मुक्तक

 

दुखों में रोकर मिलता है, सुखों में हँसकर मिलता है
क्षुधा-पीड़ित हो प्राणी जो, उसे तो खाकर मिलता है।
जगत में मैंने देखा है, सभी की अपनी विधियाँ हैं-
कहूँ कैसे मुझे आनंद,  तो बस लिख कर मिलता है॥01॥

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मुक्तक हो या छंद हो, पढ़ कर लें आनंद।
रचनाएँ ऐसी करें, जिनमें रसधार अमंद ।
जाँचे मात्रा भार तब, तुला तौल की भाँति-
खिलती रचना है तभी,बनकर सुरभित छंद॥02॥
 


आचार्य प्रताप

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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