रविवार, 11 मार्च 2018

कुंडलिनी ९९

कुंडलिनी छंद
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शिक्षा मिले गरीब को, करें गरीबी दूर।
बिन शिक्षा के कुछ नहीं, सपने चकनाचूर।
सपने चकनाचूर, न देता कोई भिक्षा।
कह प्रताप अविराम, सदा लो पहले शिक्षा।
________________________प्रताप

मुक्तक

शीर्षक- आनंद की अनुभूति

दुखों में रोकर मिलता है, सुखों में हँसकर मिलता है
क्षुधा-पीड़ित हो प्राणी जो, उसे तो खाकर मिलता है।
जगत में मैंने देखा है, सभी की अपनी विधियां हैं-
पर ! मुझको तो बस आनंद, नव-छंद लिखकर मिलता है।
#प्रताप

शुक्रवार, 9 मार्च 2018

विदाई समारोह पर संस्मरण


विदाई सदैव ही आँखें नम कर जाती है।
बहुत दुःखी हूँ एक साथ दो विद्यालयों के छात्र-छात्राओं को विदाई समारोह में विदा किया है एक को दिनांक ६ फरवरी को और एक ०७ फरवरी २०१८ को ये दुःख कहा रोता।
यदि उनके सामने रोता हूं तो वो और भावुक हो जायेंगे अतः मैंने सोचा मेरे पास माँ शारदा के द्वारा दी गई शब्द-शक्ति है अतः उसका लाभ उठाऊँ।
और अाप सभी की प्ररेणादायक प्रतिक्रिया ने मेरे दुःख में मेरा साथ दिया और ढाढस बंधाया उसके लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूं।
#बहुत_बहुत_याद_आओगे_आप।

#प्रताप

#शीर्षक- #विदाई
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विदाई चाहे तो विवाह के उपरांत हो या कक्षा की समाप्ति पर जब भी होती है आँखें नम कर जाती है।

          जब भी कक्षा में प्रवेश करता था मेरे लाडले प्यारे छात्र ससम्मान नमस्ते/प्रणाम अध्यापक जी! कहते हुए खड़े हो जाते थे।
                      मैं भी प्रतिक्रिया में प्रणाम /नमस्ते बोल कर बिठा दिया करता था। फिर पढ़ाना आरंभ ही करता था तो बीच में एक छात्र कुछ कहता है.... मेरे कानों तक ध्वनि आती है किन्तु स्पष्ट नहीं।
मैं उन सब पर "लाल-पीला  होता हूँ" और डाँटते हुए उन्हें कहता हूं:-   #नालायकों! तुम कुछ नहीं करोगे मात्र कक्षा में खलबली और कोलाहल कर सकते हो कक्षा को #चिड़ियाघर या #सब्जीमंडी  समझ लिया है।
फिर सब शांति से बैठकर मुझे सुनते हैं और जैसे ही मुझे अच्छा लगने लगता है और मैं  सोच रहा होता हूं कि मेरे छात्र सुधर रहे हैं तुंरत ही कोई अन्य छात्र कौंवे की भाँति कर्कश ध्वनि में कुछ कहता है और मुझे विवश हो कर पुनः "डाँट पिलाना" पड़ता है।
ऐसा नहीं है कि मैं अपने छात्रों को प्यार नहीं करता , करता हूं पर दिखा नहीं सकता अन्यथा वो किसी की नहीं सुनते ।
मैं अपने बच्चों के साथ थोड़ा हास्य-व्यंग्य के माध्यम से उनका मनोरंजन भी करवाता था कभी उन पर ही कभी स्वयं को शीर्षक बता कर।
            मुझे बहुत अच्छी तरह से स्मरण है  १४ नवम्बर का दिन था और विद्यालय में #बाल_दिवस मनाया जा रहा था, मैं  अचानक कक्षा में पहुँचा और सभी छात्रों ने एक साथ  अभिवादन किया और मैंने बैठने की आज्ञा दे ही दी थी।
मैंने देखा कि एक छात्रा थोड़ा अधिक फैन्सी  कपड़े पहने हुए थी , तो कंधों के पास थोड़ा खुला हुआ था और उनके हाथ की त्वचा स्पष्ट  दिखाई दे रही थी, मैंने उसे पास बुलाया और थोड़े मधुर और सीरियस स्वर में कहने का प्रयास किया कि सब छात्र शांति बनाए बैठे थे ऐसा लग रहा था जैसे कि उन्हें  "साँप सूंघ गया हो"
और जो भी मैंने कहा था सभी ने सुना।
किंतु छात्रा ने अनसुना करने का बहाना करते हुए कहा- "क्या श्रीमान जी समझ नहीं आया?"
मैंने कहा - बेटा आपने दुकानदार को पूरे पैसे दिए थे न?
                   जी हाँ अध्यापक जी! , छात्रा की तरफ से प्रतिक्रिया आई ।
       तो ये कपडा इतना फटा क्यों है? मैंने पूछा।
वह "झेंपते हुए" कहती हैं कि ये नया फैशन है।

