प्रताप-सहस्र से दोहा-अष्टक (सौंदर्यपूर्ण आशुचित्र देख कर उपजे दोहे )

दोहावली
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सुंदर मुखड़ा देखकर ,  मोहित हुआ प्रताप।
ज्ञान बड़ा सौंदर्य से , सुंदरता अभिशाप।।०१।।
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मुखड़ा सुंदर है बहुत, बड़ा तुम्हारा ज्ञान।
ज्ञान-ज्ञान से जब मिले ,  दूर हुए आज्ञान।।०२।।
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होता पीड़ा से भरा, सदा प्रेम का रोग।
कहता आज प्रताप फिर, मत कर ऐसा योग।।०३।।
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कैसे कह दूँ प्रेम है, तुमसे अब भी मीत।
व्याकुल मन विचलित रहे, लिखूँ विरह के गीत।।०४।।
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नयन अधर सुंदर दिखे, सुंदर दिखा कपोल।
स्वार्णिम तेरे केश ये ,  रूप तेरा अनमोल।।०५।।
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विधु से पूँछूँ मैं सदा,अब तक मिले न नैंन।
दिखती कैसी प्रेयसी, हर पल मैं बेचैन।।०६।।
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प्रीतम प्रीत प्रसंग पर  ,प्रियवर प्रिय तव  प्रेम।
तुम बिन जीवन रस नहीं, शांति नहीं ना क्षेम।।०७।।
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दर्शन दे जा शुभाश्री, मिला नयन से नैन।
फिर मन शीतलता मिले  , मिले तभी उर चैन।।०८।।
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आचार्य प्रताप
Achary Pratap

समालोचक , संपादक तथा पत्रकार प्रबंध निदेशक अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचार पत्र

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