शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

करवा चौथ

सोमवार, 26 अक्टूबर 2020

काल दो प्रकार

काल दो प्रकार के होते हैं
१. एक काल तो त्रुटियादि से प्रलय प्रयन्त समय का ज्ञान कराने वाला समय
२. दूसरा काल यमराज होता है जो अन्तिम क्रिया करता है।
काल अर्थात् समय ज्ञान करने के लिए समय का पता कराने के लिए अलग अलग यंत्र
काल समय ज्ञात करने के अलग अलग मापक सूचक है उन पर  यहां चर्चा करेंगे।
३ लव = १ निमेष
३ निमेष =१  क्षण
५ क्षण =१ काष्ठा
१५ काष्ठा =१ लघु
१५ लघु = ६० पल=१ घड़ी (घटी)
१ पल=६० विपल
१विपल =६० प्रतिविपल

२/३०घडी(घटी) =१घंटा
६० घटी =१ अहोरात्र
१ अहोरात्र =एक दिन रात
७ अहोरात्र =एक सप्ताह
३० अहोरात्र =१ मास
३०×१२=३६०अहोरात्र =१ वर्ष
३६० अशं =भचक्र
३६० अंश =१२ राशि
१ राशि =३० अंश
१ अंश= ६० कला
१ कला =६० विकला
१विकला =६०प्रतिविकला

१ विपल= २४ प्रतिसैकंड
५विपल =१२०प्रतिसैकंड =२सैकंड
१० विपल =४ सैकंड
२०विपल =८ सैकंड
४० विपल= १६ सैकंड
६०विपल =२४ सैकंड 

६०विपल=१पल =२४सैकंड
५पल =१२०सैकंड =२ मिनट
१०पल में =४ मिनट 
१५ पल =६ मिनट 
३० पल =१२ मिनट 
१ घटी=६०पल =२४ मिनट 
२/३० घटी =१ घंटा
६० घटी =२४ घंटा

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2020

अल्ला और अल्लाह।

               आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला
◆ शब्द--  अल्ला और अल्लाह।
★ अल्ला-- यह 'संस्कृत-भाषा' का शब्द है, जो लिंग-निर्धारण के अन्तर्गत  स्त्रीलिंग का शब्द है। अधिकतर कोशकार 'अल्ला' शब्द को 'अरबी-भाषा' बताते हैं, जो कि भयंकर दोष है। शब्दभेद की दृष्टि से यह संज्ञा-शब्द है। अल्ला शब्द 'अल्' धातु का है, जिसका अर्थ 'आभूषण' होता है। इस धातु के अन्त में 'क्विप्' प्रत्यय जुड़ा हुआ है। इस प्रत्यय के लगते ही 'अल्ला' शब्द बनता है। इसका अर्थ 'पराशक्ति' है। इसका एक अन्य अर्थ 'माता' भी है। 'अल्' में जब 'ला' धातु जुड़ता है और 'क' का योग होता है तब 'टाप्' प्रत्यय का अस्तित्व उभरता है। इस 'ला' धातु का अर्थ है, 'लेना'।
★ अल्लाह-- यह अरबी-भाषा का शब्द है; किन्तु यहाँ यह पुंल्लिंग-शब्द है। इसका अर्थ ईश्वर, ख़ुदा है। 'ख़ुदा' फ़ारसी-भाषा का पुंंल्लिंग-शब्द है, जिसका अर्थ 'ईश्वर' होता है। 'अल्लाह' शब्द 'विस्मय', 'प्रतिष्ठा' तथा 'श्लाघासूचक' उद्गार है। इसी अल्लाह शब्द से 'अल्लाह तआला' (ईश्वर, जो सबसे बढ़कर है।), 'अल्लाहबेली' (ईश्वर तुम्हारा मित्र और रक्षक है।), 'अल्लाहो अकबर' (ईश्वर महान् है।) आदिक पदों का सर्जन होता है। एक बहुश्रुत कहावत भी है, "अल्लाह मियाँ की गाय", जिसका अर्थ है, अत्यन्त सीधा व्यक्ति।                                              ------------------------------------------------------------------        

सादर आभार

                  (सर्वाधिकार सुरक्षित-- आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ अक्तूबर, २०२० ईसवी।)

12अक्टूबर से 18अक्टूबर तक का अंक

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020

विशेष सूचना

क्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्र में एक पृष्ठ हिंदी के साहित्यकारों के लिए विशेष रूप से दिया जा रहा है जिस पृष्ठ का नाम  काव्य मञ्जरीः  है आप सभी हिंदी साहित्य प्रेमियों से अनुरोध है कि आप सब अपनी रचनाओं को हम तक पहुंचाए, हम जन जन तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
काव्य रचनाएं किसी भी विधा में हो सकती है मुक्त या ग़ज़ल विधा को छोड़कर शेष किसी भी विधा में आप अपनी रचनाएं अक्षरवाणी संस्कृत समाचार-पत्र में छपवाने हेतु दिए गए संपर्क सूत्रों पर अपनी रचनाएं एक तत्कालीन छायाचित्र के साथ रचना साप्ताहिक रूप हमें अवश्य भेजें।
साहित्य से जुड़ी साहित्यिक उपलब्धियों को छपवाने के लिए भी हम तक संपर्क कर सकते हैं। हम अपने सभी पाठकों से आपको चिर-परिचित करवाएंगे।

विशेष - आप से निवेदन है कि अक्षर वाणी समाचार पत्र मात्र ₹500 वार्षिक शुल्क पर उपलब्ध है जो कि साप्ताहिक समाचार पत्र है। इसकी सदस्यता लेना अनिवार्य नहीं है यदि लेते हैं तो साहित्यिक योगदान मात्र होगा। सामान्यतः अपने सदस्यों को प्रथम प्राथमिकता  देते हैं।


