इसे बनाने का उद्देश्य यह है कि मेरे पाठक मित्र तथा सभी चाहने वाले मुझसे जुड़े रहें और मेरी कविताएँ छंदों के अनुशासन , मेरे अपने विचार, मैं अपने पाठकों तक पहुँचा सकूँ। मेरे द्वारा लिखी गई टिप्पणियाँ, पुस्तकों के बारे में , उनकी समीक्षाएँ , आलोचनाएँ ,समालोचनाएँ तथा छंदों के अनुशासन , मेरे अपने शोध तथा विशेष तौर पर हिंदी भाषा के प्रचार - प्रसार में मेरे द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन मैं इसके माध्यम से अपने मित्रो तक पहुँँचा सकूँ।
शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020
करवा चौथ
सोमवार, 26 अक्टूबर 2020
काल दो प्रकार
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2020
अल्ला और अल्लाह।
12अक्टूबर से 18अक्टूबर तक का अंक
गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020
विशेष सूचना
मंगलवार, 20 अक्टूबर 2020
कवि मित्रों की रचनाएँ ५ अक्टूबर से ११ अक्टूबर तक हिंदी साहित्य अक्षरवाणी काव्य मञ्जरी में प्रकाशित रचकार
कवि मित्रों की रचनाएँ २८ सितंबर- ४अक्टूबर तक हिंदी साहित्य अक्षरवाणी काव्य मञ्जरी में प्रकाशित रचकार
कवि मित्रों की रचनाएँ २१ सितंबर- २७ सितंबर तक हिंदी साहित्य अक्षरवाणी काव्य मञ्जरी में प्रकाशित रचकार
नवगीत
प्रिये!हमारी आप इतना रुष्ठ क्यों होने लगी हो?
हाय ! तेरी याद में क्यों,
पट हृदय के आज धड़के।
प्रियतमा में प्राण अटके,
गीत से तब भाव भटके।
यूँ न जाने आज कल क्यों ,बन न पाती भूमिका भी।
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.....
ईश वंदन हेतु जब भी
चक्षु खोलूँ मैं हृदय।
चीरता जो भी तिमिर को ,
हो सदा उसका उदय।
पुष्प पल्लव धूप लेकर , लूँ शृंगारिक पेटिका भी।
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.........
स्वरात्मिका तू सूत्रिका भी,
तू ही मेरी हंसिका भी।
आह! में भी वाह! में भी,
तू ही है स्पंदिका भी ।
परिधि मेरी त्रिज्या भी हो, व्यास तू ही केंद्रिका भी
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.........
दुमदार दोहे
गीत- न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है
गीत
तीन सही पहचान
हिन्दी साहित्यिक पत्र पत्रिकाएँ
सोमवार, 19 अक्टूबर 2020
बघेली बाले दुइ टूक
बघेली बाले दुइ टूक
-----------------------
एकव साथी ना रहा , परी मुसीबत पास।
जियब त दुर्लभ होइगा , टूटिगा जब विसुआस।।०१।।
-----
आमय बाला कउन हय , द्-येखा अब त्यवहार।
मूडे़ परी गृहस्ती जउँ, कउन लगायी पार।।०२।।
---
बरन-बरन के बिधि करयँ , तबव रहय लाचार।
यक दिन मलकिन कहि दिहिन, चाही हमका हार।
हार कहाँ से लमय भइया , पहुँच्यैं तबय बजार-
मूडे़ परी गृहस्ती जउँ , कउन लगायी पार।।
-आचार्य प्रताप
साँवली सूरत
गीताँश
केश तेरे देख श्यामल , मैं उन्हीं पर खो गया।
साँवली सूरत पे कविते, मैं दीवाना हो गया।
-आचार्य प्रताप
बलिया की कलंक-कथा
पाठशाला
रविवार, 18 अक्टूबर 2020
