।। ॐ।।
कार्यशाला
द्वितीय चरण - शब्द - नूतन
अदा० किशन जी
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नूतन पल्लव खिल गए, नूतन आये फूल।
ऐसे में मुझको कभी,मत जाना तू भूल।।
प्रथम दो चरण
निर्दोष साबित होते हुए सफलता की बढे ही थे कि
तीसरे चरण को दोष से भर दिया तीसरे में
यह दर्शना सुनिश्चित होता है की किससे कहा जा रहा है अतः आप ऐसा कह सकते थे --> ऐसे में प्रीतम/ प्रियतम मुझे , जाना मत तुम भूल।।
मत को पहले लेना और
तू शब्द का प्रयोग चौथे चरण की शिल्प पर
प्रतिघात करता है।
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आदरणीय -आदेश पंकज जी
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1- अभिनंदन है आपका, बदला जो परिवेश ।
नूतन मंगल वर्ष में बदल गया है देश ।।
आदेश पंकज
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति मनमोहक सृजन।
किन्तु तृतीय चरण के अंत में अल्प विराम लगाना अति आवश्यक।
2- अभिनंदन है आपका,आओ मेरे देश ।
नूतन मंगल वर्ष में, बदल गया परिवेश ।।
सुन्दर सृजन की बधाई
। शेष उतमस्तु ।
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अदा ० मनोज ' मनु'
जी
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नूतन शब्दों से करो, नव सृजन दिन रैन ।
बिनु नव सृजन के बिना
,
कवि ना पावै चैन ।
मनु
बहुत सुन्दर लेखनी
है आपकी। प्रथम चरण में सुन्दरतम प्रयोग
किन्तु *नवसृजन* को *नव सृजन* लिखना उचित नहीं दोनों का भावार्थ देखें सदर
नवसृजन- नया नया सृजन करना* ,
नव सृजन - नौ सृजन करना।
रैन के साथ दिवस का प्रयोग होता है दिन का नहीं अतः यह भी
दोषपूर्ण हुआ।
बिनु देशज और पुनः नव सृजन अमान्य। चौथे चरण में न को ना लिखना मैं उचित नहीं
समझाता पावै देशज ।
देशज शब्दों से बचने की आवश्यकता है और सही अर्थ का शब्द ही
प्रयोग में लाये अन्यथा अर्थ का अनार्थ निश्चित है। बिनु और बिना एक ही चरण में प्रयोग करने से पर्याय दोष आता है
।
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आदरणीय प्रचण्ड जी
नूतन अवसर है मिला , करलीजो अब काज !
भूल सुधार किरयहुँ प्रभु ,
रख लीजो तुम लाज !!
प्रचण्ड!
प्रयास बहुत ही सरहनीय रहा किन्तु
जब दोहे में चार चरण दो पंकितियाँ होती हैं तो उक्त तरीके
से लिखने का क्या अर्थ
लीजो , देशज
किंतु किरयहुँ शब्द
का शदार्थ ???
खड़ी बोली में देशज अमान्य होने के कारण यह अमान्य तृतीय चरण
समझ से परे होने के कारण भाव विहीन दोहा।
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आदरणीय कविराज तरुण जी
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नूतन के इस मोह में , क्या खोजे हैं आप ।
नूतन नूतन जग हुआ , नूतन हुआ न बाप ।।
तरुण
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निश्चित ही आप बधाई के पत्र हैं।
प्रथम चरण उत्तम प्रयास के साथ शुरुआत कर सफलता की ओर
अग्रसर किंतु द्वितीय चरण के अंत में ? प्रश्नचिह्न अनिवार्य और नूतन-नूतन जब शब्दों की पुनरुक्ति हो रही हो तब योजक
चिह्न भी अनिवार्य चौथे चरण में आकर औंधे
मुँह गिरे तुकांत के लिए अपमान जनक शब्द उचित नहीं।
ये कहना उचित नहीं है कि "नए वर्ष मेरा बाप नया नहीं
हुआ " सोचिये एक बार।
बहुत बहुत बधाई आपको।
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आदरणीय किशन जी
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नूतन तेरा प्यार पर, भावो में है खोट।
इसलिए तो पड़ी तुझे, दिलवर नूतन चोट।।
सफतलम प्रयास के लिए बधाई।
प्रथम चरण में सफल प्रयास के बाद द्वितीय चरण में भावों वर्ण/ टंकण दोषसे घिरते हुए
"इसलिए
तो पड़ी तुझे" कुछ ठीक नहीं लग रहा है
चौथे चरण में भी वर्णी दोष कहूँ या तुकांत का मिलान का अतिशय प्रयास चोंट सही शब्द है तुकांत दोष भी आता है।
आदरणीय तामेश्वर शुक्ल ‘प्रहरी’ जी
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नित नूतन अवसर मिले, मिले शब्द का ज्ञान।
इस साहित्यिक मंच की, है अनुपम पहचान।।
निःशब्द! अदा० शुक्ल जी बहुत खूब समूह की प्रशंसा पर
सृजित किया गया अनुपम सृजन।
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इस चरण में आदरणीया दीपाली जी की रचना समय के बाद भेजने के कारण अमान्य
क्षमा सहित।
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परिणाम- आदरणीय आदरणीय तामेश्वर शुक्ल ‘प्रहरी’ जी बधाई के पत्र और इस चरण के
सर्व शुद्ध दोहाकार।
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