इसे बनाने का उद्देश्य यह है कि मेरे पाठक मित्र तथा सभी चाहने वाले मुझसे जुड़े रहें और मेरी कविताएँ छंदों के अनुशासन , मेरे अपने विचार, मैं अपने पाठकों तक पहुँचा सकूँ। मेरे द्वारा लिखी गई टिप्पणियाँ, पुस्तकों के बारे में , उनकी समीक्षाएँ , आलोचनाएँ ,समालोचनाएँ तथा छंदों के अनुशासन , मेरे अपने शोध तथा विशेष तौर पर हिंदी भाषा के प्रचार - प्रसार में मेरे द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन मैं इसके माध्यम से अपने मित्रो तक पहुँँचा सकूँ।
बुधवार, 30 सितंबर 2020
ऋतुराज वसंत का गुणगान
कह-मुकरियाँ ने दिलाई थी एक अनोखी पहचान- आचार्य प्रताप
मंगलवार, 29 सितंबर 2020
साहित्यिक गतिविधियों का समाचार पत्र में प्रकाशन
सोमवार, 28 सितंबर 2020
तेलंगाना हिंदी साहित्य भारती कार्यकारिणी की बैठक संपन्न
रविवार, 27 सितंबर 2020
एक शिक्षक की भूमिका
एक शिक्षक की भूमिका
समाज के निर्माण में , देश के निर्माण में और भावी भविष्य की नवयुवा पीढ़ी के निर्माण में एक शिक्षक की भूमिका माकन के चार आधार स्तंभों में से एक की भाँति होती है। हम सबको ज्ञात है कि बिना शिक्षक के शिक्षा का विकास उसी तरह होता है जैसे कि एक असहाय , निर्बल राजा के कारण उसकी प्रजा और राष्ट्र का। विदित है कि "यथा राजा, तथा प्रजा।"
मैं संस्कृत प्रचारक होने के कारण संस्कृत के ही माध्यम से बताना चाहूँगा -
यथा शिक्षकः तथा विद्या , यथा विद्या तथा संस्कारः।
यथा संस्कारः तथा शिष्यः , यथा शिष्यः तथा राष्ट्र निर्माणः।।
- आचार्य प्रताप
आज हमारे समाज में शिक्षक की भूमिका ठीक उसी प्रकार से हो गयी है जिस प्रकार से की एक घोड़े को प्रतिस्पर्धा में भाग लेने का अवसर दिया गया हो और उसके पैरों में बंधन की बेड़ियाँ डाल दी गयीं हों।
ऐसी दीन दशा हुई , अध्यापक की आज।
जैसे धावक अश्व को , रसरी डाल समाज।।01।।
-आचार्य प्रताप
संभवतः शिक्षक की तुलना गधे , कुत्ते या फिर एक सामान्य मजदूर से की जाय तो अतिशंयोक्ति नहीं होगी; क्योंकि आज कल निजी विद्यालयों में शिक्षकों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है , काम के लिए गधे की तरह, कुत्ते की तरह इधर-उधर भटकाना और एक असहाय मजदूर की तरह उसका पारिश्रमिक भी सही अदा न करना , इस पर सरकार की ओर से कोई विशेष कदम न उठाना आने वाले भविष्य में शिक्षकों की कमीं का आभास कराता है। आज जो भी शिक्षक बन रहे है वो अपनी किसी न किसी विशेष परिस्थिति के कारण बन रहे है कोई अपनी रूचि से शिक्षक नहीं बनना चाहता है। इसके प्रमाणन हेतु मैने अनेक विद्यालयों में भ्रमण किया और कुछ अभिभावकों से वर्तालाप भी किया , यह मेरा अपना स्वयं का शोध है इस बात की पुष्टि करने के लिए मैंने एक विद्यालय की २५ विद्यार्थियों की एक कक्षा में प्रवेश किया और थोड़ी बात-चीत के बाद भावी भविष्य की जानकारी लेनी चाही और एक के बाद एक से पूछा कि आप भविष्य में क्या बनना चाहते हैं ?
तब मात्र दो छात्रों के प्रतिउत्तर मिले "शिक्षक" शेष अन्य।
इस शोध की तह तक जाने के लिए अन्य उत्तर वाले छात्रों से पूछा कि:-
आप शिक्षक भी बन सकते है पर आपने क्यों इससे नहीं चुना ?
