बुधवार, 30 सितंबर 2020

ऋतुराज वसंत का गुणगान

ऋतुराज वसंत का गुणगान
अनुशासन का मान बढ़ाया, मानवता का पाठ पढ़ाया।
मानव दानव मध्य सभी को, जिसने सारा भेद सिखाया।।
सावन पावन मधुवन उपवन , मृदु-जल पूरित सुरभित होते।
ईश्वर  का  वरदान  धरा  यह ,  तारक हैं  सुख से सब सोते।।

सभी चराचर जीव जगत के ,  श्यामल भू-तल पर हैं  छाए।
सब के मुख से मुखरित होते , मृदुभाषी मृदु गीत जो गाए। ।
नीलफलक निर्मल नभ के सम ,  मखमल मरकत  मतवाला है।
रंग-बिरंगे फूलों से सज , मधु ने मधुकर को  पाला है।।

पतझड़ में झरकर धरणी पर , पल्लव पुष्प यहाँ बिखरे जब।
नवपल्लव नवपुष्प दिखें तब नव आगंतुक मित्र यहाँ सब।।
पुष्प - भ्रमर  आलिंगन  करते ,  मन को विचलित ये करते तब।
योग प्रताप करें हठ का अरु , मन  को करते हैं वश में अब।।

आचार्य प्रताप

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