आइए, कुछ शब्दों के सही अर्थ जानें।
कनागत
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प्रायः पितृपक्ष या श्राद्ध के पन्द्रह दिनों को कनागत कहते हैं। वास्तव
में तो नवरात्र भी कनागत ही होते हैं। कनागत का शुद्ध रूप है--'कन्यागत'।
अर्थात् जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश कर चुका होता है, वह है कन्यार्क
मास। योग्य पंडित संकल्प छुड़वाते समय यह उल्लेख करते हैं कि सूर्य किस राशि
में इस समय है। जिस दिन सूर्य उस राशि में प्रवेश करता है, वह संक्रांति
पर्व कहलाता है। जिन तीस दिनों के चन्द्रमास में सूर्य राशि नहीं
बदलता, वह दूषित मान लिया जाता है। इसे ही मल मास कहते हैं। यह मास
मांगलिक कार्यों के लिए वर्जित माना गया। पर मनुष्यों के मन में इस मास को
लेकर नकारात्मक भाव न उत्पन्न हों, इसे बचाने के लिए इसे पुरुषोत्तम मास
कहकर आदर दिया गया और इस माह को ईश्वर को समर्पित कर दिया गया। यदि सकाम
भाव को त्यागकर इस माह में ईश्वर प्रणिधान किया जाय तो यह उत्तम माना गया
है। कहने का कुल मिलाकर अर्थ यह है कि अगर अपने कामों के लिए समय दूषित
माना गया तो मनुष्य को सभी लौकिक कामों का त्याग तो नहीं कर देना चाहिए।
बल्कि इस समय को आत्मिक कल्याण और उन्नति के निमित्त ईश्वर को समर्पित कर
देना चाहिए। लोकोपकार भी इसका एक मार्ग है।
आलेख के लिये सादर अभार आदरणीय परिमल जी का
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