प्रिये!हमारी आप इतना रुष्ठ क्यों होने लगी हो?
हाय ! तेरी याद में क्यों,
पट हृदय के आज धड़के।
प्रियतमा में प्राण अटके,
गीत से तब भाव भटके।
यूँ न जाने आज कल क्यों ,बन न पाती भूमिका भी।
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.....
ईश वंदन हेतु जब भी
चक्षु खोलूँ मैं हृदय।
चीरता जो भी तिमिर को ,
हो सदा उसका उदय।
पुष्प पल्लव धूप लेकर , लूँ शृंगारिक पेटिका भी।
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.........
स्वरात्मिका तू सूत्रिका भी,
तू ही मेरी हंसिका भी।
आह! में भी वाह! में भी,
तू ही है स्पंदिका भी ।
परिधि मेरी त्रिज्या भी हो, व्यास तू ही केंद्रिका भी
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.........
बहोत सुन्दर👌
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहोत सुन्दर👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
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