कोशिश करने से कभी ,होती ना है हार।
लिखें कभी जो शब्द हम, ना जाते बेकार।।०१।।
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स्वबल दो-गुना हो गया ,पास रहें जब मित्र ।
अधरों पर मुस्कान तब , प्रणी बडा विचित्र।।०२।।
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गहरी प्रीत न कीजिये , संगी रखें न मित्र।
महाशत्रु से कम नहीं , जो वह हुआ विचित्र।।०३।।
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क्षमा गुरु का धर्म है, पालन करें सदैव।
त्रुटी शिष्य का धर्म है क्षमा कीजिये दैव।।०४।।
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चाहत हो यदि लक्ष्य की , करें परिश्रम और।
कम उत्साह न कीजिये , बनते फिर सिरमौर।।०५।।
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कृषक जगत आधार हैं , देवभूमि यह एक।
हल काँधे रख चल दिये , काम करें वो नेक।।०६।।
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उत्पादन कर अन्न का , देते जीवन दान।
जीवन दाता का कभी , मत करिए अपमान।।०७।।
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आचार्य प्रताप
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