रविवार, 29 नवंबर 2020

Live-9 जगदीश शर्मा 'सहज' अशोकनगर, मध्यप्रदेश

Live-9

परिचय



 नाम -जगदीश शर्मा सहज

पता -अशोकनगर म.प्र.

जन्मवर्ष 1975

शिक्षा- बीएससी(गणित),एमए (इतिहास), कंप्यूटर स्नातक

विधा- कविता, छन्द, गज़ल, गीत लेखन

प्रकाशित कृति:-आस्था के मोती (छन्द संग्रह)

संप्रति:- विधि व्यवसाय






-----

Live-10 डॉ.सूर्यनारायण गौतम रीवा, मध्यप्रदेश

Live 10

परिचय

डॉ.सूर्यनारायण गौतम
माता- श्रीमती कृष्णा गौतम
पिता- श्री रामसजीवन गौतम
जन्म-     02 मई 1973 को रीवा मध्यप्रदेश में। 
शिक्षा -    कक्षा 1- 8 तक शास. पूर्व माध्य.विद्यालय चोरहटा रीवा तथा पूर्वमध्यमा से विद्यावारिधि तक शास. वेंकट संस्कृत महाविद्यालय रीवा से सम्पन्न हुई। एम.ए. अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा से उत्तीर्ण किया। शास्त्री परीक्षा संस्कृत छात्रवृत्ति के साथ उत्तीर्ण कर स्वर्ण पदक भी प्राप्त किया। 
बिगत 18 वर्षों से उच्च शिक्षा विभाग में सेवा करते हुए सम्प्रति श्री जगदीशप्रसाद झाबरमल टीबड़ेबाला विश्वविद्यालय, झुंझुनू के संस्कृत विभाग में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। 
लेखन - प्रकाशित
1. जीवन के दस सुख एवं उनकी प्राप्ति के वैदिक उपाय। 
2. वेद, यज्ञ और पर्यावरण ।
3. श्रीमद्रामगीता।
4.शथपथ संदर्शन।
5.वैदिक चिंतन मञ्जूषा।
6. यजुर्वेदेग्नितत्व विमर्श:।
7.वेदतत्व विमर्श: - संपादन
8.वेदचिन्तनम।
9.बघेली कथायें।
10.किस्सन केर पोथन्ना।
अप्रकाशित-
1. चरणव्यूह की नारायणी टीका।
2. कथा शौरभम।
3. कथा वीथी - संपादन।
4. कथा प्रवाह ।
5. विन्ध्य के संत और संस्कृत ।
6. बघेलखंड की जनजातियों का देवलोक।
7. सोमयाग विधि:।
8.गर्भ विज्ञान।
9.तिहत्तर से अब तक।




शोधपत्र प्रकाशन-
50 से अधिक शोधपत्र अन्तराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। 
50 से अधिक राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में सहभागिता/मुख्यातिथि/अध्यक्षता कर चुके हैं। 
प्रसारण- 
आकाशवाणी के रीवा केंद्र से वार्ताएँ एवं बघेली/संस्कृत कहानियाँ प्रसारित हो चुकी हैं। 
संपादन-
1.शोध चेतना,  अंतराष्ट्रीय, संपादक, इलाहाबाद
2. अनंता, अंतराष्ट्रीय, सह संपादक । दिल्ली
3. मानस कण, हिंदी साहित्यिक। सतना मध्यप्रदेश
4. परख- सदस्य, राष्ट्रीय शोध पत्रिका। रीवा 
5.प्रभास, झुंझुनू
03 राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का संयोजन किया है। 
सम्मान- मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश,राजस्थान गुजरात, महाराष्ट्र आदि स्थानों से अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। 
10 से अधिक धोधार्थियों ने मेरे निर्देशन में शोधकार्य पूर्ण किये  हैं।
मेरी कई रचनाओं का मराठी, हिंदी, उर्दू आदि भाषाओं में अनुवाद बी किया जा चुका है। 
पुस्तकों में 10 से अधिक लेख भी लिखे जा चुके हैं। 
'डॉ. सूर्यनारायण गौतम : कृतित्व एवं व्यक्तित्व ' विषय 
पर शोध उपाधि भी प्रदान की जा चुकी है। 
बघेली कथायें एवं किस्सन केर पोथन्ना का समीक्षात्मक अध्यन विषय पर श्री जे जे टी यूनिवर्सिटी से शोधकार्य प्रगति पर है।

शनिवार, 28 नवंबर 2020

Live-7 भाऊराव महंत बालाघाट, मध्य प्रदेश

Live-7 



परिचय- 

नाम -भाऊराव महंत 

पिता - श्री परदेशीलाल महंत 

माता - श्रीमती दुर्गा महंत 

पता - ग्राम बटरमारा, पोस्ट खारा, जिला बालाघाट, (मध्यप्रदेश)

प्रकाशन - पहला कदम (ग़ज़ल संग्रह) साहित्य अकादमी भोपाल से अनुदान से प्रकाशित व अनेक साझा संग्रह।

राष्ट्रीय सम्मान - पुर्ननवा सम्मान 2020,  हिंदी साहित्य सम्मेलन मध्यप्रदेश भोपाल 

सम्मान - हिंदी रत्न, मुक्तक शिरोमणि, दोहा शिरोमणि, मुक्तक सम्राट, काव्य शिखर, काव्य श्री व अनेक सम्मान



गुरुवार, 26 नवंबर 2020

राष्ट्र-जगत के 'सवाल' और एक उत्तरदायी पत्रकारिता की 'सरोकारिता'

 राष्ट्र-जगत  के 'सवाल' और एक उत्तरदायी पत्रकारिता की 'सरोकारिता'



 

            प्रो.ऋषभ देव शर्मा जी के द्वारा लिखी गई  समस्त टिप्पणियों  को पढ़ने के बाद यदि कोई मुझसे पूछता है कि प्रो. शर्मा जी की पुस्तकों में से यह कौन सी पुस्तक है तो यह कहना तो मेरे लिए कठिन कार्य तो नहीं है किंतु मेरे द्वारा पढ़ी गई यह दूसरी पुस्तक  है यह कहना मेरे लिए सहज और सरल होगा।  उसी क्रम में ‘सवाल और सरोकार’ उनकी रोचक और चुटीली समसामयिक टिप्पणियों का तीसरा संग्रह है। जैसा कि जगत व्याप्त है  कि आप देश की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, लोकतांत्रिक और धार्मिक स्थितियों पर  टिप्पणी लिखने में  कुशल हैं। आपकी इस पुस्तक  सवाल और सरोकार भी इन्हीं में से एक है। जिसमे 60 संक्षिप्तसारगर्भित एवं रोचक समसामयिक संपादकीयों को आपने सद्यप्रकाशित पुस्तक ‘सवाल और सरोकार’ (2020) में रखा है। 

