शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

कुछ महान पंडितों ने कबीर दास जी को गलत ठहराते हुए कहा कि :- दोहा **** काल करै सो आज कर, आज करै सो अब। पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब।। कबीर

कुछ महान पंडितों ने कबीर दास जी को गलत ठहराते हुए कहा कि :-
दोहा
****
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब।।
कबीर

उक्त दोहे में मात्र भार भी कम है और दोहों के आयाम (अर्थात् यति १३-११ के साथ १३ के लिए I S और ११ के लिए S I)का भी अनुसरण नहीं करता।
मैं स्वयं परेशान मैं शालीन प्राणी मैंने उन महापुरुष के समने मुस्कुराते हुए कहा कि आज आप एक बार सही जानकारी लें लीजिए हम कल बात करेंगे।
और उनसे विदा लिया और वापस अपने किराये के माकान में आ गया।
सभी विज्ञजनों के मत की प्रतिक्षा कर रहा हूं।
ॐ शुभमस्तु ॐ !
साभार
प्रताप

प्रतिउत्तर में अनेकों विद्वानों की टिप्पणियाँ



हरि शंकर मिश्र गूढ़ प्रश्न

रेखा सिंहः कठिन प्रश्न है भैय्या पर उत्तर देने के सुबह तक का समय चाहिए।

धरणीधर मणि त्रिपाठी भाई राहुल जी एक पोस्ट मैंने भी जायसी के बारे में डाला था जिसमें कबीर और रहीम जी के दोहों को भी उद्धृत किया था... विधान की कसौटी पर ये दोहे दोषपूर्ण कहे जा सकते हैं शक नहीं... परंतु यहाँ याद रखने वाली बात यह है उन्होंने कभी विधान दिमाग में रखकर नहीं कहा.... वे फक्कड़ किस्म के लोग थे चलते-चलते बैठे किसी भी सामाजिक बुराई, नीतिपरक बातों, प्रेम अहिंसा, दकियानूसी विचारधाराओं पर दोहा कह जाया करते थे जिनमें क्षेत्रीय भाषाओं के उच्चारण भी खास महत्व रखते थे।

आगे चलकर जब लोगों(विद्वजनों) को यह कमी खली तो उसे 13/11 यति पूर्व 1 2 और चरणांत 2 1 से करना ही उचित है ऐसा विधान बनाया ऐसा लगता है।

उपरोक्त दोहे में 13/10 तो दिख रहा मगर उच्चारण पर आइए...

मेरा जनपद वही है जो कबीर जी की कर्मस्थली रही है और उनके अवसान का पवित्र स्थल है यानि मगहर संतकबीर नगर!!!

यहाँ कब को थोडा़ जोर देकर बोलते हैं कब्ब, कब्बो आदि जहाँ जरूरी हो ऐसा उच्चारण प्रयोग करते हैं।

तो कब्ब/तब्ब/जब्ब ही कबीर जी ने बोला होगा अत:दोहा सही मानिए ऐसे विभूतियों को कसौटी पर कसना हम लोगों के वश की बात नहीं ।

मणि

डॉ.बिपिन पाण्डेय आपकी बात सोलह आने सच है। इन महान विभूतियों को कसौटी पर कसना उचित नहीं।

अटल मिश्रा अटल त्रिपाठी जी की बात से सहमत ,
ये मात्रा भार त्रुटि देशज और खड़ी बोली के अंतर का परिणाम हो सकता।
मैं गलत हो सकता हूँ पर विचार रख रहा हूँ।
रामायण में लिखा
क्षिति जल पावक गगन समीरा,पञ्च तत्व मिली रच्यो शरीरा।।
उस समय परमाणु अणु अवयव की खोज नही हुई थी ,तो तुलसी जी ने तत्व लिखा ,अव तत्व और अवयव अलग रूप में देखे जाते थे, अगर उस समय अवयव की पहचान होती तो तुलसी जैसे संत ज्ञानी सबको तत्व नही लिखते, छंदों में बन्दिश और तमाम नियम आधुनिक युग मे बने पर इसके जन्म दाता तो हमारे सदियों पुराने महान कवि ही है ।कबीर जी रहीम जी मीरा रसखान,आदि कवियों में कमी निकालने की क्षमता किसी आत्ममुग्धता ग्रसित कवि में होगी सज्जन ज्ञानी में नही

अटल मिश्रा अटल आजकल में ऐसे कवि भी खूब

जाकी कृपा अनन्य है,और नहीं कोइ तोड़।
मिथ्या अभिमान छोड़कर,हरि से नाता जोड़।
इस दोहे में दूसरे और तीसरे चरण में गलती साफ दिखती,मैने कवि से कहा कि टिप्पड़ी में तारीफ सबने की पर गलती किसी ने नही बताई,आजकल लोग केवल खाना पूर्ति हेतु कमेन्ट करते,तो कवि ने मुझे ही चार बाते सुना दी ,कहा तुम् से बहस करना बेबकूफी ही होगी,तुम्हे कुछ पता नहीं मात्रा भार सही है मैंने कहा मुझे ज्ञान न सही पर दोहा गलत है,तो साहब ने मुझे ब्लाक कर दिया।
उम्र दराज कवि लग रहे थे,शायद आप मे किसी से जुड़े हो ,कवि हरि नरायण मिश्रा जिनकी वाल पर ये दोहा है।आप पढ़ सकते हो।तो आत्ममुग्धता का घमंड किसी को कुछ नही समझता

