शनिवार, 26 सितंबर 2020

गीतिका

विधाता छंद

दिवाकर ढल गया था जब  , तिमिर फैला हुआ तब है।
सुधाकर दिख गया अब तो , तिमिर का नाश तो अब है॥


निशा का रंग काला है, तभी भय है जगत भर में,
भयानक रात होती है ,कहीं दिखता नहीं अब है॥


बुरी घटना घटी थी जब, तभी भी रात काली थी,
विरह में गीत गाता था ,प्रिये को भूलना कब है॥


सवेरा हो रहा अब है , हमें यह ज्ञात होता है,
खुले बंधन तिमिर के हैं , ख़ुशी की लहर तो अब है॥


मधुर कलरव करें पंछी, गगन भर लालिमा छाई,
सवेरा हो गया है अब ,तिमिर तो मिट गया सब है॥ 

आचार्य प्रताप

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