बुधवार, 30 सितंबर 2020

ऋतुराज वसंत का गुणगान

ऋतुराज वसंत का गुणगान
अनुशासन का मान बढ़ाया, मानवता का पाठ पढ़ाया।
मानव दानव मध्य सभी को, जिसने सारा भेद सिखाया।।
सावन पावन मधुवन उपवन , मृदु-जल पूरित सुरभित होते।
ईश्वर  का  वरदान  धरा  यह ,  तारक हैं  सुख से सब सोते।।

सभी चराचर जीव जगत के ,  श्यामल भू-तल पर हैं  छाए।
सब के मुख से मुखरित होते , मृदुभाषी मृदु गीत जो गाए। ।
नीलफलक निर्मल नभ के सम ,  मखमल मरकत  मतवाला है।
रंग-बिरंगे फूलों से सज , मधु ने मधुकर को  पाला है।।

पतझड़ में झरकर धरणी पर , पल्लव पुष्प यहाँ बिखरे जब।
नवपल्लव नवपुष्प दिखें तब नव आगंतुक मित्र यहाँ सब।।
पुष्प - भ्रमर  आलिंगन  करते ,  मन को विचलित ये करते तब।
योग प्रताप करें हठ का अरु , मन  को करते हैं वश में अब।।

आचार्य प्रताप

कह-मुकरियाँ ने दिलाई थी एक अनोखी पहचान- आचार्य प्रताप


मंगलवार, 29 सितंबर 2020

साहित्यिक गतिविधियों का समाचार पत्र में प्रकाशन

हिंदी मिलाप
स्वतंत्रता वार्ता

सोमवार, 28 सितंबर 2020

तेलंगाना हिंदी साहित्य भारती कार्यकारिणी की बैठक संपन्न

          मीडिया प्रभारी ने बताया कि कार्यकारिणी की बैठक में तेलंगाना प्रांत के हिंदी साहित्य भारती कार्यकारिणी के सभी सदस्यों ने बड़े उत्साह से प्रतिभाग किया , सभा का आयोजन गूगल मीट के द्वारा संपन्न हुआ। कार्यक्रम  का  आरंभ माँ  सरस्वती  की वंदना से डॉ. जयलक्ष्मी जी ने किया,  तत्पश्चात श्रीमती राजरानी शुक्ल द्वारा उपस्थित  सभी  पदाधिकारियों,  सदस्यों, आमंत्रित सदस्यों का  स्वागत किया गया तथा  आभार व्यक्त किया। 
     कार्यकारिणी की उपाध्यक्षा डॉ स्नेहलता शर्मा जी  ने अपने  वक्तव्य में  कार्यकारिणी की पूर्व बैठक में लिये गये निर्णयों , सदस्यों के दायित्वों और योजनाओं  का विवरण प्रस्तुत किया। और बताया कि हिंदी साहित्य भारती  ने  25 राज्यों में  अपना  वर्चस्व स्थापित कर लिया है। 
       कार्यकारिणी के संयुक्त महामंत्री डॉ राजीव सिंह जी द्वारा  हिंदी साहित्य भारती तेलंगाना की गतिविधियों का विवरण विस्तार से दिया गया।और भावी योजनाओं का उल्लेख किया। 
        अक्टूबर-नवंबर और दिसंबर 2020 में आयोजित गतिविधियों  व योजनाओं पर अपने विचार प्रस्तुत किये।डाॅ. सुषमा जी ने साहित्य भारती के कार्यकारिणी को तेलंगाना प्रांत के सभी जनपदों के जनपद अध्यक्षों की गतिविधियों पर चर्चा  की तथा सभी से वार्तालाप एवं जनपदों पर कार्यों का विवरण कार्यकारिणी का गठन इत्यादि पर विस्तृत जानकारी रखी। गांधी जयंती  , लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर गोष्ठी की योजना रखी। 
             सभी  सदस्यों द्वारा  रखे गये प्रस्तावों पर विचार किया गया।  हिंदी के प्रति हमारे उत्तरदायित्व को पुनः एक बार हाशिए की नोक पर रखते हुए कार्यकारिणी की प्रांत प्रभारी आद. सुरभि दत्त के द्वारा सभी को उनके उत्तरदायित्व याद कराए गए तथा सभी ने मिलकर अपने उत्तरदायित्व के प्रति पूर्ण निष्ठा भाव से दृढ़ संकल्प लिया "अपने अपने उत्तरदायित्व को हम तन मन धन से निभाएंगे"।
