दोहे- असत्य

झूठ/असत्य
----------------
दोहे
*****
राह-राह गोरस बिके, हाला बैठ बिकाय।
सत्य नापता है गली, झूठ मिठाई खाय।।०१।।
------
आज  आचरण  झूठ  का , बना  जगत  आधार।
चलने  से   पहले   करो  ,  मन  में  सदा  विचार।।०२।।
------
छलिया छल करता फिरे, दिखे कहीं न सत्य।
सत्य ढूँढता मैं रहा, मिलता रहा असत्य।।०३।।
-----
आँखों में पट्टी बँधी, करते झूठा जाप।
अब तो आँखे खोल लो, झूठा जगत प्रताप।।०४।।
-----
नैतिक थे जब आचरण, खूब छले हैं लोग।
जब से वो ढोंगी बनें,मिलते छप्पन भोग।।०५।।
-----
करें आचरण सत्य का , बनिए सदा महान।
नींव झूठ की हो अगर,बनते नहीं मकान।।०६।।

 आचार्य प्रताप
Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

Enregistrer un commentaire

आपकी टिप्पणी से आपकी पसंद के अनुसार सामग्री प्रस्तुत करने में हमें सहयता मिलेगी। टिप्पणी में रचना के कथ्य, भाषा ,टंकण पर भी विचार व्यक्त कर सकते हैं

Plus récente Plus ancienne