बुधवार, 30 दिसंबर 2020

अक्षरवाणी विशिष्ट सम्मान

 

प्रेस विज्ञप्ति-2


क्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र के काव्य-मंजरी हिंदी साहित्यिक पृष्ठ की ओर से अपने साहित्यकरों को जीवंत कार्यक्रम हेतु आमंत्रित कर रचनाकारों की रचनाओं का पाठन करवाने तथा आजीवन सुरक्षित रखने के उद्देश्य से नवम्बर माह में आद. रिखब चंद राँका ‘कल्पेश’ ,ज्योति नारायण, सुनीता लुल्ला , माया अग्रवाल, श्याम सुन्दर पाठक ,आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', भाउराव महंत ,गोपाल भारतीय, जगदीश शर्मा 'सहज' तथा डॉ. सूर्य नारायण गौतम जी ने प्रतिभाग किया , 


आमंत्रित रचनाकारों को सहभागिता प्रमाण पत्र साथ ही रचनाकारों की रचनाधर्मिता को ध्यान में रखते हुए निर्णायक मंडल के निर्णयानुसार  अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र ने अपने आमंत्रित रचनाकारों को कुछ विशिष्ट सम्मान दे कर भी सम्मानित किया जिसमे – आद. रिखब चंद राँका ‘कल्पेश’ जी से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया अतः आपको श्री गणेश सम्मान एवं अक्षरवाणी प्रदीप सम्मान से सम्मानित किया जाता है, आद. ज्योति नारायण जी को अक्षरवाणी प्रदीप सम्मान से, आद. माया अग्रवाल जी को अक्षरवाणी गार्गी सम्मान, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी को आचार्य वामन सम्मान , गोपाल भारतीय जी को महर्षि व्यास सम्मान, तथा आद. सुनीता लुल्ला, जगदीश शर्मा 'सहज' , डॉ. सूर्य नारायण गौतम , श्याम सुन्दर पाठक एवं भाउराव महंत जी को काव्यादर्शी  सम्मान से सम्मानित करते हुए अक्षरवाणी संस्था हर्ष का अनुभव करती है कार्यक्रम का सञ्चालन स्वयं प्रबंध-निदेशक आचार्य प्रताप जी ने अक्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्र के निदेशक तथा संपादक हेरम्ब कमल ब्रह्मचारी जी के मार्गदर्शन पर संचालित किया |  

तिथि - २९-१२-२०२०

आदेशानुसार 

प्रबंध निदेशक 

 




Live- 36 Aviansh Film

Avinash Film



प्रेस विज्ञप्ति-1

‘बघेली’ हिंदी की सहायक भाषा तथा मध्यप्रदेश की एक बोली को गौरवांन्वित करने हेतु बघेली फिल्म के चर्चित हास्य कलाकार अविनाश तिवारी तथा उनकी टीम की चार फिल्में आवास-योजना , शौचालय-एक प्रेम कथा , देश तथा रेप हुआ ही नहीं, को खजुराहो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सम्मिलित करने तथा पुरस्कृत किये जाने के पश्चात्  अक्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्र के प्रबंध निदेशक एवं मध्यप्रदेश के प्रान्त प्रभारी आचार्य प्रताप जी ने जीवंत वार्तालाप में अविनाश फिल्म और उनकी टीम को शुभकामनायें देते अनेक प्रश्न किये  और  उनकी प्रतिकिया में उत्तर देते हुए अविनाश तिवारी तथा उनकी टीम ने बताया की जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि उनकी चार फिल्मों को जब प्रदर्शिनी में लगाया जाना तय हुआ था तब तक सभागार में बघेली को जानने वाले कम लोग ही थे किन्तु जैसे ही एक के बाद चार फ़िल्में लगातार बघेली की चली जिनकी कुल समयावधि 2 घंटे 45 मिनिट रही और उसके बाद से जब तक कार्यक्रम चला तब तक बघेली के बारे में ही चर्चा हुयी और सभागार से बहार निकलने के बाद उनके अनुयायियों ने उन्हें शुभकानायें दी आपने यह भी बताया की आपके अभिनय पर हिंदी फिल्म जगत के प्रतिष्ठित गायक उदित नारायण जी ने एक गीत को स्वर दिया जो की दर्शकों द्वारा बहुत ही पसंद किया गया आपने आपनी पुरानी टीम को भी याद करते हुए कहा कि दुर्घटनाएँ सबके साथ होती है मेरे साथ भी हुई | उस समय मैं आपनी बुरी परिथिति से गुजरा यह सोच कर एक स्वप्न की भांति भोला देता हूँ पर आप जैसे पत्रकार पुनः याद दिलाकर आँखे नाम कर देतें है | तथा आपने यह भी बताया कि आपको लोगो ने यह राय दी की कुछ मिर्च मसाला और गरम मसाला भी आपनी फिल्मों में दे जिससे अधिक लोग देख सकें इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बताया, “आप ऐसी फ़िल्में लोगो को देना चाहते हैं जिसे सारा परिवार पृथक–पृथक नहीं अपितु एक साथ देखे|”

आप आपनी समस्त सफलताओं का श्रेय आपनी टीम को दिया और दर्शकों को शुभ समाचार देते हुए आपने आपनी आगामी फिल्म पूस की रात के बारे में भी बताया जो की प्रेमचंद की कथा पर आधारित बघेली भाषा की अगली फिल्म पूस के राति  दिया गया है  इस फिल्म का प्रदर्शन विंध्य के सिनेमाघरों तथा  यूट्यूब पर जनवरी माह की प्रथम तिथि को प्रसारण  किया जायेगा यह बात आपने बाद में व्यक्तिगत फोन में हुई बातचीत पर बताया जिसका पोस्टर भी रिलीज हो चुका है|