छात्रों के मत कुछ इस प्रकार से थे -
शिक्षकों का वेतन बहुत काम होता है। शिक्षकों सबसे ज्यादा इधर-उधर घुमाते हैं (यह मेरा कथन छात्रों अलग ढंग कहा था) शिक्षकों कोई विशेष सुविधा नहीं होती है। उनके बच्चों के लिए कोई सुविधा नहीं। आज का शिक्षक तो मात्र कठपुलती बन कर रह गया है। शिक्षक केवल नाम का शिक्षक होता है। उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं है यहाँ तक कि छात्रों की उद्दंडता पर अपने छात्र को डाँट भी नहीं सकता यदि डाँटते हुए ‘गधा’ कह दिया है तो उसे अपमानित किया जायेगा! बन्दी बनाया जायेगा! क्या यही गुरु का सम्मान होता है?
क्या यही मर्यादा रह गयी है एक गुरु की जो राष्ट्र का निर्माण बिना किसी लाभ के करता है ? बंदी बनाने वाला भी वही होता है जिसे कभी उसी शिक्षक समुदाय ने शिक्षा दी है जिनके कारण वह आज इस पद पर पहुँचा है ,उसे यह अधिकार दिया है कि अपने गुरु का अपमान करे, किन्तु गुरु को कोई अधिकार नहीं दिया है।
इतनी बातचीत सुनने के पश्चात मेरी आँखें नम हो गयीं और मेरे प्रश्नों का गुच्छा टूटकर बिखर गया मैं सिहर-सा गया मुझे आभास हुआ की वास्तव में शिक्षक का जीवन आज खतरे में है। “जब शिक्षक स्वयं छात्र या उनके अभिभावकों से या निजी विद्यालयों के प्रबंधकों के डर से शिक्षा देगा तो निश्चित रूप से वो गलत को भी सही कहेगा और ऐसा करने पर राष्ट्र में शिक्षा का आभाव बना ही रहेगा और कागजी दुनिया में सब शिक्षित बन जायेंगे किन्तु वो पढ़े-लिखे बेवकूफ कहलायेंगे।“
शिक्षक ऐसा चाहिए , मिले जिसे सम्मान।
मान नहीं करते अगर , मत करिये अपमान।। ०१।।
शिक्षक को भी दीजिये , अब उसके अधिकार।
नवयुवक भी हो सके , राष्ट्र हेतु तैयार।। ०२।।
-आचार्य प्रताप
आचार्य प्रतापवरिष्ठ पत्रकर व साहित्यकार
भाग्यनगर , तेलंगाना
दोहा
शनिवार, 26 सितंबर 2020
कवि मित्रों की रचनाएँ
कहमुकरी
विवाह
जिसके आने से सुख मिले।
जिसके जाने से दुख मिले।
करते सभी उसी की वाह।
क्या सखि साजन ? नहीं विवाह॥01॥
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कर रहें सभी बहुत प्रतीक्षा।
कसमें खाय करेंगे रक्षा।
लातें साथ में कई गवाह
क्या सखी साजन? नहीं विवाह॥02॥
आचार्य प्रताप
मुक्तक
दुखों में रोकर मिलता है, सुखों में हँसकर मिलता है
क्षुधा-पीड़ित हो प्राणी जो, उसे तो खाकर मिलता है।
जगत में मैंने देखा है, सभी की अपनी विधियाँ हैं-
कहूँ कैसे मुझे आनंद, तो बस लिख कर मिलता है॥01॥
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मुक्तक हो या छंद हो, पढ़ कर लें आनंद।
रचनाएँ ऐसी करें, जिनमें रसधार अमंद ।
जाँचे मात्रा भार तब, तुला तौल की भाँति-
खिलती रचना है तभी,बनकर सुरभित छंद॥02॥
आचार्य प्रताप
गीतिका
विधाता छंद
दिवाकर ढल गया था जब , तिमिर फैला हुआ तब है।
सुधाकर दिख गया अब तो , तिमिर का नाश तो अब है॥
निशा का रंग काला है, तभी भय है जगत भर में,
भयानक रात होती है ,कहीं दिखता नहीं अब है॥
बुरी घटना घटी थी जब, तभी भी रात काली थी,
विरह में गीत गाता था ,प्रिये को भूलना कब है॥
सवेरा हो रहा अब है , हमें यह ज्ञात होता है,
खुले बंधन तिमिर के हैं , ख़ुशी की लहर तो अब है॥
मधुर कलरव करें पंछी, गगन भर लालिमा छाई,
सवेरा हो गया है अब ,तिमिर तो मिट गया सब है॥
आचार्य प्रताप
शक्ति छंद
शक्ति छंद
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विधा आज तुम ही चुनोगे अगर।
रचोगे नया कुछ लिखोगे अगर।
विषय आज का तुम प्रतिष्ठा चुनो।
लिखो फिर अभी जो हकीकत सुनो।
न लिप्सा अगर हो तुम्हें जीत की।
परीक्षा लिखो तुम अभी प्रीत की।
आचार्य प्रताप
दोहा-द्वादशी
वसंत-ऋतु- वसंतोत्सव
काक-कोकिला एक सम, वर्ण
रूप सब एक।
ऋतु बसंत है खोलती , भेद वर्ण के
नेक।।०१।।
