शनिवार, 30 जनवरी 2021

प्रभात दृश्य में एक गीत जैसा कुछ

 प्रभात दृश्य में एक गीत जैसा कुछ

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प्रभात दृश्य देखिए।

विशाल वृक्ष देखिए।।


अनंत  रश्मियाँ   बहें।

सवार अश्व  हो चलें।

प्रताप  देखता  रहे-

प्रकाश पुंज देखिए।


खुली धरा खुला गगन।

प्रणाम कर करें  मनन।।

बढ़े  सदा  स्वमर्ग  पर-

निशान लक्ष्य साधिए।


नम धरा है नम गगन।

तन मगन है मन मगन

प्रसन्नतम् दिखें नयन-

तुहिन  कणों को देखिए।

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आचार्य प्रताप

गीत - यह बेला शाम की

आज से ठीक एक वर्ष पूर्व लिखा गया  गीत - यह बेला शाम की 


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ह वेला  शाम  की यह वेला  शाम  की।


दिन भर के 

काम से थककर आराम की।

यह वेला  शाम  की , यह  वेला  शाम की।

मेघा -मल्हार   की 

खग-मृग  उछाल  की।

पतझड़  में  झड़  रहें  पत्तों  के  नाम  की।।

यह वेला  शाम  की ....


रंगो-बाहार की  

स्वर्णिम फुहार की

वृक्षों  के  मध्य  में रविकर  के  शान  की।

नीलम परिधान के

रक्तिम बलिदान की

साक्षी  ये  रश्मियाँ  रवि  के  विश्राम  की।

यह वेला  शाम  की ....



तरु के ऊँघान की

दिन  के  सयान  की,

अवस्थाओं के  साथ  में , रिश्ते पहचान की ।

मिटते उजियार की 

बढ़ते निज धाम की।

अपनों के नाम की  सपनों के शाम की 

यह वेला शाम की .....


आचार्य प्रताप

रविवार, 24 जनवरी 2021

प्रताप-सहस्र से -०३

स्वरचित पुराने दोहों का परिमार्जन पश्चात् प्रेषण एवं संग्रहण
विधा -छंदबद्ध
छंद- दोहा
तिथि- २४-०१-२०२१
दिवस- आदित्यवार
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बे-सबरी  में  थे  दिखे ,  वे-सबरी  के  राम।
बेसब्री  में  खा  गए , जूठन उन्हें प्रणाम।।०१।।
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बिँदिया  दी  भरतार  ने  ,  चिंतन  बारंबार।
माथा  पा  करतार  से  ,  भूली  कैसे  नार?।०२।।
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ऐसे पूतों के लिए , जूता   रखिए   हाथ।
पत्नी के चमचे बने , माता पिताअनाथ।।०३।।
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बहू भली हो आज की , पूत सपूत  कपूत।
जीवन सफल बने तभी , बने कपूत सपूत।।०४।।
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नींव झूठ की हो अगर,बनते नहीं मकान।
ढहना निश्चित हो गया, दे प्रताप यह ज्ञान।।०५।।
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संतों और वसंत के , गुण द्वय एक समान।
जन गण को इक ज्ञान दे , एक प्रकृति दे मान।।०६।।
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मात-पिता से सीख लें , संस्कार  संघर्ष
बाँकी सब जग से मिलें, राग द्वेष सह हर्ष।।०७।।
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कंकर में शंकर दिखें , अंतस मन जब शुद्ध।
वटवृक्ष की छाँव में , मिला ज्ञान ज्यों बुद्ध।।०८।।
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सर्वाधिकार सुरक्षित
©®™
आचार्य प्रताप

शनिवार, 23 जनवरी 2021

सूर्पनखा-रावण संवाद

जय माँ भारती
नमन अक्षरवाणी परिवार
विधा -छंदबद्ध
छंद- दोहा‌ सह चौपाई
विषय- स्वेच्छिक
तिथि- २३-०१-२०२१
दिवस- शनिवार
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एक वर्ष पूर्व किया गया सृजन.... 

एक दृश्य- रामायण से आज परिमार्जन के पश्चात् पुनर्प्रकाशन...

