शनिवार, 29 मई 2021

दोहा त्रयी

दोहे
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दर्शन विमल विचार है,
सुचिता जीवन सार

व्याख्यायित इससे सदा,
शाब्दिक यह संसार 01
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जगत-प्रीत बहु आज है,
विषय-भोग परिहास


ज्ञान-ध्यान हरि-भजन की,
नहीं किसी को आस 02
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चले पवन प्रतिकूल अब,
सखे! जगत की रीति

माँझी एक सहाय है,
जिससे आपनी प्रीति 03
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आचार्य प्रताप


#acharyapratap
#acharypratap

acharypratap


मंगलवार, 25 मई 2021

आचार्य वामन सम्मान

आचार्य वामन सम्मान से सम्मानित विशिष्ट प्रशस्ति पत्र 


om nirav

sanjiv salil

bipin

mayank

bhramar

रविवार, 23 मई 2021

दोहे

 

















गुरुवार, 6 मई 2021

जयतु संस्कृतम्


२०१७ में लिखे गए थे -
मुक्तक - १.
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मालविकाग्निमित्रम् विक्रमोर्वशीयम् अभिज्ञानशाकुन्तलम्।
कृते कालिदासः महाकविः इति त्रीणि नाट्यशास्त्रम्।
रघुवंशम् कुमारसंभवम् कृते इति द्वे महाकाव्ये -
सप्त ग्रंथं कृते द्वे खंडकाव्ये ऋतुसंहार मेघदूतम्।।
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मुक्तक-२
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वदतु संस्कृतम् जयतु संस्कृतम्।
जयतु भारतम् पठतु संस्कृतम्।
लिखतु संस्कृतम् , संस्कृतेन चिंतयतु-
विश्वाधारः एक वर्णः जयतु संस्कृतम्।।

बुधवार, 5 मई 2021

कह-मुकरियाँ

 #कह-#मुकरियाँ

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जिसे देखकर हर्षाऊँ मैं।
सम्मुख उसके बलखाऊँ मैं।
सब कुछ मेरा उसे समर्पण
क्या सखि साजन? ना सखि दर्पण।।०१।।
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जिसे देखकर हर्षाऊँ मैं।
पहन-ओढ़कर बलखाऊँ मैं।
मुझसे चिपके सदा अनाड़ी।
क्या सखि साजन? ना सखि साड़ी।।०२।।
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उसकी ध्वनि है कर्ण-प्रिये।
मन हर्षित होकर झूम-जिये।
जिसकी धुन करती है घायल।
क्या सखि साजन? ना सखि पायल।।०३।।
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मधु का प्याला

ये समस्त दोहे आज से ठीक एक वर्ष पूर्व लिखे गए थे |

 दोहे

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खड़े पंक्ति में हो गए , हाला की थी बात।
राशन की होती अगर , बतलाते औकात।।०१।।
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पंक्ति बनाकर मौन सब , खड़े हुए चुपचाप।
मधुशाला के सामने , देखो तुम्हीं प्रताप।।०२।।
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बड़े दिनों से बंद थे , मधुशाला के द्वार।
मादक पेयी के हृदय , चलती रही कटार।।०३।।
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खुले हुए हैं आज-कल, मधुशाला के द्वार ।
मदिरा-पेयी के हृदय , जागी खुशी अपार।।०४।।
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खुले हुए पट देखकर , मधुशाला के आज।
आंनदित हो नाचती , मधुबाला तन साज।।०५।।
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भींग रहें हैं मधुकलश , बड़े दिनों के बाद।
हाला - प्याला की सुने , अद्भुत सुंदर नाद।०६।।
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मधुशाला के मधुकलश , भींग रहें हैं आज।
भूल ऋचाओं को गए , भूले सभी नमाज़।।०७।।
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उन्मादित हो नाचते , प्याला हाला साथ।
मधुशाला को मानते , अपने - अपने नाथ।।०८।।
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मधुशाला को खींचती , मधुबाला की याद।
कर्ण-प्रिये लगतीं शुभे! , प्यालों की तब नाद।।०९।।
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त्रय अंगुल हैं थामती , मधुप्याले का भार।
किंतु न जाने क्यों यहाँ , डूब रहा संसार।।१०।।
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आचार्य प्रताप

मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

भारतीय नव वर्ष मंगलमय

ॐ ॐॐॐ 
युग + आदि = युगादि (दीर्घ स्वर संधि)- इस शब्द का शाब्दिक अर्थ *युग अर्थात वर्ष (year) एवं आदि का अर्थ आरम्भ, प्रारंभ (Begin) दोनों शब्दों को मिलाने पर युगादि बनता है,युगादि अर्थात नव वर्ष का शुभारम्भ* परन्तु कालान्तर में उच्चारण के कारण युगादि को *उगादी* कहा जाने लगा जिसका परिणाम और प्रमाण आज भी दक्षिण भारत के कुछ प्रांतों में सुना जा सकता है।

भारतीय संस्कृति के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शक संवत का शुभारंभ होता है तथा आज से शक संवत् २०७८ (2078) का शुभारम्भ हो रहा है अर्थात *भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ हुआ।* अतः आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।



*दोहे*
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चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, विक्रम संवत हर्ष।
भारत की यह सभ्यता, मंगलमय नववर्ष।।०१।
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मंगलमय नववर्ष हो,सफल रहें सब काज।
मंगल वेला में सभी, हर्षित होंगे आज।।०२।।
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 *आचार्य प्रताप*


*ॐ भारतीय नव वर्ष मंगलमय हो ऐसी कामना करता हूँ। ॐ*

*आचार्य प्रताप*

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

संस्कृत भाषा

#दोहे
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जिस दिन युवा देश के , समझेगे निज पाथ**।
संस्कृत अरु साहित्य को , लेंगे  हाथों-हाथ।।०१।।
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आज हमारी संस्कृति , रोती है निज देश।
संस्कृत भाषा जा रही , देश छोड़ पर-देश।।०२।।
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पुरातनी  भाषी   यहाँ   ,   माँगे   निज   अधिकार।
बिलख-बिलख कर कह रही , करिए पुनः विचार।।०३।।
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जाना हो यदि आपको , अब आगे परदेश।
संस्कृत का कर अध्ययन ,  पूर्ण करें आदेश।।०४।।
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संस्कृत   के  साहित्य   की  ,  महिमा  बड़ी  अपार।
वाल्मीकि , व्यास , पाणिनी ,  माघ , कालि , आधार।।०५।।
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आचार्य प्रताप

#गूढार्थ
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Path पाथ- राह

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

आचार्य सलिल – हिंदी साहित्य के उन्नयन पथ पर अग्रसर कवि, समीक्षक तथा छंदशास्त्री

 

आचार्य सलिल – हिंदी साहित्य के  उन्नयन पथ पर अग्रसर कवि, समीक्षक तथा छंदशास्त्री

चार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी को मैं व्यक्तिगत रूप से पांच से सात वर्षों से जनता हूँ और पिछले वर्ष २०२० के माह नवम्बर से आप अक्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्र के अक्षरवाणी काव्य मंजरी यूट्यूब चैनेल पर छंद अनुशासन का ज्ञान छंद सलिला/छंद ज्ञान  के माध्यम से प्रदान कर रहें हैं  आप के जन्मदाताओं में  जनक  स्व. श्री राज बहादुर वर्मा जी तथा जननी स्व. श्रीमती शांति देवी वर्मा जी रहे । आपके माता-पिता दोनों ही साहित्य में किसी न किसी माध्यम से जुड़े रहे पिता जी पाठक तथा विश्लेषक के रूप में तथा माता जी लेखिका तथा कवयित्री के रूप में जुड़ी रहीं।