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हरियाली अब छा रही , कर पतझड़ का
अंत।
कहता यही प्रताप अब , आया सुखद
बसंत।।०२।।
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बाग बगीचे में भ्रमर , दिखे कुसुम
के संग।
आलिंगन का दृश्य यह , मन में
छेड़े जंग।।०३।।
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ईश्वर के वरदान सम , ऋतु वसंत है
मीत।
नव पल्लव नव पुष्प सब, नव कोकिल के
गीत।।०४।।
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तरुवर नवल धवल वसन , क्षिति कर
नव उपकार।
वन-उपवन धर कुसुम नव , शुचि जग भर
उपहार।।०५।।
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धवल नवल तरुवर वसन , वन-उपवन नव
कुसुम।
प्रकृति कमल नृप सम जगत , ऋतुपति
सु-मुकुल सुषुम।।०६।।
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वसुधा वसित वसन किये , नवल धवल
परिधान।
ऋतुपति का शुभ-आगमान , हर्षित जग
जन जान।।०७।।
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पल्लव पुष्प मुकुल सहित , नवल हरित
परिधान।
धारण कर धरणी करे , ऋतुपति का
सम्मान।।०८।।
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मन मेरा मधुकर हुआ , जब से लगा
वसंत।
गीत ग़ज़ल अरु छंद सब , तुमसे ही
पद-अंत।।०९।।
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बूढ़ों में भी चढ़ चलें , आप जवानी
चाल।
ऋतुपति का क्या खेल है , कहूँ आज
क्या हाल??०४।।
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देख वसंती चाल मैं , कर जाता हूँ
भूल।
कब किसको कैसे कहाँ , कहूँ वचन के
शूल।।०१०।।
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पीली सरसों देखकर , मन में उठे
उमंग।
मत प्रताप प्रिय प्रेयसी , डाल रंग में
भंग।।११।।
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कूक रही है बाग पर , कोकिल मीठे
गीत।
मनो छाया है यहाँ , ऋतु वसंत अब
मीत।।१२।।
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आचार्य प्रताप
गीतिका -विजात छंद
विजात छंद
सुहानी शाम है आई।
गगन पर लालिमा छाई।।
सुधाकर है दिखा अब तो ,
सुहानी रात है आई।।
कली मिटने लगी देखो,
सुमन बन गंध फैलाई।।
दिखी कोयल अभी जब तो ,
प्रिये तुम याद है आई।।
प्रिये तुम हो हमारा धन ,
जगत सौगात है पाई।।
यहाँ पाकर तुम्हें अब तो ,
नहीं है लालसा कोई।।
आचार्य प्रतप
गीतिका
मनोरम छंद
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दर्शन शशि विकाल में हो,
उत्तर अब सवाल में हो।
शब्द गरिमा चाल में हो,
प्रेयसी हर हाल में हो।
नयन लड़ते सौर्य में हो,
दामिनी सौंदर्य में हो।
घूँघट फिर मत भ्रम में रख,
लोचन झुके शरम में रख।
मस्त तारुण्य फिर तरुणा,
बाद इनके हो सदा करुणा।
प्रेयसी बैठी हुई थी ,
याद तब वो कर रही थी।
जब मिले हम अश्रु धारा,
बह रहा था नीर सारा।
आचार्य प्रताप
होली गीत
कहमुकरी
दोहे
होली
तरह-तरह के रंग ले, खेलो तुम अब खेल।
रंगों के इस खेल ने, करा दिया अब मेल।।०१।।
श्यामल श्यामल गाल पर,श्यामा मले गुलाल।
पिचकारी ले श्याम जी, करते खूब धमाल।।०२।।
आचार्य प्रताप
हिंदी दिवस पर प्रकाशित दोहे
हिंदी साहित्य भारती द्वारा प्रदत्त
दोहे
अलंकरणरण युक्त
लाल, लाल के भेद को, भेदेगा श्रीमान।
रचनाएं अरु पटल का, करे सदा सम्मान।।
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बाल बचा लो बाल से , बाल खींचते बाल।
बचा न पाए बाल से, उखड़ गए सब बाल।।
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गाल लाल हैं लाल के, लाल दिखे अब लाल।
लाल लाल ही दिख रहा,चोंट लगी जब भाल।।
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सुरा सुराही देखकर , बुझे न मन की प्यास।
यौवन में रस घोल दे , पावस भर दे आस।।
आचार्य प्रताप