आवश्यक निर्देश

🔹कृपया जाँच लें कि भेजी गयी रचना में स्व-रचित होने का प्रमाण दिया गया है या नहीं।
🔹कृपया जाँच लें कि भेजी गयी रचना के साथ फोटो भेजी गयी है या नहीं।
🔹कृपया जाँच लें कि भेजी गयी रचना को भेजने के उपरांत आपके सभी कॉपीराइट क्लेम अस्वीकारण प्रमाण दिया गया है या नहीं।
🔹कृपया जाँच लें कि भेजी गयी रचना का शीर्षक आपके द्वारा दिया गया है या नहीं।

अंतिम और विशेष महत्वपूर्ण बात  अब से इस इमेल आईडी पर  रचनाये भेजे विधिवत उक्त शर्तों के साथ -aksharvanisanskritnewspaper@gmail.com

निवेदक
अंतरराष्ट्रीय प्रबंध निदेशक
संपर्क सूत्र-  8121487232, 8639137355

मंगलवार, 20 अक्टूबर 2020

कवि मित्रों की रचनाएँ ५ अक्टूबर से ११ अक्टूबर तक हिंदी साहित्य अक्षरवाणी काव्य मञ्जरी में प्रकाशित रचकार

कवि मित्रों की रचनाएँ २८ सितंबर- ४अक्टूबर तक हिंदी साहित्य अक्षरवाणी काव्य मञ्जरी में प्रकाशित रचकार

कवि मित्रों की रचनाएँ २१ सितंबर- २७ सितंबर तक हिंदी साहित्य अक्षरवाणी काव्य मञ्जरी में प्रकाशित रचकार

नवगीत

रुष्ठ मेरी तूलिका भी रुष्ठ मेरी प्रेमिका भी-

प्रिये!हमारी आप इतना रुष्ठ क्यों होने लगी हो?

हाय ! तेरी याद में क्यों,
पट हृदय के आज धड़के।
प्रियतमा में प्राण अटके,
गीत से तब भाव भटके।
यूँ न जाने आज कल क्यों ,बन न पाती भूमिका भी।
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.....

ईश वंदन हेतु जब भी
चक्षु खोलूँ मैं हृदय।
चीरता जो भी तिमिर को ,
हो सदा उसका उदय।
पुष्प पल्लव धूप लेकर , लूँ शृंगारिक पेटिका भी।
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.........

केश का वर्णन लिखूँ या
मैं कपोलों पर लिखूँ कुछ।
मृगनयनी हैं  नयन जो
तुम कहो तो मैं कहूँ कुछ।
रीतिका या राधिका या तारिका अनामिका या मैं कहूँ रसालिका।
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.....

स्वरात्मिका तू सूत्रिका भी,
तू ही मेरी हंसिका भी।
आह! में भी वाह! में भी,
तू ही है स्पंदिका भी ।
परिधि मेरी त्रिज्या भी हो, व्यास तू ही केंद्रिका भी

रुष्ठ मेरी तूलिका भी.........


आचार्य प्रताप

दुमदार दोहे

दुमदार दोहे

दिल्ली की ये मस्ज़िदें ,  बाँट रहीं हैं मौत?
फैल रहें हैं देश में, छाँटें अब परनौत।।
बढ़ेगी आफत भारी।।
मरेगी जनता सारी।।०१।।
------
दिल्ली में पकती दिखे , शैतानों की दाल।
दाना पानी दे रही , मस्ज़िद रूपी ढाल।।
 
तोड़ दो ऐसी ढाले।।
नहीं तो मारो  ताले।।०२।।
----
मरकज़ के शैतान ये ,  मिलकर करें विचार।
ज़ाहिल और गवाँर है ,  करिए  अब उपचार।।
करें  सारे  नौटंकी।।
कहें इनको आतंकी।।०३।।
-----
पाण्डव  द्वादश  वर्ष  भर ,   वर्ष चतुर्दश राम।
इक्किस दिन अब सब करें, घर बैठे निजकाम।।
होगें      एकांतवासी।
द्वारिका हो या काशी।।०४।।
-------------------------
आचार्य प्रताप

गीत- न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है

 एक गीत

न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है।
लगे क्यों मुझे फिर किसी ने छुआ है।
न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है।
लगे क्यों मुझे फिर किसी ने छुआ है।
---
न देखो जहाँ तक नज़र ‌जा  रही  है।
न ढूँढों मुझे अब फज़र  आ  रही  है।
हमारी  रहो  तुम यही  बस  दुआ  है।
न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है।
लगे क्यों मुझे फिर किसी ने छुआ है।
कहाँ छुप रही हो तुम्हें ढूँढ़ लूँगा।
छुपो मत समुंदर छुपाए न  मूँगा।
लगे क्यों मुझे तू स्वयं की बुआ है।
न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है।
लगे क्यों मुझे फिर किसी ने छुआ है।

दिखी आज मुझको नहीं  है सहेली।
कहूँ  मैं  किसे दिलरुबा  है  पहेली।
कुसुम की कसम रंग भी टेसुआ है।
न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है।
लगे क्यों मुझे फिर किसी ने छुआ है।
-----
      आचार्य प्रताप