हिंदी साहित्य जगत में कुशल साहित्यकार बहु आयामी लेखक कवि तथा छंदशास्त्री आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी को आज संभवतः कोई विरले ही होंगे जो नहीं जानते होंगे; आप व्यासायिक रूप से एक अभियंता के पद से सेवा-निवृत हो चुके है। आप पिछले 4 दशक से हिंदी की सेवा में लगे हुए हैं, प्राप्त जानकारी के अनुसार आप आधुनिक युग की माँ मीरा अर्थात महादेवी वर्मा जी के ममेरे भाई के बेटे अर्थात आप उनके भतीजे हैं तो इन तथ्यों के आधार पर यह कहना उचित होगा कि साहित्यिक गुण आपमें आपके पैतृकों से ही पैतृक सम्पति के रूप में प्राप्त हुयी है और आज आपने हिंदी के साहित्य को इतना धनाढ्य बनाया है की शायद ही कोई ऐसा किया होगा , अंर्तजाल में यदि सलिल या आचार्य सलिल हिंदी या अंग्रेजी भाषा टंकित किया जाय तो आपके बारे में ही समस्त जानकारियाँ उपलब्ध होंगी। यह नाम अब आम नहीं रहा, आप न केवल कविताओं में अपितु गद्य लेखन में भी आपनी लम्बी दूरी तय कर ली है कविताओं में जहाँ छंदों की बात की जाय तो आपके द्वारा अनेक नवीनतम छंदों क शोधकर्ता या जनक कहा जाता है जहाँ आपने आनेकों छंदों में स्याही बिखेरी है वहीं अनेक छंदों की शोध भी की है । यदि आप उनके द्वारा निर्मित छंदों को पढना और समझाना चाहते है तो गूगल के यूट्यूब पर अक्षरवाणी काव्य मंजरी पर जाकर प्लेलिस्ट में छंद ज्ञान की प्लेलिस्ट का चयन करें और निर्मित छंदों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं आचार्य भानू के छंद प्रभाकर में लगभग ६०० से ८००  के आसपास छंदों क वर्णन किया गया है  किन्तु आज छंदों की दुनियाँ में लगभग ११०० के पार छंद जिनकी जाति-प्रजाति दोनों ही भिन्न है,पिछले छः माह से आपके  संपर्क में रहने कारण ज्ञात जानकारी के अनुसार आपने अब तक लगभग ८१ सवैय्यों ( ऊपर-नीचे हो सकतीं है ) की खोज की है जिनमे बहुधा प्रयोग में लाई भी जा रहीं है , एक बहुत ही बड़ी और आश्चर्य की बात यह की आपने इतन छंदों की खोज की है किन्तु आपने अपने नाम से एक भे छंद नहीं बनाया सभी छंदों को आपने प्रकृति या अन्य दैनिक जीवन से सम्बंधित नाम दिया है जिसमें परोपकार की छवि झलकती हैं। प्रायः आज देखा जाय तो लोग एक शौचालय का निर्माण भी करते हैं तो उसे आपना नाम दे देते हैं किन्तु यहाँ आपने सैकड़ों छंदों को अन्यों के नाम से प्रसारित और प्रचारित कर रहें हैं साहित्य के इतिहास में यह योगदान सर्वदा स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा ।

आचार्य सलिल जी आप समय के नब्ज़ टटोलने की क्षमता रखते हैं आपको यह भलीभांति ज्ञात है की आज लोगो को क्या चाहिए और आगामी भविष्य में हिंदी साहित्य को क्या चाहिए होगा इन सभी को एक सूत्र में फिरोते हुए आप साहित्य के पथ में अग्रसर हैं जहाँ आज कविता के नाम पर अतुकांत तथा व्याकरण विहीन गद्य काव्य परोसे जा रहें है वही आप नवयुवकों को छंद और छंदों के प्रति जागरूक कर रहें है उन्हें निःशुल्क छंदों क ज्ञान दे कर छंदों की भावी पीढी का निर्माण कर रहें है कई ऐसे भी रचनाकार हुए है जो की आपसे सीखते है और तत्क्षण ही स्वयं गुरु बन बैठते हैं  मेरे इन कथनों का अर्थ या बिलकुल नहीं है कि वो स्वम्भू हो जाते है या ब्रह्मा बन जाते हैं मेरे कथन का भाव स्पष्ट है कि आप में वह क्षमता है कि आपके शिष्यों में शीघ्र-अतिशीघ्र गुरु बनने  की क्षमताआ जाती है  यह आपका आशिर्वाद और उस शिष्य की लगनशीलता पर निर्भर करता है।

