एक शिक्षक की भूमिका
समाज के निर्माण में , देश के निर्माण में और भावी भविष्य की नवयुवा पीढ़ी के निर्माण में एक शिक्षक की भूमिका माकन के चार आधार स्तंभों में से एक की भाँति होती है। हम सबको ज्ञात है कि बिना शिक्षक के शिक्षा का विकास उसी तरह होता है जैसे कि एक असहाय , निर्बल राजा के कारण उसकी प्रजा और राष्ट्र का। विदित है कि "यथा राजा, तथा प्रजा।"
मैं संस्कृत प्रचारक होने के कारण संस्कृत के ही माध्यम से बताना चाहूँगा -
यथा शिक्षकः तथा विद्या , यथा विद्या तथा संस्कारः।
यथा संस्कारः तथा शिष्यः , यथा शिष्यः तथा राष्ट्र निर्माणः।।
- आचार्य प्रताप
आज हमारे समाज में शिक्षक की भूमिका ठीक उसी प्रकार से हो गयी है जिस प्रकार से की एक घोड़े को प्रतिस्पर्धा में भाग लेने का अवसर दिया गया हो और उसके पैरों में बंधन की बेड़ियाँ डाल दी गयीं हों।
ऐसी दीन दशा हुई , अध्यापक की आज।
जैसे धावक अश्व को , रसरी डाल समाज।।01।।
-आचार्य प्रताप
संभवतः शिक्षक की तुलना गधे , कुत्ते या फिर एक सामान्य मजदूर से की जाय तो अतिशंयोक्ति नहीं होगी; क्योंकि आज कल निजी विद्यालयों में शिक्षकों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है , काम के लिए गधे की तरह, कुत्ते की तरह इधर-उधर भटकाना और एक असहाय मजदूर की तरह उसका पारिश्रमिक भी सही अदा न करना , इस पर सरकार की ओर से कोई विशेष कदम न उठाना आने वाले भविष्य में शिक्षकों की कमीं का आभास कराता है। आज जो भी शिक्षक बन रहे है वो अपनी किसी न किसी विशेष परिस्थिति के कारण बन रहे है कोई अपनी रूचि से शिक्षक नहीं बनना चाहता है। इसके प्रमाणन हेतु मैने अनेक विद्यालयों में भ्रमण किया और कुछ अभिभावकों से वर्तालाप भी किया , यह मेरा अपना स्वयं का शोध है इस बात की पुष्टि करने के लिए मैंने एक विद्यालय की २५ विद्यार्थियों की एक कक्षा में प्रवेश किया और थोड़ी बात-चीत के बाद भावी भविष्य की जानकारी लेनी चाही और एक के बाद एक से पूछा कि आप भविष्य में क्या बनना चाहते हैं ?
तब मात्र दो छात्रों के प्रतिउत्तर मिले "शिक्षक" शेष अन्य।
इस शोध की तह तक जाने के लिए अन्य उत्तर वाले छात्रों से पूछा कि:-
आप शिक्षक भी बन सकते है पर आपने क्यों इससे नहीं चुना ?
छात्रों के मत कुछ इस प्रकार से थे -
शिक्षकों का वेतन बहुत काम होता है। शिक्षकों सबसे ज्यादा इधर-उधर घुमाते हैं (यह मेरा कथन छात्रों अलग ढंग कहा था) शिक्षकों कोई विशेष सुविधा नहीं होती है। उनके बच्चों के लिए कोई सुविधा नहीं। आज का शिक्षक तो मात्र कठपुलती बन कर रह गया है। शिक्षक केवल नाम का शिक्षक होता है। उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं है यहाँ तक कि छात्रों की उद्दंडता पर अपने छात्र को डाँट भी नहीं सकता यदि डाँटते हुए ‘गधा’ कह दिया है तो उसे अपमानित किया जायेगा! बन्दी बनाया जायेगा! क्या यही गुरु का सम्मान होता है?
क्या यही मर्यादा रह गयी है एक गुरु की जो राष्ट्र का निर्माण बिना किसी लाभ के करता है ? बंदी बनाने वाला भी वही होता है जिसे कभी उसी शिक्षक समुदाय ने शिक्षा दी है जिनके कारण वह आज इस पद पर पहुँचा है ,उसे यह अधिकार दिया है कि अपने गुरु का अपमान करे, किन्तु गुरु को कोई अधिकार नहीं दिया है।
इतनी बातचीत सुनने के पश्चात मेरी आँखें नम हो गयीं और मेरे प्रश्नों का गुच्छा टूटकर बिखर गया मैं सिहर-सा गया मुझे आभास हुआ की वास्तव में शिक्षक का जीवन आज खतरे में है। “जब शिक्षक स्वयं छात्र या उनके अभिभावकों से या निजी विद्यालयों के प्रबंधकों के डर से शिक्षा देगा तो निश्चित रूप से वो गलत को भी सही कहेगा और ऐसा करने पर राष्ट्र में शिक्षा का आभाव बना ही रहेगा और कागजी दुनिया में सब शिक्षित बन जायेंगे किन्तु वो पढ़े-लिखे बेवकूफ कहलायेंगे।“
शिक्षक ऐसा चाहिए , मिले जिसे सम्मान।
मान नहीं करते अगर , मत करिये अपमान।। ०१।।
शिक्षक को भी दीजिये , अब उसके अधिकार।
नवयुवक भी हो सके , राष्ट्र हेतु तैयार।। ०२।।
-आचार्य प्रताप
आचार्य प्रतापवरिष्ठ पत्रकर व साहित्यकार
भाग्यनगर , तेलंगाना
Bohot hi badiya sir. Keep it up.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अपका सर ।
हटाएं🙏🙏
💯 % ठीक लिखा गया है ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
हटाएंBhaut sahi pratap ji.
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएं।।नमन।।
शिक्षक की भूमिका कहां से कहां तक ? सही कहा प्रताप जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंबहुत सुंदर लेखन
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