नारी शब्द की उत्पति (न +
अच् ) ‘नृ’ नर में ई प्रत्यय जोड़ने से हुआ है जो कि यौगिक शब्द है विभिन्न शब्द शास्त्रियों ने नारी , स्त्री ,
महिला इन शब्दों को लेकर जो माथापच्ची किया है उन सब में पुरुषवादी पूर्वगृह और
पितृसत्ताकत्मक रुझान स्पष्ट दिखतें हैं
यास्क ने अपने निरुक्त में ‘स्त्यै’
धातु से इसकी उत्पति की है और कहा
हैकि – ‘लज्जार्थास्य लाजन्तेपि हि ताः’ जिसका अर्थ है ‘लज्जा से सिकुड़ना’
नारी शब्द
के अर्थ:
संस्कृत :
१-नारी शब्द
न्रि या नर से बना है, यास्क के अनुसार नर का अर्थ
है नाचने वाला। पुरुष काम पूर्ति के लिए हाथ पैर नचाता है, इसलिए
वह नर है और नर की काम भावना में सहयोगी होने के कारण स्त्री नारी है।
२- स्त्री
शब्द स्तये धातु से बना है, जिसका पाणिनि ने अर्थ
"शब्द करना" किया है। व्युत्पत्ति कोष के मुताबिक शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध का
समुच्चय स्त्री है।
३- मह+इलच+आ
=महिला अर्थात पति का सम्मान करने वाली होने के कारण वह महिला है।
अंग्रेजी :
१- वूमन (Woman)
शब्द Anglo saxan भाषा से आया है,
वहां इसका अर्थ है आदमी की संपत्ति।
२- लेडी (Lady)
पहले यह शब्द हाफ ब्रेड के रूप में प्रयुक्त होता था, जिसका अर्थ है, आटा
गूंथने वाली। इसी से लेडी शब्द बना है, जो आज सम्मानित
स्त्री के लिए प्रयुक्त होता है।
३- मेल Male
में फी लगाकर फ़ीमेल शब्द बना है, जिसका अर्थ है पुरुष की।
संसार की किसी भी धर्मिक पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुणगान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं।कुछ उद्हारण देकर हम अपने कथन को सिद्ध करेगे
संसार की किसी भी धर्म
पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुण गान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता
हैं।कुछ उद्हारण देकर हम अपने कथन को सिद्ध करेगे।
१. उषा के समान प्रकाशवती-
ऋग्वेद ४/१४/३
हे राष्ट्र की पूजा योग्य
नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम्, सुंदरम की
अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ , अपने विस्मयकारी
सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो। जन-जन को सुख
देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ।
२.वीरांगना-
यजुर्वेद ५/१०
हे नारी! तू स्वयं को पहचान।
तू शेरनी हैं, तू शत्रु
रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने
अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर। हे नारी ! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने
वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर!
हे नारी ! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं,
धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर।
३.वीर प्रसवा
ऋग्वेद १०/४७/३
राष्ट्र को नारी कैसी संतान
दे
हमारे राष्ट्र को ऐसी
अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में
कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में
प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करनेवाली हो,
विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो,
प्रशंशनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो।
४. विद्या अलंकृता
यजुर्वेद २०/८४
विदुषी नारी अपने
विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे। वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों
से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे। अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा
संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम
-यज्ञ एवं ज्ञान- यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे।
५. स्नेहमयी माँ
अथर्वेद ७/६८/२
हे प्रेमरसमयी माँ! तुम
हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे
लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने
वाली बनो। हम तुम्हारी कृपा- दृष्टि से कभी वंचित न हो।
६. अन्नपूर्ण
अथर्ववेद ३/२८/४
इस गृह आश्रम में पुष्टि
प्राप्त हो, इस गृह
आश्रम में रस प्राप्त हो। इस गिरः आश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों
पोषक पदार्थों का दान कर। हे यम- नियमों का पालन करने वाली गृहणी! जिन गाय आदि पशु
से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र देवता।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते
सर्वास्तत्राफला: क्रिया॥
जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं,
उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम
संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियो कि पूजा नहीं होती, वहां
जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।
ऋग्वेद 8/33 में नारी को कहा गया है कि "स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ" अर्थात इस प्रकार से उचित सभ्यता के नियमों का पालन करती हुई नारी निश्चित रूप से ब्रह्मा के पद को पाने योग्य बन सकती है।
विश्वआरा, अपाला, घोषा, गार्गी,लोपामुद्रा, मैत्रेयी, सिकता, रत्नावली ये समस्त नारी वैदिक युग की विदुषी
थीं
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