रविवार, 18 अक्टूबर 2020

छन्द-4 रोला छन्द

                                                                          रोला छंद विधान

रोला-छन्द- इस छंद में पद (पंक्ति) की संख्या - 4,चरण की संख्या - यति - 11, 13 मात्राओं पर  तुकांत - प्रत्येक दो पद परस्पर तुकांत होने चाहिए।

विषम चरण - प्रत्येक पद का प्रारंभ जिस पद से होता है उसे विषम चरण कहते हैं। चूँकि रोला में 4 पद होते हैं तो स्वाभाविक है कि विषम चरणों की संख्या भी 4 ही होगी।

विषम चरण में 11 मात्राएँ होती हैं और अंत गुरु, लघु से होता है।

विषम चरण की मधुर लय के लिए मात्राबाँट -

यदि चरण की शुरुवात सम मात्रा वाले शब्द से हो तो मात्राबाँट इस प्रकार से होगी - 4, 4, 3
यहाँ 4 मात्रा में चार लघु या दो गुरु हो सकते हैं।
किन्तु अंतिम 3 मात्रा वाला शब्द गुरु, लघु की मात्रा वाला हो।

यदि चरण की शुरुवात विषम मात्रा वाले शब्द से हो तो मात्राबाँट इस प्रकार से होगी - 3, 3, 2, 3
यहाँ शुरू के दोनों 3 का अर्थ (1, 1, 1) या (2, 1) या (1, 2) से है किंतु अंतिम 3 मात्रा वाला शब्द गुरु, लघु की मात्रा वाला हो।
यहाँ 2 का अर्थ एक गुरु या दो लघु से है।

सम चरण की मात्राबाँट 3, 2, 4, 4 होनी चाहिए।

सम चरण की शुरुवात त्रिकल शब्द (3 मात्रा वाले शब्द) से होनी चाहिए। यहाँ त्रिकल का अर्थ (1, 1, 1) या (2, 1) या (1, 2) से है। 
यहाँ 2 का अर्थ द्विकल से है। अंत में 4 का अर्थ चौकल से है। यह चौकल (1111) या (22) या (211) या (112) हो सकता है।

उपरोक्त मात्राबाँट में 4 अर्थ चौकल कभी भी जगण नहीं होना चाहिए अर्थात (121) मात्रा वाला शब्द नहीं होना चाहिए।

जिस प्रकार दोहा में दो पद होते हैं और विषय वस्तु एक ही होती है एक दोहा अपने आप में पूर्ण होता है। उसी प्रकार से रोला में चार पद होते हैं और विषय वस्तु भी एक ही होती है। एक रोला भी अपने आप में पूर्ण होता है।

तुकांत का अभिप्राय पद के अंतिम शब्द के उच्चारण की समानता से होता है। एक श्रेष्ठ रोला में प्रत्येक दो पदों में तुकांतता होती है प्रथम पद, द्वितीय पद की तुकांतता तृतीय पद और चतुर्थ पद की तुकांतता से भिन्नता लिए हो तभी रोला की मधुरता श्रेष्ठ कही जाती है। यदि चारों पदों को आपस में तुकांत रखा जाय तो रसानंद में कमी जाती है।

कुछ कवि तुकांतता के स्थान पर समान्तता भी रखते हैं किंतु ऐसे प्रयोगों में भी रसानंद की कमी परिलक्षित होती है।

उदाहरण - रोला छंद

रोला छंद विधान-

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लिख दो मन के भाव ,  यहाँ सब जोड़-तोड़ कर।

ग्यारह    तेरह   अंक , गिनो सब तोल-मोल कर।

दिया नहीं जो  ध्यान , पड़े  फसलों  पर   ओला ।

मन में रखें विधान  ,  लिखें   तब  छंदस  रोला।।०१।।

                                        -आचार्य प्रताप 

 

प्रस्तुत रोला छन्द में ऊपर बताए गए नियमों की जाँच कीजिये। मैं मात्राबाँट बता रहा हूँ -

 (लिख दो) (मन के) (भाव) ,  (यहाँ) (सब) (जोड़-तोड़ कर)
4 4 3, 3 2 4 4
(
ग्यार) (    ते) (रह) (अंक) , (गिनो) (सब) (तोल-मोल कर।)
3 3 2 3, 3 2 4 4
(
दिया ) (हीं जो)  (ध्यान) , (पड़े) (फस) (लों  पर) (ओला)
4 4 3, 3 2 4 4
(
मन में) (रखें वि) (धान ) ,  (लिखें) (तब)  (छंदस)  (रोला)
4 4 3, 3 2 4 4

उदाहरण पर यदि गौर करेंगे तो पाएंगे कि चारों सम चरणों की मात्राबाँट एक सरीखी है। विषम चरण क्रमांक 1, 3 और 4 कि शुरुवात सम शब्द (चौकल) से हुई है तो मात्राबाँट 4, 4, 3 है। विषम चरण की शुरुवात विषम मात्रा वाले शब्द से हुई है तो मात्राबाँट 3, 3, 2, 3 है।

प्रत्येक पद में 11, 13 पर यति है।

प्रत्येक दो पद परस्पर तुकांत हैं।

चारों पद की विषय वस्तु एक ही है। 
तुकांत वाले शब्द पद के अंत में ही आये हैं।

रोला छन्द के विधान के बारे में इतने विस्तार से आपको कहीं जानकारी नहीं मिलेगी।

आचार्य प्रताप



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