ओह ये बात जैसे दूरदर्शन में कलाकार पहनते हैं।
सभी छात्रोंं ने हँसना प्रारंभ कर दिया।
और कालांश समाप्त हो गया।
ऐसे ही की कहानियां हैं जो बता सकता हूं किन्तु नहीं।
मन और आँखें दोनों द्रवित हो जाती हैं , जब बीती हुई बातें याद आती हैं।
हाँ तो मैं विदाई समारोह के बारे में जानकारी दे रहा था।
यह ऐसा अवसर होता है जब नदियां अपने घर हिमालय से सिंधु सागर के एक छोर पर स्थित हों। और सिंधु सागर में मिलने को तैयार होती हैं।
जब एक यात्री हैदराबाद शहर से दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरने के पश्चात अपनी अगली उड़ान कोलकाता के लिए भरने हेतु वायुयान के प्रतिक्षा कर रहा  होता है।
विद्यालयीन विदाई समारोह भी कुछ ऐसा ही होता है।
यात्री उतरने से पूर्व क्षमा याचना करता है कि जो भी  गलतियां हुई हों उन्हें क्षमा कीजिएगा।
पर  हम शिक्षक उन्हें कैसे समझाए कि आप मात्र एक यात्री है और हम एक विमान की भाँति है हमने की यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचाया है और न जाने कितनों को और पहुँचाना होगा। हमें खुशी मिलती है कि जो कार्य हमने अपने विद्यार्थी काल में  नहीं किया आज हम अपने छात्रों के माध्यम से करते और कराते हैं।

बस अपने सभी छात्रों से इस विदाई समारोह के शुभ या अशुभ अवसर पर शुभकामनाएं देना चाहूँगा। कि अपने शिखर तक पहुंचे।

शुभ इसलिए कि हमारे छात्रों आगे बढ़ रहें हैं और अशुभ इसलिए कि हम अपने कीमती और अनमोल  छात्रों से जुदा हो रहे हैं।
अब तक की यात्रा मंगलमय रहीं आगे भी मंगलमय रहें।

#बहुत_याद_आएगी_आप_सबकी ।

#प्रताप

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

प्रताप-सहस्र से दोहा-अष्टक (सौंदर्यपूर्ण आशुचित्र देख कर उपजे दोहे )

दोहावली
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सुंदर मुखड़ा देखकर ,  मोहित हुआ प्रताप।
ज्ञान बड़ा सौंदर्य से , सुंदरता अभिशाप।।०१।।
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मुखड़ा सुंदर है बहुत, बड़ा तुम्हारा ज्ञान।
ज्ञान-ज्ञान से जब मिले ,  दूर हुए आज्ञान।।०२।।
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होता पीड़ा से भरा, सदा प्रेम का रोग।
कहता आज प्रताप फिर, मत कर ऐसा योग।।०३।।
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कैसे कह दूँ प्रेम है, तुमसे अब भी मीत।
व्याकुल मन विचलित रहे, लिखूँ विरह के गीत।।०४।।
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नयन अधर सुंदर दिखे, सुंदर दिखा कपोल।
स्वार्णिम तेरे केश ये ,  रूप तेरा अनमोल।।०५।।
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विधु से पूँछूँ मैं सदा,अब तक मिले न नैंन।
दिखती कैसी प्रेयसी, हर पल मैं बेचैन।।०६।।
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प्रीतम प्रीत प्रसंग पर  ,प्रियवर प्रिय तव  प्रेम।
तुम बिन जीवन रस नहीं, शांति नहीं ना क्षेम।।०७।।
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दर्शन दे जा शुभाश्री, मिला नयन से नैन।
फिर मन शीतलता मिले  , मिले तभी उर चैन।।०८।।
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आचार्य प्रताप

