छंद साधना की अनूठी कृति 'आराधिता'

 ।।ॐ श्रीहरिः।।
।। जयति गीर्वाणभारती।।


छंद साधना की अनूठी कृति 'आराधिता'

लेखक: डॉ. वीरेंद्र प्रताप सिंह 'भ्रमर'
प्रकाशक: बुक रिवर्स
ISBN: 978-938872709
प्रथम संस्करण: 2019
पृष्ठ संख्या: 218
मूल्य- 250/-

आज के इस आधुनिक युग में जब मुक्त छंद का वर्चस्व है, तब डॉ. वीरेंद्र प्रताप सिंह 'भ्रमर' जी की पुस्तक 'आराधिता' का प्रकाशन हिंदी साहित्य जगत में एक महत्वपूर्ण घटना है। बुक रिवर्स द्वारा प्रकाशित यह 218 पृष्ठों की पुस्तक छंद साधना का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करती है।
वर्तमान समय में जब अधिकांश पत्र-पत्रिकाएँ मुक्त छंद रचनाओं को ही प्रमुखता दे रही हैं, जब गद्य की पंक्तियों को तोड़कर कविता का रूप देने का प्रयास हो रहा है, ऐसे में डॉ. 'भ्रमर' जी का यह प्रयास सराहनीय है। लगभग 175 गीतों और छंदों का यह संग्रह हिंदी साहित्य की समृद्ध छांदिक परंपरा को केवल जीवंत रखता है, बल्कि उसे नई ऊँचाइयों तक ले जाता है।
रचनाकार ने अपनी इस कृति में विषयों की विविधता का विशेष ध्यान रखा है। देशप्रेम से लेकर राजनीति, श्रृंगार से लेकर सामाजिक चिंतन तक, हर विषय को उन्होंने अपनी लेखनी का विषय बनाया है। विशेष बात यह है कि इन सभी विषयों को उन्होंने पारंपरिक छंदों में इस तरह पिरोया है कि वे आधुनिक पाठक को भी उतने ही सहज लगते हैं जितने पारंपरिक काव्य के प्रेमी को।
डॉ. 'भ्रमर' जी की साहित्य यात्रा स्वयं में एक प्रेरणादायक कहानी है। सत्तर के दशक में हाई स्कूल से शुरू हुई उनकी लेखनी आज तक निरंतर गतिमान है। उनके पिता श्री राम सिंह विशारद 'प्रेम' जी के साहित्य प्रेम ने उनके भीतर साहित्य साधना का बीज बोया, जो आज एक विशाल वृक्ष बन चुका है। प्रगतिशील साहित्य मंच तिन्दवारी-बाँदा से जुड़ाव ने उन्हें 'भ्रमर' उपनाम दिया, जो आज हिंदी साहित्य में एक पहचान बन चुका है।
'आराधिता' की एक विशेष उपलब्धि यह है कि इसमें परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। जहाँ छंद परंपरागत हैं, वहीं विषय-वस्तु पूर्णतः समकालीन है। भाषा की सहजता और भावों की गहराई का यह संयोजन पाठक को बाँधे रखता है। कवि ने छंदों के चयन में विशेष सावधानी बरती है। प्रत्येक भाव के लिए उपयुक्त छंद का चयन करते हुए उन्होंने यह सिद्ध किया है कि छंदबद्ध काव्य भी समकालीन संवेदनाओं की अभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।


पुस्तक का विमोचन समारोह स्वयं में एक ऐतिहासिक घटना रहा। विशिष्ट कवियत्री कविता तिवारी, हास्य सम्राट राजू श्रीवास्तव जैसी प्रमुख हस्तियों की उपस्थिति में लगभग पचास हजार लोगों की भीड़ ने इस आयोजन को यादगार बना दिया। यह घटना स्वयं में यह सिद्ध करती है कि छंदबद्ध काव्य आज भी जन-जन का काव्य है।
डॉ. 'भ्रमर' जी की यह कृति हिंदी साहित्य को एक नई दिशा देती है। यह सिद्ध करती है कि छंद कोई बंधन नहीं, अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम हैं। आज जब हिंदी भाषा और साहित्य अपनी पहचान के लिए संघर्षरत है, ऐसे में 'आराधिता' जैसी कृतियाँ हमारी सांस्कृतिक विरासत को संजोने का काम करती हैं।
निःसंदेह, 'आराधिता' आधुनिक हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह पुस्तक छंद साधकों के लिए एक पथ-प्रदर्शक का काम करेगी। साथ ही, यह आम पाठक को छंदबद्ध काव्य की ओर आकर्षित करने में भी सफल होगी। हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और साहित्य प्रेमियों के लिए यह एक अमूल्य धरोहर है।पुस्तक के अंत में कहा जा सकता है कि डॉ. 'भ्रमर' जी ने 'आराधिता' के माध्यम से न केवल अपनी छंद साधना को साकार किया है, बल्कि हिंदी साहित्य को एक ऐसी कृति दी है जो आने वाले समय में भी प्रासंगिक रहेगी। यह पुस्तक परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सेतु का काम करेगी और नई पीढ़ी को छंदबद्ध काव्य की ओर प्रेरित करेगी।


-आचार्य प्रताप
(साहित्य समीक्षक)
दिनांक: 16 नवम्बर, 2024

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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