गुरुवार, 24 सितंबर 2020

साहित्य संगम - कार्यशाला


 कार्यशाला
।। ॐ।।
                              
 प्रथम चरण - शब्द –गर्मी

अदा० प्रचण्ड जी
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गर्मी भीषण पड़ रही , मिलकर दो सब ध्यान !
शीतल जल सेवन करो ,
सबका हो कल्यान !!
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प्रयास बहुत ही सरहनीय रहा किन्तु
*जब दोहे में चार चरण दो पंकितियाँ होती हैं तो उक्त तरीके से लिखने का क्या अर्थ*
कल्यान तुकांत मिलाने के लिए शब्द को परिवर्तन करना उचित नहीं , अतः *तुकांत दोष* ।
जब शीतल जल एक को पीने की बात कही जा रही है तो सबका कल्याण कैसे हो सकता है ;और जल शीतल ही क्यों ? अतः विधान में साधने का प्रयास करें और अन्य शब्दों से बचते रहें।
आपका सुंदरम दोहा।

अदा० दीपाली जी
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गर्मी बढ़ती जा रही , देखो हाल बेहाल |
धरती सारी अब तपे , ग्रीष्म बना है काल ||
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*बहुत बढ़िया प्रस्तुति दी गयी निःसंदेह आपकी लेखनी प्रशाशनीय है।*
किन्तु
भाव और शिल्प में थोड़ा कसाव की आवश्यकता है,
उक्त दोहे को इस प्रकार लिखकर शिल्प पर अच्छा साध सकतीं थी।
गर्मी बढ़ती जा रही , देखो हाल बेहाल |
 सारीधरती तप रही  , ग्रीष्म बना अब  काल ||
*अतः अनायास शब्दों का प्रयोग उचित नहीं, सार्थकता और अधिकतम सर्वशुद्धता होना अनिवार्य*
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अदा०  आदेश पंकज जी
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पशु पक्षी मानव सभी गर्मी से हैरान ।
धरती से आकाश तक दुख से भरा जहान ।।
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दोहा दोहन बहुत ही सुन्दर रहा , सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।
किन्तु सभी लोग कुछ  न कुछ त्रुटि करते हैं और आपने भी की एक बहुत ही छोटी किन्तु  दोहों के लिए वो भी बड़ी मणि जाती है विषम चरणों के अंत में (कॉमा) अल्प विराम  , और सम चरणों के अंत में पूर्ण विराम लगाना अति आवश्यक होता है।
आशा है अगली बार से ध्यान में रखेंगे।
अदा० मनोज कुमार "मनु" जी
भीषण गर्मी पड़ रही तपै माँ वसुधा ताप ।
जल बिनु तड़पै पंछिड़ा नीर बना है भाप ।।
मनु
*बहुत सुन्दर सफल प्रयास किया गया है*  किन्तु
द्वितीय चरण में *तपै माँ वसुधा ताप* कुल मात्रा भर १२ जबकि दोहा चाँद विधान के अनुसार ११ मात्राएँ ही होनी चाहिए अतः मात्रा भर अधिक होने के कारण ले भंग।
एवं तृतीय चरण में बिनु शब्द , तड़पै , पंछिडा तीनों ही  देशज माने जाते हैं  जो की हिंदी की खड़ी बोली में अमान्य होता है ,  चतुर्थ चरण में *नीर बना अब भाप*  लिख कर और अच्छा किया जा सकता था।
शेष ठीक।
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अदा० मंत्र जी
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गर्मी में सब त्रस्त हैं, पशु-पक्षी नर-नार ।
शब्दों का शरबत लिए, हम आए करतार ।।
'मंत्र'
आदरणीय मंत्र जी वैसे ही ज्ञान के सागर हैं किन्तु आपका आदेश है तो आदेश का पालन करना ही उचित समझता हूँ। प्रथम चरण में यदि *में* के स्थान पर *से* करते तो कारक दोष बच सकते थे। जब बात गर्मी की हो रही हो  शब्द  रुपी शरबत की क्या आवश्यकता है।  यदि प्रथम पनकी में सृजन को गर्मी की उपमा या संज्ञा दी होती तब मैं आपको इस सृजन के लिए हार्दिक बधाई देता और *शिरोधार्य* शब्द से अलंकृत करता।
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अदा० किशन  जी
गर्मी तेरे प्यार की, करती है बेहाल।
यहाँ हाल बेहाल है,वहां का कहो हाल
अपने समय समाप्त होने के बाद भेजा अतः प्रतियोगिता से प्रथम चरण में बाहर रहेंगे।
किन्तु
प्रथम तीनो चरण  बेहतरीन हैं किन्तु चौथे चरण में वहाँ के स्थान पर वहां होने से वर्तनी दोष।
और चौथे चरण के अंत में दो पूर्ण विराम  (।। )चिह्न अनिवार्य होता है।
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परिणाम -  प्रथम चरण आदरणीया दीपाली जी और आदरणीय 'मंत्र' जी

