दोहे
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दर्शन
विमल विचार है,
सुचिता जीवन सार।
व्याख्यायित
इससे सदा,
शाब्दिक यह संसार ।।01।।
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जगत-प्रीत
बहु आज है,
विषय-भोग परिहास।
ज्ञान-ध्यान
हरि-भजन की,
नहीं किसी को आस ।।02।।
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चले
पवन प्रतिकूल अब,
सखे! जगत की रीति।
माँझी
एक सहाय है,
जिससे आपनी प्रीति ।।03।।
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आचार्य प्रताप
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