नवरात्र विशेष
अर्घ्य, पाद्य, आचमन और आधुनिक समय
।। अर्घ्य, पाद्य, आचमन और आधुनिक समय।।
---------------------------------------------------------------
पंडित जी जब आपके घर पूजा कराने के लिए आते हैं तो वे बारी-बारी से
विभिन्न देवताओं और ग्रहों का आह्वान मंत्रों द्वारा करते हैं और आचमनी में
जल लेकर जल्दी-जल्दी अर्घ्य, पाद्य और आचमन इन देवताओं को अर्पित कराते
हैं। पंडिज्जी यंत्रवत मंत्र पढ़ते चलते हैं और यजमान यंत्रवत जल गिराता
चलता है। क्यों, दोनों में से किसी को नहीं मालूम। न पंडिज्जी को और न
यजमान को।
वस्तुतः, ये देवता या ग्रह हमारे मांगलिक कार्योंमें मेहमान की तरह आमंत्रित किए जाते है और जैसे आयोजन संपन्न होने के बाद मेहमानों को आदरपूर्वक विदा किया जाता है वैसे ही इन सभी देवताओं को भी विसर्जित कर दिया जाता है। इनको अपने घर में प्रवेश कराने के पूर्व इनके हाथों में सुगंधित जल का पात्र अर्घ्य के रूप में दिया जाता है। यह उनका स्वागत ही है। उन्हें पाद्य दिया जाता है अर्थात पैर धोने के लिए साफ जल दिया जाता है।
माना जाता है कि देवता अपने लोक से हमारे घर तक लंबा सफ़र तय करके आए हैं। इनके चरणों में मार्ग की गंदगी लग गई होगी। अतः, अच्छा यही रहेगा कि ये पैर धोने के बाद हमारे घर में प्रवेश करें। हम स्वयं उन के चरण धोते हैं और खुद को भलीभाँति संतुष्ट करते हैं। आज के समय में घर का व्यक्ति भी बाहर से यदि आए तो उसे द्वार पर ही सैनीटाइज कराया जाता है, बाहर वाले को तो अवश्य ही। पाद्य अर्पित करने के मूल में यही भावना कार्य करती है कि बाहर से हमारे घर में किसी प्रकार का संक्रमण या गंदगी प्रवेश न करे। कभी हर बाहर से आने वाले अतिथि के साथ यही क्रिया दोहरायी जाती रही। आज द्वार पर यह क्रिया भले ही नहीं होती पर दूर का सफर तय करके कोई मेहमान घर आता है तो उसे भोजन पूछने से पूर्व उसके नहाने-धोने और तरोताज़ा होने की व्यवस्था की जाती है। गाँवों में बाहर नल पर या कुएँ पर यह व्यवस्था किए जाने का चलन था। मतलब यह, कि आगन्तुक कोई आगन्तुज व्याधि, संक्रामक व्याधि लेकर हमारे घर में प्रवेश न करे, हम भी सुरक्षित रहें और मेहमान भी तरोताज़ा व प्रसन्न रहे। इस प्रक्रिया के पहले या बाद में सुगंधित द्रव्यों से युक्त जल अर्घ्य के रूप में दिया जाता था। यदि कोई अतिथि बनकर किसी के द्वार जाए और गृहस्वामी द्वारा उसे अर्घ्य न अर्पित किया जाय तो यह अतिथि का अपमान माना जाता था। आचमन मुख्य रूप से कुल्ला कराने और थोडी मात्रा में पीने के लिए दिए जाने वाला जल था। आज के समय में आप अपने दूरस्थ स्थान से आए हुए अतिथि का स्वागत ऐसे ही करेंगे--उसके फ्रेश होने और नहाने की व्यवस्था करेंगे। पीने के लिए शुद्ध और अच्छा जल देंगे और यदि अतिथि अपने वस्त्र बदलने के लिए नहीं लाया है तो उसे तौलिया या वस्त्र भी उपलब्ध कराएंगे। यही क्रिया पंडितजी जाने-अनजाने में आमंत्रित देवताओं के लिए आपसे कराते हैं।
