रविवार, 8 नवंबर 2020

दीपमालिका पर्व

 दीपावली का पौराणिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक महत्व 
                       दीपावली हमारा सबसे प्राचीन पर्व है। दीपावली शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है 'दीप+अवलि' इस पर्व का नाम  दीपमालिका, दीपोत्सव शुभरात्रि, यक्षरात्रि ,प्रकाशपर्व इत्यादि भी है। पद्म पुराण व स्कंद पुराण में दीपावली चतुर्युगीउत्सव परंपरा के रूप में वर्णित है ।स्कंद पुराण में यह पर्व सूर्य के प्रतीक के रूप में वर्णित है।यह पंच दिवसीय पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक मास की धनतेरस से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीयातिथि तक मनाया जाता है ।इस पर्व का पौराणिक ,ऐतिहासिक, वैज्ञानिक महत्व हमारे ग्रंथों और इतिहास में मिलता है। जिसकी यहां आज मैं चर्चा करना चाहूंगी ।
पौराणिक महत्व - इस दिन श्री राम रावण आदि राक्षसों को मारकर भार्या सीता तथा भाईलक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास समाप्त करके अपने राज्य अयोध्या आए थे ,अयोध्या वासियों ने प्रसन्न होकर अपने घरों एवं राजमार्गों में दीपक जलाए थे ।उसी दिन से दीपावली मनाने की परंपरा प्रारंभ हुई है ।
              इसी दिन समुंद्र मंथन में श्री लक्ष्मी देवी का आविर्भाव हुआ है। ऐसी मान्यता हैकि श्री धन्वंतरि देवता भी समुद्र मंथन में ही प्रकट हुए थे। महालक्ष्मी देवी के पुनः आविर्भाव की प्रसन्नता में समस्त लोको के लोगों ने दीपक को जलाकर अपनी प्रसन्नता को व्यक्त किया था।
              कठोपनिषद में यम नचिकेता का प्रसंग भी मिलता है। तदनुसार नचिकेता यमलोक से मृत्यु लोक में पुनः आये थे ।नचिकेता मृत्यु पर अमरता के विजय का ज्ञान ग्रहण कर जब वापस पृथ्वी पर आए तब पृथ्वी वासियों ने प्रसन्न होकर दीपक जलाए थे। यह किवदंती है कि यह आर्य्यावर्त्त का प्रथम पर्व है ।
               श्री कृष्ण ने इस दिन नरकासुर का वध करके बंदी बनाये गए देव ,मानव, 16000 कन्या को मुक्त कराया था। सभी प्रजाजनों ने प्रसन्ना होकर दीपक जलाए थे।
                 राजा बलि की दानवीरता से भगवान वामन प्रसन्न हुए। वामन ने बलि को सुतल लोक का राजा बनाया था ।इसी खुशी में तथा भगवान श्री वामन के लीला के प्रति कृतज्ञ लोगों ने दीपक जलाए थे ।
ऐतिहासिक महत्व- १.सम्राट विक्रमादित्य के राज्याभिषेक के समय संपूर्ण राज्य में प्रजा जनों ने दीपोत्सव मनाया था। इसी दिन राजा विक्रमादित्य ने अपने विक्रम संवत को प्रारंभ करने का निर्णय लिया था।
               २.दीपावली के दिन ही महान समाज सुधारक आर्य समाज के संस्थापक सत्यार्थ प्रकाश के रचयिता महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने नश्वर शरीर को छोड़कर निर्वाण प्राप्त किया था ।
   श्री संत स्वामी रामतीर्थ का जन्म व निर्माण भी इसी दिन हुआ था। मान्यता है कि बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री बुद्ध के समर्थक व अनुयायियों ने 25000 वर्ष पूर्व हजारोंदीपको को जलाकर उनका स्वागत किया था ।
   मुगल सम्राट जहाँगीर ने ग्वालियर के दुर्ग में भारत के बहुतसे सम्राटों को बंदी बना लिया था। उन बंदी जनों में सिखों के छठे गुरु हरगोविंद भी थे
 परम वीर, दिव्यात्मा सिख गुरु हरगोविंद ने अपने पराक्रम से सभी लोगों को मुक्त कराया था। इसे मुक्ति दिवस के रूप में हिंदू व सिख धर्म के सभी लोगों ने मनाया था।
