ऋतुराज वसंत का गुणगान
अनुशासन का मान बढ़ाया, मानवता का पाठ पढ़ाया।
मानव दानव मध्य सभी को, जिसने सारा भेद सिखाया।।
सावन पावन मधुवन उपवन , मृदु-जल पूरित सुरभित होते।
ईश्वर का वरदान धरा यह , तारक हैं सुख से सब सोते।।
सभी चराचर जीव जगत के , श्यामल भू-तल पर हैं छाए।
सब के मुख से मुखरित होते , मृदुभाषी मृदु गीत जो गाए। ।
नीलफलक निर्मल नभ के सम , मखमल मरकत मतवाला है।
रंग-बिरंगे फूलों से सज , मधु ने मधुकर को पाला है।।
पतझड़ में झरकर धरणी पर , पल्लव पुष्प यहाँ बिखरे जब।
नवपल्लव नवपुष्प दिखें तब नव आगंतुक मित्र यहाँ सब।।
पुष्प - भ्रमर आलिंगन करते , मन को विचलित ये करते तब।
योग प्रताप करें हठ का अरु , मन को करते हैं वश में अब।।
आचार्य प्रताप
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी से आपकी पसंद के अनुसार सामग्री प्रस्तुत करने में हमें सहयता मिलेगी। टिप्पणी में रचना के कथ्य, भाषा ,टंकण पर भी विचार व्यक्त कर सकते हैं