टिप्पणी-तुलसीदास महराज से मिलेगी नहीं  यदि मिलें तो मात्र संयोग होगा
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सुर्पनखा की  नाक जब ,काटे लक्ष्मण लाल ।
गुस्से में भरकर चली , रावण सम्मुख चाल।।०१।।

         कहने लगी तब भ्रात प्रिय सुन।
         रहती है वन में  एक मुनमुन।।०१।।
         साथ में उसके दो मुनि बालक।
         बनकर  रहते   रक्षक - पालक।।०२।।
         रूपवती    वो    चंद्रमुखी   है।
         किंतु  समय  के साथ दुखी है।।०३।।
         जाकर     मैंने उससे     पूछा ।
         लंकापति  मम  भ्रात  है  दूजा।।०४।।
         व्याह करो रानी बन जाओ।
         लंकापति के हिय में समाओ।।०५।।

         इतना सुन वह क्रोधित होकर।
          पीछे पड़ा लखन कर धोकर।।०६।।
         शक्ति-सशक्त पराक्रम दोनों।
         शत्रु परास्त करें चहुँ कोनों।।०७।।
        होकर  आग  बबूला   लक्ष्मण।
        लिए कृपाण चला सह ऋषि गण।।०८।।
        कान मरोड़ा नाक भी फोड़ा।
        लंका की मर्यादा तोड़ा।।०९।।
        मेघनाद अक्षय सब भड़के
        तभी भिभीषण का दिल धड़के।।१०।।
       लंकेश्वर ने रथ को साजा।
       निकल गया फिर वन को राजा।।११।।
      वायुमार्ग से गुजरे रावण।
      देखा नीचे कुटिया पावन।।१२।।

रोका रथ फिर पास  में , कर विचरण लंकेश।
मारिच सह दोनों किये, परिवर्तित तब  वेश।।०२।।
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आचार्य प्रताप
चित्र- साभार गूगल बाबा

शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

कुण्डलिनी छंद- एक परिचय

कुण्डलिनी छंद : शिल्प विधान- इस छंद का जनक आचार्य ओम नीरव जी को माना जाता है जो कि कविता लोक समूह के संचालक और संस्थापक है

1) एक दोहा और अर्धरोला के योग से चार चरणों वाला कुण्डलिनी छंद बनता है ।
2) इसके पहले दो चरणों में प्रत्येक का मात्रा भार 13, 11 होता है और बाद के दो चरणों में प्रत्येक का मात्राभार 11, 13 होता है ।
3) दोहा का अंतिम पद ही अर्धरोला का प्रारम्भिक पद होता है । यह 'पुनरावृत्ति' सार्थक भी होनी चाहिए ।
4) इसके प्रारंभिक शब्द/शब्दों का अंत में 'पुनरागमन' करने से विशेष सौन्दर्य उत्पन्न होता है, यह 'पुनरागमन' अनिवार्य है ।
5) दोहा और रोला की दो-दो पंक्तियों के अलग अलग तुकांत होते हैं।
 
विशेष :

1. संक्षेप में कुंडलिनी = दोहा + अर्ध रोला
2. यह नव निर्मित लोक छंद है जो सनातनी कुण्डलिया छंद का संक्षिप्त रूप है ।
3. 'पुनरागमन' के लिए दोहे का प्रारंभ ऐसे शब्द/शब्दों से करना चाहिए जो अर्धरोला के अन्त में लय और अर्थ के साथ समायोजित हो सकते हों ।
4. रोला के चरण का मात्रा भार 11, 13 सोरठा के समान अवश्य है किन्तु दोनों की लय बिल्कुल भिन्न है ।
5. कुण्डलिनी के शिल्प को समझने के लिए दोहा और रोला के शिल्प को अलग-अलग समझना आवश्यक है ।

कुण्डलिनी छंद (मापनीमुक्त विषम मात्रिक)
 
विधान - कुण्डलिनी छंद का निर्माण दोहा और अर्द्धरोला को इसप्रकार मिलाने से होता है कि दोहे के अंतिम चरण से अर्द्धरोला का प्रारम्भ हो (पुनरावृत्ति) और दोहा के प्रारम्भिक शब्द या शब्दों से अर्द्धरोला का अंत हो (पुनरागमन)।