पुनः आनत शुभकामनाये  

  



https://youtu.be/QfeTn3rYQ6g


#aksharvanikavyamanjari #avinashtiwari #Bagheli #baghelkhand |aviansh n Team| Live- 36

मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

Live- 41 rghuvirbandhu रघुवीर अग्रवाल 'बंधू'

 रघुवीर अग्रवाल 'बंधू' 



परिचय 










#aksharvanikavyamanjari #raghuveerbandhu|रघुवीर अग्रवाल 'बंधू' | Live- 41

Live- 40 Dr.Monika Devi डॉ. मोनिका शर्मा

 डॉ. मोनिका शर्मा 

परिचय -












Live- 39-anupamalok अनुपम आलोक

 अनुपम 'आलोक'



_____

(परिचय)

नाम- अनुपम कुमार 

पिता का नाम- स्व. श्री बिशुन चन्द्र 

शिक्षा- डिप्लोमा ( रेफ्रीजेशन) 

जन्मतिथि - 20-12- 1961

निवास - मो 0 चौधराना.... पो 0 बाँगरमऊ....  जनपद उन्नाव- 209868

कृतियाँ (साझा संकलन)  काव्य सरंचना, नीलांबरा, अभिजना,गुनगुनाएँ गीत फिर से -२ , शुभमस्तु, तनदोहा मन मुक्तिका, दोहा दर्शन , मीत के गीत , कवि चतुर्दशी, गीत सिंदूरी हुए, भाव कलश, कविता के दस रंग, सूली ऊफर सेज, सहित डेढ़ दर्जन से अधिक साझा काव्य संकलन प्रकाशित ।

तीन दशक से स्वतंत्र पत्रकारिता के साथ अनेक पत्र- पत्रिकाओं में शताधिक रचनाएँ प्रकाशित। 

 सम्मान - 

गुरु द्रोण सम्मान (लखनऊ)

इंडियन बेस्टीज अवार्ड (जयपुर)

इंद्रप्रस्थ भाषा गौरव सम्मान (दिल्ली)

हिन्दी गौरव सम्मान (दिल्ली)

भारतभूषण गीत गौरव सम्मान (दिल्ली)

राष्ट्रकवि हितैषी सम्मान ( गंज मुरादाबाद)

साहित्य दीप शिरोमणि (गोवर्धन-मथुरा)

आदि सहित तीन दर्जन से अधिक सम्मान

अणुडाक - abcanupam@gmail.com








#aksharvanikavyamanjari #anupamalok |अनुपम आलोक| Live- 39

Live- 38 रजनीश सिंह 'Gnu'

रजनीश सिंह


 साहित्यक परिचय  का प्रारूप



नाम-रजनीश सिंह 'Gnu'

माता-श्री विद्या देवी सिंह 

पिता -श्री जगदीश सिंह

जन्म तिथि-13-07-1996

शिक्षा का वर्णन-डिप्लोमा पीपीटी सिविल इंजीनियर

साहित्य के प्रति रुचि- चाय के प्रति प्रेम 

साहित्यिक उपलब्धियाँ-कोई उपलब्धियां नहीं प्राप्त की अभी तक

प्रतिभाग किये गए कार्यक्रम-1

प्रकाशित कृतियाँ (वर्ष सहित) -2020

निवास -कोटर सतना मध्य प्रदेश

संपर्क सूत्र - 7566813884

अणुड़ाक(ईमेल)- srajneesh727@gmail.com



#aksharvanikavyamanjari #Gnu |Rajneesh Singh 'Gnu' | Live- 38

सोमवार, 28 दिसंबर 2020

Live-37 बाबासाहेब लांडगे 'सारथी'

 बाबासाहेब लांडगे "सारथी"



 बाबासाहेब लांडगे "सारथी"
नीलाबाई लांडगे, तुकाराम लांडगे
15/05/1992
M.A. hindi... UGC NET, TSSET
BRAOU University स्नातक , स्नातकोत्तर तथा  SSR महाविद्यालय में व्याख्याता.
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक संगोष्ठी में भाग लिया, 5 से अधिक शोध लेख विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित, नवलेखन शिविर में भाग लिया जो केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा आयोजित था

40 से अधिक कविताएं स्थानीय पत्रिकाओं मै प्रकाशित 2011 से 2014 तक
निज़ामाबाद तेलंगाना
503001
संपर्क: 8686036534




#aksharvanikavyamanjari #babasahebsarthi |बाबासाहेब लांडगे सारथी | Live- 37

Live-35 वेधा सिंह

 वेधा सिंह


नाम- वेधा सिंह
माता-पिता- लक्ष्मी सिंह, राजेश सिंह
जन्मतिथि- 11/9/2008
जन्मस्थान- पंजाब, चंडीगढ़
लेखन- छंदबद्ध कविता, कहानी
प्रकाशन- अभिनव बालमन, पत्रिका काव्य स्पंदन.
पुरस्कार- काव्यांचल काव्य गुंजन, काव्यांचल काव्य केसरी, पुलकित बचपन और कई Certificates






#aksharvanikavyamanjari #vedhasingh |वेधा सिंह | Live- 35

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

Live- 30 विभा शुक्ला

 