डॉ.बिपिन पाण्डेय वे ऐसे ही हैं सर

अटल मिश्रा अटल Thanks पाण्डेय सर, मुझे उनका यह व्यवहार बहुत बुरा लगा,आखिर गलती को गलती स्वीकार करने में आदमी छोटा नही होता ,पर उन्होंने मुझे बेबकूफ घोषित कर दिया,मैंने वोला सर मैं कोई कवि नहीं हूँ न ज्ञान का प्रदर्शन करना चाहता ,पर गलत को गलत कहने की हिम्मत जरूर रखता,

धरणीधर मणि त्रिपाठी हहहहह ऐसे हैं यहाँ ध्यातव्य दो तो उलझ जाते हैं मिश्र जी

अटल मिश्रा अटल बिल्कुल उचित कहा आपने आदरणीय ,यहाँ सार्थक बहस को भी निर्थक बनाने वाले ।

धरणीधर मणि त्रिपाठी इसी तरह का विवाद दोहे के प्रारंभ को लेकर है कि इसे दो गुरु या चार लघु से ही करना चाहिए... कई कालजयी दोहे तब 1 2 से शुरू हुए जैसे; बडा़ हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, भारतेंदु जी के तो कई दोहे।आज यहाँ ऐसा करने से लड़ जाते हैं कविगण। बात सिर्फ़ इतनी है कि लघु गुरु से शुरू किए गये दोहे से कुंडलिया बनाने में दुश्वारियाँ आती हैं बस।

चेतन दुबे 'अनिल' बड़ा हुआ
एक शब्द नहीं दो शब्द हैं। आप दूसरे शब्द का हु पहले शब्द में जोड़कर 121 करके कबीर को गलत बताकर अपनी महानता का परिचय दे रहे हैं। यहां बड़ा हुआ में 2 त्रिकल हैं मान्यवर।
धरणीधर मणि त्रिपाठी महानता का परिचय तो बिल्कुल भी नहीं दिया... आप इतनी तल्ख़ भाषा का प्रयोग कर रहे हैं।मेरा पूरा कमेंट नहीं पढे आप मान्यवर... द्विकल त्रिकल चौकल अपनी जगह ठीक है।उस दोहे के संदर्भ में मैंने सिर्फ़ उदाहरण दिया है इस दोहे पर ।उन्होंने पोस्ट किया मैंने कमेंट कर दिया जो पता था... जो पढा आजतक आप "काव्यांजलि" अवश्य फढे होंगे कहीं द्विकल त्रिकल नहीं मिलेगा जैसे जैसे आप जैसे विद्वान आते गये विधान बदलता रहा।इंटरमीडिएट के पाठ्यक्रम में है ये सब।सिर्फ़ मात्राओं पर ही विधान दिया है । कल मैं इसका साक्ष्य भी दिखा दूंगा ।कहीं द्विकल त्रिकल नहीं लिखा।

चेतन दुबे 'अनिल' जी आप ठीक कह रहे हैं।
काव्यांजलि जरूर पढ़ँगा। सारा काव्य शास्त्र शायद उसी में है। त्रिकल द्विकल मैंने नहीं विद्वान आचार्यों ने बनाए हैं। कबीर तो बेचारे निरक्षर थे वे कविता क्या जानें। पर कबीर पर 700 से ज्यादा शोध करके लोग पी एच डी कर के कबीर से आगे निकल कर कबीर को कक्षाओं में पढ़ा रहे हैं। मैं कोई विद्वान नहीं हूँ।

धरणीधर मणि त्रिपाठी तो ये द्विकल त्रिकल भी उन्हीं विद्वानों की देन है और काव्यांजलि भी.... यहाँ तो ऐसे ही दुकान खोलकर पंडिताई कर रहे और साहित्यकार बनकर दुनिया को चरा रहे मान्यवर।

चेतन दुबे 'अनिल' जी उन्हीं चराने वालों में मैं भी एक दूकानदार हूँ जिसकी आय से ही मेरा गुजारा चलता है भाई जी।
धरणीधर मणि त्रिपाठी ये मैं क्या जानूँ.... आप अपने बारे में बेहतर जानते हैं मैंने ये काॅमन बात ऐसे मनीषियों के लिए कही है।

