परिचय
नाम -जगदीश शर्मा सहज
पता -अशोकनगर म.प्र.
जन्मवर्ष 1975
शिक्षा- बीएससी(गणित),एमए (इतिहास), कंप्यूटर स्नातक
विधा- कविता, छन्द, गज़ल, गीत लेखन
प्रकाशित कृति:-आस्था के मोती (छन्द संग्रह)
संप्रति:- विधि व्यवसाय
इसे बनाने का उद्देश्य यह है कि मेरे पाठक मित्र तथा सभी चाहने वाले मुझसे जुड़े रहें और मेरी कविताएँ छंदों के अनुशासन , मेरे अपने विचार, मैं अपने पाठकों तक पहुँचा सकूँ। मेरे द्वारा लिखी गई टिप्पणियाँ, पुस्तकों के बारे में , उनकी समीक्षाएँ , आलोचनाएँ ,समालोचनाएँ तथा छंदों के अनुशासन , मेरे अपने शोध तथा विशेष तौर पर हिंदी भाषा के प्रचार - प्रसार में मेरे द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन मैं इसके माध्यम से अपने मित्रो तक पहुँँचा सकूँ।
परिचय
नाम -जगदीश शर्मा सहज
पता -अशोकनगर म.प्र.
जन्मवर्ष 1975
शिक्षा- बीएससी(गणित),एमए (इतिहास), कंप्यूटर स्नातक
विधा- कविता, छन्द, गज़ल, गीत लेखन
प्रकाशित कृति:-आस्था के मोती (छन्द संग्रह)
संप्रति:- विधि व्यवसाय
Live-7
परिचय-
नाम -भाऊराव महंत
पिता - श्री परदेशीलाल महंत
माता - श्रीमती दुर्गा महंत
पता - ग्राम बटरमारा, पोस्ट खारा, जिला बालाघाट, (मध्यप्रदेश)
प्रकाशन - पहला कदम (ग़ज़ल संग्रह) साहित्य अकादमी भोपाल से अनुदान से प्रकाशित व अनेक साझा संग्रह।
राष्ट्रीय सम्मान - पुर्ननवा सम्मान 2020, हिंदी साहित्य सम्मेलन मध्यप्रदेश भोपाल
सम्मान - हिंदी रत्न, मुक्तक शिरोमणि, दोहा शिरोमणि, मुक्तक सम्राट, काव्य शिखर, काव्य श्री व अनेक सम्मान
राष्ट्र-जगत के 'सवाल' और एक उत्तरदायी पत्रकारिता की 'सरोकारिता'
प्रो.ऋषभ देव शर्मा जी के द्वारा लिखी गई समस्त टिप्पणियों को पढ़ने के बाद यदि कोई मुझसे पूछता है कि प्रो. शर्मा जी की पुस्तकों में से यह कौन सी पुस्तक है तो यह कहना तो मेरे लिए कठिन कार्य तो नहीं है किंतु मेरे द्वारा पढ़ी गई यह दूसरी पुस्तक है यह कहना मेरे लिए सहज और सरल होगा। उसी क्रम में ‘सवाल और सरोकार’ उनकी रोचक और चुटीली समसामयिक टिप्पणियों का तीसरा संग्रह है। जैसा कि जगत व्याप्त है कि आप देश की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, लोकतांत्रिक और धार्मिक स्थितियों पर टिप्पणी लिखने में कुशल हैं। आपकी इस पुस्तक सवाल और सरोकार भी इन्हीं में से एक है। जिसमे 60 संक्षिप्त, सारगर्भित एवं रोचक समसामयिक संपादकीयों को आपने सद्य: प्रकाशित पुस्तक ‘सवाल और सरोकार’ (2020) में रखा है।
प्रसिद्ध तेवरीकार, कवि, आलोचक
और
पत्रकार
ऋषभदेव
शर्मा
की
दैनिक
संपादकीय
टिप्पणियाँ
पिछले
कुछ
वर्षों
में
काफी
लोकप्रिय
होकर
कई
अलग-अलग
संकलनों
के
रूप
में
आ
चुकी
हैं।
ऋषभदेव
शर्मा
के
संपादकीयों
में
कहीं
भी
उबाऊपन
नहीं
होता।
पठनीयता
उनका
विशेष
गुण
है।
समाचार
पत्र
में
प्रकाशित
संपादकीय
को
पढ़ने
और
पुस्तकाकार प्रकाशित
संपादकीय
को
पढ़ने
का
अनुभव
अलग-अलग
