मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

भारतीय नव वर्ष मंगलमय

ॐ ॐॐॐ 
युग + आदि = युगादि (दीर्घ स्वर संधि)- इस शब्द का शाब्दिक अर्थ *युग अर्थात वर्ष (year) एवं आदि का अर्थ आरम्भ, प्रारंभ (Begin) दोनों शब्दों को मिलाने पर युगादि बनता है,युगादि अर्थात नव वर्ष का शुभारम्भ* परन्तु कालान्तर में उच्चारण के कारण युगादि को *उगादी* कहा जाने लगा जिसका परिणाम और प्रमाण आज भी दक्षिण भारत के कुछ प्रांतों में सुना जा सकता है।

भारतीय संस्कृति के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शक संवत का शुभारंभ होता है तथा आज से शक संवत् २०७८ (2078) का शुभारम्भ हो रहा है अर्थात *भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ हुआ।* अतः आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।



*दोहे*
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चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, विक्रम संवत हर्ष।
भारत की यह सभ्यता, मंगलमय नववर्ष।।०१।
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मंगलमय नववर्ष हो,सफल रहें सब काज।
मंगल वेला में सभी, हर्षित होंगे आज।।०२।।
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 *आचार्य प्रताप*


*ॐ भारतीय नव वर्ष मंगलमय हो ऐसी कामना करता हूँ। ॐ*

*आचार्य प्रताप*

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

संस्कृत भाषा

#दोहे
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जिस दिन युवा देश के , समझेगे निज पाथ**।
संस्कृत अरु साहित्य को , लेंगे  हाथों-हाथ।।०१।।
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आज हमारी संस्कृति , रोती है निज देश।
संस्कृत भाषा जा रही , देश छोड़ पर-देश।।०२।।
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पुरातनी  भाषी   यहाँ   ,   माँगे   निज   अधिकार।
बिलख-बिलख कर कह रही , करिए पुनः विचार।।०३।।
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जाना हो यदि आपको , अब आगे परदेश।
संस्कृत का कर अध्ययन ,  पूर्ण करें आदेश।।०४।।
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संस्कृत   के  साहित्य   की  ,  महिमा  बड़ी  अपार।
वाल्मीकि , व्यास , पाणिनी ,  माघ , कालि , आधार।।०५।।
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आचार्य प्रताप

#गूढार्थ
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Path पाथ- राह

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

आचार्य सलिल – हिंदी साहित्य के उन्नयन पथ पर अग्रसर कवि, समीक्षक तथा छंदशास्त्री

 

आचार्य सलिल – हिंदी साहित्य के  उन्नयन पथ पर अग्रसर कवि, समीक्षक तथा छंदशास्त्री

चार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी को मैं व्यक्तिगत रूप से पांच से सात वर्षों से जनता हूँ और पिछले वर्ष २०२० के माह नवम्बर से आप अक्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्र के अक्षरवाणी काव्य मंजरी यूट्यूब चैनेल पर छंद अनुशासन का ज्ञान छंद सलिला/छंद ज्ञान  के माध्यम से प्रदान कर रहें हैं  आप के जन्मदाताओं में  जनक  स्व. श्री राज बहादुर वर्मा जी तथा जननी स्व. श्रीमती शांति देवी वर्मा जी रहे । आपके माता-पिता दोनों ही साहित्य में किसी न किसी माध्यम से जुड़े रहे पिता जी पाठक तथा विश्लेषक के रूप में तथा माता जी लेखिका तथा कवयित्री के रूप में जुड़ी रहीं।

