विनम्र श्रद्धांजलि
किसी भी व्यक्ति की महत्ता ,श्रेष्ठता और लोकप्रियता, उसके जीवन पर्यंत कार्यों व उपलब्धियों से आंकी जाती है। जयप्रकाश नारायण के द्वारा चलाई गयी समग्र क्रांति की हिस्सा रहीं गोवा की पूर्व प्रथम महिला राज्यपाल, महामहिम स्वर्गीय डॉ मृदुला सिन्हा कर्मठ नेता
के रूप में उभर कर आईं तथा नेतृत्व क्षमता के कारण कम अवधि में लोकप्रियता अर्जित कर ली। सामाजिक पत्रिका 'पांचवा स्तंभ' की संपादक भी रहीं ।
बहुमुखी प्रतिभा, सरल, मृदु, सौम्य और प्रभावी व्यक्तित्व की धनी मृदुला जी ने साहित्य, समाज और प्रशासन क्षेत्र में, असीम योगदान के कारण अपना विशिष्ट स्थान बना लिया।
2014 से 2019 तक राज्यपाल जैसे गरिमामय पद पर सुशोभित रहीं, मृदुला जी ने मुजफ्फरपुर काॅलेज की प्रवक्ता , तत्पश्चात मोतिहारी कालेज में प्राचार्य पद के दायित्व को भी संभाला।
परंतु साहित्य लेखन की अभिलाषा और समाज के लिए सकारात्मक कार्य करने की इच्छा के कारण अपने लक्ष्य को नयी राह की ओर मोड़ दिया।
भारत की गौरवशाली संस्कृति, परंपरा और मूल्यों के प्रति उनकी गहरी आस्था थी।
उनका मानना था कि भारत की लोक चेतना को जीवित रखने के लिए संस्कार - संस्कृति को मजबूत बनाना आवश्यक है।वे कहती थीं, संस्कृति राष्ट्र की पहचान को भी सुनिश्चित करती है।
नारी शक्ति, नारी उत्थान तथा नारी सशक्तिकरण की दिशा में मृदुला जी ने सराहनीय कार्य किये। यही कारण है कि वे भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की अध्यक्ष रहीं। पिछड़े कमज़ोर वर्गों के प्रति वे संवेदनशील थीं। आदरणीय मृदुला जी ने वह हर सम्भव प्रयास किया जिससे, नारी की गरिमा को सुरक्षित रखा जाए ,महिलाओं की स्थिति में सुधार हो तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग का जीवन स्तर ऊँचा उठे। अटल बिहारी वाजपेयी जी के समय में आप
केन्द्रीय कल्याणकारी बोर्ड की चेयरमैन नियुक्त की गयीं।
सभी वर्गों की वे श्रद्धा और विश्वास थीं। जनसेवा को लेकर अपने प्रयासों के लिए वे सदा याद की जाएंगी ।
बयालिस से अधिक पुस्तकों की लेखक, विदुषी मृदुला जी की समाज तथा राष्ट्र के प्रति संवेदना;उनकी कलम में झलकती है-
कहानी संग्रह- बिहार की लोक कथायें, ढ़ाई बीघा ज़मीन
स्त्री विमर्श पर - मात्र देह नहीं है औरत
उपन्यास-नई देवयानी, सीता पुनः बोलीं।'एक थी रानी ऐसी भी' ( राजनीतिक सत्ता पर आधारित उपन्यास, जिस पर फिल्म भी बनाई गयी)
लेख संग्रह-यायावरी आंखो से
आदि कृतियाँ साहित्य जगत् में विशिष्ट स्थान रखती हैं।
'राजपथ से लोकपथ' मृदुला जी के जीवन का दर्पण है।
मृदुला जी के योगदान को रेखांकित करते हुए, उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य संस्थान द्वारा साहित्य भूषण से सम्मानित किया गया तथा दीनदयाल उपाध्याय जैसे अनेक पुरस्कारों से अलंकृत किया गया।
हिन्दी भारत राष्ट्र की राष्ट्र भाषा बने; मृदुला जी की प्रबल इच्छा थी। उनकी साहित्य सेवा और हिन्दी प्रेम से हिन्दी साहित्य भारती परिवार अभिभूत रहा।
इस बृहद् कुटुंब की मार्गदर्शक के रूप में आपने व्यापक अनुभवों से लाभान्वित किया साथ ही समय-समय पर आयोजित कार्यक्रमों में अपने उद्गारों से उत्साह वर्धन भी किया।
सतत् सक्रिय , हमारी प्रेरणा,सशक्त संबल मातृ शक्ति , मृदुला सिन्हा अचानक ही 18 नवम्बर 2020 को दिव्य यात्रा की ओर प्रस्थान कर गयीं। उनकी क्षति अपूर्णीय है।
यद्यपि आज माननीय मृदुला सिन्हा जी हमारे बीच नहीं हैं, तब भी उनकी याद सदा हमारे दिलों में प्रकाशित रहेगी।
तेलंगाना हिंदी साहित्य भारती समूह, दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करता है और शोक संतप्त परिवार के प्रति हार्दिक समवेदना प्रकट करता है।
ओउम् शांति ⚘
डॉ. सुरभि दत्त
प्रदेश प्रभारी
तेलंगाना हिंदी साहित्य भारती
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी से आपकी पसंद के अनुसार सामग्री प्रस्तुत करने में हमें सहयता मिलेगी। टिप्पणी में रचना के कथ्य, भाषा ,टंकण पर भी विचार व्यक्त कर सकते हैं