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केसर घोलो गुलाल लगाओ रे...
पिया परदेसी को गाँव बुलाओ रे।
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फागुन का ये माह है आया।
ले के बसंती बहार है छाया।
विरह भाव से तड़प रही मैं-
ला के थोड़ा भाँंग पिलाओ रे...
पिया परदेसी को गाँव बुलाओ रे ।।०१।।
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रंग भरा त्यौहार है आया।
मस्ती का मौसम है छाया।
बैर-भाव सब भूल गई मैं-
आकर थोड़ा गुलाल लगाओ रे...
पिया परदेसी को गाँव बुलाओ रे ।।०२।।
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करते हैं सब तंज ये मुझ पर।
नहीं पिया अब देश को आएगा।
इनसे-उनसे बचती फिरी मैं-
आकर मेरी लाज बचाओ रे...
पिया परदेसी को गाँव बुलाओ रे ।।०३।।
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आचार्य प्रताप