आचार्य सलिल के लेखन क कौशल इतना प्रतापी है कि हिंदी की खड़ी बोली पर तो आपकी तूलिका दौडती है तथा अन्य बोलियों जैसे – बुन्देली , बघेली मालवी सहित अन्य  बोलियों पर भी आपका सृजन अनवरत होता है जिसमे लोकगीत से लेकर गीत –अगीत –नवगीत आदि सम्मिलित होते हैं उनकी भाषा शैली में देशज शबदावली के साथ-साथ अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ के शब्द भी होते है  जिसे तत्कालीन जनवाणी में जनसमूह पढ़कर समझ सकते है  आपने मेरी तरह भाषा को क्लिष्ट नहीं अपितु सरस और सरल बनाने का सफलतम प्रयास किया है आपने अपने काव्यों मेंछंद के साथ-साथ  रस और अलंकर क भी अधिकाधिक ध्यान रखा हैं आपने नवीनतम बिम्ब , प्रतीक का प्रयोग कर लोगों को आपनी बुद्धी के अनुसार समझने योग्य बनाया है  आप  काव्य में छंद-विभेद के द्वन्द्व को नहीं मानते अपितु आप एक समन्वयक दृष्टि रखते हैं आप लक्षण शास्त्री भी हैं आप आपने सृजनों में भाव , भाग- विभाग क एक व्यापक ज्ञान व वर्णन प्रस्तुत करते हैं । आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नाम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है। आपने हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में सृजन के साथ-साथ कई संस्कृत श्लोंकों का हिंदी काव्यानुवाद किया है। आपकी प्रतिनिधि कविताओं का अंगरेजी अनुवाद 'Contemporary Hindi Poetry" नामक ग्रन्थ में संकलित है। आपके द्वारा संपादित समालोचनात्मक कृति 'समयजयी साहित्यशिल्पी भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' बहुचर्चित है। आपने अंतर्जाल पर हिंदी के विकास में महती भूमिका का निर्वहन किया है।

आप इंजीनियर्स टाइम्स, यांत्रिकी समय, अखिल भारतीय डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ पत्रिका, म।प्र। डिप्लोमा इंजीनियर्स मंथली जर्नल, चित्राशीश, नर्मदा, दिव्य नर्मदा आदि पत्रिकाओं;  निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों एवं शिल्पान्जली, लेखनी, संकल्प, शिल्पा, दिव्यशीश, शाकाहार की खोज, वास्तुदीप, इंडियन जिओलोजिकल सोसायटी स्मारिका, निर्माण दूर भाषिका जबलपुर, निर्माण दूर्भाशिका सागर, विनायक दर्शन आदि स्मारिकाओं का संपादन कर सलिल जी ने नए आयाम स्थापित किए हैं।  समयजयी साहित्य शिल्पी भागवतप्रसाद मिश्र 'नियाज़' : व्यक्तित्व एवं कृतित्व श्री सलिल द्वारा संपादित श्रेष्ठ समालोचनात्मक कृति है। उक्त के ऐरिक्त सलिल जी ने ८ परतों के २१ रचनाकारों की २४ कृतियों की भूमिकाएँ लिखी हैं। यह उनके लेखन-संपादन कार्य की मान्यता, श्रेष्ठता एवं व्यापकता का परिणाम है।

हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेजी के बीच भाषा सेतु बने सलिल ने ११ कृतियों के काव्यानुवाद किए हैं। रोमानियन काव्य संग्रह 'लूसिया फैरुल' का काव्यानुवाद 'दिव्य ग्रह' उनकी भाषिक सामर्थ्य का प्रमाण है। उन्होंने हिन्दी, अग्रेजी के साथ-साथ भोजपुरी, निमाड़ी, छत्तीसगढ़ी, बुन्देली, मराठी, राजस्थानी आदि में भी कुछ रचनाएं की हैं। विविध साहित्यिक एवं तकनीकी विषयों पर १५ शोधपत्र प्रस्तुत कर चुके सलिल भाषा सम्बन्धी विवादों को निरर्थक तथा नेताओं का शगल मानते हैं। ५ साहित्यकार कोशों में सलिल जी का सचित्र जीवन परिचय तथा ६० से अधिक काव्य- कहानी संग्रहों में रचनाएँ सादर प्रकाशित की जा चुकी हैं।

सामाजिक-साहित्यिक कार्यों में सलिल जी ने अभियंता संगठनों, कायस्थ सभाओं, साहित्यिक संस्थाओं तथा सामाजिक मंचों पर गत ३१ वर्षों से निरंतर उल्लेखनीय योगदान किया है। अभियान जबलपुर के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में पौधारोपण, कचरा निस्तारण, बाल एवं प्रौढ़ शिक्षा प्रसार, स्वच्छता तथा स्वास्थ्य चेतना प्रसार, नागरिक एवं उपभोक्ता अधिकार संरक्षण, आपदा प्रबंधन आदि क्षेत्रों में उन्होंने महती भूमिका निभाई है। अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण अभियान के माध्यम से साहित्यकारों की स्मृति में अलंकरण स्थापित कर १९९५ से प्रति वर्ष उल्लेखनीय योगदान हेतु रचनाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित करने के लिए वे चर्चित हुए हैं। 'दिव्य नर्मदा' शोध साहित्यिक पत्रिका के कुशल संपादन ने उन्हें राष्ट्रीय ख्याति दिलाई।