            प्रसिद्ध तेवरीकारकवि,  आलोचक और पत्रकार ऋषभदेव शर्मा की दैनिक संपादकीय टिप्पणियाँ पिछले कुछ वर्षों में काफी लोकप्रिय होकर कई अलग-अलग संकलनों के रूप में चुकी हैं। ऋषभदेव शर्मा के संपादकीयों में कहीं भी उबाऊपन नहीं होता। पठनीयता उनका विशेष गुण है। समाचार पत्र में प्रकाशित संपादकीय को पढ़ने और पुस्तकाकार  प्रकाशित संपादकीय को पढ़ने का अनुभव अलग-अलग होता  है। क्योंकि अब ये तात्कालिकता की सीमा पारकर अपनी उत्तरजीविता सिद्ध करते हैं। इससे पहले प्रकाशित उनके संपादकीयों के दो संकलन ‘संपादकीयम्’ (2019) और ‘समकाल से मुठभेड़’ (2019) की काफी चर्चा हुई है।

            यह पुस्तक कुल आठ खंडों में लिखी गई है किसी खंड में आठ किसी खंड में दस तो किसी खंड में दो ही  कुल मिलाकर यह औसत आलेख लिए जाएं तो औसतन सात से आठ आलेख प्रत्येक खंड में हम सहजता से ले सकते हैं प्रत्येक खंड में कुछ ना कुछ विशेष बात कही है

खंड 1  जिसका नाम सियासत की विसात में आठ आलेख लिए गए हैं

उपराष्ट्रपति की पाठशाला , सभ्यता सार्वजनिक जीवन में, आरक्षण की वकालत, है तो सही राजभाषा पर , एक दिन लोकतंत्र का भी, यह इश्क नहीं आसाँ, हिंदू या मुस्लिम की एहसासत  मत छेड़िए, ये खतरनाक सच्चाई नहीं जाने वाली।

            प्रत्येक आलेखों पर आपने समाज में चल रही बुराइयां धार्मिक सामाजिक राजनैतिक लोकतांत्रिक परिस्थितियों पर सब कुशल व्यंगात्मक टिप्पणी की है इसमें मुझे राजनीति पर जो आपने टिप्पणी की है उपराष्ट्रपति की पाठशाला  इसमें एक शिक्षक होने के नाते यह आभास होता है कि आज के बच्चों को शिक्षा कहाँ से मिल रही है जब सांसद , विधायक लोकसभा तथा राज्यसभा  , विधानसभा में ऐसी उद्दंडता करते हैं तो निसंदेह आने वाली पीढ़ी के छात्र और अधिक उद्दंड होंगे आपने अपने व्यंगात्मक शब्दों से उपराष्ट्रपति को शिक्षक तथा सभी उपस्थित सदस्यों को छात्रों की उपमा दी है। आपका कथन सत्य प्रतिशत सत्य है।

            2 सितंबर 2019 को हिंदी डेली हिंदी मिलाप समाचार पत्र में प्रकाशित एक टिप्पणी सभ्यता सार्वजनिक रूप से होनी चाहिए इसमें आपने बखूबी अपने कौशल को अंकित किया है सच है की सभ्यता सार्वजनिक रूप से आवश्यक है चाहे वह पक्ष का हो या विपक्ष का दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए सभी धर्म सभी संप्रदाय तथा सभी जाति के समस्त लोगों को एक दूसरे के मत संप्रदाय जाति का स्वागत करना चाहिए उनके विचारों पर चिंतन मनन करना चाहिए ना कि उनका विरोध। यदि वह ऐसा कर सकते हैं तो निश्चित रूप से हमारा देश एक अखंड भारत बनकर खड़ा होगा।

आपकी अगली आलेख में आपने आरक्षण पर टिप्पणी की है और आपका मानना यह है कि आरक्षण की आवश्यकता अब नहीं रही उसे खत्म कर देना चाहिए।

            हिंदी दिवस के उपलक्ष में आपके द्वारा लिखा गया एक आलेख राजभाषा के बारे में यह शत प्रतिशत सत्य है कि हिंदी हमारे भारत की राजभाषा है और होते हुए भी नहीं है क्योंकि राजभाषा का अर्थ यह है राजकाज में प्रयोग की जाने वाली भाषा और आधुनिक समय में अंग्रेजी का वर्चस्व इतना प्रभावी हो गया है कि देश की जनसंख्या का 55% भाग अंग्रेजी में वार्तालाप लेखन कार्य एवं संवाद , पत्राचार  इत्यादि करते हैं इसलिए राजभाषा होते हुए भी हिंदी राजभाषा नहीं रही।

            एक दिन लोकतंत्र का भी इसमें आपने लोकतंत्र पर प्रहार करते हुए लिखा है कि लोकतंत्र में भी हमें निज कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए निज कार्य करने चाहिए।

महाराष्ट्र की राजधानी पर आपने ठाकरे साहब पर व्यंग करते हुए लिखा है कि ठाकरे साहब को यह ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है कि तीन बूढ़े शेरों से एक युवा शेर के मध्य तकरार ना हो सभी के विचार एक दूसरे से मिलते रहें यह हृदय को छूने वाली बात आपने लिखी है।

            कश्मीर पर भी आपने बहुत ही खूबसूरत टिप्पणी की है कश्मीर तो बस बहाना है कश्मीर के बारे में पुरानी मुगल सम्राट ने कहा था कि यदि स्वर्ग कहीं है तो वो यहीं है यहीं है यहीं है। आपने अपने आलेख में भी यही कहना चाहा है वहां पर शांति तथा प्रगति होनी चाहिए ना की अराजकता तथा अशांति।

पाकिस्तान पर भी आपने काफी हद तक व्यंगात्मक एवं प्रेरणात्मक टिप्पणियां की हैं जो कि पाठक के मन को अहला दित करती हैं एवं उनके फतेह को छूकर उन्हें जय आवास दिलाती हैं कि नफरत हमें केवल और केवल अशांति के मार्ग पर चलना सिखाती है ना कि शांति और सौहार्द के मार्ग पर।

हमें शांति और सौहार्द के मार्ग पर चलना है तो हमें अपने हृदय से मन से यह एक दूसरे के प्रति नकारात्मक भावनाओं को निकाल फेंकना होगा।