Live- 32 पूजा शर्मा

पूजा शर्मा



रचनाकार-एक परिचय

■नाम:-पूजा शर्मा

■सम्प्रति:-


■लेखन:- 1.आज मैं रिटायर्ड हो चला।

2. कोटे की मायाजाल

3. अबौद प्रश्न

4. समर्पित

5.प्रक़ति

6. सोशल मीडिया के रंग

7.आधुनिक की अदभुत नारी

8. हौसले


●पद्य~गीत,  कविता, 


●गद्य~ कहानी, लघुकथा

1.लत

2.अब माँ बोझ हो गई

3. लाल कर

4. कटी पतंग

5. रूढ़ि


■जन्म:-

21 दिसम्बर1987, 

■माता/पिता:-

सुशीला शर्मा , श्री श्याम सुंदर शर्मा 

■शिक्षा:- एम फिल ,  एम एड +बी एड

एम. ए. (हिन्दी साहित्य)

   

■कार्यक्षेत्र- 

अर्धशासकीय शिक्षक

■विशेष: 

नही  है

■सम्मान: 

अखिल भारतीय शिक्षण मंडल 

मथुरा देवी वट सम्मान

■सम्पर्क: 

◆आवास~ ऋषि नगर, उज्जैन 

■ई-मेल :

puja.sharmaujn1@gmail.com




 #aksharvanikavyamanjari #pujasharma |पूजा शर्मा | Live- 32

Live- 33 प्रतिभा पाण्डेय

प्रतिभा पाण्डेय



नाम- प्रतिभा पाण्डेय

माता-पिता -  - श्रीमती सुशीला शुक्ला, श्री रमा प्रसाद शुक्ल
जन्म तिथि-१/१२/१९८१
शिक्षा का वर्णन- एम.ए.,बी. एड.(कानपुर विश्व विद्यालय),एम. फिल.(हिंदी साहित्य)
साहित्यिक उपलब्धियां-सुवासित पत्रिका, अभिनव साहित्यिक पत्रिका एवं आह्ललाद ई पत्रिका में रचनाएं प्रकाशित, विभिन्न मंचों पर आयोजित कार्यक्रम में ३५ से अधिक ई सम्मान पत्र प्राप्त एवं साहित्य संगम संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित साहित्यमेध मैराथन प्रतियोगिता में काव्य साम्राज्ञी सम्मान प्राप्त

प्रतिभाग किये गए कार्यक्रम-काव्यांजलि एक अनूठा आरंभ, काव्य सरिता एवं काव्य सागर प्रताप गढ़ के पटल पर जीवंत काव्य पाठ किया और गूगल मीट तथा ज़ूम एप पर काव्य गोष्ठी में शामिल
प्रकाशित कृतियाँ (वर्ष सहित) - इस हेतु कभी प्रयास नहीं किया।
निवास-१३७/४ए, चांदपुर सलोरी तेलियरगंज, प्रयागराज उत्तर प्रदेश




#aksharvanikavyamanjari #pratibhapandey |प्रतिभा पाण्डेय | Live- 33

मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

Live- 31 कुमार आशू




पूर्ण नाम : आशुतोष तिवारी
साहित्यिक उपनाम : कुमार आशू
माता - श्रीमती उषा तिवारी
पिता - श्री गोविंद तिवारी
जन्मतिथि : 5 अगस्त 1998
निवास - खड्डा, जिला कुशीनगर, मण्डल गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

भाषा : हिंदी, संस्कृत, भोजपुरी और थोड़ी बहुत आंग्ल एवं उर्दू

पूर्ण शिक्षा : स्नातक दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से, परास्नातक अध्ययनरत
कार्यक्षेत्र : शिक्षाध्ययन

लेखन विधा : कविता, गीत, गजल, शायरी, नज़्म, समीक्षात्मक लेख

सम्पर्क सूत्र : 9026256532
व्हाट्सएप : 9554675442

 *प्रकाशित साझा संग्रह :* 'बज्म-ए-हिन्द', 'भावांजलि तृतीय' 'काव्यस्पंदन' आदि
 *पत्रिकाओं में प्रकाशन* : 'दैनिक वर्तमान अंकुर', 'काव्यस्पंदन' और फुटकल पत्र पत्रिकाओं में।
 *सम्मान* : अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा 'स्वयंसिद्ध रत्न', साहित्यदीप द्वारा 'साहित्य शलभ', उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा श्रेष्ठ कवि सम्मान', 'आगाज' समूह द्वारा 'सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान', काव्यांचल द्वारा 'गीत प्रवर' 'उत्तरांचल उजाला' द्वारा 'सर्वश्रेष्ठ नारी शक्ति सम्मान', 'राष्ट्रीय कवि चौपाल मैनपुरी' द्वारा प्रशस्ति पत्र
 *साहित्यिक उपलब्धि*  - आखर पत्रिका का सम्पादन

 *प्रतिभाग किये गए कार्यक्रम* - वर्तमान अंकुर कवि सम्मेलन(2018), काव्यांचल कवि सम्मेलन (2019) अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा आयोजित 'स्वयंसिद्ध' काव्य सम्मेलन(2019) दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के काव्यांजलि में(2019), संस्कार भारती द्वारा आयोजित 'लोक में राम' (2020)

ब्लॉग : kumarashupoetry.blogpost.com
वेबसाइट : kumarashupoetry.wordpress.com
ई मेल : kumarashu5442@gmail.com
यूट्यूब : youtube.com/kumarashupoetry