होता है।
क्योंकि
अब
ये
तात्कालिकता
की
सीमा
पारकर
अपनी
उत्तरजीविता
सिद्ध
करते
हैं।
इससे
पहले
प्रकाशित
उनके
संपादकीयों
के
दो
संकलन ‘संपादकीयम्’
(2019) और ‘समकाल
से
मुठभेड़’
(2019) की
काफी
चर्चा
हुई
है।
यह
पुस्तक कुल आठ खंडों में लिखी गई है किसी खंड में आठ किसी खंड में दस तो किसी खंड
में दो ही कुल मिलाकर यह औसत आलेख लिए
जाएं तो औसतन सात से आठ आलेख प्रत्येक खंड में हम सहजता से ले सकते हैं प्रत्येक
खंड में कुछ ना कुछ विशेष बात कही है
खंड 1 जिसका नाम सियासत की विसात में आठ
आलेख लिए गए हैं
उपराष्ट्रपति की पाठशाला , सभ्यता सार्वजनिक जीवन में, आरक्षण
की वकालत, है तो सही राजभाषा पर ,
एक दिन लोकतंत्र का भी, यह इश्क नहीं आसाँ, हिंदू
या मुस्लिम की एहसासत मत छेड़िए, ये
खतरनाक सच्चाई नहीं जाने वाली।
प्रत्येक
आलेखों पर आपने समाज में चल रही बुराइयां धार्मिक सामाजिक राजनैतिक लोकतांत्रिक
परिस्थितियों पर सब कुशल व्यंगात्मक टिप्पणी की है इसमें मुझे राजनीति पर जो आपने
टिप्पणी की है उपराष्ट्रपति की पाठशाला
इसमें एक शिक्षक होने के नाते यह आभास होता है कि आज के बच्चों को शिक्षा
कहाँ से मिल रही है जब सांसद ,
विधायक लोकसभा तथा राज्यसभा ,
विधानसभा में ऐसी उद्दंडता करते हैं तो निसंदेह आने वाली
पीढ़ी के छात्र और अधिक उद्दंड होंगे आपने अपने व्यंगात्मक शब्दों से उपराष्ट्रपति
को शिक्षक तथा सभी उपस्थित सदस्यों को छात्रों की उपमा दी है। आपका कथन सत्य
प्रतिशत सत्य है।
2
सितंबर 2019 को हिंदी डेली हिंदी मिलाप समाचार पत्र में प्रकाशित एक टिप्पणी सभ्यता
सार्वजनिक रूप से होनी चाहिए इसमें आपने बखूबी अपने कौशल को अंकित किया है सच है
की सभ्यता सार्वजनिक रूप से आवश्यक है चाहे वह पक्ष का हो या विपक्ष का दोनों को
एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए सभी धर्म सभी संप्रदाय तथा सभी जाति के समस्त लोगों
को एक दूसरे के मत संप्रदाय जाति का स्वागत करना चाहिए उनके विचारों पर चिंतन मनन
करना चाहिए ना कि उनका विरोध। यदि वह ऐसा कर सकते हैं तो निश्चित रूप से हमारा देश
एक अखंड भारत बनकर खड़ा होगा।
आपकी अगली आलेख में आपने आरक्षण पर टिप्पणी की है और आपका
मानना यह है कि आरक्षण की आवश्यकता अब नहीं रही उसे खत्म कर देना चाहिए।
हिंदी
दिवस के उपलक्ष में आपके द्वारा लिखा गया एक आलेख राजभाषा के बारे में यह शत
प्रतिशत सत्य है कि हिंदी हमारे भारत की राजभाषा है और होते हुए भी नहीं है
क्योंकि राजभाषा का अर्थ यह है राजकाज में प्रयोग की जाने वाली भाषा और आधुनिक समय
में अंग्रेजी का वर्चस्व इतना प्रभावी हो गया है कि देश की जनसंख्या का 55% भाग
अंग्रेजी में वार्तालाप लेखन कार्य एवं संवाद , पत्राचार इत्यादि करते हैं इसलिए राजभाषा होते हुए भी
हिंदी राजभाषा नहीं रही।
एक दिन
लोकतंत्र का भी इसमें आपने लोकतंत्र पर प्रहार करते हुए लिखा है कि लोकतंत्र में
