सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

वाणी वन्दना - दोहे

  1. दोहे
ज्ञानदायनी शारदे , माँ का मंगल रूप।
वर दे वीणा धारिणी , चलूँ ज्ञान अनुरूप।।०१।।

प्रेम मिलन की आस में, लिखता रहा प्रताप
हे माँ ! शारद ज्ञान दें, गुरु शरण दें आप।।०।।

पद्मासन को छोड़कर, बसिए वाणी आप।
सम्यक वर दो ज्ञान का , हर लो सब संताप।।
०३।।

तीन लोक विख्यात है , वाणी पर अधिकार।
शोभित वीणा हाथ में , दे दो सुमति अपार।।
०४।।

हंसवाहिनी ज्ञान देंं , भर दोसुमति अपार।
करूँ जगत हित काम कुछ, वाणी आज सवार।।
०५।।

मातु शारदे को करो , पहले आप प्रणाम।
गीत-ग़ज़ल अरु छंद का ,शुरू कीजिये काम।।०६।।

                                      -आचार्य प्रताप

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