सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

बघेली बाले दुइ टूक

 बघेली बाले दुइ टूक

-----------------------

एकव साथी ना रहा , परी मुसीबत पास।

जियब त दुर्लभ होइगा ,  टूटिगा जब विसुआस।।०१।।

-----

आमय बाला कउन हय , द्-येखा अब त्यवहार।

मूडे़ परी गृहस्ती जउँ, कउन लगायी पार।।०२।।

---

बरन-बरन के बिधि करयँ , तबव  रहय लाचार।

यक दिन मलकिन कहि दिहिन, चाही हमका हार।

हार कहाँ से लमय भइया , पहुँच्यैं  तबय बजार-

मूडे़  परी    गृहस्ती     जउँ ,  कउन  लगायी पार।।

                                                        -आचार्य प्रताप 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी से आपकी पसंद के अनुसार सामग्री प्रस्तुत करने में हमें सहयता मिलेगी। टिप्पणी में रचना के कथ्य, भाषा ,टंकण पर भी विचार व्यक्त कर सकते हैं