#aksharvanikavyamanjari #kumaraashu |कुमार आशू | Live- 31

acharypratap Dohe





शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

Live-28 संदीप मिश्र 'सरस -बिसवाँ, सीतापुर -उत्तर प्रदेश

संदीप मिश्र 'सरस 



रचनाकार-एक परिचय
■नाम:-
संदीप मिश्र 'सरस'
सम्प्रति:-
साहित्यकार / समीक्षक /सम्पादक
संस्थापक/अध्यक्ष- साहित्य सृजन मंच, बिसवाँ, सीतापुर उत्तर प्रदेश 
■साहित्य सम्पादक ~दैनिक राष्ट्र राज्य
■कॉलम सम्पादन- विमर्श, संवाद, कलमकार, समीक्षा, रचनाकार, सृजन
■ हंस, कादम्बिनी, अहा जिंदगी, पाखी, वीणा, उत्तर प्रदेश, राष्ट्रधर्म, कथादेश, मंगलदीप, अपरिहार्य, गुफ़्तगू, अभिनव प्रयास, सरस्वती सुमन, लमही, अलाव , हस्ताक्षर आदि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशन।
विशेष:- राष्ट्रीय स्तर पर पत्र पत्रिकाओं/टीवी चैनल/रेडियो से प्रकाशित, प्रसारित व पुरस्कृत
लेखन:-
●पद्य~गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहा, छंद, क्षणिका, हाइकु, कुण्डलिया
●गद्य~समीक्षा, कहानी, लघुकथा
■जन्म:-
5 जुलाई, 1975 (बिसवाँ, सीतापुर)
माता/पिता:-
श्रीमती रमा मिश्रा/श्री गंगा स्वरूप मिश्र
■शिक्षा:-
एम. ए. (हिन्दी साहित्य)
प्रकाशन:-
◆कुछ ग़ज़लें कुछ गीत हमारे (काव्य संकलन)
◆साझा संकलन
  ●[समकालीन दोहाकार]
     (सम्पादक-रघुविन्द्र यादव),
  ●[हिंदी ग़ज़ल का बदलता मिज़ाज]
     (सम्पादक-अनिरुद्ध सिन्हा)
  ●[गुनगुनाएं गीत फिर से-2]
     (सम्पादक-राहुल शिवाय)
  ●अन्य बारह संकलन
■शीघ्र प्रकाश्य:-
◆तूने चन्दन माँग लिया (गीत संग्रह)
◆ शर्ट के टूटे बटन सी जिंदगी(ग़ज़ल संग्रह)
◆और चाँद धुँधला गया(उपन्यास)
◆खूब कही (कुण्डलिया छन्द संग्रह)
◆पुरस्कृत हम नहीं होंगे(मुक्तक संग्रह)
◆ऐसा मत करना(लघुकथा संग्रह)
◆दोहा दर्पण(दोहा संग्रह)
■कार्यक्षेत्र- 
साहित्य, पत्रकारिता
■विशेष: 
★दूरदर्शन, न्यूज18 चैनल व आकाशवाणी, लखनऊ, विभिन्न काव्यमंचों से नियमित काव्य प्रसारण।
★कविताकोश व छंदकोश में रचनाएँ सम्मिलित।
★समाचार पत्र 'जनसत्ता' में सम्पादकीय पृष्ठ पर 'खूब कही' काॅलम में दो वर्ष तक नियमित लेखन।
★नियमित समीक्षा कॉलम (विमर्श)में सौ से अधिक साहित्यकारों की पुस्तकों की समीक्षा लेखन।
★नियमित कॉलम (कलमकार)में दो सौ से अधिक रचनाकारों की रचनाओं का सम्पादन।
★एक दैनिक समाचारपत्र में (बेबाक) कॉलम का दो वर्ष से नियमित लेखन
★आधा दर्जन पुस्तकों की अनुशंसा
■सम्मान: 
1- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा बाल कविता हेतु पुरस्कृत- 1994 
2-संस्कार भारती संस्था से द्वारा साहित्य एवं पत्रकारिता के लिए पुरस्कृत 1996
3-गंगाश्रम संस्था द्वारा साहित्य गौरव सम्मान 1997
4-राष्ट्र-राज्य, दैनिक से सृजन सम्मान 1998
5-हिन्दी सभा,सीतापुर संस्था से युवा कवि पुरस्कार 1999
6-गाँजर शिक्षण संस्थान द्वारा चर्चित कवि पुरस्कार 2011 व 2014
7-एम एल एन डी सेवा संस्थान,बिसवां द्वारा बिसवाँ गौरव सम्मान-2017
8-जहाँगीराबाद प्रेस क्लब द्वारा सम्मान -2017
9- काव्य रंगोली, लखीमपुर द्वारा साहित्य-गौरव सम्मान- 2017
10-उ प्र जर्नलिस्ट एसो, बिसवां व प्रेस क्लब जहांगीराबाद द्वारा सम्मान - 2018
11-संस्कार भारती,बिसवां द्वारा सम्मान-2018
12-अवध भारती संस्थान, लखनऊ द्वारा अवधज्योति रजत जयंती सम्मान-2019
13-हिंदी साहित्य परिषद,सीतापुर द्वारा वागीश्वरी सम्मान-2019
14-कवितालोक,लखनऊ द्वारा गीतिकादित्य सम्मान-2019
15-श्यामसखा फाउंडेशन लखीमपुर द्वारा साहित्य रत्न सम्मान-2019
16-भाषा भारती न्यास द्वारा साहित्य श्री सम्मान-2019
17-अवधी सांस्कृतिक प्रतिष्ठान, नेपाल द्वारा सन्त तुलसी स्मृति सम्मान-2019
18-कवितालोक सृजन संस्थान, लखनऊ द्वारा गीतिका-सौरभ सम्मान-2019
 