हिंदी साहित्य जगत में कुशल साहित्यकार बहु आयामी लेखक कवि तथा छंदशास्त्री आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी को आज संभवतः कोई विरले ही होंगे जो नहीं जानते होंगे; आप व्यासायिक रूप से एक अभियंता के पद से सेवा-निवृत हो चुके है। आप पिछले 4 दशक से हिंदी की सेवा में लगे हुए हैं, प्राप्त जानकारी के अनुसार आप आधुनिक युग की माँ मीरा अर्थात महादेवी वर्मा जी के ममेरे भाई के बेटे अर्थात आप उनके भतीजे हैं तो इन तथ्यों के आधार पर यह कहना उचित होगा कि साहित्यिक गुण आपमें आपके पैतृकों से ही पैतृक सम्पति के रूप में प्राप्त हुयी है और आज आपने हिंदी के साहित्य को इतना धनाढ्य बनाया है की शायद ही कोई ऐसा किया होगा , अंर्तजाल में यदि सलिल या आचार्य सलिल हिंदी या अंग्रेजी भाषा टंकित किया जाय तो आपके बारे में ही समस्त जानकारियाँ उपलब्ध होंगी। यह नाम अब आम नहीं रहा, आप न केवल कविताओं में अपितु गद्य लेखन में भी आपनी लम्बी दूरी तय कर ली है कविताओं में जहाँ छंदों की बात की जाय तो आपके द्वारा अनेक नवीनतम छंदों क शोधकर्ता या जनक कहा जाता है जहाँ आपने आनेकों छंदों में स्याही बिखेरी है वहीं अनेक छंदों की शोध भी की है । यदि आप उनके द्वारा निर्मित छंदों को पढना और समझाना चाहते है तो गूगल के यूट्यूब पर अक्षरवाणी काव्य मंजरी पर जाकर प्लेलिस्ट में छंद ज्ञान की प्लेलिस्ट का चयन करें और निर्मित छंदों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं आचार्य भानू के छंद प्रभाकर में लगभग ६०० से ८००  के आसपास छंदों क वर्णन किया गया है  किन्तु आज छंदों की दुनियाँ में लगभग ११०० के पार छंद जिनकी जाति-प्रजाति दोनों ही भिन्न है,पिछले छः माह से आपके  संपर्क में रहने कारण ज्ञात जानकारी के अनुसार आपने अब तक लगभग ८१ सवैय्यों ( ऊपर-नीचे हो सकतीं है ) की खोज की है जिनमे बहुधा प्रयोग में लाई भी जा रहीं है , एक बहुत ही बड़ी और आश्चर्य की बात यह की आपने इतन छंदों की खोज की है किन्तु आपने अपने नाम से एक भे छंद नहीं बनाया सभी छंदों को आपने प्रकृति या अन्य दैनिक जीवन से सम्बंधित नाम दिया है जिसमें परोपकार की छवि झलकती हैं। प्रायः आज देखा जाय तो लोग एक शौचालय का निर्माण भी करते हैं तो उसे आपना नाम दे देते हैं किन्तु यहाँ आपने सैकड़ों छंदों को अन्यों के नाम से प्रसारित और प्रचारित कर रहें हैं साहित्य के इतिहास में यह योगदान सर्वदा स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा ।

आचार्य सलिल जी आप समय के नब्ज़ टटोलने की क्षमता रखते हैं आपको यह भलीभांति ज्ञात है की आज लोगो को क्या चाहिए और आगामी भविष्य में हिंदी साहित्य को क्या चाहिए होगा इन सभी को एक सूत्र में फिरोते हुए आप साहित्य के पथ में अग्रसर हैं जहाँ आज कविता के नाम पर अतुकांत तथा व्याकरण विहीन गद्य काव्य परोसे जा रहें है वही आप नवयुवकों को छंद और छंदों के प्रति जागरूक कर रहें है उन्हें निःशुल्क छंदों क ज्ञान दे कर छंदों की भावी पीढी का निर्माण कर रहें है कई ऐसे भी रचनाकार हुए है जो की आपसे सीखते है और तत्क्षण ही स्वयं गुरु बन बैठते हैं  मेरे इन कथनों का अर्थ या बिलकुल नहीं है कि वो स्वम्भू हो जाते है या ब्रह्मा बन जाते हैं मेरे कथन का भाव स्पष्ट है कि आप में वह क्षमता है कि आपके शिष्यों में शीघ्र-अतिशीघ्र गुरु बनने  की क्षमताआ जाती है  यह आपका आशिर्वाद और उस शिष्य की लगनशीलता पर निर्भर करता है।

