एक गीत
न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है।
लगे क्यों मुझे फिर किसी ने छुआ है।
न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है।
लगे क्यों मुझे फिर किसी ने छुआ है।
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न देखो जहाँ तक नज़र जा रही है।
न ढूँढों मुझे अब फज़र आ रही है।
हमारी रहो तुम यही बस दुआ है।
न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है।
लगे क्यों मुझे फिर किसी ने छुआ है।
कहाँ छुप रही हो तुम्हें ढूँढ़ लूँगा।
छुपो मत समुंदर छुपाए न मूँगा।
लगे क्यों मुझे तू स्वयं की बुआ है।
न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है।
लगे क्यों मुझे फिर किसी ने छुआ है।
दिखी आज मुझको नहीं है सहेली।
कहूँ मैं किसे दिलरुबा है पहेली।
कुसुम की कसम रंग भी टेसुआ है।
न जाने मुझे आज कल क्या हुआ है।
लगे क्यों मुझे फिर किसी ने छुआ है।
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आचार्य प्रताप
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