इंजीनियर्स फॉरम के राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में अभियंता प्रतिभाओं की पहचानकर उन्हें जोड़ने एवं सम्मानित करने, अभियंता दिवस के आयोजन, जबलपुर में भारत रत्न मोक्ष्गुन्दम विस्वेस्वरैया की ७ प्रतिमाएं स्थापित कराने, म।प्र। डिप्लोमा अभियंता संघ के उपप्रान्ताध्यक्ष, पत्रिका संपादक, प्रांतीय लोक निर्माण समिति अध्यक्ष आदि पदों पर २७ वर्षों तक निस्वार्थ उल्लेखनीय कार्य करने के लिए वे सर्वत्र प्रशंसित हुए। प्रादेशिक चित्रगुप्त महासभा म।प्र। के महामंत्री व संगठन मंत्री। अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के उपाध्यक्ष, प्रशासनिक सचिव व मंडल अध्यक्ष, राष्ट्रीय कायस्थ महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आदि पदों पर उन्होंने अपनी मेधा, लगन, निष्पक्षता तथा विद्वता की छाप छोड़ी है। नागरिक उपभोक्ता संरक्षण मंच जबलपुर के माध्यम से जन जागरण, नर्मदा बचाओ आन्दोलन में डूब क्षेत्र के विस्थापितों को राहत दिलाने, आपात काल में छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी में सहभागिता, समन्वय जबलपुर के माध्यम से लोक नायक व्याख्यान माला का आयोजन, शहीद परिवारों को सहायता आदि अभिनव कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने में उन्होंने किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं ली। उनकी सोच है की लोक तंत्र की सफलता के लिए लोक को तंत्र पर आश्रित न होकर अपने कल्याण के लिए साधन ख़ुद जुटाना होंगे अन्यथा लोक अपनी अस्मिता की रक्षा नहीं कर सकेगा।

सम्मानों की सूची देखी जय तो  आचार्य सलिल को देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० से अधिक  सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, कायस्थ कीर्तिध्वज, कायस्थ भूषण २ बार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, वास्तु गौरव, सर्टिफिकेट ऑफ़ मेरिट ५ बार, उत्कृष्टता प्रमाण पत्र २, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, सत्संग शिरोमणि, साहित्य श्री ३ बार, साहित्य भारती, साहित्य दीप, काव्य श्री, शायर वाकिफ सम्मान, रासिख सम्मान, रोहित कुमार सम्मान, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, नोबल इन्सान, मानस हंस, हरी ठाकुर स्मृति सम्मान, बैरिस्टर छेदी लाल स्मृति सम्मान, सारस्वत साहित्य सम्मान २ बार हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग के शताब्दी समारोह अयोध्या में ज्योतिषपीठाधीश्वर जगद्गुरु वासुदेवानंद जी के कर कमलों से वाग्विदाम्बर सम्मान से अलंकृत होनेवाले वे मध्य प्रदेश से एकमात्र साहित्यकार हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, एवं गोवा के महामहिम राज्यपालों, म.प्र. के विधान सभाध्यक्ष, राजस्थान के माननीय मुख्य मंत्री, जबलपुर - लखनऊ एवं खंडवा के महापौरों, तथा हरी सिंह गौर विश्व विद्यालय सागर, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपतियों तथा अन्य अनेक नेताओं एवं विद्वानों ने विविध अवसरों पर उनके बहु आयामी योगदान के लिए सम्मानित किया है; तथा वर्ष २०२१ में अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र की ओर से आपके परोपकारी कार्य  छंद ज्ञान की  श्रंखला में निरंतरता बनाये रखने हेतु आपको आचार्य वामन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

 

रा.प्र. सिंह ‘आचार्य प्रताप’

