नवगीत

रुष्ठ मेरी तूलिका भी रुष्ठ मेरी प्रेमिका भी-

प्रिये!हमारी आप इतना रुष्ठ क्यों होने लगी हो?

हाय ! तेरी याद में क्यों,
पट हृदय के आज धड़के।
प्रियतमा में प्राण अटके,
गीत से तब भाव भटके।
यूँ न जाने आज कल क्यों ,बन न पाती भूमिका भी।
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.....

ईश वंदन हेतु जब भी
चक्षु खोलूँ मैं हृदय।
चीरता जो भी तिमिर को ,
हो सदा उसका उदय।
पुष्प पल्लव धूप लेकर , लूँ शृंगारिक पेटिका भी।
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.........

केश का वर्णन लिखूँ या
मैं कपोलों पर लिखूँ कुछ।
मृगनयनी हैं  नयन जो
तुम कहो तो मैं कहूँ कुछ।
रीतिका या राधिका या तारिका अनामिका या मैं कहूँ रसालिका।
रुष्ठ मेरी तूलिका भी.....

स्वरात्मिका तू सूत्रिका भी,
तू ही मेरी हंसिका भी।
आह! में भी वाह! में भी,
तू ही है स्पंदिका भी ।
परिधि मेरी त्रिज्या भी हो, व्यास तू ही केंद्रिका भी

रुष्ठ मेरी तूलिका भी.........


आचार्य प्रताप
Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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