भी हमें निज कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए निज कार्य करने चाहिए।
महाराष्ट्र की राजधानी पर आपने ठाकरे साहब पर व्यंग करते
हुए लिखा है कि ठाकरे साहब को यह ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है कि तीन बूढ़े
शेरों से एक युवा शेर के मध्य तकरार ना हो सभी के विचार एक दूसरे से मिलते रहें यह
हृदय को छूने वाली बात आपने लिखी है।
कश्मीर
पर भी आपने बहुत ही खूबसूरत टिप्पणी की है कश्मीर तो बस बहाना है कश्मीर के बारे
में पुरानी मुगल सम्राट ने कहा था कि यदि स्वर्ग कहीं है तो वो यहीं है यहीं है
यहीं है। आपने अपने आलेख में भी यही कहना चाहा है वहां पर शांति तथा प्रगति होनी
चाहिए ना की अराजकता तथा अशांति।
पाकिस्तान पर भी आपने काफी हद तक व्यंगात्मक एवं
प्रेरणात्मक टिप्पणियां की हैं जो कि पाठक के मन को अहला दित करती हैं एवं उनके
फतेह को छूकर उन्हें जय आवास दिलाती हैं कि नफरत हमें केवल और केवल अशांति के
मार्ग पर चलना सिखाती है ना कि शांति और सौहार्द के मार्ग पर।
हमें शांति और सौहार्द के मार्ग पर चलना है तो हमें अपने
हृदय से मन से यह एक दूसरे के प्रति नकारात्मक भावनाओं को निकाल फेंकना होगा।
लोक और
तंत्र दो शब्द मिलकर लोकतंत्र बनाते हैं जिस पर आपने काफी हद तक 5 से
अधिक टिप्पणियां देखें जिसमें आपने लोग और तंत्र के मध्य संबंध स्थापित ना हो पाने
की बातों को व्यंगात्मक रूप दिया है जहां एक तरफ प्रहरी प्रशासन तथा दूसरी तरफ
अधिवक्ताओं को आमने सामने रखा आप ने लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलने की बहुत
अच्छे विचार व्यक्त किया है जिस पर आपने बताया है कि अराजकता ही यह प्रमुख कारण है
जब लोकतंत्र भीड़ तंत्र में परिवर्तित हो जाता है इस चर्चा पर आपने जवाहरलाल नेहरू
विश्वविद्यालय का नाम उल्लेखित किया तथा एक विश्वविद्यालय में हुई है उस महिला प्रोफेसर के बारे में भी अपने उल्लेखित
किया जिन्हें अपमानित तथाकथित छात्रों ने
किया था , एक प्राध्यापक के प्रति शिक्षा
के मंदिर में ही दुर्व्यवहार किया गया था यह एक निंदनीय कुकृत्य रहा।
जनता और
सत्ता दुश्मन है क्या इस टिप्पणी पर आपने सत्ता को जनता के तथा जनता को सत्ता के
विरोधी होने पर आपने विचार व्यक्त किए हैं जिस पर आपने यह बहुत अच्छी तरीके से
आपने लिखा कि जनता और सत्ता दोनों परस्पर एक दूसरे संपूरक है एक दूसरे के बिना और दूसरा पहले के
बिना पूर्ण नहीं है किंतु ऐसी हीन भावना कब तक चलेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। 2019 में
बनाए गए नागरिकता संशोधन अधिनियम पर भी आपने अपनी व्यंगात्मक टिप्पणी दी है और
अपनी यह बताया कि इससे सत्ताधारी तथा सत्ताधारी दोनों ही लोग अराजकता फैलाने के
लिए दोषी हैं इसे हम अराजकता कहे या आंदोलन यह कहना थोड़ा कठिन कार्य होगा क्योंकि
असत्ताधारी आंदोलन का नाम देते हैं तथा सत्ताधारी अराजकता कहते हैं।