गीत

विवाह गीत - ०१
-----------------
बड़ी खुशी की बात घर आई बारात ।
  मम्मी खुश है, पापा खुश हैं।
  भाभी खुश हैं  ,भैया खुश हैं 
         घर में मची  उत्पात।
बड़ी खुशी की बात घर आई बारात।।०१।।
     दादी खुश हैं , दादा खुश हैं।
     चाची खुश हैं  चाचा खुश हैं।
         खुशी है सारी घरात।
बड़ी खुशी की बात घर आई बारात।।०२।।
     मामी खुश हैं, मामा खुश हैं।
     मौसी खुश हैं, मौसा खुश हैं।
      खुश है सारी जात।
बड़ी खुशी की बात घर आई बारात ।।०३।।
     सूरज खुश है , चंदा खुश है।
     धरती खुश है , अंबर खुश है।
        खुशी में अई बारसात।
बड़ी खुशी की बात घर आई बारात।।०४।।
बड़ी खुशी की बात, बड़ी खुशी की बात।।
               
       आचार्य प्रताप

तीन सही पहचान

दोहा

मानव के परिपक्व की , तीन सही पहचान।
मृदुवाणी अरु नम्रता , पर पौरुष सम्मान।।
आचार्य प्रताप

हिन्‍दी साहित्यिक पत्र पत्रिकाएँ

अर्गला  मासिक पत्रिका (Argalaa Magazine) 
210, झेलम हॉस्टल, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-110067

अहा जिंदगी मासिक पत्रिका (Aha Zindagi Magazine)

6, द्वारिका सदन, प्रेस कॉम्‍प्‍लेक्‍स, एम0पी0 नगर, भोपाल-462011,
aha zindagi magazine in hindi, aha zindagi hindi magazine online,
आधारशिला मासिक पत्रिका (Adharshila Magazine)
सं.-दिवाकर भट्ट, बड़ी मुखानी, हल्‍द्वानी, नैनीताल- 263139, उत्‍तराखंड, ईमेल- adharshila.patrika@gmail.com

आह्वान द्वैमासिक पत्रिका (Ahwan Magazine)
बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली. ईमेल-ahwan@ahwanmag.com

ओशो टाइम्स (Osho Times Magazine)
ओशो इंटरनैशनल, 304, पार्क एवन्यू साउथ, स्वीट 608, न्यूयॉर्क, ऐन वाई 100010, ईमेल: osho-int@osho.com 


कथाक्रम त्रै. पत्रिका (Katha Kram Magazine)

'स्‍वप्निका', डी-107, महानगर विस्‍तार, लखनऊ-226006, ईमेल- kathakrama@gmail.com

कथादेश मासिक पत्रिका (Kathadesh Magazine)
सहयात्रा प्रकाशन प्रा. लि., सी-52, जेड-3, दिलशाद गार्डेन, दिल्‍ली-110095

कथाबिम्‍ब (Katha Bimb Magazine) 
ए-10 बसेरा, ऑफ दिन-क्वारी रोड, देवनार, मुंबई - 400088

कादम्बिनी मासिक पत्रिका (Kadambini Magazine) kadambini hindi magazine,
18-20, कस्‍तूरबा गांधी मार्ग, नई दिल्‍ली-110001, ईमेल-kadambini@livehindustan.com

गर्भनाल मासिक पत्रिका (Garbhnal Magazine)
DXE-23, मिनाल रेसीडेंसी, जे.के. रोड, भोपाल-462023, ईमेल-garbhanal@ymail.com

तद्भव अनियतकालीन साहित्यिक पत्रिका (Tadbhav Magazine)
सं.-अखिलेश, 18/271, इंदिरा नगर, लखनऊ-226016

दृष्टिपात मासिक पत्रिका (Drishtipat Magazine)
जे.एफ., 8/9, हरमू आवासीय कालोनी, रांची-834002, ईमेल- drishtipathindi@gmail.com

नवनीत मासिक पत्रिका (Navneet Magazine)
भारतीय विद्या भवन (Bhartiya Vidya Bhavan), 20, म0 मुंशी रोड, मुम्‍बई-400007, ईमेल- navneet.hindi@gmail.com

पहल त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका (Pahel Magazine)
101, रामनगर, आधारताल, जबलपुर-482004 (मoप्रo)

परिकल्‍पना समय मासिक पत्रिका (Parikalpana Samay Magazine)
सं.-रवींद्र प्रभात, एन-1/107, सेक्‍टर एन-1, संगम होटल के पीछे, अलीगंज, लखनऊ-226022, ईमेल- parikalpana.samay@gmail.com 

पाखी साहित्यिक पत्रिका (Pakhi Magazine)
इंडिपेंडेंट मीडिया इनीशिएटिव सोसायटी, बी. 107, सेक्टर 63, नोएडा 201303, ई मेल: pakhi@pakhi.in

प्रगतिशील वसुधा द्वैमासिक साहित्यिक पत्रिका (Pragatishil Vasudha Magazine)
मायाराम सुरजन स्मृति भवन, शास्त्री नागर, पी एंड ती चौराहा, भोपाल- 462003

प्रयास अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका (Prayas International Magazine) 
संपादक सरन घई, विश्व हिन्दी संस्थान (Vishva Hindi Sansthan), 49 Maple Valley St, Brampton, Ontario, L6P 2E8, Canada, ईमेल- vishvahindi@gmail.com

पाखी मासिक साहित्यिक पत्रिका (Pakhi Magazine) 
बी-107, सेक्टर-63, नोएडा, गौतमबुद्ध नगर-201303, उ.प्र., ईमेल- pakhi@pakhi.in

मधुमती मासिक साहित्यिक पत्रिका (Madhumati Magazine) 
Hans Hindi Masik Patrika
हंस, मासिक पत्रिका
राजस्‍थान साहित्‍य अकादमी (Rajasthan Sahitya Academy), सेक्‍टर-4, हिरण मगरी, उदयपुर-313002, ईमेल- sahityaacademy@yahoo.in

