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जिसे देखकर हर्षाऊँ मैं।
सम्मुख उसके बलखाऊँ मैं।
सब कुछ मेरा उसे समर्पण
क्या सखि साजन? ना सखि दर्पण।।०१।।
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जिसे देखकर हर्षाऊँ मैं।
पहन-ओढ़कर बलखाऊँ मैं।
मुझसे चिपके सदा अनाड़ी।
क्या सखि साजन? ना सखि साड़ी।।०२।।
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उसकी ध्वनि है कर्ण-प्रिये।
मन हर्षित होकर झूम-जिये।
जिसकी धुन करती है घायल।
क्या सखि साजन? ना सखि पायल।।०३।।
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