संक्षेप में - कुण्डलिनी = दोहा + अर्द्धरोला (सानुबंध)

 
दोहा छंद का
विधान - 13,11,13,11 मात्रा के चार चरण, विषम चरणों के अंत में वाचिक 12/लगा उत्तम और आदि में 121/लगाल भार का एक स्वतंत्र शब्द वर्जित, सम चरणों के अंत में 21/गाल और तुकान्त।
 
अर्द्धरोला
छंद का विधान - 24 मात्रा के दो तुकांत चरण, 11,13 पर यति, प्रथम यति से पूर्व और पश्चात त्रिकल (12 या 21 या 111), अंत में वाचिक 22/गागा (22 या 112 या 211 या 1111), दो-दो क्रमागत चरण तुकान्त।
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छन्द के उदाहरण :  #कुण्डलिनी छंद
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आया था इस जगत में , रचने को नव छंद

किंतु विधाता ने किया , तीव्र बुद्धि क्यों मंद

तीव्र बुद्धि क्यों मंद , हुई कुछ कर ना पाया

रहा नहीं कुछ याद , जगत में क्यों था आया
०१
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आया मौसम शीत का , बीत रही बरसात
हरित वसन मंगलमयी , दिग-दिगंत की बात

दिग-दिगंत की बात , हृदय में सावन छाया

अधर हो गये मौन , मीत जब सजना आय
०२
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मक्का मूँग उड़द तिली , ज्वार बाजरा धान
क्वादव अरहर दाल सब , बोएँ सभी किसान
बोएँ सभी किसान , लगें सब ताँका -झाँका

हर्षित कृषक समाज , देखकर तिलहन मक्का
०३
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आशा इतनी ही बची,बचा रहे सम्मान

दंभ द्वेष सब भूलकर,भूल गए अपमान

भूल गए अपमान, नहीं अब उन्हें निराशा

लुटा हुआ सम्मान, पुनः पाने की आशा
०४
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शिक्षा मिले गरीब को, करें गरीबी दूर
बिन शिक्षा के हो रहे, सपने चकनाचूर
सपने चकनाचूर, न देता कोई भिक्षा

कह प्रताप अविराम, सदा पहले लो शिक्षा
०५
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करता वंदन आज मैं,जोड़े निज मैं हाथ

बह जाता मझधार में,बचा लिया गुरु साथ

बचा लिया गुरु साथ, बना मैं उनका नंदन

दिवस आज गुरु पर्व,करूँ मैं गुरु का वंदन।।०६।।
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कुंडलिनी का जागरण, मात्राओं का नाप
दिन रात अभ्यास करो, लिखते रहो प्रताप
लिखते रहो प्रताप , सदा तुम भ्राता -भगिनी
लय का रखना ध्यान,रचो तुम भी कुंडलिनी०७

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छाया दिखती है नहीं, नष्ट हुए हैं पेड़
जीवन खतरे में दिखे, जीवन हुआ अधेड़
जीवन हुआ अधेड़, प्रदूषण की ही काया
कह प्रताप अविराम, कहाँ से मिलती छाया।०८
-आचार्य प्रताप

दोहे प्रताप-सहस्र से 02

दोहे

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गुणवत्ता होती नहीं , विनिमय का बाजार।

आश्रित हुआ प्रचार पर , क्रय-विक्रय का सार।।०१।।

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थोथी गुणवत्ता हुई ,  बस प्रचार की आस।

सर्व सफलता के लिए , करते रहे  प्रयास।।०२।।

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गुणवत्ता हो कार्य में , सरस सरल हो भाव।

पाठक दर्शक शेष सब , बैठें एकहि नाव।।०३।।


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गुण-अवगुण जब एक सम , मोल-भाव आधार।

गुणवत्ता  की   नीति  पर  ,  चलता तब संसार।।०४।।

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गुणवत्ता आधार रख , करिए सब उपयोग।

जीवन यह अनमोल है , साँस साँस का योग।।०५।।

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आचार्य प्रताप

दोहे

सोमवार, 18 जनवरी 2021

प्रताप सहस्र से 01


*प्रताप - सहस्र से दोहा-द्वादशी*


शुभम लंबोदर गणपति, मंगलमूर्ति गणेश।

मोदक दाता गजवदन,कहते सब विघ्नेश।।०१।।

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बाल बचा लो बाल से , बाल खींचते बाल।

