मनोरम छंद
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दर्शन शशि विकाल में हो,
उत्तर अब सवाल में हो।
शब्द गरिमा चाल में हो,
प्रेयसी हर हाल में हो।
नयन लड़ते सौर्य में हो,
दामिनी सौंदर्य में हो।
घूँघट फिर मत भ्रम में रख,
लोचन झुके शरम में रख।
मस्त तारुण्य फिर तरुणा,
बाद इनके हो सदा करुणा।
प्रेयसी बैठी हुई थी ,
याद तब वो कर रही थी।
जब मिले हम अश्रु धारा,
बह रहा था नीर सारा।
आचार्य प्रताप
सुन्दर,,,, सुखद दर्शन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
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