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।। ॐ।।
कार्यशाला
द्वितीय चरण - शब्द - नूतन
अदा०  किशन जी
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नूतन पल्लव खिल गए, नूतन आये फूल।
ऐसे में मुझको कभी,मत जाना तू भूल।।
प्रथम  दो चरण निर्दोष साबित होते हुए सफलता की बढे ही थे कि  तीसरे चरण को दोष से भर दिया तीसरे में  यह दर्शना सुनिश्चित होता है की किससे कहा जा रहा है  अतः आप ऐसा कह सकते थे --> ऐसे में *प्रीतम/ प्रियतम* मुझे , जाना मत तुम भूल।।
मत को पहले लेना और  तू शब्द का प्रयोग चौथे चरण की शिल्प पर  प्रतिघात करता है।
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आदरणीय -आदेश पंकज जी
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1-       अभिनंदन है आपका, बदला जो परिवेश ।
                   नूतन मंगल वर्ष में बदल गया है देश ।।
आदेश पंकज
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति मनमोहक सृजन।
किन्तु तृतीय चरण के अंत में अल्प विराम लगाना अति आवश्यक।



2-        अभिनंदन है आपका,आओ मेरे देश ।
                नूतन मंगल वर्ष में, बदल गया परिवेश ।।

सुन्दर सृजन की बधाई
। शेष उतमस्तु ।

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अदा ० मनोज ' मनु' जी
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नूतन शब्दों से करो, नव सृजन दिन रैन ।
बिनु नव सृजन के बिना   , कवि ना पावै चैन ।
मनु
बहुत सुन्दर  लेखनी है आपकी।  प्रथम चरण में सुन्दरतम प्रयोग किन्तु *नवसृजन* को *नव सृजन* लिखना उचित नहीं दोनों का भावार्थ देखें सदर 
*नवसृजन- नया नया सृजन करना* ,
*नव सृजन - नौ सृजन करना।*
रैन के साथ दिवस का प्रयोग होता है दिन का नहीं अतः यह भी दोषपूर्ण हुआ।
बिनु देशज और पुनः नव सृजन अमान्य।  चौथे चरण में न को ना लिखना मैं उचित नहीं समझाता  पावै देशज ।
*देशज शब्दों से बचने की आवश्यकता है और सही अर्थ का शब्द ही प्रयोग में लाये अन्यथा अर्थ का अनार्थ निश्चित है।*
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आदरणीय  प्रचण्ड जी

नूतन अवसर है मिला , करलीजो अब काज !
भूल सुधार किरयहुँ प्रभु ,
रख लीजो तुम लाज !!
प्रचण्ड!

प्रयास बहुत ही सरहनीय रहा किन्तु
*जब दोहे में चार चरण दो पंकितियाँ होती हैं तो उक्त तरीके से लिखने का क्या अर्थ*
 लीजो ,  देशज किंतु  किरयहुँ  शब्द  का शदार्थ ??? खड़ी बोली में देशज अमान्य होने के कारण यह अमान्य तृतीय चरण समझ से परे होने के कारण भाव विहीन दोहा।
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आदरणीय कविराज तरुण जी
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नूतन के इस मोह में , क्या खोजे हैं आप ।
नूतन नूतन जग हुआ , नूतन हुआ न बाप ।।
तरुण
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निश्चित  ही आप  बधाई के पत्र हैं।
प्रथम चरण उत्तम प्रयास के साथ शुरुआत कर सफलता की ओर अग्रसर किंतु द्वितीय चरण  के अंत में ? प्रश्नचिह्न अनिवार्य और नूतन-नूतन  जब शब्दों की पुनरुक्ति हो रही हो तब योजक चिह्न भी अनिवार्य  चौथे चरण में आकर औंधे मुँह गिरे तुकांत के लिए अपमान जनक शब्द उचित नहीं।
ये कहना उचित नहीं है कि "नए वर्ष मेरा बाप नया नहीं हुआ " सोचिये एक बार।
बहुत बहुत बधाई आपको।
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आदरणीय किशन जी
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नूतन तेरा प्यार पर, भावो में है खोट।
इसलिए तो पड़ी तुझे, दिलवर नूतन चोट।।