            लोक और तंत्र दो शब्द मिलकर लोकतंत्र बनाते हैं जिस पर आपने काफी हद तक 5 से अधिक टिप्पणियां देखें जिसमें आपने लोग और तंत्र के मध्य संबंध स्थापित ना हो पाने की बातों को व्यंगात्मक रूप दिया है जहां एक तरफ प्रहरी प्रशासन तथा दूसरी तरफ अधिवक्ताओं को आमने सामने रखा आप ने लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलने की बहुत अच्छे विचार व्यक्त किया है जिस पर आपने बताया है कि अराजकता ही यह प्रमुख कारण है जब लोकतंत्र भीड़ तंत्र में परिवर्तित हो जाता है इस चर्चा पर आपने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का नाम उल्लेखित किया तथा एक विश्वविद्यालय में हुई है उस  महिला प्रोफेसर के बारे में भी अपने उल्लेखित किया जिन्हें अपमानित  तथाकथित छात्रों ने किया था  , एक प्राध्यापक के प्रति शिक्षा के मंदिर में ही दुर्व्यवहार किया गया था यह एक निंदनीय कुकृत्य रहा।

            जनता और सत्ता दुश्मन है क्या इस टिप्पणी पर आपने सत्ता को जनता के तथा जनता को सत्ता के विरोधी होने पर आपने विचार व्यक्त किए हैं जिस पर आपने यह बहुत अच्छी तरीके से आपने लिखा कि जनता और सत्ता दोनों परस्पर एक दूसरे  संपूरक है एक दूसरे के बिना और दूसरा पहले के बिना पूर्ण नहीं है किंतु ऐसी हीन भावना कब तक चलेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। 2019 में बनाए गए नागरिकता संशोधन अधिनियम पर भी आपने अपनी व्यंगात्मक टिप्पणी दी है और अपनी यह बताया कि इससे सत्ताधारी तथा सत्ताधारी दोनों ही लोग अराजकता फैलाने के लिए दोषी हैं इसे हम अराजकता कहे या आंदोलन यह कहना थोड़ा कठिन कार्य होगा क्योंकि असत्ताधारी आंदोलन का नाम देते हैं तथा सत्ताधारी अराजकता कहते हैं।

          हैदराबाद में पशु चिकित्सक डॉ प्रियंका रेड्डी के केस में भी आपने अपने कागज को स्याहीमय किया और न्याय व्यवस्था  को तत्काल न्याय के बारे में आपने लिखा  विभत्स हत्याकांड का तुरंत न्याय मिला।

आपने ऐसे दुष्कर्म का दोषी न्याय व्यवस्था तथा पुलिस प्रशासन को माना है आपकी एक ही टिप्पणियां बहुत अधिक ज्ञानवर्धक कथा पाठक के हृदय को रचित करने वाली है कहीं-कहीं पर पाठक पढ़कर उत्साहित हो जाता है कहीं वह वीर रस से रचित हो जाता है कहीं करुण के भाव उत्पन्न होते है ,तो कहीं मानव हृदय विभत्स हो जाता है ।

सोशल मीडिया का जितना सदुपयोग होना चाहिए वह नहीं हो पा रहा किंतु इसके विप्रा अर्थ सोशल मीडिया का दुरुपयोग काफी हद तक किया जा रहा है जिसमें एक दूसरे के प्रति नफरत ,अभद्रता, अश्लीलता , भय और आतंक  फैलाने का काम भी इसी सोशल मीडिया का है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि आप मनमर्जी करें अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ यह है कि आप स्वतंत्र रूप से बोल सकें किंतु आपके शब्दों में मृदुलता एकता अखंडता एवं सामाजिक सद्भावना होनी चाहिए।


---------------------------


पुस्तक -सवाल और सरोकार

लेखक- प्रो. ऋषभ देव शर्मा

विधा -समसामयिक टिप्पणियाँ

प्रकाशन- परिलेख प्रकाशन (उत्तर प्रदेश)

वितरक : श्रीसाहिती प्रकाशनहैदराबादमो. 9849986346

संस्करण : 2020

मूल्य- ₹140/-

पृष्ठ -132

आईएसबीएन  :  978-93-84068-96-7

----------------------------------------

 

समीक्षक-

आचार्य प्रताप
प्रबन्ध निदेशक

अक्षरवाणी साप्ताहिक संस्कृत समाचर पत्रम्

अणुड़ाक-acharypratap@outlook.com

संपर्कसूत्र- +91-8121-487-232




बुधवार, 25 नवंबर 2020

Live-5 श्याम सुन्दर पाठक जी धनबाद , झारखंड

Live-5  




आपका नाम श्याम सुन्दर पाठक है। आप धनबाद , झारखंड की धरती को सुशोभित कर रहें हैं । आगे आपके शब्दों में- जनाब शौकिया लिख लिया करता हूँ या यों कहें माँ सरस्वती का कृपा प्रसाद पन्नों पर फैल जाती हैं । 52 बसन्त का दीदार किये नेत्रों पर चश्मे ने आशियाना बना ली है ।पूज्य पिता स्वर्गीय सियाबिहारी शरण पाठक की सदिच्छा के कारण एम.ए.पास हो गया ।उनकी नजर में बेटे के मस्तक पर स्नातकोत्तर का तमगा बहुत ही सम्मानप्रद था इसलिए मैंने भी ले ली खैर उसी उपाधि ने मुझे सरकारी विद्यालय का माहटर भी बना दिया । मैं बन गया सरकार का रजिस्टर्ड नौकर,जहाँ अपनी इच्छा नही सरकारी फरमान चलता है । आगे जब मन के तार कभी झंकृत होते तो कुछ शब्द प्रस्फुटित होजाते थे उसी को अक्षरवाणी ने कविता मान ली और मुझे कवि! पर दोस्तों काव्य की मुझे समझ नही हाँ अपनी भावना���ं को शब्दों का अमलीजामा पहनाने मुझे अब आ गया है। -Shyam Sundar Pathak ----- #aksharvanikavyamanjari #ShyamSundarPathak | Shyam Sundar Pathak | live-5