वचन सम्बन्धित विसंगतियाँ
चिड़िया : एकवचन-बहुवचन
-------------------------------------------
जैसे 'महिला' का बहुवचन 'महिलें' नहीं बनता
ऐसे ही 'चिड़िया' का बहुवचन 'चिडियें' नहीं बनता
ये क्रमशः 'महिलाएँ' और 'चिड़ियाएँ' बनेंगे--
सहज उदाहरण से समझाया उस कवि ने
जिसका भाषा और व्याकरण पर उतना ही अधिकार था,
जितने अधिकार से उसकी कविता में मौज़ूद थी संवेदना
बहुवचन रचने के लिए
इकाई की निजता और अस्मिता का संक्षेपण
किंतना बर्बर और अमानवीय है,
यह सोच जितनी जड़ व्याकरण में थी,
अब गतिमान मनुष्यों की हरकतों में तो नहीं बची
'महिला' में शायद महिला होने का घनत्व
आकारांत संज्ञा के अस्तिव के लहराते पल्लू से भी
कुछ अधिक ही रहा होगा कि
वह न 'महिलें' बनी और न 'महिलों'
अपितु 'बहुवचन' होने के सभी उपक्रमों में
बचा ले गई अपना नाम-गोत्र
बावज़ूद कि जितने परिवर्तन
उसने परवर्ती जीवन में किए अंगीभूत,
उतने कम-से-कम चिड़िया ने तो कभी नहीं
बहुवचन होने का वृहदाकार लालच रचते हुए
भाषाशास्त्रियों ने यों लगातार फेंका प्रलोभन
एक अतिरिक्त व्यंजन या एक अतिरिक्त स्वर का
विरूपण करने की शास्त्रीय ज़िद में
और 'लेडी' को 'वाई' के बदले
'एस' के साथ मिले 'आई' और 'ई' भी
'ख़ातून' को 'ख़वातीन' बनने के क्रम में
'वा' का वृंहण मिला
और 'ऊकार' के लोपन के एवज़ में 'ईकार' का अन्तर्गोपन
'महिला' के समक्ष
लगता है कि 'स्त्री' और 'लड़की' कमज़ोर साबित हुईं
और बहुवचन होने के क्षण दीर्घ का लघु होना
बिसूरती रहीं
आज भी मेरी कविता 'चिड़ियों' को चावल डालती है
और 'चिड़ियों के शोर की झाँझर झनकार कर' जैसे
सांगीतिक ज़िक्रों से बिना अपराधबोध के है लबरेज़
जो अपने अस्तित्व के लिए
चावलों-सी बिखरती अहैतुकी और धौली कृपा की
है मोहताज़
कुछ तो दंड भुगतेगी ही बहुवचन होने का
भले ही झाँझर-सी घुले कान में उसकी आवाज़,
पर प्रत्यक्षतः करे शोर करने की धृष्टता,
मेरा अधिकार बनता है कि कविता में जगह देते हुए भी
करूँ उसका संज्ञा-विरूपण
इतनी फुर्तीली है चिड़िया
कि उसे अन्यथा दंडित करने के मेरे पास नहीं हैं
दूसरे विकल्प
मेरे छांदसिक दुराग्रह
'चिड़ियाओं' को 'चिड़ियों' होने देते हैं
काव्य-मर्यादा का पाठ पढ़ाते हुए
ये मर्यादाएँ किसी देशज शब्द की ऐसी-तैसी होने देती हैं
पर छूने की हिम्मत नहीं करतीं साधारणतः
किसी तत्सम तो क्या,तद्भव शब्द को भी
चिड़िया जीमती है मेरी कविता-पंक्ति में थोड़ा-सा सम्मान
और चीन्ह ली जाती है
पंडितों की पाँत में घुस आए अन्त्यज की तरह
चिड़िया भरती है कविता में निसर्ग का रूप
चिड़िया भरती है कविता में निसर्ग का स्वर
अनपढ़ चिड़िया ने कदाचित् बुद्धिमत्तापूर्वक
नहीं बनाई चहचहाहट की स्वरलिपि की कोई कॉपी
और मनुष्य की शास्त्रकामिता के
मारक शस्त्र से बच निकली कुशलतापूर्वक
निसर्ग-प्रेम में खिसियाया हुआ मनुष्य
कह उठा उस स्वरलिपि को सुनकर--
'अच्छा है...अच्छा है...अति सुंदर....'