 वैज्ञानिक महत्व- दीपावली पर्व वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु के प्रारंभ में आता है .।इस वातावरण में वर्षा ऋतु के कारण उत्पन्न कीटाणु और विषाणु सक्रिय हो जाते हैं ,जिससे घरों में दुर्गंध होती है। दीपावली के अवसर पर लोग अपने घरों में कार्यालयों में अपने प्रतिष्ठान में सफाई,रंगाई, पुताई इस आस्था के साथ करते हैं कि घर में ,दुकान में माता लक्ष्मी का वास होता है ।इस आस्था और विश्वास के कारण ही वर्षा ऋतु में उत्पन्न गंदगी तथा दुर्गंध भी समाप्त हो जाती है ।लोग घी और तेल के दीपक जला कर न केवल वातावरण की दुर्गंध अपितु सक्रिय विषाणु कीटाणुओं को भी समाप्त करके वातावरण को शुद्ध स्वच्छ बनाते हैं। 
पंचदिवसीय पर्व का वर्णन -
 नवीन ऊर्जा, नई उमंग और प्रकाश के इस पर्व का आगाज़ कार्तिक मास की कृष्ण पक्षकी त्रयोदशी तिथि से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक 5 दिनों तक यह मनाया जाता है।
धनतेरस- इस महोत्सव के प्रथम दिवस भगवान धन्वंतरि की साधना और पूजा की जाती है ।वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु के प्रारंभ में मौसमी बीमारियां उत्पन्न होती हैं ,भगवान धन्वंतरी आरोग्य के देवता है ।इस कारण भगवान धन्वंतरि की पूजा अर्चना की जाती है और प्रार्थना की जाती है कि सभी लोग निरोग हो। 
नरक चतुर्दशी- इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर उबटन व सुगंधित जल से स्नान करके लोग रूप , यश ,सौभाग्य की कामना करते हैं ।
लक्ष्मी पूजा -इस दिन सभी लोग माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा अर्चना करते हैं ।सांययकल सभी लोग घरों के मुख्यद्वार तथा छतो पर दीपक जलाते हैं, दीपक का प्रकाश अंधकार को दूर करता है। । पुरुष ,स्त्री ,बालक बालिकाए सभी नए वस्त्र धारण करते हैं, मिठाइयाँ बनाते हैं और दुकानों की शोभा देखने के लिए जाते हैं,पटाखें फोड़ते हैं। इस दिवस काजल निर्माण करने की प्रथा भी प्रचलित है ।कुछ लोग रूप चौदस के दिन काजल का निर्माण करते हैं। मिट्टी के कच्चे दीपक में घी का दीपक जलाकर उसे ढककर रात भर जला कर उसकी कालिक से काजल का निर्माण करते हैं। उस काजल का प्रयोग अपने घर के मुख्य द्वार पर, धन भंडारगृह में, अपनी आंखों में लगाने के लिए करते हैं।
 काजल निर्माण का वैज्ञानिक महत्व यह है कि दीपावली के दिन लोग पटाखे फोड़ते हैं, जिससे प्रदूषण होता है लोगों की नेत्रों में विकार उत्पन्न होता है, इस अवसर पर यदि घर से बनी काजल का प्रयोग लोग करते हैं, उनकी आंखों में होने वाले विकार का नाश होता है। इस काजल का प्रयोग लोग नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए नेत्रों की ज्योति बढ़ाने के लिए और नजर दोष को दूर करने के लिए भी करते हैं।
 गोवर्धन पूजा -दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है ।इस दिन किसान लोग पशुधन की पूजा अर्चना करते हैं। गोबर से एक पर्वत बना करके उसकी पूजा करते हैं। देवराज इंद्र के अभिमान को दूर करने के लिए श्री कृष्ण ने इस दिन गोवर्धन की पूजा प्रारंभ की थी ।
भाईदूज/यमद्वितीया- इस दिवस यम देवता ने अपनी बहन यमुना की रक्षा का वचन दिया था। बहिने अपने भाई को अपने घर बुलाकर तिलक लगाकर भोजन कराती हैं ,और भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। 
यह विषय वस्तु इतिहास में वर्णित तथ्यों व लोकमान्यता के आधार पर संकलित की गई है।

-आचार्य प्रताप

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