Live-6 आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर, मध्य प्रदेश

Live-6  


आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 


बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' एक व्यक्ति मात्र नहीं अपितु संस्था भी है. अपनी बहुआयामी गतिविधियों के लिए दूर-दूर तक जाने और सराहे जा रहे सलिलजी ने हिन्दी साहित्य में गद्य तथा पद्य दोनों में विपुल सृजन कर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई है. गद्य में कहानी, लघु कथा, निबंध, रिपोर्ताज, समीक्षा, शोध लेख, तकनीकी लेख, तथा पद्य में गीत, दोहा, कुंडली, सोरठा, गीतिका, ग़ज़ल, हाइकु, सवैया, तसलीस, क्षणिका, भक्ति गीत, जनक छंद, त्रिपदी, मुक्तक तथा छंद मुक्त कवितायेँ सरस-सरल-प्रांजल हिन्दी में लिखने के लिए बहु प्रशंसित सलिल जी शब्द साधना के लिए भाषा के व्याकरण व् पिंगल दोनों का ज्ञान व् अनुपालन अनिवार्य मानते हैं. उर्दू एवं मराठी को हिन्दी की एक शैली माननेवाले सलिल जी सभी भारतीय भाषाओं को देव नागरी लिपि में लिखे जाने के महात्मा गाँधी के सुझाव को भाषा समस्या का एक मात्र निदान तथा राष्ट्रीयता के लिए अनिवार्य मानते हैं.


श्री सलिल साहित्य सृजन के साथ-साथ साहित्यिक एवं तकनीकी पत्रिकाओं और पुस्तकों के स्तरीय संपादन के लिए समादृत हुए हैं. वे पर्यावरण सुधार, पौधारोपण, कचरा निस्तारण, अंध श्रद्धा उन्मूलन, दहेज़ निषेध, उपभोक्ता व् नागरिक अधिकार संरक्षण, हिन्दी प्रचार, भूकंप राहत, अभियंता जागरण आदि कई क्षेत्रों में एक साथ पूरी तन्मयता सहित लंबे समय से सक्रिय हैं. मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता एवं म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में उन्होंने बिना लालच या भय के अपने दायित्व का कुशलता से निर्वहन किया है. 

साहित्य सृजन :- 

श्री सलिल की प्रथम कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है जिसमें चराचर के कर्म देव श्री चित्रगुप्त को परात्पर परमब्रम्ह, सकल सृष्टि रचयिता एवं समस्त शक्तियों का स्वामी प्रतिपादित कर नव अवधारणा प्रस्तुत की गई है. 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' सलिल जी की छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं. सम्यक शब्दावली, शुद्ध भाषा, सहज प्रवाह, सशक्त प्रतीक, मौलिक बिम्ब विधान, सामयिक विषय चयन तथा आशावादी दृष्टिकोण के सात रंगों के इन्द्र धनुष सलिल जी की कविताओं को पठनीय ही नहीं मननीय भी बनाते हैं. सलिल जी की चौथी प्रकाशित कृति 'भूकंप के साथ जीना सीखें' उनके अभियांत्रिकी ज्ञान का समाज कल्याण हेतु किया गया अवदान है. इसमें २२ मई १९९७ को जबलपुर में आए भूकंप से क्षतिग्रस्त इमारतों की मरम्मत तथा भूकंपरोधी भवन निर्माण की तकनीक वर्णित है.


उक्त के अतिरिक्त विविध विषयों एवं विधाओं पर सलिल जी की २० कृतियाँ अप्रकाशित हैं. होशंगाबाद से प्रकाशित पत्रिका 'मेकलसुता' के प्रवेशांक से सतत प्रकाशित-प्रशंसित हो रही लेखमाला 'दोहा गाथा' सलिल जी का अनूठा अवदान है जिसमें हिन्दी वांग्मय के कालजयी छंद दोहा के उद्भव, विकास, युग परिवर्तन में दोहा की निर्णायक भूमिका के प्रामाणिक उदाहरण हैं.


संपादन :- 

इंजीनियर्स टाइम्स, यांत्रिकी समय, अखिल भारतीय डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ पत्रिका, म.प्र. डिप्लोमा इंजीनियर्स मंथली जर्नल, चित्राशीश, नर्मदा, दिव्य नर्मदा आदि पत्रिकाओं;  निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों एवं शिल्पान्जली, लेखनी, संकल्प, शिल्पा, दिव्यशीश, शाकाहार की खोज, वास्तुदीप, इंडियन जिओलोजिकल सोसायटी स्मारिका, निर्माण दूर भाषिका जबलपुर, निर्माण दूर्भाशिका सागर, विनायक दर्शन आदि स्मारिकाओं का संपादन कर सलिल जी ने नए आयाम स्थापित किए हैं. 


समयजयी साहित्य शिल्पी भागवतप्रसाद मिश्र 'नियाज़' : व्यक्तित्व एवं कृतित्व श्री सलिल द्वारा संपादित श्रेष्ठ समालोचनात्मक कृति है. उक्त के ऐरिक्त सलिल जी ने ८ परतों के २१ रचनाकारों की २४ कृतियों की भूमिकाएँ लिखी हैं. यह उनके लेखन-संपादन कार्य की मान्यता, श्रेष्ठता एवं व्यापकता का परिणाम है.


सम्मान :

श्री सलिल को देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, कायस्थ कीर्तिध्वज, कायस्थ भूषण २ बार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, वास्तु गौरव, सर्टिफिकेट ऑफ़ मेरिट ५ बार, उत्कृष्टता प्रमाण पत्र २, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, सत्संग शिरोमणि, साहित्य श्री ३ बार, साहित्य भारती, साहित्य दीप, काव्य श्री, शायर वाकिफ सम्मान, रासिख सम्मान, रोहित कुमार सम्मान, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, नोबल इन्सान, मानस हंस, हरी ठाकुर स्मृति सम्मान, बैरिस्टर छेदी लाल स्मृति सम्मान, सारस्वत साहित्य सम्मान २ बार . उनकी प्रतिभा को उत्तर प्रदेश, राजस्थान, एवं गोवा के महामहिम राज्यपालों, म.प्र. के विधान सभाध्यक्ष, राजस्थान के माननीय मुख्या मंत्री, जबलपुर - लखनऊ एवं खंडवा के महापौरों, तथा हरी सिंह गौर विश्व विद्यालय सागर, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपतियों तथा अन्य अनेक नेताओं एवं विद्वानों ने विविध अवसरों पर उनके बहु आयामी योगदान के लिए सम्मानित किया है.




