छंद-१ - भुजंगी छंद

इस सप्ताह  का छन्द - भुजंगी छंद
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भुजंगी एक समपाद वर्णिक (वृत्त) छन्द है, जिसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जिसमें ये सभी 11 वर्ण एक निश्चित क्रम में रहते हैं। 
इसके चारों चरणों में-
यगण यगण यगण लघु गुरु
(।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽ) 
की एक व्यवस्था निर्धारित होती है। इसमें यति चरणान्त में होती है। दो-दो चरणों में तुक की समानता अर्थात तुकांत का नियम निर्धारित किया गया है अर्थात् प्रथम एवं द्वितीय तथा तृतीय एव चतुर्थ के तुक समान होते हैं।
चारों के तुक भी समान हो सकते हैं।
इसकी परिभाषा इस प्रकार दी गयी है।
य तीनों लगा के भुजंगी रचौ।
(य । ती ऽ नों ऽ ल । गा ऽ के ऽ भु । जं ऽ गी ऽ र । चौ ऽ)

इसके उदाहरण और लक्षण को इस प्रकार बताया जाता है।
यचै अंत में गान कै शंकरा।
   सती नाथ सों नानुकम्पा करा।।
क्रेंगे कृपा शीघ्र गंगाधरा।
     भुजंगी कृपाली त्रिशूला धरा।।

विशेष - इस छंद को आसानी से लिखने के लिये 122 122 122 12 वर्णों के क्रम को सजाकर इसका अभ्यास किया जा सकता है। किन्तु छंद वर्णिक है, अतः इसके गण की सुविधा का उपयोग नहीं किया जा सकता अर्थात् मात्रा पतन आदि नहीं हो सकते और न ही दो लघु को एक गुरु माना जा सकता है।
इस छंद को इस प्रकार लिखने का अभ्यास किया जा सकता है।

तुकांत व्यवस्था-१  चारों चरण में तुकांत

महादेव भोले पिनाकी सुनो।
महकाल जोगी अनादी  सुनो।।
उमाकांत  शंभू  कपाली  सुनो।
हरो  कष्ट   सारे  त्रिकाली सुनो।।
              -आचार्य प्रताप

२. दो - दो चरण तुकांत।

अरे ! राधिका प्रेमिका आप हो।
कहे कृष्ण ऊधौ स्वयं छाप हो।।
बसी है हिये प्रेम की शक्तियाँ।
प्रभाती घटाओं जगा भक्तियाँ।।

                       -आचार्य प्रताप

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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