आचार्य सलिल के लेखन क कौशल इतना प्रतापी है कि हिंदी की खड़ी बोली पर तो आपकी तूलिका दौडती है तथा अन्य बोलियों जैसे – बुन्देली , बघेली मालवी सहित अन्य  बोलियों पर भी आपका सृजन अनवरत होता है जिसमे लोकगीत से लेकर गीत –अगीत –नवगीत आदि सम्मिलित होते हैं उनकी भाषा शैली में देशज शबदावली के साथ-साथ अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ के शब्द भी होते है  जिसे तत्कालीन जनवाणी में जनसमूह पढ़कर समझ सकते है  आपने मेरी तरह भाषा को क्लिष्ट नहीं अपितु सरस और सरल बनाने का सफलतम प्रयास किया है आपने अपने काव्यों मेंछंद के साथ-साथ  रस और अलंकर क भी अधिकाधिक ध्यान रखा हैं आपने नवीनतम बिम्ब , प्रतीक का प्रयोग कर लोगों को आपनी बुद्धी के अनुसार समझने योग्य बनाया है  आप  काव्य में छंद-विभेद के द्वन्द्व को नहीं मानते अपितु आप एक समन्वयक दृष्टि रखते हैं आप लक्षण शास्त्री भी हैं आप आपने सृजनों में भाव , भाग- विभाग क एक व्यापक ज्ञान व वर्णन प्रस्तुत करते हैं । आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नाम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है। आपने हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में सृजन के साथ-साथ कई संस्कृत श्लोंकों का हिंदी काव्यानुवाद किया है। आपकी प्रतिनिधि कविताओं का अंगरेजी अनुवाद 'Contemporary Hindi Poetry" नामक ग्रन्थ में संकलित है। आपके द्वारा संपादित समालोचनात्मक कृति 'समयजयी साहित्यशिल्पी भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' बहुचर्चित है। आपने अंतर्जाल पर हिंदी के विकास में महती भूमिका का निर्वहन किया है।

आप इंजीनियर्स टाइम्स, यांत्रिकी समय, अखिल भारतीय डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ पत्रिका, म।प्र। डिप्लोमा इंजीनियर्स मंथली जर्नल, चित्राशीश, नर्मदा, दिव्य नर्मदा आदि पत्रिकाओं;  निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों एवं शिल्पान्जली, लेखनी, संकल्प, शिल्पा, दिव्यशीश, शाकाहार की खोज, वास्तुदीप, इंडियन जिओलोजिकल सोसायटी स्मारिका, निर्माण दूर भाषिका जबलपुर, निर्माण दूर्भाशिका सागर, विनायक दर्शन आदि स्मारिकाओं का संपादन कर सलिल जी ने नए आयाम स्थापित किए हैं।  समयजयी साहित्य शिल्पी भागवतप्रसाद मिश्र 'नियाज़' : व्यक्तित्व एवं कृतित्व श्री सलिल द्वारा संपादित श्रेष्ठ समालोचनात्मक कृति है। उक्त के ऐरिक्त सलिल जी ने ८ परतों के २१ रचनाकारों की २४ कृतियों की भूमिकाएँ लिखी हैं। यह उनके लेखन-संपादन कार्य की मान्यता, श्रेष्ठता एवं व्यापकता का परिणाम है।

हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेजी के बीच भाषा सेतु बने सलिल ने ११ कृतियों के काव्यानुवाद किए हैं। रोमानियन काव्य संग्रह 'लूसिया फैरुल' का काव्यानुवाद 'दिव्य ग्रह' उनकी भाषिक सामर्थ्य का प्रमाण है। उन्होंने हिन्दी, अग्रेजी के साथ-साथ भोजपुरी, निमाड़ी, छत्तीसगढ़ी, बुन्देली, मराठी, राजस्थानी आदि में भी कुछ रचनाएं की हैं। विविध साहित्यिक एवं तकनीकी विषयों पर १५ शोधपत्र प्रस्तुत कर चुके सलिल भाषा सम्बन्धी विवादों को निरर्थक तथा नेताओं का शगल मानते हैं। ५ साहित्यकार कोशों में सलिल जी का सचित्र जीवन परिचय तथा ६० से अधिक काव्य- कहानी संग्रहों में रचनाएँ सादर प्रकाशित की जा चुकी हैं।