19-काव्य रंगोली, लखीमपुर द्वारा साहित्य भूषण सम्मान- 2019
20-गृह मंत्रालय भारत सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा  महाकवि सूरदास सम्मान- 9-2-2020
■सम्पर्क: 
◆आवास~वार्ड-शंकरगंज, पोस्ट-बिसवाँ, जिला-सीतापुर (उ. प्र.)-पिन-261201
■वार्तासूत्र :  (9450382515) (9140098712)
■ई-मेल :
sandeep.mishra.saras@gmail.com



साहित्य शब्द

कुछ साहित्य शब्द को लेकर दोहे

लाख मना कर दो उन्हें ,माने ना आदेश।
सुबह शाम क्यों भेजते ,शुभ मुहूर्त संदेश।।०१।।
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साहित्यिक है यह पटल , चले बात साहित्य।
साहित्यिक हर वस्तु से , बढ़ जाता लालित्य।।०२।।
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क्या-कैसे-क्यों कब कहें , समझ न पाते लोग।
साहित्यक हर पटल का , करतें हैं उपभोग।।०३।।
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मैं का कर के त्याग यदि , हम को  समझें लोग।
निश्चित ही पाते शिखर , पाते हैं जग भोग।।०४।।
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मैं-मैं करके मर गए , जग कितने संत।
हम की जिसने ली शरण , बैठे बने महंत।।०५।।
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आचार्य प्रताप

गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

परीक्षा का तनाव

 

परीक्षा का तनाव

 

आज पूरे देश के छात्रों में परीक्षा का तनाव बना हुआ है जहाँ , केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल में कक्षा दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएँ मार्च के प्रथम और द्वितीय सप्ताह में  आरम्भ हो  रही हैं , वहीं सभी राज्य स्तरीय परीक्षा मंडल भी  सत्र 2018-2019 के आखिरी चरण में परीक्षाओं  का आयोजन करने जा रहें हैं ; सामान्यतः ऐसे अवसरों पर दसवीं के  छात्रों में दबाव  ज्यादा होता है जिसका मूलभूत कारण होता है 'प्रथम अवसर'। जैसा की सभी जानते ही हैं कि ये छात्र पहली बार मंडल के द्वारा आयोजित परीक्षा में सम्मिलित होने वाले होते है तो उनका दबाव  में होना निश्चित है। क्योंकि परीक्षा कक्ष में उन्हें परीक्षकों, पर्वेक्षकों तथा निरीक्षकों का डर उनके मन में घर किये बैठा है कि यदि कोई गलती हुयी तो क्या होगा ? क्या वो हमें परीक्षाकक्ष से सीधे बहार का रास्ता दिखेगे ?

हमारा प्रश्न-पत्र  कैसा होगा ? कहीं अधिक जटिल प्रश्नों की भरमार न हो जाये और हमारा साल बर्बाद हो जाये ?

मार्च और अप्रैल के महिने में माहौल थोड़ा बदल सा जाता है। गलियों में बच्चों के खेलने का तेज़ शोर नहीं सुनाई देता, साइकिल पर उसके कमाल के स्टंट देखने को नहीं मिलते, पार्क से भी अकसर शाम के वक्त बच्चे नदारत दिखते हैं। ऐसा इसलिये नहीं क्योंकि इन दो महीनों में कोई कर्फ्यू लग जाता है, बल्कि इसलिये क्योंकि ये बच्चों की परिक्षाओं का समय होता है और इन दो महीनों में वे परिक्षाओं के भारी दबाव में होते हैं। इस दौरान बच्चों के चहरे आर हावभाव से उनका तनाव साफ देखा जा सकता है। विशेषज्ञों सलाह देते हैं कि बच्चों को खुद को बहुत ज्यादा नंबर लाने के दबाव में नहीं डालना चाहिये। बस सही तैयरी करनी चाहिये और ये तय करना चाहिये कि उन्होंने जितना भी तैयार किया है, उसमें अपना बेहतर परिणाम दे पाएँ

                                                                                      सामन्यतः ऐसे विचार एक औसत छात्रों में अधिक होता है क्योंकि ये वर्षभर पपढाई को  छोड़कर सारे कार्य करतें हैं  और जब परीक्षा का समय आता है तब उनके मन में तनाव की दशा अधिक होती है। जब बच्चे नियमित पढाई नहीं करते है और जैसे ही परीक्षा पास आने लगती है वैसे ही  छात्रों  में एग्जाम फोबीया (Exam phobia)  हो जाता है | एग्जाम फोबिया मतलब   छात्रों   के  अन्दर परीक्षा से  होने वाले तनाव के  कारण भय और डर आ जाता है | और वह दिन रात अच्छे नंबर लेने के लिए पढाई करने लगते है और  ऐसी स्थिति में उनके अन्दर परीक्षा का तनाव हो जाता है आलम ये होता है कि  वो सही से खाना पीना छोड़ रात दिन पढाई करते है ये  तनाव , डर और भय ये सब  उनके लिए ठीक नही है उसका असर उनके परिणाम  (result) और स्वस्थ (health) पर पड़ता है।