बचा न पाए बाल से, उखड़ गए सब बाल।।०२।।

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गाल लाल हैं लाल के, लाल दिखे अब लाल।

लाल लाल ही दिख रहा,चोंट लगी जब भाल।।०३।।

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लिये सुराही चल रहा , भरे सुरा ही राह।

चलत सु-राही सोचता , जीवन की हर चाह।।०४।।

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सादर नमन प्रताप का, स्वीकारें श्रीमान।

करें निरंतर साधना, जड़मति बनें सुजान।।०५।।

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लाल, लाल के भेद को, भेदूँगा श्रीमान।

रचनाएँ अरु पटल का, करूँ सदा सम्मान।।०६।।

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बात-बात में सच कहा, दिया सही उपदेश।

ज्ञानी जग आराध्य हो, ज्ञान बिना हो क्लेश।।०७।।

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तीर , तीर को भेद कर , जा पहुँचा पर - तीर।

नयन तीर के पीर को , समझ न पाया वीर।।०८।।

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तीर हृदय को चीर कर , जा पहुँच पर तीर।

दो हृदयों के मेल को , रोंक न पाएँ वीर।।०९।।

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भ्रमर घुमड़ते दिख रहे , पुष्प-पुष्प पर यार।

मधुकर मधुरस ले रहे , कुसुम-कुसुम का सार।।१०।।

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भ्रमर घुमड़कर ले रहे , पुष्प-पुष्प का सार।

मधुकर मधुरस ले नहीं, कुसुम व्यर्थ हो यार।।११।।

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भ्रमर-भ्रमर हैं बाल सम, बाला एक प्रसून।

कुसुम-कुसुम की गंध तो , पृथक-पृथक मजमून।।१२।।

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*आचार्य प्रताप*

गुरुवार, 14 जनवरी 2021

प्रेस विज्ञप्ति - अक्षरवाणी काव्य-मंजरी साहित्यिक समूह ने आयोजित किया युवा दिवस पर काव्य गोष्ठी


