दोहा
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काया कमसिन कामिनी , मन मेरा मकरंद ।
अब तुम पर ही मैं लिखूं , प्यारे प्यारे छंद ।।०१।।
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नयन-नयन में हो रही ,दिल से दिल की बात।
अधरों में आकर रुके, दिल के सब जज्बात।।०२।
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अधर,अधर से मिलन को, करें प्रतीक्षा रोज।
पावन प्रेम बना रहे , जैसे पंक-सरोज।।०३।।
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आचार्य प्रताप
Acharypratap