हैदराबाद में पशु चिकित्सक डॉ प्रियंका रेड्डी के केस में भी आपने अपने कागज को
स्याहीमय किया और न्याय व्यवस्था को
तत्काल न्याय के बारे में आपने लिखा
विभत्स हत्याकांड का तुरंत न्याय मिला।
आपने ऐसे दुष्कर्म का दोषी न्याय व्यवस्था तथा पुलिस
प्रशासन को माना है आपकी एक ही टिप्पणियां बहुत अधिक ज्ञानवर्धक कथा पाठक के हृदय
को रचित करने वाली है कहीं-कहीं पर पाठक पढ़कर उत्साहित हो जाता है कहीं वह वीर रस
से रचित हो जाता है कहीं करुण के भाव उत्पन्न होते है ,तो
कहीं मानव हृदय विभत्स हो जाता है ।
सोशल मीडिया का जितना सदुपयोग होना चाहिए वह नहीं हो पा रहा
किंतु इसके विप्रा अर्थ सोशल मीडिया का दुरुपयोग काफी हद तक किया जा रहा है जिसमें
एक दूसरे के प्रति नफरत ,अभद्रता, अश्लीलता ,
भय और आतंक फैलाने
का काम भी इसी सोशल मीडिया का है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि
आप मनमर्जी करें अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ यह है कि आप स्वतंत्र रूप से बोल
सकें किंतु आपके शब्दों में मृदुलता एकता अखंडता एवं सामाजिक सद्भावना होनी चाहिए।
---------------------------
पुस्तक -सवाल और सरोकार
लेखक- प्रो. ऋषभ देव शर्मा
विधा -समसामयिक टिप्पणियाँ
प्रकाशन- परिलेख प्रकाशन (उत्तर प्रदेश)
वितरक : श्रीसाहिती प्रकाशन, हैदराबाद/ मो. 9849986346
संस्करण : 2020
मूल्य- ₹140/-
पृष्ठ -132
आईएसबीएन : 978-93-84068-96-7
----------------------------------------
समीक्षक-
आचार्य प्रताप
प्रबन्ध निदेशक
अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचर पत्रम्
अणुड़ाक-acharypratap@outlook.com
संपर्कसूत्र- +91-8121-487-232
आपका नाम श्याम सुन्दर पाठक है। आप धनबाद , झारखंड की धरती को सुशोभित कर रहें हैं । आगे आपके शब्दों में- जनाब शौकिया लिख लिया करता हूँ या यों कहें माँ सरस्वती का कृपा प्रसाद पन्नों पर फैल जाती हैं । 52 बसन्त का दीदार किये नेत्रों पर चश्मे ने आशियाना बना ली है ।पूज्य पिता स्वर्गीय सियाबिहारी शरण पाठक की सदिच्छा के कारण एम.ए.पास हो गया ।उनकी नजर में बेटे के मस्तक पर स्नातकोत्तर का तमगा बहुत ही सम्मानप्रद था इसलिए मैंने भी ले ली खैर उसी उपाधि ने मुझे सरकारी विद्यालय का माहटर भी बना दिया । मैं बन गया सरकार का रजिस्टर्ड नौकर,जहाँ अपनी इच्छा नही सरकारी फरमान चलता है । आगे जब मन के तार कभी झंकृत होते तो कुछ शब्द प्रस्फुटित होजाते थे उसी को अक्षरवाणी ने कविता मान ली और मुझे कवि! पर दोस्तों काव्य की मुझे समझ नही हाँ अपनी भावना���ं को शब्दों का अमलीजामा पहनाने मुझे अब आ गया है। -Shyam Sundar Pathak ----- #aksharvanikavyamanjari #ShyamSundarPathak | Shyam Sundar Pathak | live-5
