बुधवार, 23 सितंबर 2020

लोकतंत्र पर प्रहार करती हुई उत्कृष्टतम टिप्पणियाँ

"लोकतंत्र के घाट पर": भारतीय लोकतंत्र का यथार्थपरक विश्लेषण
 
डॉ. ऋषभदेव शर्मा द्वारा लिखित "लोकतंत्र के  घाट पर" एक ऐसी पुस्तक है जो भारतीय लोकतंत्र के विभिन्न आयामों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। एक पूर्व खुफिया अधिकारी और विद्वान के रूप में लेखक का अनुभव इस कृति को विशेष महत्व प्रदान करता है।
 
यह पुस्तक मूलतः दैनिक हिंदी मिलाप में प्रकाशित लेखक की टिप्पणियों का संकलन है। लेकिन यह मात्र टिप्पणियों का संग्रह नहीं है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की जटिलताओं का एक व्यवस्थित दस्तावेज है। लेखक ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से लेकर वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य तक की यात्रा को बड़ी बारीकी से प्रस्तुत किया है।
 
पुस्तक में 1885 के असम से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों का उल्लेख विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। लेखक ने ऐसे कई ऐतिहासिक प्रसंगों को उजागर किया है, जो आम पाठक की जानकारी से परे हैं। सरदार पटेल की छवि को धूमिल करने के प्रयासों का विश्लेषण पुस्तक का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
 
लेखक ने वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की जटिलताओं को बड़ी स्पष्टता से प्रस्तुत किया है। लोकतंत्र की हत्या, राजनेताओं का विकास और मतदाताओं की हानि जैसे विषयों पर उनका विश्लेषण गहन चिंतन का परिणाम है। कश्मीर की समस्या और कैराना जैसे विवादास्पद मुद्दों पर उनकी टिप्पणियां निष्पक्ष और यथार्थपरक हैं।
 
डॉ. शर्मा की भाषा सरल किंतु प्रभावशाली है। उनकी लेखनी में कटुता है, लेकिन वह सत्य से परे नहीं जाती। उनकी शैली में एक प्रवाह है जो पाठक को बांधे रखता है। 241 पृष्ठों की यह पुस्तक एक साथ पढ़े जाने की मांग करती है।
 
पुस्तक का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है - भारतीय चुनावी प्रक्रिया का यथार्थपरक विश्लेषण। लेखक ने दिखाया है कि कैसे चुनाव जीते जाते हैं, प्रजातंत्र कैसे आगे बढ़ रहा है और कौन इसे पीछे धकेल रहा है। पान की दुकान से लेकर प्राइम टाइम तक के विश्लेषण में उनकी पैनी नजर स्पष्ट दिखाई देती है।
 
हालांकि पुस्तक अत्यंत महत्वपूर्ण है, फिर भी कुछ बिंदुओं पर और विस्तार की गुंजाइश थी। कुछ समकालीन मुद्दों पर लेखक का विश्लेषण अपेक्षाकृत संक्षिप्त प्रतीत होता है। साथ ही, कुछ स्थानों पर विश्लेषण में व्यक्तिपरक दृष्टिकोण झलकता है।
 
समग्रतः "लोकतंत्र की घाट पर" एक महत्वपूर्ण कृति है जो भारतीय लोकतंत्र के विभिन्न आयामों को समझने में सहायक है। यह पुस्तक न केवल राजनीतिक विश्लेषकों के लिए बल्कि आम पाठकों के लिए भी उपयोगी है। डॉ. शर्मा का यह प्रयास निश्चित रूप से भारतीय लोकतंत्र के विमर्श में एक महत्वपूर्ण योगदान है।
 
लेखक का विशिष्ट अकादमिक और व्यावसायिक पृष्ठभूमि - भौतिकी में एमएससी, हिंदी में एमए और पीएचडी, खुफिया अधिकारी के रूप में कार्यानुभव, और शैक्षणिक क्षेत्र में योगदान - उनके विश्लेषण को एक विशिष्ट आयाम प्रदान करता है। यह पुस्तक वर्तमान समय में लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रक्रियाओं पर पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करती है।


लेखक परिचय:

डॉ. ऋषभदेव शर्मा
जन्म : 4 जुलाई, 1957 ग्राम गंगधाड़ी, जिला मुजफ्फर नगर, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा : एमएससी (भौतिकी), एमए (हिंदी), पीएचडी ( हिंदी : 1970 के पश्चात की हिंदी कविता का अनुशीलन)।
कार्य: परामर्शी (हिंदी), दूरस्थ शिक्षा निदेशालय, मौलाना आजाद उर्दू राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद (2019-2020)। पूर्व प्रोफेसर, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास (सेवानिवृत्त : 2015). पूर्व खुफिया अधिकारी, इंटेलीजेंस ब्यूरो, भारत सरकार (1983-1990)।

Print Length: 241 pages
ASIN: B08JD22GRD
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आचार्य प्रताप

6 टिप्‍पणियां:

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