बघेली बाले दुइ टूक
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एकव साथी ना रहा , परी मुसीबत पास।
जियब त दुर्लभ होइगा , टूटिगा जब विसुआस।।०१।।
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आमय बाला कउन हय , द्-येखा अब त्यवहार।
मूडे़ परी गृहस्ती जउँ, कउन लगायी पार।।०२।।
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बरन-बरन के बिधि करयँ , तबव रहय लाचार।
यक दिन मलकिन कहि दिहिन, चाही हमका हार।
हार कहाँ से लमय भइया , पहुँच्यैं तबय बजार-
मूडे़ परी गृहस्ती जउँ , कउन लगायी पार।।
-आचार्य प्रताप
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