था !


बैल जब बूढ़ा हो जाता था तो उसे #कसाइयों को बेचना शर्मनाक #सामाजिकअपराध की श्रेणी में आता था!

#बूढाबैल कई सालों तक खाली बैठा चारा खाता रहता था...मरने तक उसकी सेवा होती थी!


उस जमाने के तथाकथित अशिक्षित किसान का मानवीय तर्क था कि इतने सालों तक इसकी माँ का दूध पिया और इसकी कमाई खाई है...अब बुढापे में इसे कैसे छोड़ दें? कैसे कसाइयों को दे दें काट खाने के लिए?


जब बैल मर जाता तो किसान फफक-फफक कर रोता था और उन भरी दुपहरियों को याद करता था जब उसका यह वफादार मित्र हर कष्ट में उसके साथ होता था! माता-पिता को रोता देख किसान के बच्चे भी अपने बुड्ढे बैल की मौत पर रोने लगते थे!


पूरा जीवन काल तक बैल अपने स्वामी किसान की मूक भाषा को समझता था कि वह क्या कहना चाह रहा है?


वह पुराना भारत इतना #शिक्षित और #धनाढ्य था कि अपने #जीवनव्यवहार में ही #जीवनरस खोज लेता था । वह करोड़ों वर्ष पुरानी संस्कृति वाला वैभवशाली भारत था ! 


वह #अतुल्य भारत था!


 पिछले 30-40 वर्ष में #लार्ड_मैकाले की शिक्षा उस गौरवशाली सुसम्पन्न भारत को निगल गई!






शनिवार, 1 अक्तूबर 2022

Budhiya Baghelifilm by AvinashTiwari

 बघेलखंड के बहुचर्चित लोकप्रिय अभिनेता माननीय श्री अविनाश तिवारी जी की एक फिल्म बुधिया जो कि शीघ्र ही सिनेमाघरों में आने वाली है उसका प्रमोशन माननीय श्री तिवारी जी बड़े जोर शोर से कर रहे हैं और बघेलखंड के लोग भी इस फिल्म को देखने के लिए अतुर है । बघेलखंड के इतिहास में बघेली को एक नया रूप देने के लिए माननीय श्री तिवारी जी ने जो यह कदम उठाया है वह वास्तव में अतुलनीय है और यह बघेली भाषा की श्रीवृद्धि में सहयोगी और लाभदायक होगा। श्री तिवारी जी से बातचीत के दौरान यह जानकारी प्राप्त हुई कि पिछले 60-65 दिनों से वह मात्र एक शर्ट में गुजारा कर रहे हैं उनका मानना यह है कि जब तक बुधिया फिल्म पूर्ण रूप से तैयार नहीं हो जाती तब तक वह शर्ट नहीं बदलेंगे शूटिंग पूर्ण हुए काफी समय हो गया अभी आजकल फिल्म की एडिटिंग, गानों की शूटिंग , रिकॉर्डिंग आदि का कार्य प्रगति पर है। श्री तिवारी जी का कहना है कि दर्शकों को शीघ्र ही बुधिया फिल्म सिनेमाघरों में देखने को मिल सकती है श्री तिवारी जी से बातचीत के दौरान यह जानकारी भी प्राप्त हुई की फिल्म को ना केवल बघेलखंड में अपितु अन्य क्षेत्रों में भी प्रदर्शित करने का विचार है साथ ही साथ श्री तिवारी जी ने इस फिल्म को संस्कृत भाषा में भी अनुवादित करने का विचार बनाया है जो कि वास्तव में सराहनीय कार्य है। इसके लिए श्री तिवारी जी ने अक्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्र को सहायता के लिए गुहार लगाई और कहा कि यदि अक्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्र सहयोग करेगा तो हम इस फिल्म को संस्कृत भाषा में भी अनुवादित करेंगे।


- Aksharvani Sanskrit Newspaper अक्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्रम् 


Avinash Tiwari Avinash Tiwari






बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

मित्र की बात और प्रतिउत्तर

 कल शाम एक मित्र ने कहा कि आचार्यवर आप इतना कुच्छ लिखते है और आपने ब्लॉग में  डालते है लोग इससे कॉपी करते हैं, और अपने नाम से शेयर करते हैं ; मैंने उनसे दो बाते कही 

1.मित्र यहाँ का सारा कंटेंट पुस्तक का रूप ले  चुका है 

और 

2.यदि कोई  कॉपी करके अपने नाम से शेयर करता है तो प्रमाण तो हमारे पास  ही उससे पूर्व का मिलेगा|


यदि सही कहा हो तो अवश्य बताएं