प्रेमचंद के अफ़साने से एक संस्मरण

संस्मरण

यह बात उन दिनों की है जब मैं हिंदी विषय से निष्णात् कर रहा था वैसे तो मेरे साथ बहुत से छात्र-छात्राएं अध्ययन कर रहे थे किंतु मुझे भली-भांति याद है कि मेरे साथ अफ़साना नाम की एक मुस्लिम कन्या भी पढ़ा करतीं थीं जैसे कि हम कभी भी महाविद्यालय जाया नहीं करते थे और जब जाया करते तब कक्षा में विषय-शिक्षक या छात्रों से वाद विवाद करते थे , वाद-विवाद इस लिए लिख रहा हूँ कि कभी-कभी अच्छे प्रश्न भी प्रध्यापक महोदय से पूछ लेते थे , किंतु  मेरे प्रश्नों में से ४० प्रतिशत  प्रश्न ऐसे होते जो की विषयागत होकर भी परिहार्य हुआ करते थे और शेष प्रश्न उत्कृष्ट तो नहीं कह सकता किंतु उत्तम कहूँ तो अतिश्योक्ति नहीं होगी और ये जो अनावश्यक प्रश्न होते थे उनके अधिकतर जनक मित्र होते और वो मुझे ही पूछने के लिए कहते और मैं थोड़ा वाचाल हुआ करता था अतः पूछ लिया करता था।

एक दिन प्रेमचंद के साहित्य अर्थात कहानियाँ एवं उपन्यास के प्रध्यापक आए और उन्होंने सभी के नाम और उनके अर्थ एक के बाद एक  पूछने लगे।
सभी ने अपने अपने नाम और उनके नामों के अर्थ बताने लगे तभी उस कन्या ने अपना नाम बताया अफ़साना बताया तभी प्राध्यापक महोदय ने अर्थ पूछा तो उसने कहा नहीं पता तभी मेरे मस्तिष्क में एक गाना याद आया 'अफ़साना बना के भूल जाना'  और  कमाल की बात यह है कि  जब हम अल्पज्ञ होते हैं तब अनुमान बहुत लगाते हैं और मैंने भी अनुमान लगाया कि अफ़साना  का अर्थ होगा 'पागल'  और मैंने शीघ्रतावश बोल दिया पागल !
उसी समय झगड़ा होना आरंभ हो गया और उसके बाद प्राध्यापक  महोदय ने बीच में आकर हमें शांत कराया तब से परीक्षाएँ  समाप्त होने के बाद आज तक हम दोनों में कभी वार्तालाप नहीं हुई ।
और हाँ कक्षा में प्रध्यापक महोदय ने अफ़साना  का अर्थ बताया  'कहानी'।
बस इतनी सी कहानी थी हमारी।
और मैं चाहकर भी अफ़साना से क्षमा नहीं माँग सका ।
आज इस आलेख के माध्यम से  भी उससे क्षमायाचाना  करता हूँ।

आचार्य प्रताप

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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