परीक्षा के समय  तनाव का कारण 
·         परीक्षा की सही तैयारी न होना
·         अच्छे अंक लाने का तनाव
·         भविष्य में होने वालें बदलाव का तनाव
·         माता-पिता की उम्मीद
·         प्रतिस्पर्धा की भावना

 इस पर मैं इतना सब कुछ इसलिए पूर्ण विश्वास  से कह सकता हूँ क्योंकि मैं भी कभी उनकी आयु से गुजरा था और मुख्य बात तो यह कि  मैं भी उस समय का एक औसत छात्र ही हुआ करता था। उन सभी छात्रों  के लिए अपनी  ओर  एक ही सन्देश देना चाहूँगा  जो सदैव मेरे पिताश्री मुझे कहते थे कि  "बुरे समय पर अधिक धैर्य  आवश्यकता होती है उस समय हमें अपने  मन को शांत रखना चाहिए। योग , प्रणायाम , आलम-विलोम और अन्य मानसिक व्यायाम करना चाहिए। इससे हमरा मन एकाग्र होता है और फिर प्रतिदिन पढाई करने की तीव्र इच्छा का विकास होता है। 

                                   

अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है अभी  अपनी शिक्षा का स्टार सुधर सकते  है यह सब आपके ही हाथों में है आपके माता-पिता ,गुरुजनों ने अपने कर्तव्य का निर्वहन बड़ी कुशलता से किया है बस आप उनकी कुशलता का मन-सम्मान रखना आपके हाथों में है।  सभी छात्रों से मेरा करबद्ध निवेदन है कि  अपने माता-पिता और आचार्यों के श्रम का सही पारिश्रमिक लाये, जग में उनका नाम शीर्ष पर लाएं।

  • ·         सकारात्मक सोच  (Positive Thinking)
  • ·         समय प्रबंधन (Time Management)          
  • ·         परिणाम की चिंता न करें ( Do not worry about the result )
  • ·         पर्याप्त नींद लें (Get enough sleep )

दोहे - आचार्य प्रताप

 दोहा

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मुश्किल बढ़ी सामाज की, बढ़ता गया दहेज।

लड़का-लड़की प्रेम से, करें नहीं परहेज।।०१।।

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खामोशी में भी कहे, सच्ची बात प्रताप।

सूरज चंदा ने दिया, जुगनू दिये न ताप।।०२

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चोरी करते चोर सब,आदत इनकी जीर्ण।

शब्द-भाव के चोर है, सोच रही संकीर्ण।।०३।।

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-आचार्य प्रताप

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

आज के दुमदार दोहे

सोच रहा था आज मैं, लिखकर दूँगा छंद।
बैठे -‌ बैठे  ही  हुआ,  फूलों  का  मकरंद।। 
लिए तुलसी की माला।
हुआ क्यों मैं मतवाला।।०१।।
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माँ ने खत में यो लिखा, रहना तुम तैयार।
कपड़े-जूते ले लिया, हुआ अनोखा प्यार।।
लिखा जो माँ ने खत में।
वहीं  था  मेरे  मन  में।।०२।।
=====================
कहते हैं सब मित्र अब, कर लो तुम भी प्यार।
मित्रो   की  तो  हो  गई ,   शादी    मेरे   यार।।
चढ़ेगा कब तू घोड़ी। 
समय है थोड़ी-थोड़ी।।०३।।
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पाना हो यदि प्यार तो, करो प्रशंसा आज।
महिलाओं का साथ हो, सदा करोगे राज।।
यही है अबला नारी।
हुई ये सब पर भारी।०४।।
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नारी शक्ति की तुम्हें, आज सुनाऊँ बात।
कंधों से कंधा मिला ,पुरुषों को दें मात।।
प्रशंसा कर दूँ सारी ।
यही है अबला नारी।।०५।।
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सच को जब मैं सच कहूँ , मत सुनिएगा आप।
चाकू - छूरी  लें  यहाँ ,  पहुँचे   सभी   प्रताप।।
सुनो सब मेरे यारों।
यहाँ से कल्टी मारो।।०६।।
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                    आचार्य प्रताप

आधुनिक जीवनशैली


एक समय था गाँव-गाँव में , लोग मनाते थे त्यौहार।
घर-घर बना अखाड़ा होता, घर-घर होते थे सरदार।।

उन्हीं घरों माता-बहनें, उन्हीं में रहता था परिवार।
पड़ी मुसीबत जब घर में तब, पहुँचे यहाँ मोहल्ले चार।।

कच्ची मिट्टी के घर होते ,पक्के होते रिश्तेदार।
समय ने कैसे पलटा खाया, बचा न कोई अपना यार।।

आज परिस्थित जब देखूँ तब, मन आए एक विचार।
कम शिक्षित थे लेकिन पहले, होते पूरे शिष्टाचार।।

रूखी-सूखी खाकर भी था , जीवन उनका सदाबहार।
पढ़े-लिखों में आ जाते क्यों? आनैतिकता के व्योवहार।।

आचार्य प्रताप


acharypratap

बघेली गीत- जाड़ लगय बरजोर

 गाँउ मा

हमरे कइसन 
बहे ठंड बयारिया भोर।
अब का
कहीं फलाने
जाड़ लगय बड़ी जोर।

चीं-चीं
चूँ-चूँ सुनिके
निकरेन हम घर से बहिरे।
बाहर
आ के या सोच्यन
नाहक हम निकरेन बहिरे।
जब खटिया का हम छोड़्यन तबय करेजा डोल।।