सोमवार, 23 नवंबर 2020

Live-4 माया अग्रवाल , विशाखापट्टनम


Live-4


परिचय नाम ------ माया अग्रवाल माता का नाम -- स्व० सावित्री देवी पिता का नाम -- स्व० टेकचंद अग्रवाल पति का नाम --- स्व० चमन लाल अग्रवाल जन्म तिथि --- 07 - 01 - 1952 व्यवसाय --- गृहिणी प्रकाशित कृतियाँ -- ग़ज़ल साझा संग्रह "अंजुमन" , हाल ही में प्रकाशित पुस्तक "वीथियाँ गीतों की" पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन --- साप्ताहिक " साहित्य तरकश" , "उत्कर्ष ऐक्सप्रैस" , शेषामृत पत्रिका , "खिली धूप हैं हम" पत्रिका । सम्मान व उपलब्धियाँ -- "साहित्य सागर रत्न सम्मान" , "काव्य गौरव सम्मान" , "गुरु द्रोण सम्मान" , प्रयास सरला नारायण ट्र्स्ट में सर्व श्रेष्ठ गीत के लिए प्रशस्ति पत्र डा० विष्णु सक्सेना के द्वारा, "राष्ट्रीय कवयित्री मंच" के आयोजन में प्रथम पुरस्कार के तहत "प्रशस्ति पत्र व ट्रॉफी" से सम्मानित डॉ० विष्णु सक्सेना द्वारा चलाए जा रहे प्रयास ( गीतों की प्रतियोगिता )नामक आयोजन जो कि राष्ट्रीय स्तर पर होता है , सितंबर 2019 की विजेता बन चुकी हूँ तथा उत्तर प्रदेश के सिकन्दराराऊ में मुझे विष्णु सक्सेना द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है । ------ #aksharvanikavyamanjari #mayaagarwal | Maya Agarwal | live-4 --------------- आप हमारे साथ यहाँ जुड़ सकते हैं https://www.facebook.com/groups/kavymanjari https://www.facebook.com/aksharvanikavyamanjari

https://www.facebook.com/groups/aksharvanisanskritnewspaper https://www.facebook.com/aksharvanisanskritnewspaper



Live-3 आदरणीया सुनीता लुल्ला ज़ी , हैदराबाद


Live-3

परिचय नाम - सुनीता लुल्ला जन्म- 02-09-1950 कोलकाता शिक्षा- एम.ए. हिन्दी, अंग्रेजी, बी.एड. विगत 43 वर्ष से हैदराबाद निवास व्यवसाय-35 वर्ष शिक्षण में 20 वर्ष प्रधानाध्यापिका-5 वर्ष प्रबन्धिका, अप्रैल 2015 में सेवा निवृत्त। सम्प्रति-पूर्ण रूपेण काव्य साधना,हिन्दी ,उर्दू,अंग्रेजी और सिन्धी में कविता,गीत,ग़ज़ल,दोहे,मुक्तक इत्यादि अभिरुचि- संगीत ,गीत गायन,भ्रमण, पढ़ना मेरा अपना बडा सा पुस्तक संग्रह है हिन्दी और अंग्रेजी में हिन्दी में प्रथम काव्य संग्रह " वो मैं ही हूँ " मार्च 2016 सिन्धी में ग़ज़ल संग्रह- " खुशबू तुहिंजी यादुन जी " 2016 हिंदी ग़ज़ल संग्रह -"कुछ रात कटे " 2017 परिवर्तन के चक्रवात 2019 परिंदा मन का 2019 सिंधी ग़ज़ल संग्रह 2019 मेरे भीतर आप (दोहा-संग्रह) 2020 पिछले 20 वर्ष से हैदराबाद से प्रकाशित " सिन्ध क्रोनिकल " मासिक पत्र की सह सम्पादिका ग़ज़ल-गुंजन ई-पत्रिका की संपादक मंडल में शामिल सम्मान- ------- साहित्य सेवा समिति- हैदराबाद से सम्मानित अंतरा शब्द शक्ति सम्मान ,भाषा सारथी सम्मान,इंदौर , सिंधी ग़ज़ल सम्मान , अमरावती पोएटिक प्रिज़्म, विजयवाड़ा , साहित्य संगम संस्थान द्वारा-'उस्ताद शायर सम्मान'। अनेकानेक रचनाये देश की साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित #aksharvanikavyamanjari, #sunitalulla ।।Sunita Lulla।। Live-3





श्रद्धांजलि-गोवा की पूर्व प्रथम महिला राज्यपाल, कर्मठ नेता महामहिम स्वर्गीय डॉ. मृदुला सिन्हा- सुरभि

विनम्र श्रद्धांजलि

किसी भी व्यक्ति की महत्ता ,श्रेष्ठता और लोकप्रियता, उसके जीवन पर्यंत कार्यों व उपलब्धियों  से आंकी  जाती है। जयप्रकाश नारायण के द्वारा चलाई गयी समग्र क्रांति की हिस्सा रहीं  गोवा की पूर्व प्रथम महिला राज्यपाल, महामहिम स्वर्गीय डॉ मृदुला सिन्हा कर्मठ नेता 
 के रूप में उभर कर आईं  तथा नेतृत्व क्षमता के कारण कम अवधि में लोकप्रियता अर्जित कर ली। सामाजिक पत्रिका 'पांचवा स्तंभ' की संपादक भी रहीं ।
 बहुमुखी प्रतिभा, सरल, मृदु, सौम्य और प्रभावी व्यक्तित्व की धनी मृदुला जी ने  साहित्य, समाज और प्रशासन क्षेत्र में, असीम योगदान के कारण  अपना विशिष्ट स्थान  बना लिया।
 2014 से 2019 तक राज्यपाल जैसे गरिमामय पद पर सुशोभित रहीं, मृदुला जी ने मुजफ्फरपुर काॅलेज की प्रवक्ता , तत्पश्चात मोतिहारी कालेज में प्राचार्य पद के दायित्व को भी संभाला।
परंतु साहित्य  लेखन की अभिलाषा  और समाज के लिए सकारात्मक कार्य करने की  इच्छा के कारण अपने लक्ष्य को नयी राह की ओर मोड़ दिया।
 
