मधु का प्याला

ये समस्त दोहे आज से ठीक एक वर्ष पूर्व लिखे गए थे |

 दोहे

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खड़े पंक्ति में हो गए , हाला की थी बात।
राशन की होती अगर , बतलाते औकात।।०१।।
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पंक्ति बनाकर मौन सब , खड़े हुए चुपचाप।
मधुशाला के सामने , देखो तुम्हीं प्रताप।।०२।।
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बड़े दिनों से बंद थे , मधुशाला के द्वार।
मादक पेयी के हृदय , चलती रही कटार।।०३।।
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खुले हुए हैं आज-कल, मधुशाला के द्वार ।
मदिरा-पेयी के हृदय , जागी खुशी अपार।।०४।।
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खुले हुए पट देखकर , मधुशाला के आज।
आंनदित हो नाचती , मधुबाला तन साज।।०५।।
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भींग रहें हैं मधुकलश , बड़े दिनों के बाद।
हाला - प्याला की सुने , अद्भुत सुंदर नाद।०६।।
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मधुशाला के मधुकलश , भींग रहें हैं आज।
भूल ऋचाओं को गए , भूले सभी नमाज़।।०७।।
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उन्मादित हो नाचते , प्याला हाला साथ।
मधुशाला को मानते , अपने - अपने नाथ।।०८।।
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मधुशाला को खींचती , मधुबाला की याद।
कर्ण-प्रिये लगतीं शुभे! , प्यालों की तब नाद।।०९।।
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त्रय अंगुल हैं थामती , मधुप्याले का भार।
किंतु न जाने क्यों यहाँ , डूब रहा संसार।।१०।।
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आचार्य प्रताप
Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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