सफतलम प्रयास के लिए बधाई।
प्रथम चरण में सफल प्रयास के बाद  द्वितीय चरण में *भावों* वर्णी दोष से घिरते हुए
"इसलिए तो पड़ी तुझे" कुछ ठीक नहीं लग रहा है  चौथे चरण में भी वर्णी दोष कहूँ या तुकांत का मिलान का अतिशय प्रयास *चोंट*  सही शब्द है तुकांत दोष भी आता है।
*आदरणीय तामेश्वर शुक्ल प्रहरीजी*
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नित नूतन अवसर मिले, मिले शब्द का ज्ञान।
इस साहित्यिक मंच की, है अनुपम पहचान।।

निःशब्द!  अदा० शुक्ल जी बहुत खूब समूह की प्रशंसा पर सृजित  किया गया अनुपम सृजन।
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*इस चरण में आदरणीया दीपाली जी की रचना  समय के बाद भेजने के कारण अमान्य
क्षमा सहित।*
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परिणाम- आदरणीय *आदरणीय तामेश्वर शुक्ल प्रहरीजी* जी बधाई के पत्र और इस चरण के सर्व शुद्ध दोहाकार।
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।। ॐ।।
*कार्यशाला*
*तृतीय चरण शब्द – सैनिक*
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सरहद पर डटकर खड़े, सैनिक वीर महान !
रक्षा में तत्पर रहें ,
करते हम गुणगान!!
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पुनः प्रयास बहुत ही सरहनीय रहा किन्तु
*जब दोहे में चार चरण दो पंकितियाँ होती हैं तो उक्त तरीके से लिखने का क्या अर्थ*
ये दोहा वास्तव में बहुत ही प्रभावी है किन्तु चतुर्थ चरण में हम के स्थान पर सब करने से भाव से भी प्रभावी हो जायेगा और व्यक्तिगत से सार्वजानिक हो जायेगा।
बधाई हो बहुत सुन्दर।
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आदरणीय किशन जी
इस चरण में आपने तीन दोहे देकर हम  पर जो उपकार किया है वो अविस्मरणीय है।

सैनिक अपना जागता, सारी सारी रात।
फिर भी बदले तो नहीं, उसके वो हालात।।
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बहुत सुन्दर सृजन  प्रथम चरण के लिए बधाई किंतु द्वितीय में सारी-सारी के बीच योजक चिह्न अनिवार्य
तृतीय चरण में अनायास शब्द रखना उचित नहीं लगता।

कुछ ऐसा लिख सकते थे

फिर भी बदले  क्यों नहीं

सैनिक ने जब के दिया, अपना ही बलिदान।
तभी सुरक्षित रह सकी, अपनी सारी आन।।
 बहुत बहुत बधाई
किंतु यहाँ पर के के स्थान पर से करने से करक दोष समाप्त होगा
शेष बहुत सुंदर
सैनिक मेरे देश का, सबसे वीर जवान।
चाहे रूस अमेरिका, चाहे हो जापान।।
बहुत सुन्दर सृजन किया गया है

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आदरणीय तामेश्वर शुक्ल प्रहरीजी*
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भारत माँ की वंदना, सैनिक का यह धर्म|
सेवक बनकर देश का, करते अनुपम कर्म||
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सीमा पर रहते डटे, सैनिक सीना तान|
अथक परिश्रम से हमें, देते सुखद विहान||
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सैनिक जीवन पर नहीं, जाति धर्म का बंध|
एक हृदय होकर सभी, रखते प्रिय संबंध ||
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इस चरण में आपने  भी तीन दोहे देकर हम  पर जो उपकार किया है वो अविस्मरणीय है।

