मेरी प्रथम वायुमार्ग यात्रा- आचार्य प्रताप


मेरी प्रथम  वायुमार्ग यात्रा-
दिनांक- १०-०२-२०१८
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मैं राहुल प्रताप सिंह "प्रताप"
आप सभी को अपनी वायुमार्ग से की गई प्रथम यात्रा के बारे बताना चाहता हूं।
कृपया ध्यान से पढ़िएगा।
जब २५  जनवरी को दिल्ली जाने के लिए मैंने हवाईमार्ग का चयन कर जब अपनी टिकट देखा तो हैरानी हुई; इस हैरानी कारण था कि टिकट में आरक्षित बैठक सीट क्रमांक उपलब्ध नहीं था, तो मैंने विलंब न करते हुए ग्राहक सेवा केन्द्र में संपर्क किया वहां से प्रदत्त जानकारी के माध्यम से बता रहा हूं।
मैंने उन्हें बताया कि मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा करने वाला हूं, और मेरी टिकट पर सीट क्रमांक उपलब्ध नहीं है, तो संभवतः वो हंसने लगी और बडे मधुर ध्वनि में बोली 'सर आपको एयरपोर्ट पर चेक-इन करना होगा और २ घंटे पहले पहुँचना होगा यदि आप ऐसा नहीं करना चाहते हैं तो आप वेब चेक-इन कर सकते हैं किन्तु यह शुभ-कार्य आप ४८ घंटे पहले ही कर पाएंगे"।
मैंने पूछा," क्या दो घंटे पहले जाना आवश्यक है?"
जी नहीं! कहते हुए उन्होंने पुनः जानकारी दी कि यदि आप वेब चेक-इन कर लेते हैं तो मात्र पैंतालीस मिनट पहले जाए।
मैंने कहा, ठीक है। और बात समाप्त हो गई।
मैंने कहा, "अब दिल्ली दूर नहीं!"
        देखते-देखते वो दिन आ ही गया जब मुझे दिल्ली के लिए प्रस्थान कर चाहिए था। मैं सुबह ४:१५ को नींद से जागा और अपने मित्रो को जगाते हुए बोला, उठो यार अब जाने का समय आ गया है।
और मैं नहाने के लिए निकला ही था कि एक संदेश आया कि आपका वायुयान आपकी प्रतिक्षा में #नजरें_बिछाए_बैठा है, मैं बाहर आकर देखा और वापस स्नानगृह पर पहुँच गया।
तैयार हुआ और निकल पड़ा दिल्ली के लिए।
टैक्सी चालक को बुलाया और  वायुयान पतन केंद्र पर पहुँच गया, टैक्सी चालक की असीम अनुकम्पा से दो घंटे पहले ही पहुँच गया वहाँ पहुंच कर देखा कि पंक्तिबद्ध सभी यात्री खड़े हुए हैं आपना मोबाइल, पर्स और सिक्के बेल्ट एक छोटी-सी प्लास्टिक की थैली में लेकर । "मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा कर रहा था" तो जैसे सभी कर रहे थे वैसे मैं भी पंक्ति में आ गया।
जैसे ही चेक-इन करनें के लिए उसके पास पहुंच गया तो जांचकर्ता के हाथ में एक यंत्र था जो कि टीं-टीं करने लगा मैंने देखा कि ताले की चाभी मेरे जेब में ही रह गई थी।
और किसी तरह अंदर आ गया।
समान लिया और प्रतिक्षा करने बैठ गया।
मैं चुपचाप देख रहा था कि लोग आ-जा रहे हैं, क्योंकि "मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा कर रहा था"।
पूरे एक घंटे ३० मिनट प्रतिक्षा में बीत गए। फिर वो पल आया जब पुनः मधुर ध्वनि संदेश सुनाई दिया कि दिल्ली जाने वाले यात्रियों का हम स्वागत करते हैं।
मैंने आपना "बोरिया-बिस्तर बांधकर" पुनः पंक्ति में खड़ा हो गया और आगे की ओर बढ़ते हुए आपना बोर्डिंग-पास वहां की महिला सुरक्षा अधिकारी के   हाथ में दे दिया और नीचे उतर कर आ गया। फिर क्या था मैं अपने सभी मित्रों और प्रशंसकों के साथ कुछ चित्र साझा किया और वायुयान पर चुपचाप बैठ गया, क्योंकि मैं पहली बार वायुमार्ग से यात्रा कर रहा था।
अब वायुयान के अंदर आने के बाद एक रहस्य का पता लगा...


आगे और भी है  द्वितीय अंक में प्रकाशित करता हूँ।
Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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