दोहा त्रयी

दोहे
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दर्शन विमल विचार है,
सुचिता जीवन सार

व्याख्यायित इससे सदा,
शाब्दिक यह संसार 01
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जगत-प्रीत बहु आज है,
विषय-भोग परिहास


ज्ञान-ध्यान हरि-भजन की,
नहीं किसी को आस 02
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चले पवन प्रतिकूल अब,
सखे! जगत की रीति

माँझी एक सहाय है,
जिससे आपनी प्रीति 03
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आचार्य प्रताप


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Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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