बहुत ही सुन्दर ढंग से अपने कर्मों का वर्णन कर दिया है आपने *प्रहरी महोदय*
प्रथम तीनों चरणों के लिए बधाई किन्तु  चौथे चरण का प्रथम शब्द करते  के स्थान पर करता  रखने से भाव बहुत अधिक प्रभावी हो जाता है करके देखें।
बेहतरीन दोहा  बधाई हो।
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दूसरे दोहे पर भी देश का प्रहरी होने के नाते आपने अपने कर्मो को जनता तक पहुंचने का जो सफल प्रयास किया है वो वास्तव में संगम परिवार कभी नहीं भूलेगा।  बहुत बहुत बधाई।
*उत्कृष्ट दोहा*

तीसरे पर तो सबसे अच्छी बात बताई है की उसका क्या धर्म है।
  *अनुपम दोहा*
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आदरणीया  दीपाली जी


सैनिक सरहद पर गये , लड़ने को वो जंग |
हार जीत की होड़ में , लगे हुए हैं संग ||

 दीपाली
सैनिक की शान पर बेहतरीन दोहा
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आदरणीय कविराज  तरुण जी

सैनिक घाटी में मरे , नेता करें विलाप ।
उचित कदम फिर भी नही , ये है सीधा पाप ।।
                                           तरुण
वाह वाह कविराज महोदय बहुत सुन्दर सृजन कर मंच को सजाया। सैनिकों के शहीद होने  पर नेताओ का राज़ खोलता हुआ बहुत सुन्दर दोहा।
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आदरणीय ऋतू गोयल जी
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सैनिक सेवा देश की,करे लगा जी-जान।
उनके कारण ही सभी,नागरिकों की शान।।
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बहुत बहुत बधाई अपने भी इस कार्यक्रम में अपना अमूल्य योगदान दिया।
आपका सृजन सुंदर है  किन्तु चौथे चरण में जो नागरिकों  का प्रयोग किया है वैसा प्रयोग अमान्य होता है चौकल से अधिक आने पर ले भांग होने का खतरा रहता है इससे बचें।
बहुत खूब  हार्दिक बधाई।
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आदरणीय मनु जी

सुरक्षा करते देश की , बनकर पहरेदार ।
सैनिक मेरे देश के  , करते शत्रु पर वार ।।
मनु
 आपका सृजन वरसतव में प्रशंशा के योग्य है कित्नु प्रथम चरण में ही आपने त्रुटि कर दी है जा रक्षा मात्रा से काम हो रहा है तो सु अतिरिक्त क्यों ?
तथा चौथे चरण पर भी ऐसी ही   १२ मात्रा भर देकर गलती मुझे लगता है की आपको एक बार मात्रा भर का अध्ययन कर लेना चाहिए।
 सुन्दर सृजन के लिए बधाई।
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आदरणीय आदेश पंकज जी

सैनिक सीमा पर रहें ,हर पल हैं  तैनात ।
सुख दुख चिन्ता नहीं , लड़ें सदा दिन रात ।।
बेहतरीन सृजन के लिए बधाई के साथ बताना चाहूँगा कि जब प्रथम चरण पर रहे  आ गे यही तो अनायास द्वितीय चरण पर हैं रखने से क्या लाभ मात्रा भर के लिए अनायास शब्द प्रयोग से बचें।
द्वितीय चरण में
हर पल क्यों  तैनात ?

और तृतीय चरण की कुछ मात्राएँ ही गायब अर्थात मात्रा भर काम होने के कारन ले भांग।
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।।ॐ।।
*कार्यशाला*
चतुर्थ चरण - शब्द - नयन

*आदरणीया ऋतू गोयल जी*

भरी सभा कैसे कहे,आय तुम्हारी याद।
नयनों से कर लो जरा,नयनों का संवाद।।
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सर्वप्रथम आपको इस कार्यक्रम में प्रतिभाग करने के लिए बधाई और दोहा लिखने के लिए भी हार्दिक बधाई  अपने प्रथम चरण में ही वर्तनी दोष किया कहें किन्तु त्वरित सृजन में ये हम स्वीकारा कर सकते हैं पर द्वितीय चरण में *आय तुम्हारी याद।*  के लिए *आई तेरी याद।*  कर सकतीं थी।  शेष आपका सृजन सराहनीय है।  और पुनः बधाई।
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*आदरणीय मंत्र जी*

नयनों से हैरान हों, श्रीयुत् जी संजीत ।
इनके भैया लिख रहे, रचनाएँ दिलजीत ।।

इस सृजन के लिए निश्चय ही  आप बधाई के योग है और आपकी  लेखनी की धारमाँ भगवती की कृपा से और बढ़ती रहे।
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*आदरणीय  प्रचण्ड जी*

नयन मिले जब आपसे ,
तबसे हुए अधीर !
पल पल ढूँढूँ प्रियतमा ,
हृदय हुआ गंभीर !!