योजना मासिक पत्रिका (Yojana Hindi Magazine) 
योजना भवन, संसद मार्ग, नई दिल्‍ली-110001, ईमेल-yojanahindi@gmail.com

लमही त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका (Lamhi Magazine)
सं.-विजय राय, 3/343, विवेक खण्‍ड, गोमती नगर, लखनऊ-226010 उ.प्र., ईमेल-vijairai.lamahi@gmail.com

लोक संघर्ष मासिक पत्रिका (Lok Shangharsha Magazine)
सं.-रणधीर सिंह सुमन,  निकट डीवीएस स्‍कूल, लखपेड़ाबाग, बारबंकी-225001, उ.प्र.,  ईमेल-loksangharsha@gmail.com

वर्तमान साहित्‍य मासिक (Vartman Sahitya Magazine)
यतेन्‍द्र सागर, प्रथम तल, 1-2, मुकुंद नगर, हापुड़ रोड, गाजियाबाद-201001, ईमेल-info@vartmansahitya.com

वसुधा अंतर्राष्ट्रीय हिंदी पत्रिका (Vasudha International Magazine)
Sneh Thakore, 16 Revlis Crescent, Toronto, Ontario, M1V 1E9,  Canada, E-mail- sneh.thakore@rogers.com

विश्वा अंतर्राष्ट्रीय हिंदी पत्रिका (Vishwa International Magazine)
International Hindi Association (अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति),  3477 Hunting Run Road, Medina, OH 44256, USA, E-mail- vishwa@hindi.org

वागर्थ साहित्यिक पत्रिका (Vagarth Magazine), vagarth hindi magazine
भारतीय भाषा परिषद (Bahartiya Bhasha Parishad), 36 ए, शेक्‍सपियर सरणी, कलकत्‍ता-700017 

संस्‍कृति अर्धवाषिक पत्रिका (Sanskriti Magazine) 
केन्‍द्रीय सचिवालय ग्रंथागार, द्वितीय तल, शास्‍त्री भवन, डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद मार्ग, नई दिल्‍ली-110001, ईमेल- editorsanskriti@gmail.com

साहित्‍य अम़ृत मासिक साहित्यिक पत्रिका (Sahitya Amrit Magazine) 
4/19, आसफ अली रोड, नई दिल्‍ली-110002, ईमेल- sahityaamrit@gmail.com

स्रवंति द्विभाषी साहित्यिक मासिक (Srawanti Magazine) 
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (Dakshin Bharat Hindi Prachar Sabha-Andhra), खैरताबाद, हैदराबाद-500004, ईमेल- neerajagkonda@gmail.com

शैक्षणि‍क संदर्भ द्वैमासिक पत्रिका (Saikchhanik Sandarbh Magazine)
ई-10, शंकर नगर, बी.डी.ए. कालोनी, शिवाजी नगर, भोपाल-2671017

शिक्षा विमर्श  द्वैमासिक पत्रिका (Sikchha Vimarsh Magazine)
दिगंतर शिक्षा एवं खेलकूद समिति (Digantar Shiksha Evam Khelkud Samiti), टोडी रमजानीपुरा, खो नगोरियां रोड, जगतपुरा, जयपुर-302017, ईमेल- shikshavimarsh@gmail.com

हरिगंधा मासिक पत्रिका (Harigandha Magazine) 
हरियाणा ग्रन्‍थ अकादमी (Haryana Sahitya Akademi), पी-16, सेक्‍टर-14, पंचकूला-134113, ईमेल- hrgnthakd@gmail.com

हिंदी चेतना त्रैमासिक पत्रिका (Hindi Chetna International Magazine)
Hindi Pracharini Sabha, 6, Larksmere Court, Markham, Ontario, L3R 3R1, Canada, E-mail- hindichetna@yahoo.ca


सोमवार, 19 अक्टूबर 2020

बघेली बाले दुइ टूक

 बघेली बाले दुइ टूक

-----------------------

एकव साथी ना रहा , परी मुसीबत पास।

जियब त दुर्लभ होइगा ,  टूटिगा जब विसुआस।।०१।।

-----

आमय बाला कउन हय , द्-येखा अब त्यवहार।

मूडे़ परी गृहस्ती जउँ, कउन लगायी पार।।०२।।

---

बरन-बरन के बिधि करयँ , तबव  रहय लाचार।

यक दिन मलकिन कहि दिहिन, चाही हमका हार।

हार कहाँ से लमय भइया , पहुँच्यैं  तबय बजार-

मूडे़  परी    गृहस्ती     जउँ ,  कउन  लगायी पार।।

                                                        -आचार्य प्रताप 

साँवली सूरत

गीताँश  

केश तेरे देख श्यामल , मैं उन्हीं पर खो गया।

साँवली सूरत पे कविते, मैं दीवाना हो गया।

-आचार्य प्रताप 

बलिया की कलंक-कथा

लिया के गाँव 'दुर्जनपुर' में शासन-प्रशासन के सामने गोलियाँ मारी गयीं!..?
          