aksharvanikavyamanjari
क्षरवाणी काव्य-मंजरी साहित्यिक मंच के माध्यम से युवा दिवस के शुभ अवसर पर आयोजित की गयी जीवंत युवा काव्य गोष्ठी इस कार्यक्रम विशिष्ट अतिथि महादेवी वर्मा जी के भतीजे आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ में कुल बारह सदस्यों ने प्रतिभाग किया जिसमे सभी रचनाकार नवयुवा ही रहे, अक्षरवाणी ने अपने सभी नव युवा रचनाकारों को यह अवसर उनके लेखन में उत्साहवर्धन तथा काव्य-गोष्ठियों में प्रतिभागिता दिलाने के उद्द्येश्य ही आयोजित किया जिसका प्रसारण अक्षरवाणी- काव्य-मंजरी नमक यूट्यूब चैनेल के माध्यम से किया गया सभी रचनाकारों को चैनेल के स्टूडियों पर आमंत्रित किया गय तथा सभी से काव्य-पाठ कराया गया – इस कार्यक्रम में उज्जैयिनी से शास्त्री रेखा सिंह जयशूर जी ने मगलाचरणम से शुभारम्भ किया तत्पश्चात जयपुर से सलोनी क्षितिज़ जी ने वाणी वंदना करते हुए कार्यक्रम का सत्र परिचय से गुजरते हुए अनुजा मानसी शर्मा  दिल्ली  से आर्यावत शीर्षक  पर स्वरचित कविता सुनायी आश्चर्य होगा किन्तु सत्य है यह बालिका महज़ दसवीं कक्षा की छात्रा है , आकाश मिश्र ‘अनुचर’ जी कानपूर से एक जय जवान शीर्षक तथा एक प्रभु श्रीराम शीर्षक पर कविता सुनाई , प्रविक्षा दुबे ‘सागरिका’ जी कन्नौज उत्तरप्रदेश  ने एक रचना स्वामी जी को आधार मान कर ‘देश के नए कर्णधार बनो‘  सुनायी , फिर बाबा साहेब लांडगे ‘सारथी’ जी निजामाबाद ने झाँसी  की रानी आधारित कविता सुनायी , ऋचा सिंह सोमवंशी जी ने स्वामी जी को आधार मानकर अद्भुत कविता सुनायी, तत्पश्चात हैदराबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र चिराग राजा जी ने ‘भारत माता’ आधारित अद्वितीय  कविता सुनायी ,कवि अगम मिश्र जी ने भय से मुक्त करने वाली सुन्दर कविता चकमक-ढ़ोल सुनाई इन्स्टाग्राम की बहुचर्चित रचनाकारा आँचल गुप्ता जी ने युवा शक्ति को साथ बताते हुए युगपरिवर्तक विवेकानंद बनने वाली अद्भुत और अद्वतीय रचना सुनायी तत्पश्चात आचार्य सलिल जी ने आपने अध्यक्षीय उद्बोधन में स्वामी विवेकानंद जी तथा महर्षी महेश योगी जी को केंद्र मनाकर गुरु शिष्य की परंपरा को बताया आपके शुभाशिषात्मक आशीर्वचनों से अभिसिंचित किया तथा सभी की रचनाओं की भूरिशः प्रंशसा की|
aksharvanikavyamanjari
 कार्यक्रम के अंत में एक दोहा और एक कुंडलिया छंद में सभी अतिथियों को समेटते हुए आचार्य प्रताप जी ने कल्याण मंत्र तथा समापन  के पूर्व  कहा –
दोहा
स्वामी जी के नाम पर , नवल युवा हैं साथ।
साहित्यिक हम सारथी पकड़े रखना हाथ।।
            कुंडलिया छंद
काव्य-मंजरी ने किया , अक्षरवाणी पाठ।
रेखा ने मंगलचरण , क्षितिज वंदना ठाठ।।
क्षितिज वंदना ठाठ, मानसी ने दी शिक्षा।
जलता रहे चिराग , अगम से कहे प्रवीक्षा
काव्य-जगत आकाश , ऋचाओं के अनुच्चरी
आँचल सहित प्रताप , सलिल सह काव्य-मंजरी।।
                             -आचार्य प्रताप
कार्यक्रम का संचालन अक्षरवाणी के प्रबंध निदेशक स्वयं आचार्य प्रताप जी ने  निदेशक तथा प्रमुख संपादक हेरम्ब कमल ब्रम्हचारी जी के मार्गदर्शन पर किया

तिथि - १४-०१-२०२१ 
समय - १५ : ४६  :०० 

आदेशानुसार 
नियंत्रक  

aksharvanikavyamanjari

बुधवार, 13 जनवरी 2021

गीता छंद में एक सृजन

acharypratap


 




गीता छंद में एक प्रयास

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आज का छंद- #गीता 26 मात्रा, (मापनीयुक्त मात्रिक)

लय - गागालगा गागालगा गागालगा गागाल

क्रमशः दो-दो/ सम पंक्ति तुकांत 

 

राधा कहें अब श्याम से करना हृदय में वास।
मधुवन मजीरा मणि मतंग मथनी मथे मधुमास।।
क्रंदन करूँ करुणानिधी कंकण करें कटु नाद ।
प्रीत - परचम पा पथिक पथ पारश बना अपवाद ।।
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-आचार्य प्रताप

नैतिक तथा मौलिक दोहे-१३-०१-२०२१

#दोहे
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अपने सृजनों में रखें, नैतिकता अनिवार्य।
सच्चे मन से सृजन में , होता अच्छा कार्य।।०१।।
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मिली सफलता जो कभी, बढ़ता जाता ताप।
कार्य प्रगति पर चल रहा,करता रहा प्रताप।।०२।।
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बाहुबली नेता बने, जन मानस है आम।
अब जनता दरबार तो, लगता सारेआम।।०३।।
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ग्रहण भानु का दोष है , मानव का अभिमान।
खंडित होने पर सदा  , पाते वे सम्मान।।०४।।
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मानव का अभिमान जब , टूटे बने महान।
कह प्रताप अविराम तब , पाता वह सम्मान।।०५।।
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आचार्य प्रताप

