मंगलवार, 31 मार्च 2020

मुक्तक

गुरुवार, 26 मार्च 2020

कुण्डलिया छंद - आचार्य प्रताप

कुण्डलिया छंद

सामाजिक हो दूरियाँ ,  दिवस रैन अरु चंद।
जीवन  से  यदि मोह हो , घर  में  रहिए बंद।
घर  में   रहिए   बंद  ,   रहेगा  दूर  संक्रमण।
जनसेवक   संदेश , दे  रहे  बड़ा  आक्रमण।
कह प्रताप अविराम ,  सुनें सब जनता दैनिक।
काम-काज से दूर  , बनो न अभी सामाजिक।।०१।।
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रहें समाजिक दूरियाँ , घूमें नहीं विदेश।
नववर्ष  के  पूर्व   में, जनसेवक  संदेश।
जनसेवक संदेश, रहें सब घर में ही  बंद।
रोग संक्रमण ह्रास , जग में  हों रोगी चंद।
सुनिए सुधिजन बंधु , कहें जो बातें दैनिक।
जीवन से हो मोह , त्यागिए मेल समाजिक।
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आचार्य प्रताप

बेटियाँ- आचार्य प्रताप

बेटियो की प्रशंसा में कुछ शब्द
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निर्मल स्वच्छ रहे घर-आँगन , निर्मल स्वच्छ विचार।
शिक्षित होगी जब नारी तब , करे प्रगति संसार।
उदय तुम्हीं से  संध्या तुमसे , तुम जीवन का मान।
परहित अर्पित करती जीवन , निज प्रियतम की शान।
तू ही दुर्गा,काली भी तू, तू ही अबला नार।
मानव जन्म मिले मुश्किल से,  मत करना बेकार।।

आचार्य प्रताप

मंगलवार, 24 मार्च 2020

होली- जोगीरा सरारारा जोगीरा सरारारा

#दोहे-
जोगीरा सरारारा जोगीरा सरारारा
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नयन सरोवर सम प्रिये , रक्तिम अधर कपोल।
केश सुसज्जित देखकर , मन जाता है डोल।।०१।।
जोगीरा सारारारा जोगीरा सारारारा
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मृगनयनी मीन-आक्षी , मंजु मयूरी चाल।
रंगों के इस पर्व पर  , रँग देंगें अब गाल ।।०२।।
जोगीरा सारारारा जोगीरा सारारारा
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आज #होलिका‌ दह रही , #होली_का है पर्व।
हमें भक्त प्रहलाद की ,  भक्ति पर है गर्व।।०३।।
जोगीरा सरारारा जोगीरा सरारारा
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राजनीति किस ढंग की ,  करते चौकीदार ।
मोदी  मोदी  ही  करें , जनता आज  पुकार।।०४।।
जोगीरा सरारारा जोगीरा सरारारा
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मन मर्जी लिखते सभी , अपने सकल विधान।
भाव -  शिल्प  के  ज्ञान  से ,  रहते  ये अंजान।।०५।।
जोगिरा सराररा जोगीरा सरारारा
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#प्रताप

शनिवार, 14 मार्च 2020

दुमदार दोहे

आज के दुमदार दोहे
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सोच रहा था आज मैं, लिखकर दूँगा छंद।
बैठे -‌ बैठे  ही  हुआ,  फूलों  का  मकरंद।। 
लिए तुलसी की माला।
हुआ क्यों मैं मतवाला।।०१।।
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माँ ने खत में यो लिखा, रहना तुम तैयार।
कपड़े-जूते ले लिया, हुआ अनोखा प्यार।।
लिखा जो माँ ने खत में।
वहीं  था  मेरे  मन  में।।०२।।
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कहते हैं सब मित्र अब, कर लो तुम भी प्यार।
मित्रो   की  तो  हो  गई ,   शादी    मेरे   यार।।
चढ़ेगा कब तू घोड़ी। 
समय है थोड़ी-थोड़ी।।०३।।
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पाना हो यदि प्यार तो, करो प्रशंसा आज।
महिलाओं का साथ हो, सदा करोगे राज।।
यही है अबला नारी।
हुई ये सब पर भारी।०४।।
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नारी शक्ति की तुम्हें, आज सुनाऊँ बात।
कंधों से कंधा मिला ,पुरुषों को दें मात।।
प्रशंसा कर दूँ सारी ।
यही है अबला नारी।।०५।।
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सच को जब मैं सच कहूँ , मत सुनिएगा आप।
चाकू - छूरी  लें  यहाँ ,  पहुँचे   सभी   #प्रताप।।
सुनो सब मेरे यारों।
यहाँ से कल्टी मारो।।०६।।
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                     #आचार्य_प्रताप

मंगलवार, 10 मार्च 2020

कुंडलियाँ छंद

कुंडलियाँ_छंद
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मित्र परिधि में जुड रहे , भाँति-भाँति  के  लोग।
जुड़कर   भटके   ये  नहीं ,  कैसा  यह  संयोग।
कैसा  यह   संयोग  , कहे  ये  मन  हो    पावन।
बिन  ऋतु  लगे  वसंत ,  लगा जैसे  हो सावन ।
कैसे   बरसे   मेह  ,  टिप्पणी  आये   निधि  में ।
सरस सलिल सम राह ,   पधारें  मित्र परिधि में।
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आचार्य प्रताप

शनिवार, 7 मार्च 2020

शीर्षक- विदाई (संस्मारण)