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' एक व्यक्ति मात्र नहीं अपितु संस्था भी है. अपनी बहुआयामी गतिविधियों के लिए दूर-दूर तक जाने और सराहे जा रहे सलिलजी ने हिन्दी साहित्य में गद्य तथा पद्य दोनों में विपुल सृजन कर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई है. गद्य में कहानी, लघु कथा, निबंध, रिपोर्ताज, समीक्षा, शोध लेख, तकनीकी लेख, तथा पद्य में गीत, दोहा, कुंडली, सोरठा, गीतिका, ग़ज़ल, हाइकु, सवैया, तसलीस, क्षणिका, भक्ति गीत, जनक छंद, त्रिपदी, मुक्तक तथा छंद मुक्त कवितायेँ सरस-सरल-प्रांजल हिन्दी में लिखने के लिए बहु प्रशंसित सलिल जी शब्द साधना के लिए भाषा के व्याकरण व् पिंगल दोनों का ज्ञान व् अनुपालन अनिवार्य मानते हैं. उर्दू एवं मराठी को हिन्दी की एक शैली माननेवाले सलिल जी सभी भारतीय भाषाओं को देव नागरी लिपि में लिखे जाने के महात्मा गाँधी के सुझाव को भाषा समस्या का एक मात्र निदान तथा राष्ट्रीयता के लिए अनिवार्य मानते हैं.
श्री सलिल साहित्य सृजन के साथ-साथ साहित्यिक एवं तकनीकी पत्रिकाओं और पुस्तकों के स्तरीय संपादन के लिए समादृत हुए हैं. वे पर्यावरण सुधार, पौधारोपण, कचरा निस्तारण, अंध श्रद्धा उन्मूलन, दहेज़ निषेध, उपभोक्ता व् नागरिक अधिकार संरक्षण, हिन्दी प्रचार, भूकंप राहत, अभियंता जागरण आदि कई क्षेत्रों में एक साथ पूरी तन्मयता सहित लंबे समय से सक्रिय हैं. मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता एवं म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में उन्होंने बिना लालच या भय के अपने दायित्व का कुशलता से निर्वहन किया है.
साहित्य सृजन :-
श्री सलिल की प्रथम कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है जिसमें चराचर के कर्म देव श्री चित्रगुप्त को परात्पर परमब्रम्ह, सकल सृष्टि रचयिता एवं समस्त शक्तियों का स्वामी प्रतिपादित कर नव अवधारणा प्रस्तुत की गई है. 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' सलिल जी की छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं. सम्यक शब्दावली, शुद्ध भाषा, सहज प्रवाह, सशक्त प्रतीक, मौलिक बिम्ब विधान, सामयिक विषय चयन तथा आशावादी दृष्टिकोण के सात रंगों के इन्द्र धनुष सलिल जी की कविताओं को पठनीय ही नहीं मननीय भी बनाते हैं. सलिल जी की चौथी प्रकाशित कृति 'भूकंप के साथ जीना सीखें' उनके अभियांत्रिकी ज्ञान का समाज कल्याण हेतु किया गया अवदान है. इसमें २२ मई १९९७ को जबलपुर में आए भूकंप से क्षतिग्रस्त इमारतों की मरम्मत तथा भूकंपरोधी भवन निर्माण की तकनीक वर्णित है.
उक्त के अतिरिक्त विविध विषयों एवं विधाओं पर सलिल जी की २० कृतियाँ अप्रकाशित हैं. होशंगाबाद से प्रकाशित पत्रिका 'मेकलसुता' के प्रवेशांक से सतत प्रकाशित-प्रशंसित हो रही लेखमाला 'दोहा गाथा' सलिल जी का अनूठा अवदान है जिसमें हिन्दी वांग्मय के कालजयी छंद दोहा के उद्भव, विकास, युग परिवर्तन में दोहा की निर्णायक भूमिका के प्रामाणिक उदाहरण हैं.