बासी
पानी भरिके
भूसा अउ सानी कीन्हयन।
करत
रह्यन गोरुआरी
कउड़व का लिहन लगाय।
अब का कही हो फलाने हम काँप रह्यन बरजोर।।

मइरे मा
लगा पल्याबा 
अउ हार मा रक्खी धान।
जाड़े मा
फँसिके देख्यन 
ता बिसरिगय सगली शान।।

कउड़ा का निरखी अइसन जइसे चितवय चँद चकोर।।

आचार्य प्रताप




दोहा-गीत शीत वर्णित



शीत लहर लहरा रही ,शीतलता चहुँ ओर।

जीवन के तट पर सखे! , प्रिये कहीं पर-छोर।।
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आगमन ऋतु शीत का है ,शीलत बहे बयार।
तन-मन रोमांचित प्रिये! , करता तेरी पुकार।
कब तक विरहा विरह में , निरखे चंद चकोर।।०१।।


दिनकर तेरी धूप अब , होती जाती मंद।
सर्दी की इस धूप में, पाए सब आनंद।।

सभी खींचते दिख रहे , मृदुल धूप की डोर।।०२।।

कंबल ओढ़े ही रखें ,  स्वेटर पहने आप।
काढ़ा लहसुन हींग सह , उष्ण सलिल लें नाप।

कह प्रताप अविराम यह , सीख बड़ी बरजोर।।०३।।

-आचार्य प्रताप
  प्रबंध निदेशक
  अक्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्रम्

मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

शब्द की उत्पत्ति

शब्दों का आधार ध्वनि है, तब ध्वनि थी तो स्वाभाविक है शब्द भी थे। किन्तु व्यक्त नहीं हुये थे, अर्थात उनका ज्ञान नहीं था । उदाहरणार्थ कुछ लोग कहते है कि अग्नि का आविष्कार फलाने समय में हुआ। तो क्या उससे पहले अग्नि न थी महानुभावों? अग्नि तो धरती के जन्म से ही है किन्तु उसका ज्ञान निश्चित समय पर हुआ। इसी प्रकार शब्द व ध्वनि थे किन्तु उनका ज्ञान न था । तब उन प्राचीन ऋषियों ने मनुष्य जीवन की आत्मिक एवं लौकिक उन्नति व विकास में शब्दो के महत्व और शब्दों की अमरता का गंभीर आकलन किया । उन्होंने एकाग्रचित्त हो ध्वानपूर्वक, बार बार मुख से अलग प्रकार की ध्वनियाँ उच्चारित की और ये जानने में प्रयासरत रहे कि मुख-विवर के किस सूक्ष्म अंग से ,कैसे और कहाँ से ध्वनि जन्म ले रही है। तत्पश्चात निरंतर अथक प्रयासों के फलस्वरूप उन्होने परिपूर्ण, पूर्ण शुद्ध,स्पष्ट एवं अनुनाद क्षमता से युक्त ध्वनियों को ही भाषा के रूप में चुना ।

       सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और सूर्य के चारों ओर से 9 भिन्न भिन्न रश्मियों के निकलने से कुल निकली 36 रश्मियों की ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने और इन 36 रश्मियों के पृथ्वी के आठ वसुओं से टकराने से 72 प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती हैं । जिनसे संस्कृत के 72 व्यंजन बने। इस प्रकार ब्रह्माण्ड से निकलने वाली कुल 108 ध्वनियों पर संस्कृत की वर्णमाला आधारित है। ब्रह्मांड की इन ध्वनियों के रहस्य का ज्ञान वेदों से मिलता है। इन ध्वनियों को नासा ने भी स्वीकार किया है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन ऋषि मुनियों को उन ध्वनियों का ज्ञान था और उन्ही ध्वनियों के आधार पर उन्होने पूर्णशुद्ध भाषा को अभिव्यक्त किया। अतः प्राचीनतम आर्य भाषा जो ब्रह्मांडीय संगीत थी उसका नाम “संस्कृत” पड़ा। संस्कृत – संस्+कृत् अर्थात श्वासों से निर्मित अथवा साँसों से बनी एवं स्वयं से कृत , जो कि ऋषियों के ध्यान लगाने व परस्पर-संप्रक से अभिव्यक्त हुई।*

       कालांतर में पाणिनी ने नियमित व्याकरण के द्वारा संस्कृत को परिष्कृत एवं सर्वम्य प्रयोग में आने योग्य रूप प्रदान किया। पाणिनीय व्याकरण ही संस्कृत का प्राचीनतम व सर्वश्रेष्ठ व्याकरण है। दिव्य व दैवीय गुणों से युक्त, अतिपरिष्कृत, परमार्जित, सर्वाधिक व्यवस्थित, अलंकृत सौन्दर्य से युक्त , पूर्ण समृद्ध व सम्पन्न , पूर्णवैज्ञानिक देववाणी संस्कृत – मनुष्य की आत्मचेतना को जागृत करने वाली, सात्विकता में वृद्धि , बुद्धि व आत्मबलप्रदान करने वाली सम्पूर्ण विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा है। अन्य सभी भाषाओ में त्रुटि होती है पर इस भाषा में कोई त्रुटि नहीं है। इसके उच्चारण की शुद्धता को इतना सुरक्षित रखा गया कि सहस्त्रों वर्षों से लेकर आज तक वैदिक मन्त्रों की ध्वनियों व मात्राओं में कोई पाठभेद नहीं हुआ और ऐसा सिर्फ हम ही नहीं कह रहे बल्कि विश्व के आधुनिक विद्वानों और भाषाविदों ने भी एक स्वर में संस्कृत को पूर्णवैज्ञानिक एवं सर्वश्रेष्ठ माना है।