प्रबंध निदेशक

अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

सोमवार, 29 मार्च 2021

जोगिरा सारारारारा जोगिरा सारारारारा होली दोहे

#दोहे

जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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नयन सरोवर सम प्रिये , रक्तिम अधर कपोल। 
केश सुसज्जित देखकर , मन जाता है डोल।।०१।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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मृगनयनी मीन-आक्षी , मंजु मयूरी चाल।
रंगों के इस पर्व पर  , रँग दूँगा अब गाल ।।०२।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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आज #होलिका‌ दह रही , #होली_का है पर्व।
हमें भक्त प्रहलाद की ,  भक्ति पर है गर्व।।०३।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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राजनीति किस ढंग की ,  करते चौकीदार ।
मोदी-मोदी  ही  करें , जनता आज  पुकार।।०४।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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मन मर्जी लिखते सभी , अपने सकल विधान।
भाव -  शिल्प  के  ज्ञान  से ,  रहते  ये अंजान।।०५।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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जन-गण होली खेलते , लेकर रंग गुलाल।
युगों-युगों से चल रही , यही प्रथा गोपाल।।०६।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 
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मिटे धारा से ईर्ष्या , अनाचार व्यभिचार।
मन तन हर्षित कर रहा , रंगों का त्यौहार।।
जोगिरा  सारारारारा जोगिरा  सारारारारा 

आचार्य प्रताप

शनिवार, 27 मार्च 2021

होली मिलन समारोह-2

आज के कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध समीक्षक  साहित्यकार आद. दादा श्री #गिरेंद्र_सिंह_भदौरिया '#प्राण' जी की उपस्थिति में  झुनझुन , राजस्थान के प्राध्यापक तथा प्राच्य विभाग के शोध-निदेशक #डॉ_सूर्य_नारायण_गौतम जी  सहित  , जयपुर से #सलोनी_क्षितिज जी , #डॉ_पूजा_मिश्रा_आशना' जी  सभी ने एक से बढ़कर एक होली की रचनाओं का पाठ किया।
दादाश्री #प्राण जी ने अतिन्यून समय में अक्षरवाणी काव्य-मंजरी  के निवेदन को स्वीकार कार अक्षरवाणी संस्कृत समाचार पत्रम्  को अनुग्रहित किया वहीं पर डॉ. गौतम जी ने भी न्यून समय में ही निवेदन को स्वीकारा जिसके लिए हम सदा आपके आभारी रहेंगे
कार्यक्रम में रंगारंग समारोह में अद्भुत और सुंदरतम् होली की रचनाओं का सभी ने  उत्कृष्ट प्रस्तुति दी।
जिसमें  संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्र भुवन वशिष्ठ जी ने मंगलाचरणम् के माध्यम से साहित्यिक यज्ञकुंड में अग्निहोत्र की तत्पश्चात् डॉ आशना जी ने वाणी की अधिष्ठात्री देवी माँ वीणापाणि की वंदना अपने कोठिल-कंठ के मध्यम से मधुरतम् प्रस्तुति दी तब जाकर माँ वीणापाणि ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में सहयोग किया।
तब जयपुर से सलोनी क्षितिज जी ने होली की अद्भुत रचना प्रस्तुत करते हुए ब्रज के लाल कन्हैया तथा उनकी गोपियों के रंग खेलने को एक अद्भुत काव्य रूप में सृजित कर हम सब को कर्णप्रिय स्वरों में शब्दामृत बरसाया और हमारे मन-मस्तिष्क को आनंदमयी बना कर आगे बढ़ने का आदेश दिया तब डॉ. आशना जी ने पुनः अपने कोकिलकंठ से होली की रचना जिसमें प्रच्य होली को सवैया छंद तथा कुकुभ ,लावणी , ताटंक छंद में सुनाया और मनविभोर  कर दिया।
होली की विशेषता बताते इस डॉ. गौतम जी ने  हिंदी की सहभाषा बघेली  में अपना काव्यपाठ किया और हमें रसानंद प्रदान किया कार्यक्रम के अंतिम चरण में दादा श्री ने सभी की समीक्षात्मक आशीर्वाद प्रदान किया और अपनी अद्भुत और अविस्मरणीय एकाक्षरी रचना प्रस्तुत की  जो कि संस्कृत के पूर्व विद्वान तथा महाकवि माघ तथा भारवी जी की शिल्पात्मक दृष्टि के समतुल्य  रचना  रखी और अपना परिचय काव्यरूप में प्रदान किया तथा अंत में डॉ. गौतम जी ने कल्याण मंत्र से कार्यक्रम की समाप्ति की , इस समस्त कार्यक्रम को संबोधित और संचालित करने का शुभ अवसर  स्वयं मुझे  प्राप्त हुआ तथा कार्यक्रम की परिकल्पना और योजना सलोनी क्षितिज जी ने बनाई।