विशेष - फेसबुक की याददाश्त से प्राप्त गत साहित्यिक वर्षों के कुछ दोहे जिन्हें आज प्रकाशित कर कर रहा हूँ |

युवा दिवस पर सृजित कुछ दोहे प्रताप-सहस्र से

#दोहे

छंद- दोहा  छंद (13,11 पर यति)

युवा दिवस की हार्दिक शुभकानायें 
तिथि- 12-01-2021
दिवस- मंगलवार

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युवाओं अब सोच से , बनो विवेकानंद।
शुद्ध सरल हो आचरण , जीवन तब आनंद।।०१।।
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यादों में क्या है कहीं , शिक्कागो की बात।
चंद मिनट उनको मिले , दिवस बिताए सात।।०२।।
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एक सुकन्या ने किया , प्रस्तावित निज भाव ।
स्वामी जी बतला रहें , संस्कृति सहित स्वभाव।।०३।।
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युवती के थे यह कथन , आएँ मेरे पास।
वैवाहिक जीवन सहित , एक पुत्र की आस।।०४।।
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पुत्र आप-सा चाहिए , प्रकट किया उर भाव।
सोच रहा तब युगपुरुष , कैसा यह प्रस्ताव?।०५।।
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घुटनों चलता शिशु बनें , लिये करो को जोड़।
युवती सम्मुख आ गया काल का कैसा मोड़?।०६।।
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स्वामी जी ने जब कहा , माँ पहचानों कौन?
मैं नरेंद्र तव पुत्र हूँ , तब युवती थी मौन।।०७।।
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अंतर्मन में क्रोध था , किंतु हृदय में प्रीत।
टेके घुटने बोलती , लिया हृदय फिर जीत।।०८।।
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संस्कृति सह संस्कार के , एक मात्र जो मूल।
प्रेरक इस व्यक्तित्व को, कैसे जाऊँ भूल।।०९।।
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हे स्वामी! हे युगपुरुष! , जपता सदा प्रताप।
नैतिकता संसर्ग की प्रभु , मूरत हो आप।।१०।।

आचार्य प्रताप

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

Live-55 डॉ अर्चना पाण्डेय

 डॉ अर्चना पाण्डेय

नाम - डॉ अर्चना पाण्डेय

जन्म तिथि - 20 फरवरी, 1976, माउंट आबू, राजस्थान.

परिवार - मेरे एकल परिवार में शामिल हैं मेरे जीवनसाथी श्री अमित कुमार चतुर्वेदी जी जो कि रक्षा मंत्रालय में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत हैं और दो बेटियां अस्मि और अवनि।


शिक्षा – एमए(हिंदी), बी.एड, एम-फिल, पीएचडी (भाषा-विज्ञान) पत्रकारिता एवं अनुवाद

में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, होटल, ट्रेवल एवं पर्यटन प्रबंधन डिप्लोमा.पूर्व में टी वी पर समाचार वाचक व रेडियो पर उद्घोषक रही.


व्यवसाय - डीआरडीओ रक्षा मंत्रालय में सहायक निदेशक (राजभाषा), के रूप में कार्यरत.

पुस्तकें – रक्षा अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र में विज्ञान लेखन(भाषा विज्ञान)

‘गुलमोहर’ सांझा काव्य-संकलन, 

‘अस्त्र’ गृह-पत्रिका का संपादन, 

रक्षा-शब्दावली (शब्दकोश) का संपादन.

 काव्य धारा द्वारा प्रकाशित ‘एक कदम और’ सांझा-संकलन में कविताएँ प्रकाशित.


