प्रथम चरण- साहित्य संगम दोहा विशेष समीक्षात्मक - कार्यशाला आचार्य प्रातप


 ।। ॐ।।
 कार्यशाला                             
 प्रथम चरण - शब्द –गर्मी

अदा० प्रचण्ड जी
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गर्मी भीषण पड़ रही , मिलकर दो सब ध्यान !
शीतल जल सेवन करो ,
सबका हो कल्यान !!
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प्रयास बहुत ही सरहनीय रहा किन्तु
*जब दोहे में चार चरण दो पंकितियाँ होती हैं तो उक्त तरीके से लिखने का क्या अर्थ*
कल्यान तुकांत मिलाने के लिए शब्द को परिवर्तन करना उचित नहीं , अतः *तुकांत दोष* ।
जब शीतल जल एक को पीने की बात कही जा रही है तो सबका कल्याण कैसे हो सकता है ;और जल शीतल ही क्यों ? अतः विधान में साधने का प्रयास करें और अन्य शब्दों से बचते रहें।
आपका सुंदरम दोहा।

अदा० दीपाली जी
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गर्मी बढ़ती जा रही , देखो हाल बेहाल |
धरती सारी अब तपे , ग्रीष्म बना है काल ||
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*बहुत बढ़िया प्रस्तुति दी गयी निःसंदेह आपकी लेखनी प्रशाशनीय है।*
किन्तु
भाव और शिल्प में थोड़ा कसाव की आवश्यकता है,
उक्त दोहे को इस प्रकार लिखकर शिल्प पर अच्छा साध सकतीं थी।
गर्मी बढ़ती जा रही , देखो हाल बेहाल |
 सारीधरती तप रही  , ग्रीष्म बना अब  काल ||
*अतः अनायास शब्दों का प्रयोग उचित नहीं, सार्थकता और अधिकतम सर्वशुद्धता होना अनिवार्य*
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अदा०  आदेश पंकज जी
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पशु पक्षी मानव सभी गर्मी से हैरान ।
धरती से आकाश तक दुख से भरा जहान ।।
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दोहा दोहन बहुत ही सुन्दर रहा , सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।
किन्तु सभी लोग कुछ  न कुछ त्रुटि करते हैं और आपने भी की एक बहुत ही छोटी किन्तु  दोहों के लिए वो भी बड़ी मणि जाती है विषम चरणों के अंत में (कॉमा) अल्प विराम  , और सम चरणों के अंत में पूर्ण विराम लगाना अति आवश्यक होता है।
आशा है अगली बार से ध्यान में रखेंगे।
अदा० मनोज कुमार "मनु" जी
भीषण गर्मी पड़ रही तपै माँ वसुधा ताप ।
जल बिनु तड़पै पंछिड़ा नीर बना है भाप ।।
मनु
बहुत सुन्दर सफल प्रयास किया गया है  किन्तु
द्वितीय चरण में तपै माँ वसुधा ताप कुल मात्रा भर १२ जबकि दोहा चाँद विधान के अनुसार ११ मात्राएँ ही होनी चाहिए अतः मात्रा भर अधिक होने के कारण ले भंग।
एवं तृतीय चरण में बिनु शब्द , तड़पै , पंछिडा तीनों ही  देशज माने जाते हैं  जो की हिंदी की खड़ी बोली में अमान्य होता है ,  चतुर्थ चरण में नीर बना अब भाप  लिख कर और अच्छा किया जा सकता था।
शेष ठीक।
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अदा० मंत्र जी
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गर्मी में सब त्रस्त हैं, पशु-पक्षी नर-नार ।
शब्दों का शरबत लिए, हम आए करतार ।।
'मंत्र'
आदरणीय मंत्र जी वैसे ही ज्ञान के सागर हैं किन्तु आपका आदेश है तो आदेश का पालन करना ही उचित समझता हूँ। प्रथम चरण में यदि में  के स्थान पर  से करते तो कारक दोष बच सकते थे। जब बात गर्मी की हो रही हो  शब्द  रुपी शरबत की क्या आवश्यकता है।  यदि प्रथम पंक्ति में सृजन को गर्मी की उपमा या संज्ञा दी होती तब मैं आपको इस सृजन के लिए हार्दिक बधाई देता और शिरोधार्य शब्द से अलंकृत करता।
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अदा० किशन  जी
गर्मी तेरे प्यार की, करती है बेहाल।
यहाँ हाल बेहाल है,वहां का कहो हाल
अपने समय समाप्त होने के बाद भेजा अतः प्रतियोगिता से प्रथम चरण में बाहर रहेंगे।
किन्तु
प्रथम तीनो चरण  बेहतरीन हैं किन्तु चौथे चरण में वहाँ के स्थान पर वहां होने से वर्तनी दोष।
और चौथे चरण के अंत में दो पूर्ण विराम  (।। )चिह्न अनिवार्य होता है।
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परिणाम -  प्रथम चरण आदरणीया दीपाली जी और आदरणीय 'मंत्र' जी


Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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