    बलिया का भारतीय जनता पार्टी का बड़बोला और असभ्य विधायक सुरेन्द्र सिंह अपनी गुण्डई लगातार दिखाता आ रहा है और अपने गुण्डों को प्रश्रय भी देता आ रहा है। यही कारण है कि कल (१४ अक्तूबर) उसकी शह पर धीरेन्द्र सिंह ने 'पंचायती अदालत' में सामने से गोली मार कर जयप्रकाशपाल उर्फ़ गामा की हत्या कर दी थी। विधायक सुरेन्द्र सिंह कह रहा है कि आत्मरक्षा के लिए धीरेन्द्र सिंह ने गोलियाँ चलायी थीं।
    ज्ञातव्य है कि दुर्जनपुर गाँव रेवती थानान्तर्गत आता है। घटना के समय दुर्जनपुर, पंचायतभवन के बाहरी हिस्से में शिविर लगाकर कोटे की दुकान के आवण्टन से सम्बन्धित बैठक हो रही थी। दुकान पर पहले हक़ जताने के लिए 'माँ सायर जगदम्बा' और 'शिव शक्ति स्वयं सहायता समूह' के लिए ठन गयी; बात बढ़ चुकी थी। उसी बीच कथित विधायक का क़रीबी बताया जानेवाला धीरेन्द्र सिंह ने गामा पाल को उनके पास आकर सामने से गोलियाँ चलाकर हत्या कर दी थी। वह पन्द्रह से बीस चक्र तक गोलियाँ चलाता रहा और ज़िला तथा पुलिस-प्रशासन देखता रहा।
     घटनास्थल पर एस०डी०एम० सुरेश कुमार पाल और सी० ओ० चन्द्रकेश सिंह बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों के साथ मौजूद थे। पुलिस ने हत्यारे धीरेन्द्र सिंह को पकड़ लिया था; किन्तु उसे कुछ दूर ले जाकर छोड़ दिया था। 
     ऐसे में, प्रश्न है, किसके इशारे अथवा निर्देश पर हत्यारे धीरेन्द्र सिंह को भगाया गया था? निस्सन्देह, उत्तरप्रदेश-शासन की अब जातिवादी राजनीति पर्त-दर-पर्त अब खुलने लगी है।
 (सर्वाधिकार सुरक्षित-- आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १६ अक्तूबर, २०२० ईसवी।)
★ चित्र एक-- हत्यारा धीरेन्द्र सिंह
★ चित्र दो-- लाल रंग की शर्ट और नीले रंग की पैण्ट में पुलिस-गिरिफ़्त में दिख रहा हत्यारा धीरेन्द्र सिंह

पाठशाला

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला से 
प्रश्न एक-- 'जयन्ती' का अर्थ क्या होता है?
प्रश्न दो-- 'सुस्रूशा' शब्द की शुद्ध वर्तनी बतायें।
कृपया शुद्ध और उपयुक्त उत्तर ग्रहण करें :--

उत्तर एक--
जयन्ती-- किसी व्यक्ति की जन्मतिथि, किसी संस्था, प्रतिष्ठान आदिक की स्थापनातिथि तथा किसी व्यक्ति अथवा प्रतिष्ठान के पच्चीस,  पच्चास, पचहत्तर, सौ वर्ष पूर्ण हो जाने पर आयोजित किया जानेवाला उत्सव 'जयन्ती' है। 
उत्तर दो-- शुश्रूषा
शुश्रूष+अ-- टाप् प्रत्यय = शुश्रूषा।
अर्थ-- 
१- वह सेवा, जो किसी के कहने के अनुसार की जाये।
२- सुनने की इच्छा।

रविवार, 18 अक्टूबर 2020

नवरात्र विशेष

छंद - पीयूष वर्ष / आनंद वर्धक
================
माँ चरण  वंदन करुँ मैं झुक सदा।
नेक हो दिल साफ हो ऐसी अदा।
नेकियों पर ध्यान देना चाहिए।
हर वदी को भूल  जाना चाहिए।
                 रात  हैं  नव  चेतना  की  जाग लो।
                कर सको पूजन करो तुम भाग लो।
                नव दिनों की बात है उपवास कर।
               फिर सदा माँ के हृदय में वास कर।
फूल चूनर हाथ ले कर हार भी।
 कर रहे  हैं माँ सभी श्रृंगार भी।
प्यार माँ-सा ही मिले संसार से।
आज तो कोई न लौटे द्वार से।
              अब सदा जयकार माँ की कीजिए।
               नाम तो हर बार माँ का लीजिए।
              शारदे , लक्ष्मी , उमा का ध्यान कर ।
              दंभ का अब त्याग कर निज शीश धर।

-आचार्य प्रताप

अर्घ्य, पाद्य, आचमन और आधुनिक समय

 ।। अर्घ्य, पाद्य, आचमन और आधुनिक समय।।

---------------------------------------------------------------
पंडित जी जब आपके घर पूजा कराने के लिए आते हैं तो वे बारी-बारी से विभिन्न देवताओं और ग्रहों का आह्वान मंत्रों द्वारा करते हैं और आचमनी में जल लेकर जल्दी-जल्दी अर्घ्य, पाद्य और आचमन इन देवताओं को अर्पित कराते हैं। पंडिज्जी यंत्रवत मंत्र पढ़ते चलते हैं और यजमान यंत्रवत जल गिराता चलता है। क्यों, दोनों में से किसी को नहीं मालूम। न पंडिज्जी को और न यजमान को।

वस्तुतः, ये देवता या ग्रह हमारे मांगलिक कार्योंमें मेहमान की तरह आमंत्रित किए जाते है और जैसे आयोजन संपन्न होने के बाद मेहमानों को आदरपूर्वक विदा किया जाता है वैसे ही इन सभी देवताओं को भी विसर्जित कर दिया जाता है। इनको अपने घर में प्रवेश कराने के पूर्व इनके हाथों में सुगंधित जल का पात्र अर्घ्य के रूप में दिया जाता है। यह उनका स्वागत ही है। उन्हें पाद्य दिया जाता है अर्थात पैर धोने के लिए साफ जल दिया जाता है।