दबे स्वर में बुदबुदाया--'शोर है लेकिन'
चिड़िया ने नहीं सुनी 'नरो वा कुंजरो वा' की भाँति
कही गई यह अंतिम पंक्ति
क्योंकि उसकी सारी उद्यमिता लगी थी
उस ऊर्ध्वलोक की ओर
जो केवल चिड़िया का था निसर्गतः
पर संकर बीज की तरह वपित हुआ
मनुष्य की चेतना में
मनुष्य ने खेली थोड़ी-सी चालाकी
चिड़िया को बचाखुचा अन्न या क्षुद्रान्न डालकर
तो चिड़िया ने भी खेली थोड़ी-सी मासूमियत
जो उसकी थी नैसर्गिक कला,
उसे कृत्रिम आकांक्षा की तरह रख दिया
मनुष्य के स्वप्न की तिजोरी में
बार-बार चिड़िया पढ़ा रही थी
मनुष्य को दोनों पक्षों को पूरी एकाग्रता से एक समान साधने का पाठ
मनुष्य की उड्डयन-आकांक्षा के लिए
क्योंकि सहज नहीं था चिड़िया को गुरु मानना,
सो उसकी सज्ञ मनुष्यता
बार-बार लेती रही पक्षधरता के बौद्धिक आलाप
चिड़िया बेचारी क्या जाने
कि पक्षधरता किस चिड़िया का नाम है
जानती है तो बस इतना
कि वह धरती है दोनों पक्षों को समान बलपूर्वक
उन्हें हवा के विरुद्ध जाने के समान अवसर देती हुई
यों चिड़िया इतनी चालाक नहीं थी कि सोचती
कि वह 'पयोधरा' होती तो
समान भार से व्यग्रतापूर्वक झुकते उसके दोनों स्तन
उसे मनोहरांगी या गॉर्जियस बनाते और इसका वह विविध लौकिक लाभों के लिए करती भरपूर उपयोग
चिड़िया ऊहापोह की गठरी को सिर पर लादती
तो डोलते रहते उसके दोनों पंख
विनत भी होना और उठते हुए भी दीखना--
चिड़िया के जीवनदर्शन में नहीं है यह दोहरापन
चिड़िया हवा या आकाश या जमीन को
मापने और अपने अधिकार में लेने का इंचटेप
पंजों में उलझाए हुए नहीं उड़ती
सो,उड़ते हुए रहती है हर निसर्ग-विरुद्ध पाखंड से
उपरत और हल्की
चिड़िया नाप लेती है उन लोकों को
जहाँ तक हमारी दृष्टि भी नहीं जाती,
न ही कल्पना
चिड़िया भले ही डाल दे
मनुष्य के सिर पर अपनी बीट
पर भाषाशास्त्रियों के भाषायी खटकर्म के आगे
उसकी दाल नहीं गलती
आलेख के लिये सादर आभार आद. पंकज परिमल जी
पितृपक्ष
आइए, कुछ शब्दों के सही अर्थ जानें।
कनागत
------------------
प्रायः पितृपक्ष या श्राद्ध के पन्द्रह दिनों को कनागत कहते हैं। वास्तव
में तो नवरात्र भी कनागत ही होते हैं। कनागत का शुद्ध रूप है--'कन्यागत'।
अर्थात् जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश कर चुका होता है, वह है कन्यार्क
मास। योग्य पंडित संकल्प छुड़वाते समय यह उल्लेख करते हैं कि सूर्य किस राशि
में इस समय है। जिस दिन सूर्य उस राशि में प्रवेश करता है, वह संक्रांति
पर्व कहलाता है। जिन तीस दिनों के चन्द्रमास में सूर्य राशि नहीं
बदलता, वह दूषित मान लिया जाता है। इसे ही मल मास कहते हैं। यह मास
मांगलिक कार्यों के लिए वर्जित माना गया। पर मनुष्यों के मन में इस मास को
लेकर नकारात्मक भाव न उत्पन्न हों, इसे बचाने के लिए इसे पुरुषोत्तम मास
कहकर आदर दिया गया और इस माह को ईश्वर को समर्पित कर दिया गया। यदि सकाम
भाव को त्यागकर इस माह में ईश्वर प्रणिधान किया जाय तो यह उत्तम माना गया
है। कहने का कुल मिलाकर अर्थ यह है कि अगर अपने कामों के लिए समय दूषित
माना गया तो मनुष्य को सभी लौकिक कामों का त्याग तो नहीं कर देना चाहिए।
बल्कि इस समय को आत्मिक कल्याण और उन्नति के निमित्त ईश्वर को समर्पित कर
देना चाहिए। लोकोपकार भी इसका एक मार्ग है।
आलेख के लिये सादर अभार आदरणीय परिमल जी का
छन्द-4 रोला छन्द
रोला छंद विधान
रोला-