कुंडलिनी छंद

कुंडलिनी
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आया था जब जगत में, विलख रहा था खूब।
धीरे-धीरे फिर दिखी, मनमोहक सी दूब।
मनमोहक सी दूब, दिखी हरियाली माया।
लगता ऐसा आज, पुनः है सावन आया।।०१
०२
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आया था जब गाँव से , शहर हैदराबाद।
भाषा में था भेद तब , लगा हुआ बर्बाद।
लगा हुआ बर्बाद,सवारा अपनी काया।
भूत,भविष्य, वर्तमान, सब कुछ यहीं पर आया।
३.
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आया फाल्गुन मास अब, छाए रंग हजार।
रंग-बिरंगी तितलियाँ, उड़ती पंख पसार।
उड़ती पंख पसार, मिट रही उनकी काया।
टूटा जो था  पंख , नहीं फिर वापस आया।
४.
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कुंडलिनी का जागरण, मात्राओं का नाप।
दिन रात अभ्यास करो, लिखते रहो प्रताप।।
लिखते रहो प्रताप , सदा तुम भ्राता -भगिनी।
लय का रखना ध्यान,रचो तुम भी कुंडलिनी।।
५.
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छाया दिखती है नहीं, नष्ट हुए हैं पेड़।
जीवन खतरे में दिखे, जीवन हुआ अधेड़।
जीवन हुआ अधेड़, प्रदूषण की ही काया।
कह प्रताप अविराम, कहाँ से मिलती छाया।
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राहुल प्रताप सिंह "प्रताप"

दोहा-विंशति- आचार्य प्रताप

मात-पिता पूजन दिवस, भूल गए हैं लोग।
पश्चिम की यह सभ्यता, ढूँंढ़ रहे रति योग।।०१।।
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एक  बार  ही  वर्ष  में, आए दिवस जनाब।
यहाँ-वहाँ खोजो नहीं , ख़ुद ही बनो गुलाब।।०२।।
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लघु होकर गुरु निम्न से , वचन माँगते आप।
अँगूठे  के  संग  में , धन  भी  दिया   प्रताप।।०३।।
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प्रेमी से करता रहा, प्रेम-प्रेम आलाप।
प्रेम किया जिसने नहीं,जीवन व्यर्थ प्रताप।।०४।।
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पंचम दिवस वसंत का,माँ शारद का वार।
बिना आपके ज्ञान का, हुआ कहाँ उद्धार? ? ०५।।
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ऊषा खड़ी निहारती, दिखता जो आदित्य।
विरह यामिनी का हुआ, पुनः अंत ही नित्य।।०६।।
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सात वार सप्ताह के, अठवांँ है परिवार।
सुखद रहा परिवार तो, सुखद रहें सब वार।।०७।।
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गाल लाल हैं लाल के, लाल दिखे अब लाल।
लाल-लाल ही दिख रहा, चोंट लगी जब भाल।।०८।।
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बीता सारा दिवस है, किया नहीं कुछ काम।
सोचा अब कुछ बोल दूंँ  , भेजूँ प्रथम सलाम।।०९।।
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हर आँगन तुलसी लगी, तन-मन रखे निरोग।
फल-फूल और पत्तियाँ , सबका है उपयोग।।१०।।
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बातों-बातों में सही ,  कहा मित्र ने चोर।
संकट में जब पड़ गया,बढे मित्र की ओर।।११।।
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तुम मेरी कविता बनी, कवि बन गया "प्रताप"।
एक-दूजे के हम हुए, मिटे सभी संताप।।१२।।
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विधु से पूंछूँ मैं सदा,अब  तक मिले न नैन।
दिखती कैसी प्रेयसी,    हर पल मैं बेचैन।।१३।।
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चोरी करते चोर ये,आदत इनकी जीर्ण।
शब्द-भाव के चोर हैं, सोच बनी संकीर्ण।।१४।।
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शीतल लहरें शीत  की, सिखा रही हैं सीख।
बाहर अब निकलें नहीं,कहता मौसम चीख।।१५।।
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बड़ी बात मत कीजिए, बड़े कीजिए कर्म।
कर्मों से बढ़कर नहीं,   जग में कोई धर्म।।१६।।
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भुला दिया है आज फिर, श्रम संकट संताप ।
सबक़ बड़ा तुम सीख लो ,कहता आज प्रताप।।१७।।
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बिना रुके लिखती रही , तेज कलम की धार।
धोखे से यदि  रुक गयी, पुनः करो तैयार।।१८।।
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दुख हो चाहे सुख मिले, कहें सदा ही सत्य।
चाटुकारिता शुभ नहीं, बोलें नहीं असत्य।।१९।।
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बच्चों में दिखता सदा, ईश्वर का ही रूप।
बच्चों से ही छाँव है, बच्चों से ही धूप।।२०।।
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आचार्य प्रताप