सम्मान/पुरस्कार - ‘विद्या- वाचस्पति’ विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर

(बिहार)(2012) ‘विद्या-सागर’ विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर

(2018) ‘भाषा-समन्वयक’सम्मान अंतरा-शब्दशक्ति(2019) ‘काव्य-रथी’

(काव्यधारा प्रकाशन)(2020) ‘राजभाषा पुरस्कार’ डीआरडीएल (रक्षा

मंत्रालय)

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आपकी काव्य यात्रा-

कविता लेखन के मेरे मुख्य प्रेरणा स्रोत मेरे पिताजी श्री राजनाथ पांडेय हैं जो बहुत अच्छे कवि हैं और उन्होंने अपने जीवन में बहुत सारी कविताएं लिखी हैं। माँ लोकगीतों में निपुण थीं सो मेरा रुझान लोकगीत लेखन व गायन में भी रहा। मुझे याद है कि पांच-छह साल की उम्र से ही मुझे कविताओं में बड़ी रुचि थी। मैं पाठ्य पुस्तकों के पाठ कम पढ़ती, पर हिंदी और अंग्रेजी की सभी कविताएं लयबद्ध कंठस्थ कर लेती थी। मां बताती है कि मैं दिन भर कविताओं को ऊँचे स्वर में गाती रहती थी। छोटी थी तो सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताएँ, फिर रामधारी सिंह दिनकर की कविताएँ कविताएं फिर गुलजार की शेरो शायरी अच्छी लगने लगी। पुरानी हिंदी फिल्मों की गजलें और गीत सुनना अच्छा लगता है।


 गीत, ग़ज़ल, माहिया, कविता, लोकगीत आदि थोड़ा-बहुत लिखती व गाती हूँ। हिंदी और भोजपुरी में लिखना पसंद है।



#aksharvanikavyamanjari #drarchnapandey|डॉ अर्चना पाण्डेय |Poetry|Hindi Poetry|Live-55

रविवार, 10 जनवरी 2021

Live -53 अंशी कमल

अंशी कमल


मेरा नाम- अंशी कमल है और मैं उत्तराखण्ड के श्रीनगर गढ़वाल से हूँ । 

मेरा पूरा नाम - अनसूया बडोनी "अंशीकमल" है। 

शिक्षा- एम.ए. बी.एड.

पिता का नाम- श्री बी.डी. डंगवाल

माता का नाम- श्रीमती सरोजनी डंगवाल

  मुझे छंदबद्ध रचनाएँ लिखना पसन्द हैं। 

गीत व ग़ज़ल लेखन में सर्वाधिक रुचि रखती हूँ। साहित्यिक उपलब्धि में कई बार अलग अलग समूहों से अलग अलग सम्मान मिले हैं लेकिन मैं समय न मिलने के कारण किसी भी समूह में बहुत कम जा पाती हूँ और लिखने के लिए भी मुझे अधिक समय नहीं मिल पाता है। मेरी रचनाओं के विषय में देशभक्ति का विषय मुझे सर्वाधिक पसन्द है। मैं एक प्राइवेट में स्कूल में पढ़ाती हूँ ।


#aksharvanikavyamanjari #anshikamal|अंशी कमल |Poetry|Hindi Poetry|Live- 53

शनिवार, 9 जनवरी 2021

live-52 सुमन सिंह

सुमन सिंह


 नाम-सुमन सिंह

जन्मतिथि-०४/०६/७६

शिक्षा-एम.ए.【साहित्यिक हिंदी】 बी.एड.

ग्राम-हरदोइया,

डाकघर-हरदोइया, मिल्कीपुर (विधानसभा क्षेत्र)

गृह जनपद-अयोध्या 【फ़ैज़ाबाद】( उत्तर प्रदेश)

शौक- गीत ,ग़ज़ल,कविताएं,पढ़ना,लिखना,गाना, सामर्थ्य के अनुसार जरूरत मंदों के काम आना,रिश्तों की कद्र करना...


#aksharvanikavyamanjari #sumansingh|सुमन सिंह|Poetry|Hindi Poetry|Live- 52

Live- 51 आचार्य ओम नीरव

 आचार्य ओम नीरव

परिचय-संक्षिप्त 



कवि नाम- ओम नीरव

पूरा नाम– ओमप्रकाश मिश्र ‘ओम नीरव’

आत्मज - श्री जगदम्बा प्रसाद मिश्र एवं श्रीमती विमला देवी मिश्रा

जन्मस्थली– सराय, अलीगंज, जनपद – खीरी, उ. प्र.

कर्मस्थली– मोहमदी, खीरी, उ. प्र.