             मार्गदर्शक मंडल द्वारा  विचार प्रस्तुत किये गये  आद. विद्याधर जी  ने कहा यह विशिष्ट संगठन है । हिंदी साहित्य श्रेष्ठ उद्देश्य को लेकर चल रहा है हमें इसे सफल बनाना है।   उन्होंने कहा - हमें  इस कार्य को ऋषि ऋण मानते हुए पूर्ण निष्ठा से क्रियान्वित करना है। डॉ. कुमुदबाला जी ने जिले में  संगठित समूह के कार्यों को क्रियान्वित करने के लिए साधुवाद दिया तथा सभी सदस्यों को अपने कर्त्तव्यों के प्रति उत्तरदायित्व समझने की बात कही। तथा आपने यह भी कहा कि सभी के सहयोग और निश्चित  दायित्व  निर्वाह से हम अपने लक्ष्य को सरलता से प्राप्त कर सकते हैं। आपने  सभी सदस्यों की सक्रियता की प्रशंसा की।
डॉ सुमन लता जी ने हिंदी साहित्य भारती को उर्वरा भूमि तथा साहित्य सेवकों को बीज की संज्ञा से संबोधित करते हुए बताया इस कार्य से हिंदी को मूर्त रूप मिलेगा।तेलंगाना  हिंदी साहित्य भारती  को  ग्रामों से जुड़ कर वहां हिंदी की गति व स्थति को समझना होगा। तभी हमारे प्रयास सार्थक होंगे  और सही दिशा की ओर बढ़े सकेंगे ।
श्री श्याम सुंदर मूंदड़ा जी ने अपने वक्तव्य में सभी को उनके उत्तरदायित्व को पुनः याद दिलाते हुए कहा कि साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन करना चाहिए जिनका आधार कवि लेखक साहित्यकार या फिर उनकी रचनाओं पर किया जाना चाहिए ।सभी सदस्यों के अपने-अपने सुझाव निम्नवत किए गए
 इंद्रजीत जी ने  सुझाव में  कहा कि हमें अपने समूह में सुधार कार्यों  को सम्मिलित करना चाहिए। श्रीमती सरिता तिवारी जी का सुझाव रहा कि - हिंदी भाषा की मूर्त रूप प्राथमिकता होनी चाहिए ना कि बाह्य आडंबर।
श्रुतकांत भारती जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि अब साहित्य भारती को गांव में अपने कदम बढ़ाने चाहिए।
प्रदेश प्रभारी डॉ सुरभि दत्त जी ने वक्तव्य  में सभी के अमूल्य सुझावों का स्वागत करते हुए सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि कम अवधि में प्रदेश इकाई द्वारा  कई साहित्यिक  गतिविधियों का आयोजन किया है गया है।   इस गोष्ठी की अनुकूलता को हृदय-पटल के समीप्य बताया।
अध्यक्षीय संबोधन में डॉ अर्चना पांडेय जी ने भावी कार्यक्रमों पर  विचार रखे एवं राष्ट्र भाषा के अभियान को तीव्र करने की आवश्यकता पर बल लिया। साथ-साथ मंडल इकाइयों के गठन की प्रशंसा की। 
प्रदेश के मंत्री पद पर नियुक्त आचार्य प्रताप जी द्वारा  सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया तथा आपके ही द्वारा कल्याण मंत्र के साथ सभा के समापन की  घोषणा  की गई। प्रदेश के मंत्री पद पर नियुक्त डॉ रजनी धारी जी ने कार्यक्रम का सकुशल संचालन किया।

रविवार, 27 सितंबर 2020

एक शिक्षक की भूमिका

एक शिक्षक की भूमिका

समाज के निर्माण में , देश के निर्माण में और भावी भविष्य की नवयुवा पीढ़ी  के निर्माण में  एक शिक्षक की भूमिका माकन के चार आधार स्तंभों में से एक की भाँति  होती है।  हम सबको ज्ञात है कि बिना शिक्षक के शिक्षा का विकास उसी तरह होता है जैसे कि एक असहाय , निर्बल राजा के कारण उसकी प्रजा और राष्ट्र का।  विदित है कि "यथा राजा, तथा प्रजा।"