सभी के आगमन और अद्भुत प्रस्तुति के लिए  मैं और अक्षरवाणी दोनों सदा ही आभारी रहेंगे।
आप यह कार्यक्रम यहाँ देख सकते हैं।
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https://youtu.be/gKvK8ImkaPM

मंगलवार, 9 मार्च 2021

नारी और वेद

 

नारी शब्द की उत्पति (न + अच् ) ‘नृ’ नर में ई प्रत्यय जोड़ने से हुआ है जो कि यौगिक शब्द है  विभिन्न शब्द शास्त्रियों ने नारी , स्त्री , महिला इन शब्दों को लेकर जो माथापच्ची किया है उन सब में पुरुषवादी पूर्वगृह और पितृसत्ताकत्मक रुझान स्पष्ट दिखतें हैं  यास्क ने अपने निरुक्त में ‘स्त्यै’  धातु से इसकी उत्पति की है  और कहा हैकि – ‘लज्जार्थास्य लाजन्तेपि हि ताः’ जिसका अर्थ है ‘लज्जा से सिकुड़ना’

 

नारी शब्द के अर्थ:

संस्कृत :

१-नारी शब्द न्रि या नर से बना है, यास्क के अनुसार नर का अर्थ है नाचने वाला। पुरुष काम पूर्ति के लिए हाथ पैर नचाता है, इसलिए वह नर है और नर की काम भावना में सहयोगी होने के कारण स्त्री नारी है।

२- स्त्री शब्द स्तये धातु से बना है, जिसका पाणिनि ने अर्थ "शब्द करना" किया है। व्युत्पत्ति कोष के मुताबिक शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध का समुच्चय स्त्री है।

३- मह+इलच+आ =महिला अर्थात पति का सम्मान करने वाली होने के कारण वह महिला है।

अंग्रेजी :

१- वूमन (Woman) शब्द Anglo saxan भाषा से आया है, वहां इसका अर्थ है आदमी की संपत्ति।

२- लेडी (Lady) पहले यह शब्द हाफ ब्रेड के रूप में प्रयुक्त होता था, जिसका अर्थ है, आटा गूंथने वाली। इसी से लेडी शब्द बना है, जो आज सम्मानित स्त्री के लिए प्रयुक्त होता है।

३- मेल Male में फी लगाकर फ़ीमेल शब्द बना है, जिसका अर्थ है पुरुष की।

संसार की किसी भी धर्मिक पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुणगान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं।कुछ उद्हारण देकर हम अपने कथन को सिद्ध करेगे

 

संसार की किसी भी धर्म पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुण गान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं।कुछ उद्हारण देकर हम अपने कथन को सिद्ध करेगे।

१. उषा के समान प्रकाशवती-

ऋग्वेद ४/१४/३

हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम्, सुंदरम की अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ , अपने विस्मयकारी सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो। जन-जन को सुख देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ।

२.वीरांगना-

यजुर्वेद ५/१०

हे नारी! तू स्वयं को पहचान। तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर। हे नारी ! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर! हे नारी ! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं, धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर।

३.वीर प्रसवा

ऋग्वेद १०/४७/३

राष्ट्र को नारी कैसी संतान दे

हमारे राष्ट्र को ऐसी अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करनेवाली हो, विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो, प्रशंशनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो।

४. विद्या अलंकृता

यजुर्वेद २०/८४

विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे। वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे। अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम -यज्ञ एवं ज्ञान- यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे।

५. स्नेहमयी माँ

अथर्वेद ७/६८/२

हे प्रेमरसमयी माँ! तुम हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो। हम तुम्हारी कृपा- दृष्टि से कभी वंचित न हो।

६. अन्नपूर्ण

अथर्ववेद ३/२८/४

इस गृह आश्रम में पुष्टि प्राप्त हो, इस गृह आश्रम में रस प्राप्त हो। इस गिरः आश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों पोषक पदार्थों का दान कर। हे यम- नियमों का पालन करने वाली गृहणी! जिन गाय आदि पशु से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया॥

जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियो कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।

            ऋग्वेद 8/33 में नारी को कहा गया है कि "स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ" अर्थात इस प्रकार से उचित सभ्यता के नियमों का पालन करती हुई नारी निश्चित रूप से ब्रह्मा के पद को पाने योग्य बन सकती है।

विश्वआरा, अपाला, घोषा, गार्गी,लोपामुद्रा, मैत्रेयी, सिकता, रत्नावली ये समस्त नारी वैदिक युग की विदुषी थीं