*शब्द और उसके भाव*

अब आते है शब्दो के भाव पर l पृथ्वी के भूभाग के अलग अलग जगहों पर भाव के आधार पर शब्दो की उत्पत्ति संभव हुई l अलग अलग भूभाग पर रहने वाले समाज के द्वारा विभिन्न सभ्यताओं व संस्कृति का जन्म हुआ l समाज  के विभिन्न क्रियाकलापों को किसी न किसी शब्द से परिभाषित किया गया l अर्थात एक शब्द ही पूरे क्रियाकलाप की व्याख्या कर देते है l क्या भिन्न भिन्न समाज /संस्कृति से उत्पन्न शब्दों को एक दूसरे का पर्याय मान लेना उचित है ?? सही मायने में शब्द ही भाव होते है l शब्दो के कह देने मात्रा से ही भाव व मंतव्य का पता चल जाता है l 
हमारी सनातन संस्कृति में "शादी" को सात जन्मों का बंधन कहा गया है l जबकी पृथ्वी के सभी भूभाग और सभ्यता /संस्कृति में  शादियां होती हैं .. कहीं शादी को "निकाह" तो कहीं पर मैरिज कहा गया है l लेकिन किसी भी सभ्यता /संस्कृति में सात जन्मों तो क्या एक भी जन्म निभाने की बात नहीं कहीं गई है l 

शब्दकोश में एक ही क्रियाकलाप के विभिन्न नाम , शादी निकाह मैरिज आदि लिखे गए है l क्या "निकाह, मैरिज" आदि शब्द को "शादी/परिणय सूत्र" का पर्याय या समतुल्य माना जा सकता है ?? 

" नेह , स्नेह, प्रेम, मित्र" आदि शब्द जहा सनातन संस्कृति की देन है, तो इश्क, मोहब्बत आदि शब्द अन्य संस्कृति की देन है l अपनी अपनी संस्कृति में सभी शब्द पावन और पवित्र हो सकते है , पर इनको किसी दूसरी संस्कृति से जोड़ना इस शब्दों के प्रति अपमान का बोध प्रतीत जन पड़ता है l

अरबी फारसी उर्दू शब्दों के प्रयोग के विषय में तर्क दिया जाता है कि हमारी संस्कृति में "आत्मसात" करने की क्षमता है l बिल्कुल , यह सत्य है कि कालांतर से ही सनातन संकृति ने विभिन्न धर्मो, भाषाओं को सम्मान दिया है, और तो और विभिन्न संस्कृतियों को भी आत्मसात करने का अथक प्रयास किया है l सनातन संस्कृति का तो ध्येय वाक्य ही *वसुधैव कुटुंबकम्* रहा है l शक, हून, गजनी, गोरी, लोदी, गुलाम, मुगल, डच, फ्रांसीसी, अंग्रेज जैसे कितने ही विधर्मियो ने समय समय पर हमला किया , सनातन संस्कृति को समाप्त करने का प्रयास किया l क्या कोई बता सकता है कि सनातन संस्कृति ने किसी अन्य सभ्यता /संस्कृति पर हमला किया हो ???

हमारी सभ्यता को नष्ट करने के लिए क्या क्या प्रयास नहीं किए गए...l तक्षशिला, नालंदा इसके सबसे बड़े उदाहरण है l इतना सब कुछ होने के बाद भी सनातनियों ने विभिन्न संस्कृतियों के शब्दो को स्वयं में समाहित करने का अथक प्रयास किया है l

शब्द सिर्फ शब्द नहीं होते, बल्कि इसके द्वारा भावनाएं भी प्रदर्शित हो जाती है l दोस्ती और आशिकी को एक दूसरे के समतुल्य मान सकते है, क्योंकि ये दोनों ही शब्द ऐसे संस्कृति से संबंध रखते है जहां *सात जन्मों का बंधन* नहीं होता है  l पर," मित्र, सखा, प्रेम" तो बिन कहे ही जन्म जन्मांतर की बात कह जाते है l

*महज एक शब्द की बात नहीं है l एक शब्द की पुनरावृत्ति, अभ्यास और प्रयोग धीमे जहर के समान अन्य संस्कृति पर कुठाराघात है l*

पंद्रहवीं शताब्दी से दिया जाने वाला ये जहर अब मन मस्तिष्क पर राज करने लगा है 
हो सकता है आज हमें इसमें कुछ विशेष नहीं दिखाई पड़ रहा है, लेकिन हम अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या छोड़ कर जा रहे है .... इस पर विचार करना चाहिए l

ये सिर्फ एक शब्द पर लागू नहीं होता बल्कि हमारी दिनचर्या भी धीरे धीरे बदलती जा रही है l ये महज संयोग नहीं है, बल्कि अभ्यास है l *जब हम स्वदेशी की बात करते है तो महज टूथपेस्ट और मोबाइल से स्वदेशी की व्याख्या नहीं की जा सकती l* *स्वदेशी निज भाषा, स्वाभिमान और सनातन संस्कृति से शुरू होती है l*

महात्मा गांधी जी ने कहा था
 *जिस देश की अपनी संस्कृति नहीं होती, उसका अस्तित्व धीरे धीरे समाप्त हो जाता है*

स्तोत्र- गूगल व फेसबुक मात्र कुछ अंश