विजात छंद
सुहानी शाम है आई।
गगन पर लालिमा छाई।।
सुधाकर है दिखा अब तो ,
सुहानी रात है आई।।
कली मिटने लगी देखो,
सुमन बन गंध फैलाई।।
दिखी कोयल अभी जब तो ,
प्रिये तुम याद है आई।।
प्रिये तुम हो हमारा धन ,
जगत सौगात है पाई।।
यहाँ पाकर तुम्हें अब तो ,
नहीं है लालसा कोई।।
आचार्य प्रतप