माना जाता है कि देवता अपने लोक से हमारे घर तक लंबा सफ़र तय करके आए हैं। इनके चरणों में मार्ग की गंदगी लग गई होगी। अतः, अच्छा यही रहेगा कि ये पैर धोने के बाद हमारे घर में प्रवेश करें। हम स्वयं उन के चरण धोते हैं और खुद को भलीभाँति संतुष्ट करते हैं। आज के समय में घर का व्यक्ति भी बाहर से यदि आए तो उसे द्वार पर ही सैनीटाइज कराया जाता है, बाहर वाले को तो अवश्य ही। पाद्य अर्पित करने के मूल में यही भावना कार्य करती है कि बाहर से हमारे घर में किसी प्रकार का संक्रमण या गंदगी प्रवेश न करे। कभी हर बाहर से आने वाले अतिथि के साथ यही क्रिया दोहरायी जाती रही। आज द्वार पर यह क्रिया भले ही नहीं होती पर दूर का सफर तय करके कोई मेहमान घर आता है तो उसे भोजन पूछने से पूर्व उसके नहाने-धोने और तरोताज़ा होने की व्यवस्था की जाती है। गाँवों में बाहर नल पर या कुएँ पर यह व्यवस्था किए जाने का चलन था। मतलब यह, कि आगन्तुक कोई आगन्तुज व्याधि, संक्रामक व्याधि लेकर हमारे घर में प्रवेश न करे, हम भी सुरक्षित रहें और मेहमान भी तरोताज़ा व प्रसन्न रहे। इस प्रक्रिया के पहले या बाद में सुगंधित द्रव्यों से युक्त जल अर्घ्य के रूप में दिया जाता था। यदि कोई अतिथि बनकर किसी के द्वार जाए और गृहस्वामी द्वारा उसे अर्घ्य न अर्पित किया जाय तो यह अतिथि का अपमान माना जाता था। आचमन मुख्य रूप से कुल्ला कराने और थोडी मात्रा में पीने के लिए दिए जाने वाला जल था। आज के समय में आप अपने दूरस्थ स्थान से आए हुए अतिथि का स्वागत ऐसे ही करेंगे--उसके फ्रेश होने और नहाने की व्यवस्था करेंगे। पीने के लिए शुद्ध और अच्छा जल देंगे और यदि अतिथि अपने वस्त्र बदलने के लिए नहीं लाया है तो उसे तौलिया या वस्त्र भी उपलब्ध कराएंगे। यही क्रिया पंडितजी जाने-अनजाने में आमंत्रित देवताओं के लिए आपसे कराते हैं।

वचन सम्बन्धित विसंगतियाँ

 चिड़िया : एकवचन-बहुवचन

-------------------------------------------
जैसे 'महिला' का बहुवचन 'महिलें' नहीं बनता
ऐसे ही 'चिड़िया' का बहुवचन 'चिडियें' नहीं बनता
ये क्रमशः 'महिलाएँ' और 'चिड़ियाएँ' बनेंगे--
सहज उदाहरण से समझाया उस कवि ने
जिसका भाषा और व्याकरण पर उतना ही अधिकार था,
जितने अधिकार से उसकी कविता में मौज़ूद थी संवेदना

बहुवचन रचने के लिए
इकाई की निजता और अस्मिता का संक्षेपण
किंतना बर्बर और अमानवीय है,
यह सोच जितनी जड़ व्याकरण में थी,
अब गतिमान मनुष्यों की हरकतों में तो नहीं बची
'महिला' में शायद महिला होने का घनत्व
आकारांत संज्ञा के अस्तिव के लहराते पल्लू से भी
कुछ अधिक ही रहा होगा कि
वह न 'महिलें' बनी और न 'महिलों'
अपितु 'बहुवचन' होने के सभी उपक्रमों में
बचा ले गई अपना नाम-गोत्र
बावज़ूद कि जितने परिवर्तन
उसने परवर्ती जीवन में किए अंगीभूत,
उतने कम-से-कम चिड़िया ने तो कभी नहीं

बहुवचन होने का वृहदाकार लालच रचते हुए
भाषाशास्त्रियों ने यों लगातार फेंका प्रलोभन
एक अतिरिक्त व्यंजन या एक अतिरिक्त स्वर का
विरूपण करने की शास्त्रीय ज़िद में
और 'लेडी' को 'वाई' के बदले
'एस' के साथ मिले 'आई' और 'ई' भी
'ख़ातून' को 'ख़वातीन' बनने के क्रम में
'वा' का वृंहण मिला
और 'ऊकार' के लोपन के एवज़ में 'ईकार' का अन्तर्गोपन

'महिला' के समक्ष
लगता है कि 'स्त्री' और 'लड़की' कमज़ोर साबित हुईं
और बहुवचन होने के क्षण दीर्घ का लघु होना
बिसूरती रहीं

आज भी मेरी कविता 'चिड़ियों' को चावल डालती है
और 'चिड़ियों के शोर की झाँझर झनकार कर' जैसे
सांगीतिक ज़िक्रों से बिना अपराधबोध के है लबरेज़
जो अपने अस्तित्व के लिए
चावलों-सी बिखरती अहैतुकी और धौली कृपा की
है मोहताज़
कुछ तो दंड भुगतेगी ही बहुवचन होने का
भले ही झाँझर-सी घुले कान में उसकी आवाज़,
पर प्रत्यक्षतः करे शोर करने की धृष्टता,
मेरा अधिकार बनता है कि कविता में जगह देते हुए भी
करूँ उसका संज्ञा-विरूपण