सामाजिक-साहित्यिक कार्यों में सलिल जी ने अभियंता संगठनों, कायस्थ सभाओं, साहित्यिक संस्थाओं तथा सामाजिक मंचों पर गत ३१ वर्षों से निरंतर उल्लेखनीय योगदान किया है। अभियान जबलपुर के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में पौधारोपण, कचरा निस्तारण, बाल एवं प्रौढ़ शिक्षा प्रसार, स्वच्छता तथा स्वास्थ्य चेतना प्रसार, नागरिक एवं उपभोक्ता अधिकार संरक्षण, आपदा प्रबंधन आदि क्षेत्रों में उन्होंने महती भूमिका निभाई है। अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण अभियान के माध्यम से साहित्यकारों की स्मृति में अलंकरण स्थापित कर १९९५ से प्रति वर्ष उल्लेखनीय योगदान हेतु रचनाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित करने के लिए वे चर्चित हुए हैं। 'दिव्य नर्मदा' शोध साहित्यिक पत्रिका के कुशल संपादन ने उन्हें राष्ट्रीय ख्याति दिलाई।

इंजीनियर्स फॉरम के राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में अभियंता प्रतिभाओं की पहचानकर उन्हें जोड़ने एवं सम्मानित करने, अभियंता दिवस के आयोजन, जबलपुर में भारत रत्न मोक्ष्गुन्दम विस्वेस्वरैया की ७ प्रतिमाएं स्थापित कराने, म।प्र। डिप्लोमा अभियंता संघ के उपप्रान्ताध्यक्ष, पत्रिका संपादक, प्रांतीय लोक निर्माण समिति अध्यक्ष आदि पदों पर २७ वर्षों तक निस्वार्थ उल्लेखनीय कार्य करने के लिए वे सर्वत्र प्रशंसित हुए। प्रादेशिक चित्रगुप्त महासभा म।प्र। के महामंत्री व संगठन मंत्री। अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के उपाध्यक्ष, प्रशासनिक सचिव व मंडल अध्यक्ष, राष्ट्रीय कायस्थ महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आदि पदों पर उन्होंने अपनी मेधा, लगन, निष्पक्षता तथा विद्वता की छाप छोड़ी है। नागरिक उपभोक्ता संरक्षण मंच जबलपुर के माध्यम से जन जागरण, नर्मदा बचाओ आन्दोलन में डूब क्षेत्र के विस्थापितों को राहत दिलाने, आपात काल में छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी में सहभागिता, समन्वय जबलपुर के माध्यम से लोक नायक व्याख्यान माला का आयोजन, शहीद परिवारों को सहायता आदि अभिनव कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने में उन्होंने किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं ली। उनकी सोच है की लोक तंत्र की सफलता के लिए लोक को तंत्र पर आश्रित न होकर अपने कल्याण के लिए साधन ख़ुद जुटाना होंगे अन्यथा लोक अपनी अस्मिता की रक्षा नहीं कर सकेगा।

सम्मानों की सूची देखी जय तो  आचार्य सलिल को देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० से अधिक  सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, कायस्थ कीर्तिध्वज, कायस्थ भूषण २ बार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, वास्तु गौरव, सर्टिफिकेट ऑफ़ मेरिट ५ बार, उत्कृष्टता प्रमाण पत्र २, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, सत्संग शिरोमणि, साहित्य श्री ३ बार, साहित्य भारती, साहित्य दीप, काव्य श्री, शायर वाकिफ सम्मान, रासिख सम्मान, रोहित कुमार सम्मान, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, नोबल इन्सान, मानस हंस, हरी ठाकुर स्मृति सम्मान, बैरिस्टर छेदी लाल स्मृति सम्मान, सारस्वत साहित्य सम्मान २ बार हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग के शताब्दी समारोह अयोध्या में ज्योतिषपीठाधीश्वर जगद्गुरु वासुदेवानंद जी के कर कमलों से वाग्विदाम्बर सम्मान से अलंकृत होनेवाले वे मध्य प्रदेश से एकमात्र साहित्यकार हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, एवं गोवा के महामहिम राज्यपालों, म.प्र. के विधान सभाध्यक्ष, राजस्थान के माननीय मुख्य मंत्री, जबलपुर - लखनऊ एवं खंडवा के महापौरों, तथा हरी सिंह गौर विश्व विद्यालय सागर, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपतियों तथा अन्य अनेक नेताओं एवं विद्वानों ने विविध अवसरों पर उनके बहु आयामी योगदान के लिए सम्मानित किया है; तथा वर्ष २०२१ में अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र की ओर से आपके परोपकारी कार्य  छंद ज्ञान की  श्रंखला में निरंतरता बनाये रखने हेतु आपको आचार्य वामन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

 

रा.प्र. सिंह ‘आचार्य प्रताप’

प्रबंध निदेशक

अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र