गीतिका

 मनोरम छंद
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दर्शन शशि विकाल में हो,
उत्तर अब सवाल में हो।


शब्द गरिमा चाल में हो,
प्रेयसी हर हाल में हो।


नयन लड़ते सौर्य में हो,
दामिनी सौंदर्य में हो।


घूँघट फिर मत भ्रम में रख,
लोचन झुके शरम में रख।


मस्त तारुण्य फिर तरुणा,
बाद इनके हो सदा करुणा।


प्रेयसी बैठी हुई थी ,
याद तब वो कर रही थी।


जब मिले हम अश्रु धारा,
बह रहा था नीर सारा।


आचार्य प्रताप

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

2 टिप्पणियाँ

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