मैं  संस्कृत प्रचारक होने के कारण संस्कृत के  ही माध्यम से बताना चाहूँगा -

यथा शिक्षकः तथा विद्या , यथा विद्या तथा संस्कारः।

यथा संस्कारः तथा शिष्यः , यथा शिष्यः तथा राष्ट्र निर्माणः।।

                                                          - आचार्य प्रताप

आज हमारे समाज में शिक्षक की भूमिका ठीक उसी प्रकार से हो गयी है जिस प्रकार से की एक  घोड़े को प्रतिस्पर्धा में भाग लेने का अवसर दिया गया हो और उसके पैरों में बंधन की बेड़ियाँ डाल दी गयीं हों।

ऐसी दीन दशा हुई , अध्यापक की आज।

जैसे धावक अश्व को , रसरी डाल समाज।।01।।

                                      -आचार्य प्रताप

संभवतः शिक्षक की तुलना  गधे , कुत्ते या फिर एक सामान्य मजदूर से की जाय तो अतिशंयोक्ति नहीं होगी; क्योंकि आज कल निजी विद्यालयों में शिक्षकों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है , काम के लिए गधे की तरह, कुत्ते की तरह इधर-उधर भटकाना और एक असहाय मजदूर की तरह उसका पारिश्रमिक  भी सही अदा न करना , इस पर सरकार की ओर से कोई विशेष कदम न उठाना  आने वाले भविष्य में शिक्षकों की कमीं का आभास कराता है। आज जो भी शिक्षक बन रहे है वो अपनी  किसी न किसी विशेष परिस्थिति के कारण बन रहे है कोई अपनी रूचि से शिक्षक नहीं बनना चाहता है। इसके प्रमाणन हेतु  मैने अनेक विद्यालयों में भ्रमण किया और कुछ अभिभावकों से वर्तालाप भी किया , यह मेरा अपना स्वयं का शोध है इस बात की पुष्टि करने के लिए मैंने एक विद्यालय की २५ विद्यार्थियों की एक कक्षा में प्रवेश किया  और थोड़ी बात-चीत के बाद भावी भविष्य की जानकारी लेनी चाही  और एक के बाद एक से पूछा कि  आप भविष्य में क्या बनना चाहते हैं ?

तब मात्र दो  छात्रों के प्रतिउत्तर मिले "शिक्षक" शेष अन्य।

इस शोध की तह तक जाने के लिए अन्य उत्तर वाले छात्रों से पूछा कि:-

 आप शिक्षक भी बन सकते है पर आपने क्यों इससे नहीं चुना ?

  छात्रों के मत कुछ इस प्रकार से थे -

                                    शिक्षकों का वेतन बहुत काम होता है।  शिक्षकों सबसे ज्यादा इधर-उधर घुमाते हैं (यह मेरा कथन छात्रों अलग ढंग कहा था) शिक्षकों कोई विशेष सुविधा नहीं होती है।  उनके बच्चों के लिए कोई सुविधा नहीं।  आज का शिक्षक तो मात्र कठपुलती बन कर रह गया है। शिक्षक केवल नाम का शिक्षक होता है। उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं है यहाँ तक कि छात्रों की उद्दंडता पर अपने छात्र को डाँट भी नहीं सकता यदि डाँटते हुए ‘गधा’  कह दिया है तो उसे अपमानित किया जायेगा! बन्दी बनाया जायेगा!  क्या यही गुरु का सम्मान होता है?

            क्या यही मर्यादा रह गयी है एक गुरु की जो राष्ट्र का निर्माण बिना किसी लाभ के करता है ?  बंदी बनाने वाला भी वही होता है जिसे कभी उसी शिक्षक समुदाय ने शिक्षा दी है जिनके कारण वह आज इस पद पर पहुँचा है ,उसे यह अधिकार दिया है कि अपने गुरु का अपमान करे, किन्तु गुरु को कोई अधिकार नहीं दिया है।

इतनी बातचीत सुनने के पश्चात मेरी आँखें नम हो गयीं और मेरे प्रश्नों का गुच्छा टूटकर बिखर गया मैं सिहर-सा गया  मुझे आभास हुआ की वास्तव में शिक्षक का जीवन आज खतरे में है। “जब शिक्षक स्वयं छात्र या उनके अभिभावकों से या निजी विद्यालयों के प्रबंधकों के डर से  शिक्षा देगा तो निश्चित रूप से वो गलत को भी सही कहेगा और ऐसा करने पर राष्ट्र में शिक्षा का आभाव बना ही रहेगा और कागजी दुनिया में सब शिक्षित बन जायेंगे किन्तु वो पढ़े-लिखे बेवकूफ कहलायेंगे।“

