गीत:: हर नारी देवी लगती है
पावन दृष्टि से देखोगे तो , हर नारी देवी लगती है।
मन की कालिख धो डालो तो, राह सभी रोशन लगती है॥
जग की हर इक नारी में तो
ममता माँ की समाई है,
बेटी बहना पत्नी बनकर
घर आँगन भरती आई है,
श्रद्धा से जब-जब देखा तो
हर नारी देवी लगती है॥
शक्ति स्वरूपा दुर्गा-सी वो
करुणा में है राधा जैसी,
त्याग तपस्या सीता-सी है
कर्म योग में गीता जैसी,
आन-मान-सम्मान से देखो
हर नारी देवी लगती है।।
जीवन के हर कठिन समय पर
साथी बनकर चलती आई,
कभी प्रेरणा बनकर जगती
कभी शक्ति बन ढलती आई,
आदर से जब-जब देखो तो
हर नारी देवी लगती है।।
मन के मैल को धो डालो
आँखों से पर्दा हट जाए,
फिर देखोगे इस धरती पर
कैसी ज्योति छटा भर जाए,
पावन दृष्टि से देखो तो
हर नारी देवी लगती है।।
गणिकागृह की नारी भी तो
मजबूरी में आई होगी,
किसी पिता की लाडली वो भी
किस्मत से हारी होगी,
करुण-दृष्टि से देखोगे तो
हर नारी देवी लगती है॥
समाज-व्यवस्था की मारी वो
जो कूड़े में जीवन यापे,
रोटी-रोटी के खातिर जो
अपने तन को बेचें भापे,
मानवता की दृष्टि से देखो
हर नारी देवी लगती है॥
आचार्य प्रताप