संपादन :-
इंजीनियर्स टाइम्स, यांत्रिकी समय, अखिल भारतीय डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ पत्रिका, म.प्र. डिप्लोमा इंजीनियर्स मंथली जर्नल, चित्राशीश, नर्मदा, दिव्य नर्मदा आदि पत्रिकाओं; निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों एवं शिल्पान्जली, लेखनी, संकल्प, शिल्पा, दिव्यशीश, शाकाहार की खोज, वास्तुदीप, इंडियन जिओलोजिकल सोसायटी स्मारिका, निर्माण दूर भाषिका जबलपुर, निर्माण दूर्भाशिका सागर, विनायक दर्शन आदि स्मारिकाओं का संपादन कर सलिल जी ने नए आयाम स्थापित किए हैं.
समयजयी साहित्य शिल्पी भागवतप्रसाद मिश्र 'नियाज़' : व्यक्तित्व एवं कृतित्व श्री सलिल द्वारा संपादित श्रेष्ठ समालोचनात्मक कृति है. उक्त के ऐरिक्त सलिल जी ने ८ परतों के २१ रचनाकारों की २४ कृतियों की भूमिकाएँ लिखी हैं. यह उनके लेखन-संपादन कार्य की मान्यता, श्रेष्ठता एवं व्यापकता का परिणाम है.
सम्मान :
श्री सलिल को देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, कायस्थ कीर्तिध्वज, कायस्थ भूषण २ बार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, वास्तु गौरव, सर्टिफिकेट ऑफ़ मेरिट ५ बार, उत्कृष्टता प्रमाण पत्र २, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, सत्संग शिरोमणि, साहित्य श्री ३ बार, साहित्य भारती, साहित्य दीप, काव्य श्री, शायर वाकिफ सम्मान, रासिख सम्मान, रोहित कुमार सम्मान, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, नोबल इन्सान, मानस हंस, हरी ठाकुर स्मृति सम्मान, बैरिस्टर छेदी लाल स्मृति सम्मान, सारस्वत साहित्य सम्मान २ बार . उनकी प्रतिभा को उत्तर प्रदेश, राजस्थान, एवं गोवा के महामहिम राज्यपालों, म.प्र. के विधान सभाध्यक्ष, राजस्थान के माननीय मुख्या मंत्री, जबलपुर - लखनऊ एवं खंडवा के महापौरों, तथा हरी सिंह गौर विश्व विद्यालय सागर, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपतियों तथा अन्य अनेक नेताओं एवं विद्वानों ने विविध अवसरों पर उनके बहु आयामी योगदान के लिए सम्मानित किया है.
परिचय नाम ------ माया अग्रवाल माता का नाम -- स्व० सावित्री देवी पिता का नाम -- स्व० टेकचंद अग्रवाल पति का नाम --- स्व० चमन लाल अग्रवाल जन्म तिथि --- 07 - 01 - 1952 व्यवसाय --- गृहिणी प्रकाशित कृतियाँ -- ग़ज़ल साझा संग्रह "अंजुमन" , हाल ही में प्रकाशित पुस्तक "वीथियाँ गीतों की" पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन --- साप्ताहिक " साहित्य तरकश" , "उत्कर्ष ऐक्सप्रैस" , शेषामृत पत्रिका , "खिली धूप हैं हम" पत्रिका । सम्मान व उपलब्धियाँ -- "साहित्य सागर रत्न सम्मान" , "काव्य गौरव सम्मान" , "गुरु द्रोण सम्मान" , प्रयास सरला नारायण ट्र्स्ट में सर्व श्रेष्ठ गीत के लिए प्रशस्ति पत्र डा० विष्णु सक्सेना के द्वारा, "राष्ट्रीय कवयित्री मंच" के आयोजन में प्रथम पुरस्कार के तहत "प्रशस्ति पत्र व ट्रॉफी" से सम्मानित डॉ० विष्णु सक्सेना द्वारा चलाए जा रहे प्रयास ( गीतों की प्रतियोगिता )नामक आयोजन जो कि राष्ट्रीय स्तर पर होता है , सितंबर 2019 की विजेता बन चुकी