शनिवार, 29 मई 2021

दोहा त्रयी

दोहे
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दर्शन विमल विचार है,
सुचिता जीवन सार

व्याख्यायित इससे सदा,
शाब्दिक यह संसार 01
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जगत-प्रीत बहु आज है,
विषय-भोग परिहास


ज्ञान-ध्यान हरि-भजन की,
नहीं किसी को आस 02
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चले पवन प्रतिकूल अब,
सखे! जगत की रीति

माँझी एक सहाय है,
जिससे आपनी प्रीति 03
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आचार्य प्रताप


#acharyapratap
#acharypratap

acharypratap


मंगलवार, 25 मई 2021

आचार्य वामन सम्मान

आचार्य वामन सम्मान से सम्मानित विशिष्ट प्रशस्ति पत्र 


om nirav

sanjiv salil

bipin

mayank

bhramar

रविवार, 23 मई 2021

दोहे

 

















गुरुवार, 6 मई 2021

जयतु संस्कृतम्


२०१७ में लिखे गए थे -
मुक्तक - १.
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मालविकाग्निमित्रम् विक्रमोर्वशीयम् अभिज्ञानशाकुन्तलम्।
कृते कालिदासः महाकविः इति त्रीणि नाट्यशास्त्रम्।
रघुवंशम् कुमारसंभवम् कृते इति द्वे महाकाव्ये -
सप्त ग्रंथं कृते द्वे खंडकाव्ये ऋतुसंहार मेघदूतम्।।
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मुक्तक-२
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वदतु संस्कृतम् जयतु संस्कृतम्।
जयतु भारतम् पठतु संस्कृतम्।
लिखतु संस्कृतम् , संस्कृतेन चिंतयतु-
विश्वाधारः एक वर्णः जयतु संस्कृतम्।।

बुधवार, 5 मई 2021

कह-मुकरियाँ

 #कह-#मुकरियाँ

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जिसे देखकर हर्षाऊँ मैं।
सम्मुख उसके बलखाऊँ मैं।
सब कुछ मेरा उसे समर्पण
क्या सखि साजन? ना सखि दर्पण।।०१।।
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जिसे देखकर हर्षाऊँ मैं।
पहन-ओढ़कर बलखाऊँ मैं।
मुझसे चिपके सदा अनाड़ी।
क्या सखि साजन? ना सखि साड़ी।।०२।।
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उसकी ध्वनि है कर्ण-प्रिये।
मन हर्षित होकर झूम-जिये।
जिसकी धुन करती है घायल।
क्या सखि साजन? ना सखि पायल।।०३।।
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मधु का प्याला

ये समस्त दोहे आज से ठीक एक वर्ष पूर्व लिखे गए थे |

 दोहे

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खड़े पंक्ति में हो गए , हाला की थी बात।
राशन की होती अगर , बतलाते औकात।।०१।।
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पंक्ति बनाकर मौन सब , खड़े हुए चुपचाप।
मधुशाला के सामने , देखो तुम्हीं प्रताप।।०२।।
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बड़े दिनों से बंद थे , मधुशाला के द्वार।
मादक पेयी के हृदय , चलती रही कटार।।०३।।
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खुले हुए हैं आज-कल, मधुशाला के द्वार ।
मदिरा-पेयी के हृदय , जागी खुशी अपार।।०४।।
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खुले हुए पट देखकर , मधुशाला के आज।
आंनदित हो नाचती , मधुबाला तन साज।।०५।।
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भींग रहें हैं मधुकलश , बड़े दिनों के बाद।
हाला - प्याला की सुने , अद्भुत सुंदर नाद।०६।।
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मधुशाला के मधुकलश , भींग रहें हैं आज।
भूल ऋचाओं को गए , भूले सभी नमाज़।।०७।।
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उन्मादित हो नाचते , प्याला हाला साथ।
मधुशाला को मानते , अपने - अपने नाथ।।०८।।
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मधुशाला को खींचती , मधुबाला की याद।
कर्ण-प्रिये लगतीं शुभे! , प्यालों की तब नाद।।०९।।
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त्रय अंगुल हैं थामती , मधुप्याले का भार।
किंतु न जाने क्यों यहाँ , डूब रहा संसार।।१०।।
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आचार्य प्रताप