निवासस्थली– 616/P-14, श्याम विहार कॉलोनी, सेमरा गौढ़ी, आई आई एम रोड, लखनऊ- 226013

जन्मतिथि– 20 जून 1948

शिक्षा– एम. एस-सी. (रसायन), एम. ए. (दर्शन), बी. एड., आई. जी. डी. बॉम्बे

सेवाकाल– जे. पी. इंटर कॉलेज मोहमदी खीरी उत्तर प्रदेश में 1971 से 2003 तक प्रवक्ता और 2003 से 2008 तक प्रधानाचार्य। 

सम्प्रति– संस्थापक अध्यक्ष ‘अ. भा. कवितालोक सृजन संस्थान' लखनऊ।

प्रकाशित कृतियाँ– (1) खण्ड काव्य ‘तुलसी प्रिया’ (1994, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से पुरस्कृत), (2) लक्षण ग्रंथ ‘गीतिका दर्पण, (3) खण्ड काव्य ‘धुन्ध’,  (4) निबंध-संग्रह ‘कविता की डगर’, (5) गीतिका संग्रह ‘गीतिकांजलि’, (6) लघुकथा संग्रह ‘स्वरा’, (7) गीतिका विधा की रूपरेखा ‘गीतिका-बोधिनी’, (8) गीत संग्रह ‘पांखुरी-पांखुरी’, (9) छंद संग्रह ‘छन्दानन्द’, (10) समालोचना कृति ‘महाकवि  विवेकानंद’ (11) काव्य संकलन 'कोरोना' (12) लक्षण ग्रंथ 'छन्द विज्ञान' (13) संस्मरण 'कभी-कभी' (14) लघुकथा संग्रह 'शिलालेख' (15) काव्य संग्रह 'जय विज्ञान'। 

संपादित कृतियाँ– (1) साझा संकलन ‘प्रज्ञालोक’, (2)‘कुंडलिनी लोक’, (3)‘कवितालोक– प्रथम उद्भास’, (4)‘गीतिकालोक’, (5) मासिक काव्य पत्रिका ‘सरस प्रज्ञा’ (तीन वर्ष तक) 

शोधपरक कार्य (अनौपचारिक) – (1) भारतीय सनातनी छंदों की केवल लघु-गुरु के आधार पर सरल व्याख्या (2) हिन्दी भाषा-व्याकरण और हिन्दी छंदों पर आधारित गीतिका विधा का प्रणयन और (3) मापनी विज्ञान (4) फिल्मी गानों से छंदों का अनुशीलन।

विशेष – नियमित काव्यशालाओं का आयोजन, साहित्यिक पत्र ‘साहित्यगंधा’ में स्तम्भ ‘पाठशाला’ का लेखन, छंदबद्ध कविता का प्रशिक्षण एवं प्रचार-प्रसार। 

सम्मान– उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा खंड काव्य ‘तुलसी प्रिया’ के लिए अनुशंसा पुरस्कार (1994) सहित शताधिक सम्मान। 

भूमिका लेखन- 70 से अधिक पुस्तकों की भूमिकाओं का लेखन।



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शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

Live - 45 राजेश तिवारी 'प्रहरी'

 राजेश तिवारी 'प्रहरी'


 राजेश तिवारी 'प्रहरी' 




गुरुवार, 7 जनवरी 2021

Live- 50 नवनीत चौधरी

नवनीत चौधरी 


 ●-नाम :- नवनीत चौधरी 

●-साहित्यिक नाम :- विदेह 

●-पिता:-श्री हुकुम सिंह चौधरी 

●-सहधर्मिणी-श्रीमती  लतेश चौधरी

●-स्थायी पता :- राम विहार कॉलोनी वार्ड नं. ३ किच्छा, ऊधम सिंह नगर ( उत्तराखंड) 

●-फोन नं/व्हाट्सएप/ ईमेल :- 9410477588/ navneetchaudhary 7788@gmail.com

●-जन्मतिथि :-24/08/1976

●-शिक्षा :-एम.एस-सी.( जूलौजी), बी.एड, विशिष्ट बी.टी.सी.

●-व्यवसाय :-राजकीय शिक्षक उत्तराखण्ड राज्य |

●-सृजन  की विधाएँ :- दोहा, मुक्तक,कुंडलियाँ, गीत आदि। 



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