बेहतरीन सृजन के लिए बधाई आपको बहुत ही उम्दा दोहा है। त्वरित सृजन के लिए कुछ छूट देने का देश मिला है जिसके कारण विराम चिह्न पर आपको यहाँ छूट दी जाती है।
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*आदरणीय बिजेंद्र सिंह जी*
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नयन निरखि रघुवीर सिय,अतिशय पुलकित गात।                                                 
भंजहिं यह शिव का धनुष,  तब बन जाए बात ।।
नीचे ही भाव पक्ष ठीक-ठाक है किन्तु  आप तुलसी के ज़माने के कवी नहीं है आधुनिक युग में जी रहे है अतः देशज शब्द में लिखने की छूट मैं नहीं दे सकता हूँ।
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*आदरणीय तामेश्वर शुक्ल प्रहरीजी*

नयन कटारी मारकर, गये कौन -सी राह|
खड़ी हुई हूँ मैं यहाँ, पिया मिलन की चाह||

बेहतरीन सृजन के लिए बधाई  त्वरित सृजन में कुछ छूट के कारण प्रश्नचिह्न के लिए छूट प्रदान  की  गयी शेष उत्तम सृजन।
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आदरणीय किशन  जी
1-आओ आज नयन कहे, नयनो की बात।
मुझसे मिल लो तुम अभी, फिर तो होगी रात।।

प्रथम चरण तो मात्रा के हिसाब से ठीक किन्तु द्वितीय चरण मात्रा भर काम और पक्ष भी कुछ खास नहीं तृतीय चतुर्थ चरण की भी भरी दुर्दशा , अर्थात मिलान से पहले रत नहीं हो सकती समय किसी के रोकने से नहीं रुकता।

2-दोनों नयनो में नयन, उसने डाले आज।
इसीलिए बनते गए, मेरे सारे काज।।

बहुत सुन्दर भाव के लिए बधाई  जब आज का प्रयोग हुआ तो इसीलिए क्यों ?
तृतीय चरण में  ध्यान देने की आवश्यकता।

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आदरणीय सी पी सिंह जी

नयन नशीले मद भरे, होठ रसीले लाल !
 सुक सी उन्नत नासिका, सेव सरीखे गाल !!
बहुत सुन्दर सृजन बधाई त्वरित सृजन में छूट होने के कारण विराम चिह्न के लिए छूट प्रदान की जाती है।
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आदरणीय आदेश पंकज जी
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नयन तरसते हैं बहुत ,दर्शन दो भगवान ।
अब तो आकर हे प्रभू कर मेरा कल्यान ।।

प्रथम  दो  चरण बहुत ही सुन्दर किन्तु तृतीय चरण में प्रभु की प्रभू लिखना उचित नहीं।  और कल्याण को कल्यान लिखना भी तुक नहीं होता हाँ ये बात बात अलग है कि तुलसी कबीर जायसी और अन्य कवियों ने लिखा है किन्तु वो *भक्तिकाल* था अब *अत्याधुनिक काल* है।

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आदरणीय मनोज कुमार  'मनु' जी
नयनों से नयन मिले , बन गई बिगड़ी बात ।
उलझ गए यदि नयन तो , जागो सारी रात ।।
मनु
प्रथम चरण में ही  मात्रा भर काम होने के  कारण ले भंग शेष भाव पक्ष उत्तम चतुर्थ चरण में *जागें सारी रात* भाव पक्ष मजबूत करता है।
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आदरणीय दीपाली जी
नयन कटीले श्याम के , देखें राधा आज |
कितने सुन्दर दिख रहे , मुरलीधर पर नाज ||

दीपाली
 बहुत ही सुन्दर सृजन किया है बधाई
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आदरणीय कविराज तरुण जी
नयन नयन से जा मिले , दो से बनके चारि ।
महक उठा मन बाग ये ,नयन भये फुलवारि ।।
सृजन का भाव पक्ष मजबूत है किन्तु शिल्प में थोड़ी सी चूक हो गयी चारि -  और फुलवारि
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