कुण्डलिया-छंद
एक दोहा ( दोहों की
नियमावली देख सकते हैं) दो रोला ( रोलों की नियमावली देख सकते हैं) के मिश्रण से
कुंडलियां छंद का निर्माण होता है ।
कुछ विशेष
नियम के अनुसार:-
१. जिस शब्द से दोहा
का प्रारंभ होता है उससे अंतिम रोले का अंत होना अनिवार्य है।
पत्थर बाजी कर रहीं , महिलाएं भी आज।
चुप्पी
तोड़ो आप अब ,करो न्याय का काज।
करो न्याय
का काज ,मोदी जी कुछ तो बोलो।
सैनिक खाते
मार
, सभी अब बंधन
खोलो।
आज़ादी दो
आज ,
करो कुछ
नाम उजागर।
मारें
सैनिक साथ ,नही फिर खाएं पत्थर ।।01।।
-आचार्य प्रताप
२. दूसरा विशेष नियम दोहे का अंतिम चरण अर्थात् चतुर्थ चरण से प्रथम रोले का प्रारंभ होना चाहिए।
हिंदी भाषा का
करें , स्वयं वही अपमान।
जो कहते फिरते
दिखे , यही राष्ट्र की शान।
यही राष्ट्र की शान , बताते जो नर नारी।
हिंदी का
उपयोग , लगे उनको क्यों भारी।
कहता सदा
प्रताप , बने माथे की बिंदी।
देखो कैसे लोग , रटेंगे हिंदी - हिंदी।।
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-आचार्य प्रताप
३. दोनों रोले
और दोहे का भाव एक दूसरे से मिलान करना अति आवश्यक है।
४. शेष दोहे में दोहे
की नियमावली और रोलों में रोले की नियमावली का अनुसरण करें।
आपका
कुण्डलियाँ छंद तैयार हो गया।
१.
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पढ़ने वाले पढ़ रहे , सारी - सारी रात ।
लिखने वाले लिख गए , सोच समझ हर बात।
सोच समझ हर
बात ,
बताएँ सब कुछ सच्ची
पढना लिखना शान , पढ़े अब बच्चा - बच्ची
कह प्रताप अविराम , लगे सब आगे बढ़ने।
छोड़ो सारे काम , भेज दो इनको पढ़ने ।
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२.
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घरवाली की बात पर , होना नहीं निराश।
घर की देवी है वही , करती वही विनाश।
करती वही विनाश , ठान जो मन में लेती।
पत्नी तारण हार , वही है सब कुछ देती।
कह प्रताप
अविराम ,
लगे घर
खाली-खाली।
जीवन हो बेकार , नहीं जिसकी घरवाली।
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३.
राधा रानी पूछती , कैसे हो घनश्याम?
रोती सारी गोपियाँ , लेकर तेरा नाम।
लेकर तेरा
नाम ,
छेंड़ती
सारी सखियाँ।
करती हैं
चुपचाप ,
हमेशा तेरी
बतियाँ।
कह प्रताप
अविराम ,
नहीं अब
कोई बाधा।
सुनों -सुनों घनश्याम ,
पुकारे कब
तक राधा।
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-आचार्य प्रताप
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