 शिक्षक ऐसा  चाहिए , मिले जिसे सम्मान।

मान नहीं करते अगर , मत करिये अपमान।। ०१।।

शिक्षक को भी दीजिये , अब उसके अधिकार।

नवयुवक  भी   हो   सके राष्ट्र  हेतु  तैयार।। ०२।।

                                       -आचार्य प्रताप

आचार्य प्रताप

वरिष्ठ पत्रकर व साहित्यकार

भाग्यनगर , तेलंगाना



दोहा


वर्णों का हूँ मैं कृषक , शब्दों से व्यापार ।
मुझे लाभ में चाहिए , आप सभी का प्यार।।

आचार्य प्रताप

शनिवार, 26 सितंबर 2020

कवि मित्रों की रचनाएँ

कहमुकरी

विवाह

जिसके आने से सुख मिले।
जिसके जाने से दुख मिले।
करते सभी उसी की वाह।
क्या सखि साजन ? नहीं विवाह॥01॥
****

कर रहें सभी बहुत प्रतीक्षा।
कसमें खाय करेंगे रक्षा।
लातें साथ में कई गवाह
क्या सखी साजन? नहीं विवाह॥02॥

आचार्य प्रताप

मुक्तक

 

दुखों में रोकर मिलता है, सुखों में हँसकर मिलता है
क्षुधा-पीड़ित हो प्राणी जो, उसे तो खाकर मिलता है।
जगत में मैंने देखा है, सभी की अपनी विधियाँ हैं-
कहूँ कैसे मुझे आनंद,  तो बस लिख कर मिलता है॥01॥

---
मुक्तक हो या छंद हो, पढ़ कर लें आनंद।
रचनाएँ ऐसी करें, जिनमें रसधार अमंद ।
जाँचे मात्रा भार तब, तुला तौल की भाँति-
खिलती रचना है तभी,बनकर सुरभित छंद॥02॥
 


आचार्य प्रताप

गीतिका

विधाता छंद

दिवाकर ढल गया था जब  , तिमिर फैला हुआ तब है।
सुधाकर दिख गया अब तो , तिमिर का नाश तो अब है॥


निशा का रंग काला है, तभी भय है जगत भर में,
भयानक रात होती है ,कहीं दिखता नहीं अब है॥


बुरी घटना घटी थी जब, तभी भी रात काली थी,
विरह में गीत गाता था ,प्रिये को भूलना कब है॥


सवेरा हो रहा अब है , हमें यह ज्ञात होता है,
खुले बंधन तिमिर के हैं , ख़ुशी की लहर तो अब है॥


मधुर कलरव करें पंछी, गगन भर लालिमा छाई,
सवेरा हो गया है अब ,तिमिर तो मिट गया सब है॥ 

आचार्य प्रताप

शक्ति छंद

 शक्ति छंद
********
विधा आज तुम ही चुनोगे अगर।
रचोगे नया कुछ लिखोगे अगर।
विषय आज का तुम प्रतिष्ठा चुनो।
लिखो फिर अभी जो हकीकत सुनो।
न लिप्सा अगर हो तुम्हें जीत की।
परीक्षा लिखो तुम अभी प्रीत की।

