अर्घ्य, पाद्य, आचमन और आधुनिक समय

 ।। अर्घ्य, पाद्य, आचमन और आधुनिक समय।।

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पंडित जी जब आपके घर पूजा कराने के लिए आते हैं तो वे बारी-बारी से विभिन्न देवताओं और ग्रहों का आह्वान मंत्रों द्वारा करते हैं और आचमनी में जल लेकर जल्दी-जल्दी अर्घ्य, पाद्य और आचमन इन देवताओं को अर्पित कराते हैं। पंडिज्जी यंत्रवत मंत्र पढ़ते चलते हैं और यजमान यंत्रवत जल गिराता चलता है। क्यों, दोनों में से किसी को नहीं मालूम। न पंडिज्जी को और न यजमान को।

वस्तुतः, ये देवता या ग्रह हमारे मांगलिक कार्योंमें मेहमान की तरह आमंत्रित किए जाते है और जैसे आयोजन संपन्न होने के बाद मेहमानों को आदरपूर्वक विदा किया जाता है वैसे ही इन सभी देवताओं को भी विसर्जित कर दिया जाता है। इनको अपने घर में प्रवेश कराने के पूर्व इनके हाथों में सुगंधित जल का पात्र अर्घ्य के रूप में दिया जाता है। यह उनका स्वागत ही है। उन्हें पाद्य दिया जाता है अर्थात पैर धोने के लिए साफ जल दिया जाता है।

माना जाता है कि देवता अपने लोक से हमारे घर तक लंबा सफ़र तय करके आए हैं। इनके चरणों में मार्ग की गंदगी लग गई होगी। अतः, अच्छा यही रहेगा कि ये पैर धोने के बाद हमारे घर में प्रवेश करें। हम स्वयं उन के चरण धोते हैं और खुद को भलीभाँति संतुष्ट करते हैं। आज के समय में घर का व्यक्ति भी बाहर से यदि आए तो उसे द्वार पर ही सैनीटाइज कराया जाता है, बाहर वाले को तो अवश्य ही। पाद्य अर्पित करने के मूल में यही भावना कार्य करती है कि बाहर से हमारे घर में किसी प्रकार का संक्रमण या गंदगी प्रवेश न करे। कभी हर बाहर से आने वाले अतिथि के साथ यही क्रिया दोहरायी जाती रही। आज द्वार पर यह क्रिया भले ही नहीं होती पर दूर का सफर तय करके कोई मेहमान घर आता है तो उसे भोजन पूछने से पूर्व उसके नहाने-धोने और तरोताज़ा होने की व्यवस्था की जाती है। गाँवों में बाहर नल पर या कुएँ पर यह व्यवस्था किए जाने का चलन था। मतलब यह, कि आगन्तुक कोई आगन्तुज व्याधि, संक्रामक व्याधि लेकर हमारे घर में प्रवेश न करे, हम भी सुरक्षित रहें और मेहमान भी तरोताज़ा व प्रसन्न रहे। इस प्रक्रिया के पहले या बाद में सुगंधित द्रव्यों से युक्त जल अर्घ्य के रूप में दिया जाता था। यदि कोई अतिथि बनकर किसी के द्वार जाए और गृहस्वामी द्वारा उसे अर्घ्य न अर्पित किया जाय तो यह अतिथि का अपमान माना जाता था। आचमन मुख्य रूप से कुल्ला कराने और थोडी मात्रा में पीने के लिए दिए जाने वाला जल था। आज के समय में आप अपने दूरस्थ स्थान से आए हुए अतिथि का स्वागत ऐसे ही करेंगे--उसके फ्रेश होने और नहाने की व्यवस्था करेंगे। पीने के लिए शुद्ध और अच्छा जल देंगे और यदि अतिथि अपने वस्त्र बदलने के लिए नहीं लाया है तो उसे तौलिया या वस्त्र भी उपलब्ध कराएंगे। यही क्रिया पंडितजी जाने-अनजाने में आमंत्रित देवताओं के लिए आपसे कराते हैं।

Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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