  भारत की गौरवशाली संस्कृति, परंपरा और मूल्यों के  प्रति उनकी गहरी आस्था थी।
उनका मानना था कि भारत की लोक चेतना को जीवित रखने के लिए संस्कार - संस्कृति को मजबूत बनाना आवश्यक है।वे कहती थीं,  संस्कृति राष्ट्र की पहचान को भी सुनिश्चित करती है।
 नारी शक्ति,  नारी उत्थान तथा नारी सशक्तिकरण की दिशा में  मृदुला जी ने सराहनीय कार्य किये। यही कारण है कि वे भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की अध्यक्ष रहीं। पिछड़े कमज़ोर वर्गों के प्रति वे संवेदनशील थीं। आदरणीय मृदुला जी ने वह हर सम्भव प्रयास किया जिससे, नारी की  गरिमा को सुरक्षित रखा जाए  ,महिलाओं की स्थिति में सुधार हो तथा  आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग का  जीवन स्तर ऊँचा उठे। अटल बिहारी वाजपेयी जी के समय में आप
केन्द्रीय कल्याणकारी  बोर्ड की चेयरमैन नियुक्त  की गयीं।  
     सभी वर्गों की वे श्रद्धा और विश्वास थीं। जनसेवा को लेकर अपने प्रयासों के लिए वे सदा याद  की जाएंगी । 
बयालिस से अधिक पुस्तकों की लेखक,  विदुषी मृदुला जी की  समाज तथा राष्ट्र के प्रति संवेदना;उनकी कलम में झलकती है- 

कहानी संग्रह- बिहार की लोक कथायें,  ढ़ाई बीघा ज़मीन
स्त्री विमर्श पर - मात्र देह नहीं है औरत
उपन्यास-नई देवयानी, सीता पुनः बोलीं।'एक थी रानी ऐसी भी'  ( राजनीतिक सत्ता पर आधारित उपन्यास, जिस पर फिल्म भी बनाई गयी)
लेख संग्रह-यायावरी आंखो से 
आदि कृतियाँ साहित्य जगत् में  विशिष्ट स्थान रखती हैं। 
'राजपथ से लोकपथ' मृदुला जी के जीवन का दर्पण है। 
मृदुला जी के योगदान को रेखांकित करते हुए, उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य संस्थान द्वारा साहित्य भूषण से सम्मानित किया गया तथा दीनदयाल उपाध्याय जैसे अनेक पुरस्कारों से अलंकृत किया गया।

 हिन्दी भारत राष्ट्र की राष्ट्र भाषा बने; मृदुला जी की प्रबल इच्छा थी।  उनकी साहित्य सेवा और हिन्दी प्रेम से हिन्दी साहित्य भारती परिवार अभिभूत रहा। 
 इस बृहद् कुटुंब की  मार्गदर्शक के रूप में आपने  व्यापक अनुभवों से लाभान्वित किया साथ ही समय-समय पर आयोजित कार्यक्रमों में अपने उद्गारों से उत्साह वर्धन भी किया।
    सतत् सक्रिय , हमारी प्रेरणा,सशक्त संबल मातृ शक्ति , मृदुला सिन्हा अचानक ही 18 नवम्बर 2020 को दिव्य यात्रा की ओर प्रस्थान कर गयीं। उनकी क्षति अपूर्णीय है। 

       यद्यपि आज माननीय  मृदुला सिन्हा  जी हमारे बीच नहीं हैं, तब भी उनकी याद सदा हमारे दिलों में प्रकाशित   रहेगी। 
 तेलंगाना हिंदी साहित्य भारती   समूह, दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करता है और शोक संतप्त परिवार के प्रति हार्दिक समवेदना प्रकट करता है।
ओउम् शांति ⚘

डॉ. सुरभि दत्त 
 प्रदेश प्रभारी 
तेलंगाना हिंदी साहित्य भारती

रविवार, 22 नवंबर 2020

Live-2 आदरणीया ज्योति नारायण जी हैदराबाद तेलंगाना

 Live-2



आपपका लघ्वात्मक परिचय आपका पूरा नाम ज्योति नारायण है आपका जन्म १७ मार्च सन ---- को बिहार में हुआ था।

आपकी माता जी स्व. सुश्री शैल देवी तथा पिता स्व. श्री प्रद्दुयुम्न प्रसाद वर्मा ,स्वतंत्रता सेनानी थे।

आपके जीवन साथी पति श्रीमान प्रेम नारायण जी हैं।

आपकी शिक्षा निष्णात (एम. ए.) संगीत में स्नातक तथा आप सुयोग्य योग शिक्षिका , समाज सेविका हैं। वर्तमान में आप अपने गृहणी के दायित्व का निर्वहन हैं। आप एक पुत्री तथा एक पुत्र की माता तथा नतिनी अनुशा-१ ,पोता राधे-१, पोती सुभी- १, दादी/ नानी बनाकर आपने जीवन को सुखमय व्यतीत कर रहीं हैं। आपकी नागरिकता भारतीय है स्वतंत्र लेखन। गुरु-प्रकृति ,मूल- बिहार,कर्म भूमि तेलगंना,, छंद युक्त एंव छंद मुक्त हिन्दी में कविता लेखन कथा,आलेख ,समीक्षा, भजन आदि का लेखन आप स्वान्तः सुखाय हेतु करतीं हैं पंजाबी, तेलगु, मैथिली, में कविता अनुवादित , पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित,एक का अग्रेंजी में अनुवाद, पाँच संग्रह प्रकाश्य की ओर । आपने काव्य कभी सीखा नहीं, कोई संगत नहीं,बस लिखना अच्छा लगता था सो लिखने लगीं। अंत:प्रवाह स्वांत: सुखाय लेखन ,माँ सरस्वती जो लिखवा दें । दर्शन अध्यात्म में विशेष रुचि रखतीं हैं। काव्य क्षेत्र के संस्थाओं में बाहर पदार्पण पुत्री ने करवाया ।

उस्मानिया विश्वविद्यालय से तुलसी साहित्य शोध संस्थान की तरफ से नाटय प्रस्तुति, यू.एस.ए., न्यूयॉर्क में एकल नाट्य प्रस्तुति । -------- #aksharvanikavyamanjari #DrjyotiNarayan | jyoti Narayan 'Jyoti' | live-2 ---- आप हमारे साथ यहाँ जुड़ सकते हैं https://www.facebook.com/groups/kavymanjari https://www.facebook.com/aksharvanikavyamanjari

https://www.facebook.com/groups/aksharvanisanskritnewspaper https://www.facebook.com/aksharvanisanskritnewspaper

Live -1 रिखब चन्द राँका कल्पेश जी जयपुर , राजस्थान

Live -1  



आपका लघ्वात्मक जीवन परिचय -------------------------------------- आपका पूरा नाम 'रिखब चन्द राँका' तथा उपनाम : कल्पेश' आपका जन्म स्थान : अजमेर, राजस्थान है।