आचार्य प्रताप

दोहा-द्वादशी

 वसंत-ऋतु- वसंतोत्सव

काक-कोकिला एक सम, वर्ण रूप सब एक।
ऋतु बसंत है खोलती , भेद वर्ण के नेक।।०१।।
------
हरियाली अब छा रही , कर पतझड़ का अंत।
कहता यही प्रताप अब , आया सुखद बसंत।।०२।।
-------
बाग बगीचे में भ्रमर , दिखे कुसुम के संग।
आलिंगन का दृश्य यह , मन में छेड़े जंग।।०३।।
------
ईश्वर के वरदान सम , ऋतु वसंत है मीत।
नव पल्लव नव पुष्प सब, नव कोकिल के गीत।।०४।।
--------
तरुवर नवल धवल वसन , क्षिति कर नव उपकार।
वन-उपवन धर कुसुम नव , शुचि जग भर उपहार।।०५।।
----------
धवल नवल तरुवर वसन , वन-उपवन नव कुसुम।
प्रकृति कमल नृप सम जगत , ऋतुपति सु-मुकुल सुषुम।।०६।।
------
वसुधा वसित वसन किये , नवल धवल परिधान।
ऋतुपति का शुभ-आगमान , हर्षित जग जन जान।।०७।।
-----
पल्लव पुष्प मुकुल सहित , नवल हरित परिधान।
धारण कर धरणी करे , ऋतुपति का सम्मान।।०८।।
-----
मन मेरा मधुकर हुआ , जब से लगा वसंत।
गीत ग़ज़ल अरु छंद सब , तुमसे ही पद-अंत।।०९।।
------
बूढ़ों में भी चढ़ चलें , आप जवानी चाल।
ऋतुपति का क्या खेल है , कहूँ आज क्या हाल??०४।।
--------
देख वसंती चाल मैं , कर जाता हूँ भूल।
कब किसको कैसे कहाँ , कहूँ वचन के शूल।।०१०।।
-------
पीली सरसों देखकर , मन में उठे उमंग।
मत प्रताप प्रिय प्रेयसी , डाल रंग में भंग।।११।।
------
कूक रही है बाग पर , कोकिल मीठे गीत।
मनो छाया है यहाँ , ऋतु वसंत अब मीत।।१२।।
-------
आचार्य प्रताप


 

गीतिका -विजात छंद

 विजात छंद

सुहानी शाम है आई।
गगन पर लालिमा छाई।।


सुधाकर है दिखा अब तो ,
सुहानी रात है आई।।


कली मिटने लगी देखो,
सुमन बन गंध फैलाई।।


दिखी कोयल अभी जब तो ,
प्रिये तुम याद है आई।।

 प्रिये तुम हो हमारा धन ,
जगत सौगात है पाई।।


यहाँ पाकर तुम्हें अब तो ,
नहीं है लालसा कोई।।


आचार्य प्रतप

गीतिका

 मनोरम छंद
************

दर्शन शशि विकाल में हो,
उत्तर अब सवाल में हो।


शब्द गरिमा चाल में हो,
प्रेयसी हर हाल में हो।


नयन लड़ते सौर्य में हो,
दामिनी सौंदर्य में हो।


घूँघट फिर मत भ्रम में रख,
लोचन झुके शरम में रख।


मस्त तारुण्य फिर तरुणा,
बाद इनके हो सदा करुणा।


प्रेयसी बैठी हुई थी ,
याद तब वो कर रही थी।


जब मिले हम अश्रु धारा,
बह रहा था नीर सारा।


आचार्य प्रताप

होली गीत

 





होली गीत
=========
केसर घोलो गुलाल लगाओ रे...
पिया परदेसी को गाँव बुलाओ रे।
---------------------------------------
फागुन का ये माह है आया।
ले के बसंती बहार है छाया।
विरह भाव से तड़प रही मैं-
ला के थोड़ा भाँंग पिलाओ रे...
पिया परदेसी को गाँव बुलाओ रे ।।०१।।
-
रंग भरा त्यौहार है आया।
मस्ती का मौसम है छाया।
बैर-भाव सब भूल गई मैं-
आकर थोड़ा गुलाल लगाओ रे...
पिया परदेसी को गाँव बुलाओ रे ।।०२।।
---
करते हैं सब तंज ये मुझ पर।
नहीं पिया अब देश को आएगा।
इनसे-उनसे बचती फिरी मैं-
आकर मेरी लाज बचाओ रे...
पिया परदेसी को गाँव बुलाओ रे ।।०३।।
=======================
आचार्य प्रताप

कहमुकरी

 

*******************
तरह-तरह के जन को लाते।
सारा दिन उत्पात मचाते।।
रँगते जाते मेरी चोली।
क्या सखि साजन? ,
ना सखि होली।। ०१।।
***
आते ही मैं खुश हो जाती।
इनके बिन मैं रह ना पाती।।
अच्छे हो सबके व्यवहार।
क्या सखि साजन? नहीं त्योहार।।०२।।
*****
गोल कपोलों को ये चूमें।
मस्ती में ही रहते झूमे।
दिखलाते हैं सदा ये प्यार।
क्या सखि साजन?,
नहीं त्योहार।।०३।।
****
एक बार साल में आए।
नहीं कभी हम भूल पाए।
हरे गुलाबी काले लाल।
क्या सखि साजन? ,
नहीं गुलाल।।०४।।
****
होली आती है हर साल।
जन गण दिखते काले लाल।
झगड़े करते हैं चिरकाल।
क्या सखि साजन? ,
नहीं गुलाल।।०५।।
 