डाॅ.वीरेन्द्र प्रताप सिंह भ्रमर परिवर्तन प्रकृति का नियम है। साहित्य भी उससे अछूता नही रहा। यह विवाद का प्रश्न ही नही है। पहले के कवि या समाज सुधारक कहें भावना तथा जागरूकता के लिए काब्य सृजन करते थे। उन्ही को दृष्टिगत करते हुए कालान्तर में प्रत्येक छन्द या विधा का विधान खोजा गया। आज २३ तरह के दोहे इसी का प्रमाण हैं। धरणीधर जी की बात से भी सहमत हूँ की स्थानीय बोली तथा भाषा का भी प्रभाव रहा है। बलाघात भी उसका एक कारक रहा है। हम उसे गलत या दोष पूर्ण नहीं कह सकते हैं। अब हमें सृजन नयी सृजित तकनीक से करना चाहिए जिसमें विधान का यथोचित पालन किया गया हो । कबीर, सूर, जायसी, आदि के काल मे जिन छन्दों का निर्माण किया गया वह भाव के साथ पढना चाहिए। वही हमारे नवीन विधान के जनक हैं।
#डाॅ 0वी0पी0सिंह_भ्रमर
धरणीधर मणि त्रिपाठी सहमत हूँ आदरणीय... वे जो कह गये वह अमर हो गया हम सभी उनसे ही प्रेरित होकर लिख रहे हैं।अब सही विधान के अंतर्गत जो भी अच्छे दोहे लिखे जा रहे वे सभी अच्छे लगते हैं।

आचार्य प्रताप हार्दिक आभार दादा जानकारी के लिए।
साष्टांग प्रणाम।

Hansraj Suthar जहाँ हम जैसे लोगों की सोच खत्म हो जाती है वहां से उन लोगों (कबीर,ग़ालिब ) की सोच शुरू होती थी ।आप समझ गए होंगे मेरा इशारा

अमित हिंदुस्तानी मैं भ्रमर सर और धरणीधर 'मणि' त्रिपाठी सर से सहमत हूँ ।
कबीर जी के लिखे हो या किसी और के उन्होंने उस समय की प्रचलित भाषा में लिखा ।
कबीर जी ने कभी विधान के बारे में शायद ही विचार किया हो वह तो पंचमेल खिचड़ी प्रयोग करते थे । वह विधान से अधिक विषय पर जोर देते थे ।
और हमें आज के हिसाब से चलना चाहिए ।

अटल मिश्रा अटल विल्कुल अमित आपका चिंतन सर्वथा उचित और सही है ,सूर्य को दिया दिखाने वाले लोगों की तरह है कवीर जी तुलसी जी आदि सन्त कवियों के आलोचक।

Ram Naresh Raman कवि कुल के जो पूज्य हैं , कवि नहीं " सन्त कवि " हुए हैं। उनकी नव पीढ़ी के लोग उनके साहित्य में छिद्रान्वेषण कर अपने ज्ञानाभिमान का ही परिचय देते हैं। उनकी रचनाओं की साहित्यिक कसौटी समाज ने नहीं देखी वल्कि उन्हें नीतिगत सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया। वे हम सबके लिए गौरव के प्रतीक एवम् वन्दनीय हैं।

आचार्य प्रताप #क्षमा_चाहूंगा

इतने लोगों ने प्रतिक्रिया दी परंतु मुझे संतुष्टि जनक उतर की प्राप्ति नहीं हुई।
आप सभी का हार्दिक आभार।
मैं उन महानुभाव को क्या जवाब दूं?

धरणीधर मणि त्रिपाठी भाई हम इतना ही जानते थे और आप उस जवाब से संतुष्ट नहीं... संतुष्ट नहीं तो आप इसके बारे में बेहतर जानते हैं... कृपया हमें भी बताइए

रेखा सिंहः काल करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब्ब

राम कुमार मिश्र सादर निवेदन है कि कबीर एक निरक्षर महान संत थे। अतः उन्होंने जो भी लिखा है वह बिलकुल सही और सत्य ही लिखा है।

चेतन दुबे 'अनिल' सभी जानते हैं कि मात्रा गणना लेखन पर नहीं उच्चारण पर निर्भर होती है। यहाँ अब्ब कब्ब उच्चारण हो रहा है।

चेतन दुबे 'अनिल' कुछ अधिक आत्ममुग्ध विद्वान कहते हैं कि दोहा में मात्रा पतन नहीं होता । यह बात 100%गलत है। क्योंकि यदि दोहा में मात्रा पतन का विधान नहीं है तब तुलसीदास जी के मानस और दोहावली के 40% दोहे गलत हो जायेंगे। पर आज के कवि जो खुद को कबीर तुलसी निराला और दिनकर से बड़ा मानते हैं उनसे कुछ कहना मैं गलत मानता हूँ।


2 टिप्‍पणियां:

  1. आदर्णीय चेतन दुबे अनिल जी की अंतिम टिप्पणी,अब्ब कब्ब से पूर्णत: सहमति और लय उच्चारण ही मुख्यत है।

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