आपने शिक्षा : शास्त्री, शिक्षाशास्त्री, तथा एम. ए. संस्कृत भाषा से पूर्ण किया है। हिंदी साहित्य में गहरी पेठ रखने वाले मृदुभाषी 'कल्पेश' जी का हिंदी लेखन व साहित्य सेवा पिछले 24 वर्षो से अनवरत जारी है। कविता, गीत, भजन लिखना आपकी रूचि है। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2019 में 100 सम्मान प्राप्त करने का एक अद्भुत रिकॉर्ड है। आपकी कविताएँ भारत में ही नही अपितु विदेशों की अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। 'अजमेर शहर है मेरा' गीत पर लंदन यूनाइटेड किंगडम द्वारा सम्मानित किया गया है। राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षा की पुस्तकों में आपके नाम से प्रश्न बनकर आया। आपके द्वारा पाँच एकल पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं व सात साझा संकलनों में आपके रचनाएँ प्रकाशित की चुकी हैं । आपके द्वारा रचित चार पुस्तकें भारत के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुस्तकालय कोलकाता में पठनार्थ उपलब्ध है।

#aksharvanikavyamanjari #rikhabchandrankakalpesh |Rikhab Chand ranka Kalpesh| live-1 ---- आप हमारे साथ यहाँ जुड़ सकते हैं https://www.facebook.com/groups/kavymanjari https://www.facebook.com/aksharvanikavyamanjari

https://www.facebook.com/groups/aksharvanisanskritnewspaper https://www.facebook.com/aksharvanisanskritnewspaper


सोमवार, 16 नवंबर 2020

दोहो का परिमार्जन कर अग्रषण

कोशिश करने से कभी ,होती ना है हार।

लिखें कभी जो शब्द हम, ना जाते बेकार।।०१।।
---
स्वबल दो-गुना  हो गया ,पास रहें  जब मित्र ।
अधरों पर मुस्कान तब ,   प्रणी बडा विचित्र।।०२।।
-----
गहरी प्रीत  न कीजिये , संगी रखें न मित्र।
महाशत्रु से कम नहीं , जो वह हुआ विचित्र।।०३।।
----
क्षमा गुरु का धर्म है, पालन करें सदैव।
त्रुटी  शिष्य का धर्म है क्षमा कीजिये दैव।।०४।।
-----
चाहत हो यदि लक्ष्य की , करें परिश्रम और।
कम उत्साह न कीजिये , बनते फिर सिरमौर।।०५।।
---

कृषक जगत आधार हैं , देवभूमि यह एक।
हल काँधे रख चल दिये ,  काम करें वो नेक।।०६।।
-----
उत्पादन कर अन्न का , देते जीवन दान।
जीवन दाता  का कभी , मत करिए अपमान।।०७।।
------