इतनी फुर्तीली है चिड़िया
कि उसे अन्यथा दंडित करने के मेरे पास नहीं हैं
दूसरे विकल्प
मेरे छांदसिक दुराग्रह
'चिड़ियाओं' को 'चिड़ियों' होने देते हैं
काव्य-मर्यादा का पाठ पढ़ाते हुए
ये मर्यादाएँ किसी देशज शब्द की ऐसी-तैसी होने देती हैं
पर छूने की हिम्मत नहीं करतीं साधारणतः
किसी तत्सम तो क्या,तद्भव शब्द को भी

चिड़िया जीमती है मेरी कविता-पंक्ति में थोड़ा-सा सम्मान
और चीन्ह ली जाती है
पंडितों की पाँत में घुस आए अन्त्यज की तरह

चिड़िया भरती है कविता में निसर्ग का रूप
चिड़िया भरती है कविता में निसर्ग का स्वर
अनपढ़ चिड़िया ने कदाचित् बुद्धिमत्तापूर्वक
नहीं बनाई चहचहाहट की स्वरलिपि की कोई कॉपी
और मनुष्य की शास्त्रकामिता के
मारक शस्त्र से बच निकली कुशलतापूर्वक
निसर्ग-प्रेम में खिसियाया हुआ मनुष्य
कह उठा उस स्वरलिपि को सुनकर--
'अच्छा है...अच्छा है...अति सुंदर....'
दबे स्वर में बुदबुदाया--'शोर है लेकिन'

चिड़िया ने नहीं सुनी 'नरो वा कुंजरो वा' की भाँति
कही गई यह अंतिम पंक्ति
क्योंकि उसकी सारी उद्यमिता लगी थी
उस ऊर्ध्वलोक की ओर
जो केवल चिड़िया का था निसर्गतः
पर संकर बीज की तरह वपित हुआ
मनुष्य की चेतना में

मनुष्य ने खेली थोड़ी-सी चालाकी
चिड़िया को बचाखुचा अन्न या क्षुद्रान्न डालकर
तो चिड़िया ने भी खेली थोड़ी-सी मासूमियत
जो उसकी थी नैसर्गिक कला,
उसे कृत्रिम आकांक्षा की तरह रख दिया
मनुष्य के स्वप्न की तिजोरी में

बार-बार चिड़िया पढ़ा रही थी
मनुष्य को दोनों पक्षों को पूरी एकाग्रता से एक समान साधने का पाठ

मनुष्य की उड्डयन-आकांक्षा के लिए
क्योंकि सहज नहीं था चिड़िया को गुरु मानना,
सो उसकी सज्ञ मनुष्यता
बार-बार लेती रही पक्षधरता के बौद्धिक आलाप
चिड़िया बेचारी क्या जाने
कि पक्षधरता किस चिड़िया का नाम है
जानती है तो बस इतना
कि वह धरती है दोनों पक्षों को समान बलपूर्वक
उन्हें हवा के विरुद्ध जाने के समान अवसर देती हुई
यों चिड़िया इतनी चालाक नहीं थी कि सोचती
कि वह 'पयोधरा' होती तो
समान भार से व्यग्रतापूर्वक झुकते उसके दोनों स्तन
उसे मनोहरांगी या गॉर्जियस बनाते और इसका वह विविध लौकिक लाभों के लिए करती भरपूर उपयोग

चिड़िया ऊहापोह की गठरी को सिर पर लादती
तो डोलते रहते उसके दोनों पंख
विनत भी होना और उठते हुए भी दीखना--
चिड़िया के जीवनदर्शन में नहीं है यह दोहरापन

चिड़िया हवा या आकाश या जमीन को
मापने और अपने अधिकार में लेने का इंचटेप
पंजों में उलझाए हुए नहीं उड़ती
सो,उड़ते हुए रहती है हर निसर्ग-विरुद्ध पाखंड से
उपरत और हल्की
चिड़िया नाप लेती है उन लोकों को
जहाँ तक हमारी दृष्टि भी नहीं जाती,
न ही कल्पना

चिड़िया भले ही डाल दे
मनुष्य के सिर पर अपनी बीट
पर भाषाशास्त्रियों के भाषायी खटकर्म के आगे
उसकी दाल नहीं गलती 

आलेख के लिये सादर आभार  आद.  पंकज परिमल जी

पितृपक्ष

आइए, कुछ शब्दों के सही अर्थ जानें।
कनागत
------------------
प्रायः पितृपक्ष या श्राद्ध के पन्द्रह दिनों को कनागत कहते हैं। वास्तव में तो नवरात्र भी कनागत ही होते हैं। कनागत का शुद्ध रूप है--'कन्यागत'। अर्थात् जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश कर चुका होता है, वह है कन्यार्क मास। योग्य पंडित संकल्प छुड़वाते समय यह उल्लेख करते हैं कि सूर्य किस राशि में इस समय है। जिस दिन सूर्य उस राशि में प्रवेश करता है, वह संक्रांति पर्व कहलाता है। जिन तीस दिनों के चन्द्रमास में सूर्य राशि नहीं बदलता, वह दूषित मान लिया जाता है। इसे ही मल मास कहते हैं। यह मास मांगलिक कार्यों के लिए वर्जित माना गया। पर मनुष्यों के मन में इस मास को लेकर नकारात्मक भाव न उत्पन्न हों, इसे बचाने के लिए इसे पुरुषोत्तम मास कहकर आदर दिया गया और इस माह को ईश्वर को समर्पित कर दिया गया। यदि सकाम भाव को त्यागकर इस माह में ईश्वर प्रणिधान किया जाय तो यह उत्तम माना गया है। कहने का कुल मिलाकर अर्थ यह है कि अगर अपने कामों के लिए समय दूषित माना गया तो मनुष्य को सभी लौकिक कामों का त्याग तो नहीं कर देना चाहिए। बल्कि इस समय को आत्मिक कल्याण और उन्नति के निमित्त ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए। लोकोपकार भी इसका एक मार्ग है।

