दुमदार दोहे
दिल्ली की ये मस्ज़िदें , बाँट रहीं हैं मौत?
फैल रहें हैं देश में, छाँटें अब परनौत।।
बढ़ेगी आफत भारी।।
मरेगी जनता सारी।।०१।।
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दिल्ली में पकती दिखे , शैतानों की दाल।
दाना पानी दे रही , मस्ज़िद रूपी ढाल।।
तोड़ दो ऐसी ढाले।।
नहीं तो मारो ताले।।०२।।
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मरकज़ के शैतान ये , मिलकर करें विचार।
ज़ाहिल और गवाँर है , करिए अब उपचार।।
करें सारे नौटंकी।।
कहें इनको आतंकी।।०३।।
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पाण्डव द्वादश वर्ष भर , वर्ष चतुर्दश राम।
इक्किस दिन अब सब करें, घर बैठे निजकाम।।
होगें एकांतवासी।
द्वारिका हो या काशी।।०४।।
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आचार्य प्रताप
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