बघेली बाले दुइ टूक

 बघेली बाले दुइ टूक

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एकव साथी ना रहा , परी मुसीबत पास।

जियब त दुर्लभ होइगा ,  टूटिगा जब विसुआस।।०१।।

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आमय बाला कउन हय , द्-येखा अब त्यवहार।

मूडे़ परी गृहस्ती जउँ, कउन लगायी पार।।०२।।

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बरन-बरन के बिधि करयँ , तबव  रहय लाचार।

यक दिन मलकिन कहि दिहिन, चाही हमका हार।

हार कहाँ से लमय भइया , पहुँच्यैं  तबय बजार-

मूडे़  परी    गृहस्ती     जउँ ,  कउन  लगायी पार।।

                                                        -आचार्य प्रताप 

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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