शीर्षक- विदाई  (संस्मारण)
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विदाई चाहे तो विवाह के उपरांत हो या कक्षा की समाप्ति पर जब भी होती है आँखें नम कर जाती है।

          जब भी कक्षा में प्रवेश करता था मेरे लाडले प्यारे छात्र ससम्मान नमस्ते/प्रणाम अध्यापक जी! कहते हुए खड़े हो जाते थे।
                      मैं भी प्रतिक्रिया में प्रणाम /नमस्ते बोल कर बिठा दिया करता था। फिर पढ़ाना आरंभ ही करता था तो बीच में एक छात्र कुछ कहता है.... मेरे कानों तक ध्वनि आती है किन्तु स्पष्ट नहीं।
मैं उन सब पर "लाल-पीला  होता हूँ" और डाँटते हुए उन्हें कहता हूं:-   #नालायकों! तुम कुछ नहीं करोगे मात्र कक्षा में खलबली और कोलाहल कर सकते हो कक्षा को #चिड़ियाघर या #सब्जीमंडी  समझ लिया है।
फिर सब शांति से बैठकर मुझे सुनते हैं और जैसे ही मुझे अच्छा लगने लगता है और मैं  सोच रहा होता हूं कि मेरे छात्र सुधर रहे हैं तुंरत ही कोई अन्य छात्र कौंवे की भाँति कर्कश ध्वनि में कुछ कहता है और मुझे विवश हो कर पुनः "डाँट पिलाना" पड़ता है।
 ऐसा नहीं है कि मैं अपने छात्रों को प्यार नहीं करता , करता हूं पर दिखा नहीं सकता अन्यथा वो किसी की नहीं सुनते ।
 मैं अपने बच्चों के साथ थोड़ा हास्य-व्यंग्य के माध्यम से उनका मनोरंजन भी करवाता था कभी उन पर ही कभी स्वयं को शीर्षक बता कर।
            मुझे बहुत अच्छी तरह से स्मरण है  १४ नवम्बर का दिन था और विद्यालय में #बाल_दिवस मनाया जा रहा था, मैं  अचानक कक्षा में पहुँचा और सभी छात्रों ने एक साथ  अभिवादन किया और मैंने बैठने की आज्ञा दे ही दी थी।
 मैंने देखा कि एक छात्रा थोड़ा अधिक फैन्सी  कपड़े पहने हुए थी , तो कंधों के पास थोड़ा खुला हुआ था और उनके हाथ की त्वचा स्पष्ट  दिखाई दे रही थी, मैंने उसे पास बुलाया और थोड़े मधुर और सीरियस स्वर में कहने का प्रयास किया कि सब छात्र शांति बनाए बैठे थे ऐसा लग रहा था जैसे कि उन्हें  "साँप सूंघ गया हो"
और जो भी मैंने कहा था सभी ने सुना।
किंतु छात्रा ने अनसुना करने का बहाना करते हुए कहा- "क्या श्रीमान जी समझ नहीं आया?"
मैंने कहा - बेटा आपने दुकानदार को पूरे पैसे दिए थे न?
                   जी हाँ अध्यापक जी! , छात्रा की तरफ से प्रतिक्रिया आई ।
       तो ये कपडा इतना फटा क्यों है? मैंने पूछा।
वह "झेंपते हुए" कहती हैं कि ये नया फैशन है।

ओह ये बात जैसे दूरदर्शन में कलाकार पहनते हैं।
सभी छात्रोंं ने हँसना प्रारंभ कर दिया।
और कालांश समाप्त हो गया।
ऐसे ही की कहानियां हैं जो बता सकता हूं किन्तु नहीं।
मन और आँखें दोनों द्रवित हो जाती हैं , जब बीती हुई बातें याद आती हैं।
हाँ तो मैं विदाई समारोह के बारे में जानकारी दे रहा था।
यह ऐसा अवसर होता है जब नदियां अपने घर हिमालय से सिंधु सागर के एक छोर पर स्थित हों। और सिंधु सागर में मिलने को तैयार होती हैं।
जब एक यात्री हैदराबाद शहर से दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरने के पश्चात अपनी अगली उड़ान कोलकाता के लिए भरने हेतु वायुयान के प्रतिक्षा कर रहा  होता है।
विद्यालयीन विदाई समारोह भी कुछ ऐसा ही होता है।
यात्री उतरने से पूर्व क्षमा याचना करता है कि जो भी  गलतियां हुई हों उन्हें क्षमा कीजिएगा।
पर  हम शिक्षक उन्हें कैसे समझाए कि आप मात्र एक यात्री है और हम एक विमान की भाँति है हमने की यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचाया है और न जाने कितनों को और पहुँचाना होगा। हमें खुशी मिलती है कि जो कार्य हमने अपने विद्यार्थी काल में  नहीं किया आज हम अपने छात्रों के माध्यम से करते और कराते हैं।

बस अपने सभी छात्रों से इस विदाई समारोह के शुभ या अशुभ अवसर पर शुभकामनाएं देना चाहूँगा। कि अपने शिखर तक पहुंचे।

शुभ इसलिए कि हमारे छात्रों आगे बढ़ रहें हैं और अशुभ इसलिए कि हम अपने कीमती और अनमोल  छात्रों से जुदा हो रहे हैं।
अब तक की यात्रा मंगलमय रहीं आगे भी मंगलमय रहें

#बहुत_याद_आएगी_आप_सबकी

#आचार्य_प्रताप