हूँ तथा उत्तर प्रदेश के सिकन्दराराऊ में मुझे विष्णु सक्सेना द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है । ------ #aksharvanikavyamanjari #mayaagarwal | Maya Agarwal | live-4 --------------- आप हमारे साथ यहाँ जुड़ सकते हैं https://www.facebook.com/groups/kavymanjari https://www.facebook.com/aksharvanikavyamanjari https://www.facebook.com/groups/aksharvanisanskritnewspaper https://www.facebook.com/aksharvanisanskritnewspaper
परिचय नाम - सुनीता लुल्ला जन्म- 02-09-1950 कोलकाता शिक्षा- एम.ए. हिन्दी, अंग्रेजी, बी.एड. विगत 43 वर्ष से हैदराबाद निवास व्यवसाय-35 वर्ष शिक्षण में 20 वर्ष प्रधानाध्यापिका-5 वर्ष प्रबन्धिका, अप्रैल 2015 में सेवा निवृत्त। सम्प्रति-पूर्ण रूपेण काव्य साधना,हिन्दी ,उर्दू,अंग्रेजी और सिन्धी में कविता,गीत,ग़ज़ल,दोहे,मुक्तक इत्यादि अभिरुचि- संगीत ,गीत गायन,भ्रमण, पढ़ना मेरा अपना बडा सा पुस्तक संग्रह है हिन्दी और अंग्रेजी में हिन्दी में प्रथम काव्य संग्रह " वो मैं ही हूँ " मार्च 2016 सिन्धी में ग़ज़ल संग्रह- " खुशबू तुहिंजी यादुन जी " 2016 हिंदी ग़ज़ल संग्रह -"कुछ रात कटे " 2017 परिवर्तन के चक्रवात 2019 परिंदा मन का 2019 सिंधी ग़ज़ल संग्रह 2019 मेरे भीतर आप (दोहा-संग्रह) 2020 पिछले 20 वर्ष से हैदराबाद से प्रकाशित " सिन्ध क्रोनिकल " मासिक पत्र की सह सम्पादिका ग़ज़ल-गुंजन ई-पत्रिका की संपादक मंडल में शामिल सम्मान- ------- साहित्य सेवा समिति- हैदराबाद से सम्मानित अंतरा शब्द शक्ति सम्मान ,भाषा सारथी सम्मान,इंदौर , सिंधी ग़ज़ल सम्मान , अमरावती पोएटिक प्रिज़्म, विजयवाड़ा , साहित्य संगम संस्थान द्वारा-'उस्ताद शायर सम्मान'। अनेकानेक रचनाये देश की साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित #aksharvanikavyamanjari, #sunitalulla ।।Sunita Lulla।। Live-3
आपपका लघ्वात्मक परिचय आपका पूरा नाम ज्योति नारायण है आपका जन्म १७ मार्च सन ---- को बिहार में हुआ था।
आपकी माता जी स्व. सुश्री शैल देवी तथा पिता स्व. श्री प्रद्दुयुम्न प्रसाद वर्मा ,स्वतंत्रता सेनानी थे।
आपके जीवन साथी पति श्रीमान प्रेम नारायण जी हैं।
आपकी शिक्षा निष्णात (एम. ए.) संगीत में स्नातक तथा आप सुयोग्य योग शिक्षिका , समाज सेविका हैं। वर्तमान में आप अपने गृहणी के दायित्व का निर्वहन हैं। आप एक पुत्री तथा एक पुत्र की माता तथा नतिनी अनुशा-१ ,पोता राधे-१, पोती सुभी- १, दादी/ नानी बनाकर आपने जीवन को सुखमय व्यतीत कर रहीं हैं। आपकी नागरिकता भारतीय है स्वतंत्र लेखन। गुरु-प्रकृति ,मूल- बिहार,कर्म भूमि तेलगंना,, छंद युक्त एंव छंद मुक्त हिन्दी में कविता लेखन कथा,आलेख ,समीक्षा, भजन आदि का लेखन आप स्वान्तः सुखाय हेतु करतीं हैं पंजाबी, तेलगु, मैथिली, में कविता अनुवादित , पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित,एक का अग्रेंजी में अनुवाद, पाँच संग्रह प्रकाश्य की ओर । आपने काव्य कभी सीखा नहीं, कोई संगत नहीं,बस लिखना अच्छा लगता था सो लिखने लगीं। अंत:प्रवाह स्वांत: सुखाय लेखन ,माँ सरस्वती जो लिखवा दें । दर्शन अध्यात्म में विशेष रुचि रखतीं हैं। काव्य क्षेत्र के संस्थाओं में बाहर पदार्पण पुत्री ने करवाया ।