आलेख के लिये सादर अभार आदरणीय परिमल जी का 

छन्द-4 रोला छन्द

                                                                          रोला छंद विधान

रोला-छन्द- इस छंद में पद (पंक्ति) की संख्या - 4,चरण की संख्या - यति - 11, 13 मात्राओं पर  तुकांत - प्रत्येक दो पद परस्पर तुकांत होने चाहिए।

विषम चरण - प्रत्येक पद का प्रारंभ जिस पद से होता है उसे विषम चरण कहते हैं। चूँकि रोला में 4 पद होते हैं तो स्वाभाविक है कि विषम चरणों की संख्या भी 4 ही होगी।

विषम चरण में 11 मात्राएँ होती हैं और अंत गुरु, लघु से होता है।

विषम चरण की मधुर लय के लिए मात्राबाँट -

यदि चरण की शुरुवात सम मात्रा वाले शब्द से हो तो मात्राबाँट इस प्रकार से होगी - 4, 4, 3
यहाँ 4 मात्रा में चार लघु या दो गुरु हो सकते हैं।
किन्तु अंतिम 3 मात्रा वाला शब्द गुरु, लघु की मात्रा वाला हो।

यदि चरण की शुरुवात विषम मात्रा वाले शब्द से हो तो मात्राबाँट इस प्रकार से होगी - 3, 3, 2, 3
यहाँ शुरू के दोनों 3 का अर्थ (1, 1, 1) या (2, 1) या (1, 2) से है किंतु अंतिम 3 मात्रा वाला शब्द गुरु, लघु की मात्रा वाला हो।
यहाँ 2 का अर्थ एक गुरु या दो लघु से है।

सम चरण की मात्राबाँट 3, 2, 4, 4 होनी चाहिए।

सम चरण की शुरुवात त्रिकल शब्द (3 मात्रा वाले शब्द) से होनी चाहिए। यहाँ त्रिकल का अर्थ (1, 1, 1) या (2, 1) या (1, 2) से है। 
यहाँ 2 का अर्थ द्विकल से है। अंत में 4 का अर्थ चौकल से है। यह चौकल (1111) या (22) या (211) या (112) हो सकता है।

उपरोक्त मात्राबाँट में 4 अर्थ चौकल कभी भी जगण नहीं होना चाहिए अर्थात (121) मात्रा वाला शब्द नहीं होना चाहिए।

जिस प्रकार दोहा में दो पद होते हैं और विषय वस्तु एक ही होती है एक दोहा अपने आप में पूर्ण होता है। उसी प्रकार से रोला में चार पद होते हैं और विषय वस्तु भी एक ही होती है। एक रोला भी अपने आप में पूर्ण होता है।

तुकांत का अभिप्राय पद के अंतिम शब्द के उच्चारण की समानता से होता है। एक श्रेष्ठ रोला में प्रत्येक दो पदों में तुकांतता होती है प्रथम पद, द्वितीय पद की तुकांतता तृतीय पद और चतुर्थ पद की तुकांतता से भिन्नता लिए हो तभी रोला की मधुरता श्रेष्ठ कही जाती है। यदि चारों पदों को आपस में तुकांत रखा जाय तो रसानंद में कमी जाती है।

कुछ कवि तुकांतता के स्थान पर समान्तता भी रखते हैं किंतु ऐसे प्रयोगों में भी रसानंद की कमी परिलक्षित होती है।

उदाहरण - रोला छंद

रोला छंद विधान-

-----------------------------------------------------

लिख दो मन के भाव ,  यहाँ सब जोड़-तोड़ कर।

ग्यारह    तेरह   अंक , गिनो सब तोल-मोल कर।

दिया नहीं जो  ध्यान , पड़े  फसलों  पर   ओला ।

मन में रखें विधान  ,  लिखें   तब  छंदस  रोला।।०१।।

                                        -आचार्य प्रताप 

 

प्रस्तुत रोला छन्द में ऊपर बताए गए नियमों की जाँच कीजिये। मैं मात्राबाँट बता रहा हूँ -

 (लिख दो) (मन के) (भाव) ,  (यहाँ) (सब) (जोड़-तोड़ कर)
4 4 3, 3 2 4 4
(
ग्यार) (    ते) (रह) (अंक) , (गिनो) (सब) (तोल-मोल कर।)
3 3 2 3, 3 2 4 4
(
दिया ) (हीं जो)  (ध्यान) , (पड़े) (फस) (लों  पर) (ओला)
4 4 3, 3 2 4 4
(
मन में) (रखें वि) (धान ) ,  (लिखें) (तब)  (छंदस)  (रोला)
4 4 3, 3 2 4 4

उदाहरण पर यदि गौर करेंगे तो पाएंगे कि चारों सम चरणों की मात्राबाँट एक सरीखी है। विषम चरण क्रमांक 1, 3 और 4 कि शुरुवात सम शब्द (चौकल) से हुई है तो मात्राबाँट 4, 4, 3 है। विषम चरण की शुरुवात विषम मात्रा वाले शब्द से हुई है तो मात्राबाँट 3, 3, 2, 3 है।

प्रत्येक पद में 11, 13 पर यति है।

प्रत्येक दो पद परस्पर तुकांत हैं।

चारों पद की विषय वस्तु एक ही है। 
तुकांत वाले शब्द पद के अंत में ही आये हैं।

रोला छन्द के विधान के बारे में इतने विस्तार से आपको कहीं जानकारी नहीं मिलेगी।

आचार्य प्रताप