विषम चरण - प्रत्येक पद का प्रारंभ जिस पद से होता है उसे विषम चरण कहते हैं। चूँकि रोला में 4 पद होते हैं तो स्वाभाविक है कि विषम चरणों की संख्या भी 4 ही होगी।
विषम चरण में 11 मात्राएँ होती हैं और अंत गुरु, लघु से होता है।
विषम चरण की मधुर लय के लिए मात्राबाँट -
यदि चरण की शुरुवात सम मात्रा वाले शब्द से हो तो मात्राबाँट इस प्रकार से होगी - 4, 4, 3
यहाँ 4 मात्रा में चार लघु या दो गुरु हो सकते हैं।
किन्तु अंतिम 3 मात्रा वाला शब्द गुरु, लघु की मात्रा वाला हो।
यदि चरण की शुरुवात विषम मात्रा वाले शब्द से हो तो मात्राबाँट इस प्रकार से होगी - 3, 3, 2, 3
यहाँ शुरू के दोनों 3 का अर्थ (1, 1, 1) या (2, 1) या (1, 2) से है किंतु अंतिम 3 मात्रा वाला शब्द गुरु, लघु की मात्रा वाला हो।
यहाँ 2 का अर्थ एक गुरु या दो लघु से है।
सम चरण की मात्राबाँट 3, 2, 4, 4 होनी चाहिए।
सम चरण की शुरुवात त्रिकल शब्द (3 मात्रा वाले शब्द) से होनी चाहिए। यहाँ त्रिकल का अर्थ (1, 1, 1) या (2, 1) या (1, 2) से है।
यहाँ 2 का अर्थ द्विकल से है। अंत में 4 का अर्थ चौकल से है। यह चौकल (1111) या (22) या (211) या (112) हो सकता है।
उपरोक्त मात्राबाँट में 4 अर्थ चौकल कभी भी जगण नहीं होना चाहिए अर्थात (121) मात्रा वाला शब्द नहीं होना चाहिए।
जिस प्रकार दोहा में दो पद होते हैं और विषय वस्तु एक ही होती है । एक दोहा अपने आप में पूर्ण होता है। उसी प्रकार से रोला में चार पद होते हैं और विषय वस्तु भी एक ही होती है। एक रोला भी अपने आप में पूर्ण होता है।
तुकांत का अभिप्राय पद के अंतिम शब्द के उच्चारण की समानता से होता है। एक श्रेष्ठ रोला में प्रत्येक दो पदों में तुकांतता होती है । प्रथम पद, द्वितीय पद की तुकांतता तृतीय पद और चतुर्थ पद की तुकांतता से भिन्नता लिए हो तभी रोला की मधुरता श्रेष्ठ कही जाती है। यदि चारों पदों को आपस में तुकांत रखा जाय तो रसानंद में कमी आ जाती है।
कुछ कवि तुकांतता के स्थान पर समान्तता भी रखते हैं किंतु ऐसे प्रयोगों में भी रसानंद की कमी परिलक्षित होती है।
उदाहरण -
रोला छंद
रोला छंद विधान-
-----------------------------------------------------
लिख दो मन के
भाव , यहाँ सब
जोड़-तोड़ कर।
ग्यारह तेरह
अंक , गिनो सब तोल-मोल कर।
दिया नहीं
जो ध्यान , पड़े फसलों पर
ओला ।
मन में रखें
विधान , लिखें तब
छंदस रोला।।०१।।
-आचार्य प्रताप
प्रस्तुत रोला छन्द में ऊपर बताए गए नियमों की जाँच कीजिये। मैं मात्राबाँट बता रहा हूँ -
(लिख दो) (मन के) (भाव) , (यहाँ) (सब) (जोड़-तोड़ कर)।
4 4 3, 3 2 4 4
(ग्यार) (ह
ते) (रह) (अंक) , (गिनो) (सब) (तोल-मोल कर।)
3 3 2 3, 3 2 4 4
(दिया न) (हीं जो) (ध्यान) , (पड़े) (फस) (लों पर) (ओला)
4 4 3, 3 2 4 4
(मन में) (रखें वि) (धान ) , (लिखें) (तब) (छंदस) (रोला)
4 4 3, 3 2 4 4
उदाहरण पर यदि गौर करेंगे तो पाएंगे कि चारों सम चरणों की मात्राबाँट एक सरीखी है। विषम चरण क्रमांक 1, 3 और 4 कि शुरुवात सम शब्द (चौकल) से हुई है तो मात्राबाँट 4, 4, 3 है। विषम चरण की शुरुवात विषम मात्रा वाले शब्द से हुई है तो मात्राबाँट 3, 3, 2, 3 है।
प्रत्येक
पद में 11, 13 पर यति है।
प्रत्येक
दो पद परस्पर तुकांत हैं।
चारों पद की विषय वस्तु एक ही है।
तुकांत वाले शब्द पद के अंत में ही आये हैं।
रोला छन्द के विधान के बारे में इतने विस्तार से आपको कहीं जानकारी नहीं मिलेगी।