उस्मानिया विश्वविद्यालय से तुलसी साहित्य शोध संस्थान की तरफ से नाटय प्रस्तुति, यू.एस.ए., न्यूयॉर्क में एकल नाट्य प्रस्तुति । -------- #aksharvanikavyamanjari #DrjyotiNarayan | jyoti Narayan 'Jyoti' | live-2 ---- आप हमारे साथ यहाँ जुड़ सकते हैं https://www.facebook.com/groups/kavymanjari https://www.facebook.com/aksharvanikavyamanjari https://www.facebook.com/groups/aksharvanisanskritnewspaper https://www.facebook.com/aksharvanisanskritnewspaper
आपका लघ्वात्मक जीवन परिचय -------------------------------------- आपका पूरा नाम 'रिखब चन्द राँका' तथा उपनाम : कल्पेश' आपका जन्म स्थान : अजमेर, राजस्थान है।
आपने शिक्षा : शास्त्री, शिक्षाशास्त्री, तथा एम. ए. संस्कृत भाषा से पूर्ण किया है। हिंदी साहित्य में गहरी पेठ रखने वाले मृदुभाषी 'कल्पेश' जी का हिंदी लेखन व साहित्य सेवा पिछले 24 वर्षो से अनवरत जारी है। कविता, गीत, भजन लिखना आपकी रूचि है। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2019 में 100 सम्मान प्राप्त करने का एक अद्भुत रिकॉर्ड है। आपकी कविताएँ भारत में ही नही अपितु विदेशों की अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। 'अजमेर शहर है मेरा' गीत पर लंदन यूनाइटेड किंगडम द्वारा सम्मानित किया गया है। राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षा की पुस्तकों में आपके नाम से प्रश्न बनकर आया। आपके द्वारा पाँच एकल पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं व सात साझा संकलनों में आपके रचनाएँ प्रकाशित की चुकी हैं । आपके द्वारा रचित चार पुस्तकें भारत के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुस्तकालय कोलकाता में पठनार्थ उपलब्ध है।
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कोशिश करने से कभी ,होती ना है हार।
लिखें कभी जो शब्द हम, ना जाते बेकार।।०१।।
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स्वबल दो-गुना हो गया ,पास रहें जब मित्र ।
अधरों पर मुस्कान तब , प्रणी बडा विचित्र।।०२।।
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गहरी प्रीत न कीजिये , संगी रखें न मित्र।
महाशत्रु से कम नहीं , जो वह हुआ विचित्र।।०३।।
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क्षमा गुरु का धर्म है, पालन करें सदैव।
त्रुटी शिष्य का धर्म है क्षमा कीजिये दैव।।०४।।
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चाहत हो यदि लक्ष्य की , करें परिश्रम और।
कम उत्साह न कीजिये , बनते फिर सिरमौर।।०५।।
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कृषक जगत आधार हैं , देवभूमि यह एक।
हल काँधे रख चल दिये , काम करें वो नेक।।०६।।
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उत्पादन कर अन्न का , देते जीवन दान।
जीवन दाता का कभी , मत करिए अपमान।।०७।।
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आचार्य प्रताप