शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

कुण्डलिनी छंद- एक परिचय

कुण्डलिनी छंद : शिल्प विधान- इस छंद का जनक आचार्य ओम नीरव जी को माना जाता है जो कि कविता लोक समूह के संचालक और संस्थापक है

1) एक दोहा और अर्धरोला के योग से चार चरणों वाला कुण्डलिनी छंद बनता है ।
2) इसके पहले दो चरणों में प्रत्येक का मात्रा भार 13, 11 होता है और बाद के दो चरणों में प्रत्येक का मात्राभार 11, 13 होता है ।
3) दोहा का अंतिम पद ही अर्धरोला का प्रारम्भिक पद होता है । यह 'पुनरावृत्ति' सार्थक भी होनी चाहिए ।
4) इसके प्रारंभिक शब्द/शब्दों का अंत में 'पुनरागमन' करने से विशेष सौन्दर्य उत्पन्न होता है, यह 'पुनरागमन' अनिवार्य है ।
5) दोहा और रोला की दो-दो पंक्तियों के अलग अलग तुकांत होते हैं।
 
विशेष :

1. संक्षेप में कुंडलिनी = दोहा + अर्ध रोला
2. यह नव निर्मित लोक छंद है जो सनातनी कुण्डलिया छंद का संक्षिप्त रूप है ।
3. 'पुनरागमन' के लिए दोहे का प्रारंभ ऐसे शब्द/शब्दों से करना चाहिए जो अर्धरोला के अन्त में लय और अर्थ के साथ समायोजित हो सकते हों ।
4. रोला के चरण का मात्रा भार 11, 13 सोरठा के समान अवश्य है किन्तु दोनों की लय बिल्कुल भिन्न है ।
5. कुण्डलिनी के शिल्प को समझने के लिए दोहा और रोला के शिल्प को अलग-अलग समझना आवश्यक है ।

कुण्डलिनी छंद (मापनीमुक्त विषम मात्रिक)
 
विधान - कुण्डलिनी छंद का निर्माण दोहा और अर्द्धरोला को इसप्रकार मिलाने से होता है कि दोहे के अंतिम चरण से अर्द्धरोला का प्रारम्भ हो (पुनरावृत्ति) और दोहा के प्रारम्भिक शब्द या शब्दों से अर्द्धरोला का अंत हो (पुनरागमन)।

संक्षेप में - कुण्डलिनी = दोहा + अर्द्धरोला (सानुबंध)

 
दोहा छंद का
विधान - 13,11,13,11 मात्रा के चार चरण, विषम चरणों के अंत में वाचिक 12/लगा उत्तम और आदि में 121/लगाल भार का एक स्वतंत्र शब्द वर्जित, सम चरणों के अंत में 21/गाल और तुकान्त।
 
अर्द्धरोला
छंद का विधान - 24 मात्रा के दो तुकांत चरण, 11,13 पर यति, प्रथम यति से पूर्व और पश्चात त्रिकल (12 या 21 या 111), अंत में वाचिक 22/गागा (22 या 112 या 211 या 1111), दो-दो क्रमागत चरण तुकान्त।
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छन्द के उदाहरण :  #कुण्डलिनी छंद
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आया था इस जगत में , रचने को नव छंद

किंतु विधाता ने किया , तीव्र बुद्धि क्यों मंद

तीव्र बुद्धि क्यों मंद , हुई कुछ कर ना पाया

रहा नहीं कुछ याद , जगत में क्यों था आया
०१
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आया मौसम शीत का , बीत रही बरसात
हरित वसन मंगलमयी , दिग-दिगंत की बात

दिग-दिगंत की बात , हृदय में सावन छाया

अधर हो गये मौन , मीत जब सजना आय
०२
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मक्का मूँग उड़द तिली , ज्वार बाजरा धान
क्वादव अरहर दाल सब , बोएँ सभी किसान
बोएँ सभी किसान , लगें सब ताँका -झाँका

हर्षित कृषक समाज , देखकर तिलहन मक्का
०३
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आशा इतनी ही बची,बचा रहे सम्मान

दंभ द्वेष सब भूलकर,भूल गए अपमान

भूल गए अपमान, नहीं अब उन्हें निराशा

लुटा हुआ सम्मान, पुनः पाने की आशा
०४
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शिक्षा मिले गरीब को, करें गरीबी दूर
बिन शिक्षा के हो रहे, सपने चकनाचूर
सपने चकनाचूर, न देता कोई भिक्षा

कह प्रताप अविराम, सदा पहले लो शिक्षा
०५
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करता वंदन आज मैं,जोड़े निज मैं हाथ

बह जाता मझधार में,बचा लिया गुरु साथ

बचा लिया गुरु साथ, बना मैं उनका नंदन

दिवस आज गुरु पर्व,करूँ मैं गुरु का वंदन।।०६।।
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कुंडलिनी का जागरण, मात्राओं का नाप
दिन रात अभ्यास करो, लिखते रहो प्रताप
लिखते रहो प्रताप , सदा तुम भ्राता -भगिनी
लय का रखना ध्यान,रचो तुम भी कुंडलिनी०७

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छाया दिखती है नहीं, नष्ट हुए हैं पेड़
जीवन खतरे में दिखे, जीवन हुआ अधेड़
जीवन हुआ अधेड़, प्रदूषण की ही काया
कह प्रताप अविराम, कहाँ से मिलती छाया।०८
-आचार्य प्रताप

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (24-01-2021) को   "सीधी करता मार जो, वो होता है वीर"  (चर्चा अंक-3949)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिन की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (24-01-2021) को   "सीधी करता मार जो, वो होता है वीर"  (चर्चा अंक-3949)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिन की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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