दोहे


होली

तरह-तरह के रंग ले, खेलो तुम अब खेल।
रंगों के इस खेल ने, करा दिया अब मेल।।०१।।


श्यामल श्यामल गाल पर,श्यामा मले गुलाल।
पिचकारी ले श्याम जी, करते खूब धमाल।।०२।।

रंग फागुनी चढ़ रहा, लेकर नई उमंग।
होली के बहु रंग में, मिला सनेही रंग।।03।।
 


 आचार्य प्रताप

हिंदी दिवस पर प्रकाशित दोहे


 

हिंदी साहित्य भारती द्वारा प्रदत्त


 

दोहे


अलंकरणरण युक्त

 
लाल, लाल के भेद को, भेदेगा श्रीमान।
रचनाएं अरु पटल का, करे सदा सम्मान।।

----

बाल बचा लो बाल से , बाल खींचते बाल।
बचा न पाए बाल से, उखड़ गए सब बाल।।

-----


गाल लाल हैं लाल के, लाल दिखे अब लाल।
लाल लाल ही दिख रहा,चोंट लगी जब भाल।।

---

सुरा सुराही देखकर , बुझे न मन की प्यास।
यौवन में रस घोल दे , पावस भर दे आस।।

आचार्य प्रताप


 

दोहा

शुभम लंबोदर गणपति, मंगलमूर्ति गणेश।

मोदक दाता गजवदन,कहते सब विघ्नेश।।०१।।




आचार्य प्रताप

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

बच्चे आत्महत्या जैसी सोच से दूर कैसे रहें?

रीक्षा समाप्ति के बाद परिणाम आने से पहले, एक शिक्षक का, विद्यार्थी के माता-पिता को पत्र।
एक शिक्षक की कलम से --

प्यारे अभिभावकों,

         परीक्षाओं का दौर लगभग समाप्ति की ओर है और परीक्षा परिणाम की घोषणा होने वाली है। अब आप अपने बच्चों के रिजल्ट को लेकर चिंतित हो रहे होंगे । लेकिन कृपया याद रखें, वे सभी छात्र जो परीक्षा में शामिल हो रहे हैं, इनके ही बीच में कई कलाकार भी हैं, जिन्हें गणित में पारंगत होना जरूरी नहीं है। इनमें अनेकों उद्यमी भी हैं, जिन्हें इतिहास या अंग्रेजी साहित्य में कुछ कठिनाई महसूस होती होगी, लेकिन ये ही आगे चलकर इतिहास बदल देंगे I इनमें संगीतकार भी हैं जिनके लिये रसायनशास्त्र के अंक कोई मायने नहीं रखते । इनमें खिलाड़ी भी हैं, जिनकी फिजिकल फिटनेस फिजिक्स के अंकों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं । यदि आपका बच्चा मैरिट अंक प्राप्त करता है तो ये बहुत अच्छी बात है। लेकिन यदि वह ऐसा नहीं कर पाता तो उससे कृपया उसका आत्मविश्वास न छीनें |
उसें बतायें कि सब कुछ ठीक है और ये सिर्फ परीक्षा ही है । वह जीवन में इससे कहीं ज्यादा बड़ी चीजों को करने के लिये बना है | इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसने कितना स्कोर किया है। उसे प्यार दें और उसके बारे में अपना फैसला न सुनायें । यदि आप उसे खुशमिज़ाज़ बनाते हैं तो वो कुछ भी बने उसका जीवन सफल है, यदि वह खुशमिज़ाज़ नहीं है तो वो कुछ भी बन जाए, सफल कतई नहीं है । कृपया ऐसा करके देखें, आप देखेंगे कि आपका बच्चा दुनिया जीतने में सक्षम है। एक परीक्षा या एक 90% की मार्कशीट आपके बच्चे के सपनों का पैमाना नहीं है । 
 ✍ एक अध्यापक
      आचार्य प्रताप
बच्चे आत्महत्या जैसी सोच से भी बहुत दूर रहें ।