आचार्य प्रताप

रविवार, 8 नवंबर 2020

दीपमालिका पर्व

 दीपावली का पौराणिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक महत्व 
                       दीपावली हमारा सबसे प्राचीन पर्व है। दीपावली शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है 'दीप+अवलि' इस पर्व का नाम  दीपमालिका, दीपोत्सव शुभरात्रि, यक्षरात्रि ,प्रकाशपर्व इत्यादि भी है। पद्म पुराण व स्कंद पुराण में दीपावली चतुर्युगीउत्सव परंपरा के रूप में वर्णित है ।स्कंद पुराण में यह पर्व सूर्य के प्रतीक के रूप में वर्णित है।यह पंच दिवसीय पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक मास की धनतेरस से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीयातिथि तक मनाया जाता है ।इस पर्व का पौराणिक ,ऐतिहासिक, वैज्ञानिक महत्व हमारे ग्रंथों और इतिहास में मिलता है। जिसकी यहां आज मैं चर्चा करना चाहूंगी ।
पौराणिक महत्व - इस दिन श्री राम रावण आदि राक्षसों को मारकर भार्या सीता तथा भाईलक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास समाप्त करके अपने राज्य अयोध्या आए थे ,अयोध्या वासियों ने प्रसन्न होकर अपने घरों एवं राजमार्गों में दीपक जलाए थे ।उसी दिन से दीपावली मनाने की परंपरा प्रारंभ हुई है ।
              इसी दिन समुंद्र मंथन में श्री लक्ष्मी देवी का आविर्भाव हुआ है। ऐसी मान्यता हैकि श्री धन्वंतरि देवता भी समुद्र मंथन में ही प्रकट हुए थे। महालक्ष्मी देवी के पुनः आविर्भाव की प्रसन्नता में समस्त लोको के लोगों ने दीपक को जलाकर अपनी प्रसन्नता को व्यक्त किया था।
              कठोपनिषद में यम नचिकेता का प्रसंग भी मिलता है। तदनुसार नचिकेता यमलोक से मृत्यु लोक में पुनः आये थे ।नचिकेता मृत्यु पर अमरता के विजय का ज्ञान ग्रहण कर जब वापस पृथ्वी पर आए तब पृथ्वी वासियों ने प्रसन्न होकर दीपक जलाए थे। यह किवदंती है कि यह आर्य्यावर्त्त का प्रथम पर्व है ।
               श्री कृष्ण ने इस दिन नरकासुर का वध करके बंदी बनाये गए देव ,मानव, 16000 कन्या को मुक्त कराया था। सभी प्रजाजनों ने प्रसन्ना होकर दीपक जलाए थे।
                 राजा बलि की दानवीरता से भगवान वामन प्रसन्न हुए। वामन ने बलि को सुतल लोक का राजा बनाया था ।इसी खुशी में तथा भगवान श्री वामन के लीला के प्रति कृतज्ञ लोगों ने दीपक जलाए थे ।
ऐतिहासिक महत्व- १.सम्राट विक्रमादित्य के राज्याभिषेक के समय संपूर्ण राज्य में प्रजा जनों ने दीपोत्सव मनाया था। इसी दिन राजा विक्रमादित्य ने अपने विक्रम संवत को प्रारंभ करने का निर्णय लिया था।
               २.दीपावली के दिन ही महान समाज सुधारक आर्य समाज के संस्थापक सत्यार्थ प्रकाश के रचयिता महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने नश्वर शरीर को छोड़कर निर्वाण प्राप्त किया था ।
   श्री संत स्वामी रामतीर्थ का जन्म व निर्माण भी इसी दिन हुआ था। मान्यता है कि बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री बुद्ध के समर्थक व अनुयायियों ने 25000 वर्ष पूर्व हजारोंदीपको को जलाकर उनका स्वागत किया था ।
   मुगल सम्राट जहाँगीर ने ग्वालियर के दुर्ग में भारत के बहुतसे सम्राटों को बंदी बना लिया था। उन बंदी जनों में सिखों के छठे गुरु हरगोविंद भी थे
 परम वीर, दिव्यात्मा सिख गुरु हरगोविंद ने अपने पराक्रम से सभी लोगों को मुक्त कराया था। इसे मुक्ति दिवस के रूप में हिंदू व सिख धर्म के सभी लोगों ने मनाया था।
 वैज्ञानिक महत्व- दीपावली पर्व वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु के प्रारंभ में आता है .।इस वातावरण में वर्षा ऋतु के कारण उत्पन्न कीटाणु और विषाणु सक्रिय हो जाते हैं ,जिससे घरों में दुर्गंध होती है। दीपावली के अवसर पर लोग अपने घरों में कार्यालयों में अपने प्रतिष्ठान में सफाई,रंगाई, पुताई इस आस्था के साथ करते हैं कि घर में ,दुकान में माता लक्ष्मी का वास होता है ।इस आस्था और विश्वास के कारण ही वर्षा ऋतु में उत्पन्न गंदगी तथा दुर्गंध भी समाप्त हो जाती है ।लोग घी और तेल के दीपक जला कर न केवल वातावरण की दुर्गंध अपितु सक्रिय विषाणु कीटाणुओं को भी समाप्त करके वातावरण को शुद्ध स्वच्छ बनाते हैं। 
पंचदिवसीय पर्व का वर्णन -
 नवीन ऊर्जा, नई उमंग और प्रकाश के इस पर्व का आगाज़ कार्तिक मास की कृष्ण पक्षकी त्रयोदशी तिथि से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक 5 दिनों तक यह मनाया जाता है।
धनतेरस- इस महोत्सव के प्रथम दिवस भगवान धन्वंतरि की साधना और पूजा की जाती है ।वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु के प्रारंभ में मौसमी बीमारियां उत्पन्न होती हैं ,भगवान धन्वंतरी आरोग्य के देवता है ।इस कारण भगवान धन्वंतरि की पूजा अर्चना की जाती है और प्रार्थना की जाती है कि सभी लोग निरोग हो। 
नरक चतुर्दशी- इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर उबटन व सुगंधित जल से स्नान करके लोग रूप , यश ,सौभाग्य की कामना करते हैं ।
लक्ष्मी पूजा -इस दिन सभी लोग माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा अर्चना करते हैं ।सांययकल सभी लोग घरों के मुख्यद्वार तथा छतो पर दीपक जलाते हैं, दीपक का प्रकाश अंधकार को दूर करता है। । पुरुष ,स्त्री ,बालक बालिकाए सभी नए वस्त्र धारण करते हैं, मिठाइयाँ बनाते हैं और दुकानों की शोभा देखने के लिए जाते हैं,पटाखें फोड़ते हैं। इस दिवस काजल निर्माण करने की प्रथा भी प्रचलित है ।कुछ लोग रूप चौदस के दिन काजल का निर्माण करते हैं। मिट्टी के कच्चे दीपक में घी का दीपक जलाकर उसे ढककर रात भर जला कर उसकी कालिक से काजल का निर्माण करते हैं। उस काजल का प्रयोग अपने घर के मुख्य द्वार पर, धन भंडारगृह में, अपनी आंखों में लगाने के लिए करते हैं।
 काजल निर्माण का वैज्ञानिक महत्व यह है कि दीपावली के दिन लोग पटाखे फोड़ते हैं, जिससे प्रदूषण होता है लोगों की नेत्रों में विकार उत्पन्न होता है, इस अवसर पर यदि घर से बनी काजल का प्रयोग लोग करते हैं, उनकी आंखों में होने वाले विकार का नाश होता है। इस काजल का प्रयोग लोग नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए नेत्रों की ज्योति बढ़ाने के लिए और नजर दोष को दूर करने के लिए भी करते हैं।
 गोवर्धन पूजा -दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है ।इस दिन किसान लोग पशुधन की पूजा अर्चना करते हैं। गोबर से एक पर्वत बना करके उसकी पूजा करते हैं। देवराज इंद्र के अभिमान को दूर करने के लिए श्री कृष्ण ने इस दिन गोवर्धन की पूजा प्रारंभ की थी ।
भाईदूज/यमद्वितीया- इस दिवस यम देवता ने अपनी बहन यमुना की रक्षा का वचन दिया था। बहिने अपने भाई को अपने घर बुलाकर तिलक लगाकर भोजन कराती हैं ,और भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। 
यह विषय वस्तु इतिहास में वर्णित तथ्यों व लोकमान्यता के आधार पर संकलित की गई है।

-आचार्य प्रताप

शनिवार, 7 नवंबर 2020

बघेली गीत-जाड़ लगय बरजोर

गाँउ मा
हमरे कइसन 
बहे ठंड बयारिया भोर।
अब का
कहीं फलाने
जाड़ लगय बड़ी जोर।

चीं-चीं
चूँ-चूँ सुनिके
निकरेन हम घर से बहिरे।
बाहर
आ के या सोच्यन
नाहक हम निकरेन बहिरे।
जब खटिया का हम छोड़्यन तबय करेजा डोल।।


बासी
पानी भरिके
भूसा अउ सानी कीन्हयन।
करत
रह्यन गोरुआरी
कउड़व का लिहन लगाय।
अब का कही हो फलाने हम काँप रह्यन बरजोर।।

मइरे मा
लगा पल्याबा 
अउ हार मा रक्खी धान।
जाड़े मा
फँसिके देख्यन 
ता बिसरिगय सगली शान।।

कउड़ा का निरखी अइसन जइसे चितवय चँद चकोर।।

आचार्य प्रताप

बुधवार, 4 नवंबर 2020

गीतिका में गीत के गुण

सुनो मैं!
खोल दूँगा राज़
सारे गुप्त रक्खे जो।
कहो तो
बोल दूँ मैं बात
सारी मध्य होती जो।


कहो
तो बोल दूँ
कितनी बिताई सर्द में रातें।
जगत न
जानता तेरी-
मेरी वो अनकही बातें।।


जगत के
ही लिए तेरा ,
मेरा परित्याग यूँ करना।
जगत के
ही लिए मेरा 
यूँ तुम पर जान से मरना।।


जो कान्हा को
था राधा से 
जो मोहन को था मीरा से।
वही सब था
हमारे मध्य मैं 
कहता हूँ उर पीड़ा।।

मैं जग को
वो भी बोलूँगा
नही जो कह सका तुमसे।
वो मेरी
दोस्ती न थी 
वो मेरा प्यार था तुमसे।।

आचार्य प्रताप